अंग्रेजी गृहयुद्ध (English Civil War, 1642-1649)

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अंग्रेजी गृहयुद्ध (1642-1649)

इंग्लैंड में 1642 से 1649 तक सप्तवर्षीय अंग्रेजी गृहयुद्ध चला, जिसने राजाओं की स्वेच्छाचारिता, निरंकुशता और विशेष रूप से उनके दैवीय अधिकारों को समाप्त कर दिया। इंग्लैंड की जनता ने इस गृहयुद्ध से यह प्रमाणित कर दिया कि राज्य में जनता एवं संसद का भी महत्व है। यदि जनता को उसके आवश्यक अधिकार प्रदान नहीं किये जायेंगे, तो जनता राजा के विरुद्ध आवाज उठा सकती है। आज यह कोई असाधारण घटना नहीं लगती है, किंतु 17वीं शताब्दी के लिए यह एक महत्वपूर्ण घटना थी।

अंग्रेजी गृहयुद्ध के कारण

इस विद्रोह का बीजारोपण जेम्स प्रथम के काल (1603-1625) में ही हो गया था और चार्ल्स प्रथम (1625-1649) ने अपनी गलतियों से इस पौधे को सींचा, जिसका फल भी उसे भुगतना पड़ा। यद्यपि इस गृहयुद्ध के लिए कई कारण संयुक्त रूप से उत्तरदायी थे, किंतु इस गृहयुद्ध के लिए स्टुअर्ट शासक, विशेष रूप से चार्ल्स प्रथम सर्वाधिक उत्तरदायी थे। इस गृहयुद्ध के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-

जेम्स प्रथम की नीतियाँ

जेम्स प्रथम एक निरंकुश एवं राजा के दैवीय अधिकारों में विश्वास करने वाला व्यक्ति था। उसने अपनी नीति से राजा और संसद के बीच संघर्ष को जन्म दिया। संसद अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो चुकी थी, अतः संघर्ष निरंतर बढ़ता गया। जेम्स प्रथम के शासनकाल में प्रारंभ हुए इस संघर्ष ने गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। चार्ल्स के समय में संसद की यह भावना और प्रबल हो गई।

चार्ल्स प्रथम की निरंकुशता

चार्ल्स प्रथम को राजा और संसद के बीच अधिकारों के लिए संघर्ष अपने पिता से आनुवंशिक रूप से मिला था। किंतु उसने स्थिति को सुलझाने के बजाय निरंकुशता का सहारा लिया। वह धन प्राप्त करने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। इसके अतिरिक्त, वह अपने पिता की तरह दैवीय अधिकारों का अनुयायी होने के कारण जनता और संसद के हस्तक्षेप को पसंद नहीं करता था। उसने अपने ग्यारहवर्षीय शासन में जिस प्रकार निरंकुशतापूर्वक शासन किया, उससे जनता उसकी घोर विरोधी हो गई।

चार्ल्स प्रथम की आर्थिक नीति

चार्ल्स प्रथम को स्पेन एवं फ्रांस से युद्ध के लिए धन की आवश्यकता थी। जब संसद ने उसकी आवश्यकतानुसार धन नहीं दिया, तो उसने इसके लिए असंवैधानिक तरीकों का सहारा लिया। उसने अनेक कर लगाये, धन लेकर ठेके दिये और आर्थिक दंड लगाये। संसद ने चार्ल्स के इन कार्यों का विरोध किया, क्योंकि कर लगाने का अधिकार केवल संसद को था। चार्ल्स ने बलपूर्वक संसद को दबाना चाहा, जिसका परिणाम गृहयुद्ध के रूप में सामने आया।

संसद और जनता राजा के कुछ सलाहकारों से बहुत घृणा करती थी। संसद किसी तरह से बकिंघम से तो मुक्त हो गई, किंतु उसके बाद राजा के दो सलाहकार वेंटवर्थ तथा लौड की वजह से जनता को बहुत कष्ट उठाने पड़े। इसलिए जनता और संसद इन सलाहकारों से छुटकारा पाना चाहती थी। अंततः वेंटवर्थ को मृत्युदंड तथा लौड को जेल में डाल दिया गया। यद्यपि विवश होकर राजा ने अपने सलाहकारों को दंडित किया, किंतु वह संसद से इसका प्रतिशोध लेना चाहता था।

चार्ल्स प्रथम की धार्मिक नीति

चार्ल्स प्रथम ने अपनी कैथोलिक रानी के प्रभाव में कैथोलिकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की, जिसका जनता ने विