यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय (Rise of Nation-States in Europe)

यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय मध्ययुग में यूरोप में सर्वत्र सामंतवाद का प्रभुत्व था और […]

यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय (Rise of Nation-States in Europe)

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यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय

मध्ययुग में यूरोप में सर्वत्र सामंतवाद का प्रभुत्व था और राजाओं की शक्ति अत्यंत क्षीण थी। सामंत स्वयं को लगभग स्वतंत्र शासक मानते थे और राजा के समान अनेक शक्तियों का उपयोग करते थे। राज्यों की स्वतंत्र सत्ता नहीं थी; उन्हें ईसाई जगत का हिस्सा माना जाता था और उन पर पोप का नियंत्रण था। किंतु पंद्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में पुनर्जागरण और धर्मसुधार आंदोलनों के कारण राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ, जिसने मध्ययुग का अंत कर आधुनिक युग का सूत्रपात किया। बौद्धिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से सामंतों की शक्ति समाप्त हुई, चर्च का प्रभाव कमजोर पड़ा और आधुनिक राष्ट्रीय राज्यों के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।

आधुनिक युग के प्रारंभ में पश्चिमी यूरोप में स्पेन, फ्रांस, इंग्लैंड, पुर्तगाल और स्कॉटलैंड जैसे शक्तिशाली और प्रतिस्पर्धी राजतंत्रों का उदय हुआ। वहीं, दक्षिणी, पूर्वी और मध्य यूरोप में जर्मनी, इटली, बोहेमिया, पोलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, डेनमार्क, तुर्की, रूस और लिथुआनिया जैसे देश अपनी अविकसित व्यवस्थाओं के कारण उतने संगठित और सशक्त नहीं हो सके। इस प्रकार राष्ट्रीय राजतंत्रों का उत्कर्ष आधुनिक युग की एक प्रमुख विशेषता बन गया।

राष्ट्रीय राजतंत्रों के उदय के कारण

सामंतवाद का पतन

मध्ययुगीन यूरोप की प्रमुख विशेषता सामंतवादी व्यवस्था थी। सामंतों ने धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ाकर छोटे-छोटे राज्यों के समान शासन करना प्रारंभ किया। वे न केवल परस्पर युद्ध करते थे, बल्कि राजा के विरुद्ध भी युद्ध छेड़ने से नहीं हिचकते थे। इंग्लैंड में ‘गुलाबों का युद्ध’ (1455-1485) इसका प्रमुख उदाहरण है, जो तीस वर्षों तक चला। कृषकों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी और शोषण अपने चरम पर था। जनसाधारण सामंतवादी व्यवस्था से त्रस्त था और इसके पतन के लिए प्रयासरत था। जब राजाओं ने सामंतों के दमन हेतु अपनी शक्ति बढ़ाई, तो जनता ने उनका साथ दिया। इससे सामंतवाद का पतन हुआ और राजा की शक्ति में वृद्धि हुई, जिसने निरंकुश राजतंत्रों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

व्यापार-वाणिज्य का विकास

व्यापारिक क्रांति ने निरंकुश राजतंत्रों के उदय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वाणिज्यवादी नीतियों के कारण राजाओं को प्रचुर धन प्राप्त हुआ, जिसका उपयोग उन्होंने सेना को संगठित करने और अपनी सत्ता के विस्तार में किया। व्यापार के विस्तार ने सुदृढ़ सरकार की आवश्यकता को और बल दिया। व्यापार-वाणिज्य की उन्नति के साथ मध्यम वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई। इस वर्ग ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा और विकास के लिए सशक्त राजतंत्र का समर्थन किया। मध्यम वर्ग ने सामंतों के विरुद्ध राजतंत्र की सहायता की और राष्ट्रीयता की भावना को प्रोत्साहन दिया। बदले में राजाओं ने व्यापार-वाणिज्य को संरक्षण प्रदान किया।

मध्यम वर्ग का उत्थान

मध्यम वर्ग का उत्थान सामंतवादी व्यवस्था के पतन की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में मध्यम वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति अत्यंत सशक्त हो गई थी। इस नवोदित वर्ग ने अपने व्यापार और वाणिज्य के विकास और सुरक्षा के लिए राजतंत्र का समर्थन किया। राजाओं ने भी व्यापार को संरक्षण देकर मध्यम वर्ग की सहानुभूति प्राप्त की। इससे न केवल उपनिवेशों की स्थापना को बढ़ावा मिला, बल्कि प्रबुद्ध मध्यम वर्ग ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इतिहासकार हेज के शब्दों में ‘मध्यम वर्ग का विकास और राजतंत्र से उसका निकट संबंध संभवतः मध्ययुग से आधुनिक युग के परिवर्तन का सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य था।’

धर्मसुधार आंदोलन

मध्ययुग के अंत तक चर्च में अनेक दोष उत्पन्न हो गए थे। पोप धार्मिक क्षेत्र के अतिरिक्त राजनीतिक क्षेत्र में भी हस्तक्षेप करने लगा था। किंतु पुनर्जागरण और आधुनिक युग के आगमन के साथ यूरोप की जनता तर्कवादी हो चुकी थी। उसने पोप की भ्रष्टता, विलासिता और आचारहीनता का विरोध किया। पश्चिमी यूरोप के शासकों ने, जो राजनीतिक कारणों से पोप की सत्ता के विरोधी थे, जनता की भावनाओं का लाभ उठाया और चर्च की सत्ता का कड़ा विरोध किया। कुछ यूरोपीय देशों ने प्रोटेस्टेंट आंदोलन को समर्थन दिया। धर्मसुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप कैथोलिक चर्च की एकता भंग हुई और चर्च राजा के अधीन हो गया। इससे राजा की प्रतिष्ठा और शक्ति में वृद्धि हुई, जिसने राष्ट्रीयता की भावना को और बल प्रदान किया।

राष्ट्रीयता की भावना का विकास

राष्ट्रीयता की भावना का विकास राजतंत्रों के उत्कर्ष का एक प्रमुख कारण था। धर्मयुद्ध, पुनर्जागरण, धर्मसुधार और देशज साहित्य ने इस भावना को सशक्त बनाया। मठों के विघटन से राष्ट्रीय राज्यों की आय और शक्ति में वृद्धि हुई। पहले धर्मप्रधान सभ्यता अब राष्ट्रप्रधान बन गई। राष्ट्रीय गौरव और सम्मान की भावना ने जनता को राजाओं को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रेरित किया। समुद्रपार व्यापार और उपनिवेशों की स्थापना के लिए शक्तिशाली नौसेना और सैन्य शक्ति की आवश्यकता थी, जिसे केवल सशक्त राजतंत्र ही प्रदान कर सकता था। व्यापार और उपनिवेश राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक बन गए, जिससे राजतंत्र को और बल मिला।

नवीन आविष्कार

पुनर्जागरण काल के नवीन आविष्कारों ने राजतंत्रों के उत्थान में विशेष योगदान दिया। बारूद का आविष्कार, तोपों का उपयोग, युद्ध पद्धतियों में परिवर्तन, नए उपनिवेशों की खोज और छापेखाने का आविष्कार इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। बारूद और बंदूकों के सामने सामंतों के दुर्ग और अष्वारोही सेना निष्प्रभावी हो गई, जिससे शक्तिशाली राजतंत्रों का उदय हुआ।

दैवी उत्पत्ति का सिद्धांत

निरंकुश राजतंत्र के विकास में दैवी उत्पत्ति के सिद्धांत ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पुनर्जागरण और धर्मसुधार काल के विद्वानों ने राजसत्ता को सुदृढ़ करने में सहयोग दिया। इटालियन विचारक मैकियावेली ने अपने ग्रंथ दि प्रिंस में कहा कि राज्य का उद्देश्य व्यक्ति और संपत्ति की सुरक्षा होना चाहिए और यह कार्य केवल निरंकुश राजतंत्र ही कर सकता है। फ्रांसीसी लेखक बोडिन ने अपने ग्रंथ दि स्टेट में संप्रभुता के सिद्धांत की व्याख्या करते हुए कहा कि राजा की सत्ता असीमित होनी चाहिए और वह केवल ईष्वर के प्रति उत्तरदायी होता है। इसी प्रकार अंग्रेज लेखक हॉब्स ने अपनी पुस्तक लेवियाथन में शक्तिशाली निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया।

प्रमुख निरंकुश राजतंत्र और उनका विकास

सामंतवाद का पतन, व्यापार-वाणिज्य की उन्नति, मध्यम वर्ग का उत्थान, धर्मसुधार आंदोलन, राष्ट्रीयता की भावना का विकास, नवीन आविष्कार और राजा की दैवी उत्पत्ति के सिद्धांत ने निरंकुश राजतंत्रों के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। पश्चिमी यूरोप के प्रमुख देश- स्पेन, फ्रांस, इंग्लैंड, पुर्तगाल और स्कॉटलैंड निरंकुश राष्ट्रीय राजतंत्र की स्थापना की ओर अग्रसर हुए। आधुनिक युग के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय राजतंत्रों का वर्णन निम्नलिखित है:

स्पेन

पिरेनीज़ पहाड़ों के दक्षिण में भूमध्य सागर, अटलांटिक महासागर और पुर्तगाल से घिरा पठारी क्षेत्र स्पेन है। पंद्रहवीं शताब्दी से पहले स्पेन में राजनीतिक एकता का अभाव था और यह कई क्षेत्रीय राज्यों में विभक्त था। आठवीं शताब्दी में उत्तरी अफ्रीका के मूर मुसलमानों ने स्पेन पर अधिकार कर लिया था, जिसके कारण वहाँ के ईसाई निवासियों को पहाड़ों में शरण लेनी पड़ी। किंतु दीर्घकालिक एकीकरण के प्रयासों के बाद ईसाइयों ने पंद्रहवीं शताब्दी तक ग्रेनाडा को छोड़कर स्पेन के शेष भागों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस प्रकार सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में स्पेन में राष्ट्रीय राजतंत्र का उत्कर्ष संभव हुआ।

यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय (Rise of Nation-States in Europe)
कैस्टील और आरागान के राज्य
कैस्टील और आरागान के राज्य

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक स्पेन मुख्यतः दो प्रमुख राज्यों- अरागान और कैस्टील में विभक्त था। 1479 ई. में अरागान के युवराज फर्डिनेंड और कैस्टील की उत्तराधिकारिणी राजकुमारी इसाबेला का विवाह हुआ। इस विवाह के फलस्वरूप अरागान और कैस्टील एकीकृत हो गए, जिससे स्पेन का राजनीतिक एकीकरण संभव हुआ। केवल ग्रेनाडा मूरों के अधीन रहा। अंततः 1492 ई. में फर्डिनेंड और इसाबेला की संयुक्त सेनाओं ने मूरों को परास्त कर ग्रेनाडा पर अधिकार कर लिया। इससे स्पेन को पूर्ण धार्मिक और राष्ट्रीय एकता प्राप्त हुई और यह एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।

फर्डिनेंड और इसाबेला

चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी में तुर्कों के बढ़ते प्रभाव से ईसाई जगत संकट में था। पूर्वी यूरोप में मुसलमानों का प्रभाव बढ़ रहा था और साम्राज्य की राजधानी वियना भी सुरक्षित नहीं थी। किंतु पश्चिम में स्पेन की सेनाओं ने मूरों के सदियों पुराने प्रभाव का अंत कर ईसाई प्रभाव की पुनर्स्थापना की।

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अरागान के युवराज फर्डिनेंड एवं कैस्टील की उत्तराधिकारिणी राजकुमारी इसाबेला

फर्डिनेंड और इसाबेला ने स्पेन में निरंकुश राजतंत्र की स्थापना के लिए समस्त राजनीतिक अधिकारों को केंद्रीकृत करने और धार्मिक एकता स्थापित करने की नीति अपनाई। उन्होंने स्वतंत्र नगरों की सत्ता समाप्त की, उद्दंड सामंतों का दमन किया और राज्य में शांति व सुव्यवस्था स्थापित की। फर्डिनेंड ने व्यापार-वाणिज्य को राजकीय संरक्षण प्रदान किया, लुटेरों का दमन किया और आवागमन के साधनों में वृद्धि की। शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया गया, जिसने उपनिवेशों की स्थापना में सहायता की।

उन्होंने धार्मिक एकता के महत्त्व को समझा और कैथोलिक चर्च के प्रति निष्ठा प्रकट की। इससे प्रसन्न होकर पोप अलेक्जेंडर षष्ठम ने उन्हें ‘कैथोलिक सम्राट’ की उपाधि प्रदान की। पोप ने यह भी स्वीकार किया कि स्पेन में चर्च के अधिकारियों की नियुक्ति राजा के हाथों में होगी। धार्मिक एकता स्थापित करने के लिए ‘इनक्विज़िशन’ (धार्मिक न्यायालय) स्थापित किए गए, जो धर्म-विरोधियों को दंडित करते थे। इसके माध्यम से कई विरोधियों को मृत्युदंड दिया गया और मुसलमानों तथा यहूदियों को स्पेन से निष्कासित कर दिया गया।

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कोलंबस, नई दुनिया की खोज करने के बाद बर्सीलोना के राजदरबार में

स्पेन ने यूरोपीय राजनीति में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए वैदेशिक और औपनिवेशिक विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया। 1492 ई. में कोलंबस की खोज ने नई दुनिया (अमेरिका) में विशाल स्पेनिश साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। शीघ्र ही अमेरिका के अधिकांश भाग पर स्पेन का प्रभुत्व स्थापित हो गया। इन क्षेत्रों में सोने-चाँदी की प्रचुरता थी। अमेरिका ने स्पेन को एक कल्पवृक्ष प्रदान किया, जिसने आधुनिक युग के प्रारंभ में स्पेन को यूरोप के सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्रों में स्थापित कर दिया।

फर्डिनेंड ने पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया और इंग्लैंड के साथ संबंध सुदृढ़ करने के लिए अपनी द्वितीय पुत्री मारिया का विवाह पुर्तगाल के शासक से, ज्येष्ठ पुत्री जोआना का विवाह ऑस्ट्रिया के युवराज फिलिप प्रथम से और कनिष्ठ पुत्री कैथरीन का विवाह इंग्लैंड के युवराज आर्थर से (आर्थर की मृत्यु के बाद हेनरी अष्टम से) किया। इन वैवाहिक गठबंधनों से स्पेन का प्रभाव अभूतपूर्व रूप से बढ़ा। यद्यपि जनसंख्या और घरेलू संसाधनों में फ्रांस के समकक्ष न होने के बावजूद स्पेन ने अपना प्रभुत्व बनाए रखा।

स्पेन के एकीकरण का अंतिम कदम 1512 ई. में उठाया गया, जब फ्रांस को परास्त कर नावारे पर अधिकार कर लिया गया। इस प्रकार इसाबेला और फर्डिनेंड के संयुक्त प्रयासों से स्पेन का पूर्ण एकीकरण संभव हुआ और इसे यूरोपीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।

चार्ल्स प्रथम (1516-1556 ई.)

फर्डिनेंड की मृत्यु के बाद उनकी ज्येष्ठ पुत्री जोआना के पुत्र चार्ल्स प्रथम (1516-1556 ई.) स्पेन की गद्दी पर बैठे। 1519 ई. में उन्हें पवित्र रोमन साम्राज्य का सम्राट चुना गया, जिसके कारण वह चार्ल्स पंचम कहलाए। उन्होंने स्पेन के अतिरिक्त पवित्र रोमन साम्राज्य, नीदरलैंड्स, बरगंडी, नेपल्स, सिसिली, सार्डिनिया, संपूर्ण स्पेनिश अमेरिका, फिलीपींस और अफ्रीका के कुछ भागों पर शासन किया। चार्ल्स के शासनकाल में स्पेन अपने गौरव की पराकाष्ठा पर पहुँचा, किंतु यह गौरव स्थायी नहीं रहा।

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चार्ल्स प्रथम (पवित्र रोमन सम्राट चार्ल्स पंचम)

इंग्लैंड

इंग्लैंड में राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय सरकार की स्थापना पश्चिमी यूरोप के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक तीव्र गति से हुई। 1337 से 1453 ई. तक फ्रांस और इंग्लैंड के बीच चले शतवर्षीय युद्ध (सामंती और राजवंशीय युद्ध) के परिणाम महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए। प्रारंभ में इंग्लैंड को सफलता मिली, किंतु अंततः उसे पराजय का सामना करना पड़ा। शतवर्षीय युद्ध के समापन के दो वर्ष बाद, इंग्लैंड में ‘गुलाबों का युद्ध’ (1455-1485 ई.) नामक भयंकर सामंती गृहयुद्ध भड़क उठा। यह युद्ध यॉर्क राजवंश (प्रतीक: ष्वेत गुलाब) और लंकास्टर राजवंश (प्रतीक: लाल गुलाब) के सामंतों और उनके समर्थकों के बीच लड़ा गया। यह संघर्ष 1485 ई. में समाप्त हुआ, जब लंकास्टर वंश के दावेदार हेनरी ट्यूडर ने बॉसवर्थ के युद्ध में निर्णायक विजय प्राप्त की।

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यार्क राजवंश का प्रतीक श्वेत गुलाब और लंकास्टर राजवंश का प्रतीक लाल गुलाब
हेनरी सप्तम

1485 ई. में हेनरी ट्यूडर हेनरी सप्तम (1485-1509 ई.) के रूप में इंग्लैंड के सिंहासन पर बैठे और ट्यूडर वंश (1485-1603 ई.) की स्थापना की। हेनरी सप्तम ने न केवल एक शक्तिशाली राजवंश स्थापित किया, बल्कि मध्ययुगीन कुरीतियों, अंधविष्वासों और सामंती अत्याचारों से इंग्लैंड को मुक्त कर इसे आधुनिक युग में प्रवेश कराया। उनके शासनकाल को इंग्लैंड के इतिहास में ‘बीजारोपण और सुधारों का युग’ कहा जाता है।

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ट्यूडर वंश का प्रथम शासक हेनरी सप्तम (1485-1509 ई.

‘गुलाबों के युद्ध’ से हेनरी सप्तम को दो प्रमुख लाभ हुए। प्रथम, इस युद्ध में कई शक्तिशाली और प्रभावशाली सामंत या तो मारे गए या अशक्त हो गए। हेनरी ने विभिन्न अधिनियमों द्वारा सामंतों का दमन किया, उनके सैन्य अधिकार छीने और मध्यम वर्ग के लोगों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। इससे सामंतवाद का अंत हुआ और निरंकुशता को बल मिला। द्वितीय, सामंतों के दमन से मध्यम वर्ग का उदय हुआ, जिसने अपने हितों के लिए राजा का समर्थन किया। इस जन-समर्थन के आधार पर ट्यूडर राजाओं ने सोलहवीं शताब्दी में निरंकुश राजतंत्र स्थापित किया।

हेनरी सप्तम ने यॉर्क वंश की एलिजाबेथ से विवाह कर ‘गुलाबों के युद्ध’ को स्थायी रूप से समाप्त किया और इंग्लैंड में शांति स्थापित की। साथ ही, उन्होंने शक्तिशाली राजतंत्र की स्थापना कर अपने सिंहासन की रक्षा की। इससे देश के सभी भागों में एकता स्थापित हुई और राष्ट्रवाद की भावना जागृत हुई। लंकास्टर और यॉर्क के युद्धों से उत्पन्न शासकीय शिथिलता को दूर कर हेनरी ने राजा की शक्ति को सुदृढ़ किया।

हेनरी अष्टम

हेनरी सप्तम के बाद हेनरी अष्टम (1509-1547 ई.) के शासनकाल में इंग्लैंड में धर्मसुधार आंदोलन हुआ, जिसके महत्त्वपूर्ण संवैधानिक और धार्मिक प्रभाव पड़े। इस आंदोलन ने राजा और संसद को देश के धार्मिक जीवन पर नियंत्रण का अधिकार प्रदान किया। कुछ वर्षों बाद मठों और समर्पित पूजागृहों के विघटन ने राजा को धन और समर्थन दोनों प्रदान किए।

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हेनरी अष्टम् (1509-1547 ई.)

ट्यूडर वंश की अंतिम शासिका एलिजाबेथ प्रथम ने भी राजा की शक्ति को बढ़ाया। उन्होंने इंग्लैंड को समुद्रों का स्वामी और विश्व का प्रमुख व्यापारिक राष्ट्र बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ट्यूडर काल में इंग्लैंड की व्यापारिक प्रगति के साथ-साथ उसका अंतरराष्ट्रीय महत्त्व भी बढ़ा। अंग्रेजों को अपने देश पर गर्व था और ट्यूडर शासक इंग्लैंड की शक्ति और गौरव के प्रतीक बन गए। ट्यूडर शासकों के शासनकाल में संसद उनके प्रभाव में रही। किंतु स्टुअर्ट शासनकाल (1603-1688 ई.) के अंतिम शासक जेम्स द्वितीय के समय में 1688 ई. की रक्तहीन गौरवपूर्ण क्रांति में संसद की विजय हुई, जिसने लोकतंत्र की नींव रखी और निरंकुशता का अंत किया।

स्कॉटलैंड

सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक स्कॉटलैंड में भी राष्ट्रीय राजतंत्र स्थापित हो चुका था, किंतु यह इंग्लैंड की तुलना में अत्यंत कमजोर था। इसका प्रमुख कारण यह था कि स्टुअर्ट शासक अपने सामंतों का दमन करने में असफल रहे। इस कमजोरी के कारण स्कॉटलैंड के शासक फ्रांस की सहायता पर निर्भर रहे। परिणामस्वरूप, सोलहवीं शताब्दी में स्कॉटलैंड का राष्ट्रीय राजतंत्र अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक दांवपेचों में कठपुतली मात्र बना रहा।

फ्रांस

फ्रांस का विकास इंग्लैंड से भिन्न रहा। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे आक्रमणों के प्रति संवेदनशील बनाती थी, क्योंकि यह इंग्लैंड की तरह समुद्र से सुरक्षित नहीं था। 1500 ई. तक फ्रांस एक राष्ट्रीय राजतंत्र बन चुका था और वहाँ राष्ट्रीय साहित्य का उदय हो चुका था। राष्ट्रीय भावनाओं का केंद्र राजा था। शतवर्षीय युद्ध में फ्रांस को भारी क्षति हुई, किंतु इसने राज्य की शक्ति को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया। फ्रांसीसी राजाओं ने युद्ध की आवश्यकताओं के कारण ‘स्टेट्स जनरल’ को बुलाए बिना कर लगाने का अधिकार प्राप्त कर लिया, जिससे वे स्थायी सेना बनाए रखने में सक्षम हुए। अब राजा के अतिरिक्त किसी को सेना संगठित करने का अधिकार नहीं था। नियमित सेना और पर्याप्त धन ने फ्रांसीसी राजाओं को असीम शक्ति प्रदान की।

लुई ग्यारहवाँ (1461-1483 ई.)

लुई ग्यारहवाँ ने फ्रांस में निरंकुश राजसत्ता की नींव डाली। उनके शासनकाल में मध्यम वर्ग ने वाणिज्य की उन्नति और शांति स्थापना के लिए सामंतों के विरुद्ध राजतंत्र का समर्थन किया। लुई ने कुशल कूटनीति और व्यावहारिक बुद्धि से सामंतों की शक्तियाँ और जागीरें छीन लीं। उन्होंने सामंती न्यायालयों को समाप्त कर राजकीय न्यायालय स्थापित किए। साथ ही, चर्च पर नियंत्रण, उद्योग-धंधों को संरक्षण, जहाजों और बंदरगाहों का विकास, एकसमान मुद्रा और नाप-तौल कानून जैसे कदम उठाकर फ्रांस को सुदृढ़ राष्ट्र बनाया। इस प्रकार लुई ग्यारहवाँ ने फ्रांसीसी सीमाओं का विस्तार किया और निरंकुश राजतंत्र की नींव डाली।

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लुई ग्यारहवाँ
हेनरी चतुर्थ (1589-1610 ई.)

सोलहवीं शताब्दी में धार्मिक युद्धों से उत्पन्न अराजकता ने निरंकुश राजतंत्र को और सशक्त किया। हेनरी चतुर्थ न केवल फ्रांस के इतिहास में महान राजा के रूप में, बल्कि लोकप्रिय शासक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। उन्होंने बूर्बों राजवंश की स्थापना की, जो दो सौ वर्षों तक फ्रांस पर शासन करता रहा। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य राजा की प्रभुता को पुनर्स्थापित करना था।

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हेनरी चतुर्थ
लुई तेरहवाँ और कार्डिनल रिशल्यू

हेनरी चतुर्थ के बाद 1617 ई. में लुई तेरहवाँ बालिग होने पर शासक बने। उनमें प्रशासकीय क्षमता का अभाव था, किंतु उन्हें कार्डिनल रिशल्यू की अमूल्य सेवाएँ प्राप्त हुईं। रिशल्यू को 1624 ई. में प्रधानमंत्री बनाया गया और वे 1642 ई. तक अपने पद पर रहे। उनके दो लक्ष्य थेरू राजा को फ्रांस में संप्रभु बनाना और फ्रांस को यूरोप में सर्वश्रेष्ठ बनाना। रिशल्यू ने सामंतों और काल्विनवादी प्रोटेस्टेंटों (ह्यूगनोट्स) का दमन कर राजा की निरंकुश सत्ता स्थापित की। उन्होंने स्टेट्स जनरल की बैठक बुलाने से इनकार कर दिया, जिससे राजा को कानून बनाने, लागू करने, कर लगाने और खर्च करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस प्रकार रिशल्यू निरंकुश राजतंत्र के प्रमुख निर्माता बने।

रिशल्यू की मृत्यु के बाद लुई चौदहवाँ (1643-1715 ई.) की अल्पवयस्कता के दौरान कार्डिनल मज़ारिन ने 1661 ई. तक शासन सँभाला। उन्होंने रिशल्यू की नीतियों को जारी रखा। रिशल्यू ने कैथोलिक होते हुए भी तीसवर्षीय युद्ध (1618-1648 ई.) में प्रोटेस्टेंटों का समर्थन किया। लुई चौदहवाँ के शासनकाल में निरंकुश राजतंत्र अपने चरम पर पहुँचा। वह कहा करते थे: ‘मैं ही राज्य हूँ।’ रिशल्यू और मेजारिन के प्रयासों ने निरंकुश राजतंत्र को सशक्त बनाया। किंतु लुई सोलहवाँ (1774-1793 ई.) के समय फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) ने निरंकुश राजसत्ता का अंत कर दिया।

अन्य निरंकुश राष्ट्रीय राज्य

प्रशा

प्रशा का उत्थान सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में हुआ। ब्रैंडेनबर्ग की डची इसका आधार बनी और यह एक साम्राज्य में परिवर्तित हुई। 17वीं शताब्दी में फ्रेडरिक विलियम (1640-1688 ई.), जिन्हें ‘महान इलेक्टर’ कहा जाता है, प्रशा के शासक बने। उन्होंने प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से प्रशा को सुदृढ़ किया और निरंकुश राजतंत्र स्थापित किया। उन्होंने तीसवर्षीय युद्ध से बंजर हुई भूमि पर काम करने वाले कृषकों को छह वर्षों तक करों से मुक्ति दी और सरकारी नियंत्रण में कारखानों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने विशाल सेना का संगठन किया और प्रांतीय प्रशासन में लोकप्रिय स्टेट्स को समाप्त कर दिया। प्रशा के शासकों में फ्रेडरिक महान (1740-1786 ई.) सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं, जिनके शासनकाल में प्रशा का विकास अपने चरम पर पहुँचा।

यूरोप में राष्ट्र-राज्यों का उदय (Rise of Nation-States in Europe)
फ्रेडरिक महान्
पुर्तगाल

पुर्तगाल प्रारंभ में कैस्टील का हिस्सा था, किंतु 1095 ई. में स्वतंत्र हो गया। इसके बाद भी कैस्टील के राजा इसे हथियाने का प्रयास करते रहे। 1385 ई. में पुर्तगाल के राजा जॉन प्रथम ने अंग्रेज धनुर्धरों की सहायता से कैस्टील के राजा को परास्त कर स्वतंत्र पुर्तगाल की स्थापना की। इसके बाद पुर्तगाल में कई योग्य शासक हुए, जिनमें ‘हेनरी द नेविगेटर’ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। उन्होंने समुद्री अभियानों और भौगोलिक खोजों को प्रोत्साहित किया। उनकी योजना के तहत वास्को डि गामा केप ऑफ गुड होप होते हुए भारत पहुँचा। 1500 ई. तक पुर्तगाल अपने शासकों के प्रयासों, नवीन आविष्कारों और भौगोलिक खोजों के कारण यूरोपीय राजनीति में एक प्रमुख राष्ट्रीय राज्य बन चुका था। किंतु 1580 ई. में स्पेन के शासक फिलिप द्वितीय ने पुर्तगाल को स्पेन में विलीन कर लिया।

जर्मनी

पवित्र रोमन साम्राज्य यूरोप के इतिहास में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा। प्रारंभ में इसके अंतर्गत मध्य और पश्चिमी यूरोप, पोलैंड, इटली, बरगंडी और हंगरी शामिल थे, किंतु बाद में ये राज्य स्वतंत्र हो गए। पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जर्मनी ही पवित्र रोमन साम्राज्य बन गया। यद्यपि इसका सम्राट धार्मिक दृष्टि से सर्वोच्च माना जाता था, किंतु उसकी राजनीतिक स्थिति कमजोर थी। जर्मनी लगभग 300 छोटी-बड़ी रियासतों में विभक्त था, जो परस्पर ईर्ष्या रखते थे। सम्राट सामंतों पर नियंत्रण रखने में असमर्थ था, जिसके कारण जर्मनी राष्ट्रीय राजतंत्रों की दौड़ में पिछड़ गया।

पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जर्मनी में राष्ट्रवादी भावनाएँ प्रबल होने लगीं। हैप्सबर्ग वंश उस समय सबसे शक्तिशाली था और इसके राजकुमार लंबे समय से सम्राट चुने जाते थे। 1493 ई. में मैक्सिमिलियन सम्राट बने और 1519 ई. तक शासन किया। किंतु सामंतों की स्वार्थपरता और स्थायी सेना के अभाव में उनके सुधार प्रभावी नहीं हो सके। मैक्सिमिलियन ने नीदरलैंड्स की राजकुमारी और अपने पुत्र फिलिप प्रथम का विवाह स्पेन की राजकुमारी जोआना से कराया, किंतु जर्मन साम्राज्य के राष्ट्रीय एकीकरण में कोई विशेष प्रगति नहीं हुई।

इटली

मध्ययुग के अंत में इटली में एकता का पूर्ण अभाव था। यह अनेक राज्यों में विभक्त था, जो परस्पर वैमनस्य के कारण सतत संघर्षरत रहते थे। इस फूट का लाभ उठाकर फ्रांस और स्पेन जैसे देश इटली पर अधिकार करने का प्रयास करने लगे। इटली के प्रमुख राज्य मिलान, वेनिस, फ्लोरेंस, नेपल्स और रोम थे।

तुर्की

पंद्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में तुर्कों ने पवित्र रोमन साम्राज्य के पूर्वी भागों पर अधिकार करना शुरू किया। 1453 ई. में मुहम्मद द्वितीय ने कांस्टेंटिनोपल पर कब्जा कर लिया, जिससे पूर्वी रोमन साम्राज्य का पतन हुआ। बाद में उनके पौत्र सेलिम ने ईरान, सीरिया और मिस्र पर विजय प्राप्त की, जिससे एक विशाल तुर्क साम्राज्य की स्थापना हुई। सेलिम की मृत्यु 1520 ई. में हुई। उनके पुत्र सुलेमान के शासनकाल में तुर्क साम्राज्य अपनी उन्नति के चरम पर पहुँचा।

रूस

आधुनिक युग की पूर्व संध्या पर रूस केंद्रीय शक्ति से रहित था और आंतरिक सामंती संघर्षों, डेनमार्क, नॉर्वे और तातारों के आक्रमणों के कारण कमजोर और प्रभावहीन था। सोलहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में पुनर्जागरण की लहरें प्रवाहित हो रही थीं, किंतु रूस इन परिवर्तनों से अछूता रहा। किंतु सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ईवान महान (1462-1505 ई.) ने तातार मुसलमानों की सत्ता समाप्त कर मॉस्कोवी निरंकुश साम्राज्य की स्थापना की। उन्होंने ‘ज़ार’ की उपाधि धारण की, जिसका अर्थ रूसी में सर्वोच्च स्वतंत्र शासक है। ईवान महान के बाद ईवान भयंकर (1533-1584 ई.) ने जारशाही की शक्ति और रूसी सीमाओं का विस्तार किया। इस प्रकार, सोलहवीं शताब्दी में रूस राष्ट्रीय राज्यों की श्रेणी में शामिल हो गया।

ईवान भयंकर की मृत्यु (1584 ई.) के बाद 1613 ई. तक रूस में गृहयुद्ध और अराजकता रही। 1613 ई. में रूसी सामंतों ने सोलह वर्षीय मिखाइल रोमानोव को ज़ार नियुक्त किया। यह रोमानोव वंश रूसी क्रांति (1917 ई.) तक शासन करता रहा।

बोहेमिया, हंगरी, पोलैंड और लिथुआनिया

बोहेमिया परंपरागत रूप से पवित्र रोमन साम्राज्य का हिस्सा था। वहाँ राजा का निर्वाचन होता था और सामंत विदेशी राजकुमारों को राजा चुनते थे, जिसके कारण बोहेमिया हंगरी के अधीन हो गया। किंतु अनेक विषमताओं के कारण हंगरी में राष्ट्रीय राज्य की स्थापना नहीं हो सकी। 1547 ई. में तुर्कों की विजय ने हंगरी का विभाजन कर दिया।

पोलैंड और लिथुआनिया ने पवित्र रोमन साम्राज्य से स्वतंत्रता की घोषणा की, किंतु सामंतों के पारस्परिक विरोध के कारण राष्ट्रीयता का विकास बाधित हुआ।

नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन

नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन उत्तर-पश्चिमी यूरोप के प्रमुख राज्य थे। 1397 ई. से नॉर्वे और स्वीडन पर डेनमार्क के राजा का शासन था। 1523 ई. में स्वीडन ने स्वतंत्रता प्राप्त की, किंतु नॉर्वे पर डेनमार्क का प्रभुत्व बना रहा। सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में ये तीनों राज्य निरंकुश राजतंत्र की स्थापना की ओर अग्रसर थे।

राष्ट्रीय राज्यों का पतन

राष्ट्रीय राज्यों के उदय से यूरोप में शांति स्थापित नहीं हुई। मध्यम वर्ग द्वारा समर्थित राष्ट्रीय राजाओं ने सामंती युद्धों को समाप्त करने और आंतरिक शांति के नाम पर युद्ध किए, किंतु इसके बाद राष्ट्रीय और वंशानुगत युद्ध शुरू हुए। युद्धों के बढ़ते व्यय ने करों में वृद्धि की, जिससे राजतंत्रों का नवोदित सामाजिक शक्तियों के साथ संघर्ष शुरू हुआ।

अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लोकप्रिय सरकारों की मांग ने निरंकुशता की जड़ें कमजोर कीं। जनता ने राजा के असीमित अधिकारों और अनुचित कानूनों का विरोध शुरू किया। विरोधियों में वे वर्ग भी शामिल थे, जिन्होंने पहले शक्तिशाली राजाओं का समर्थन किया था। जनता ने राजसत्ता में हिस्सेदारी और निरंकुश अधिकारों में कटौती की मांग की। यह संघर्ष सबसे पहले इंग्लैंड में सामने आया। इसके बाद अमेरिकी क्रांति (1775-1783 ई.) और फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई.) ने निरंकुशता को गहरा आघात पहुँचाया।

राष्ट्रीय राज्यों के उदय से कुछ सकारात्मक परिणाम भी प्राप्त हुए। सामंतवाद का अंत हुआ, आर्थिक विकास से उत्पादन बढ़ा, तकनीकी क्षेत्र में नवीन प्रणालियाँ विकसित हुईं, और राष्ट्रों की सीमाएँ अधिक निश्चित और तर्कसंगत हुईं। सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि आधुनिक राष्ट्रीय चेतना निरंकुश राजतंत्रों की देन है।

 

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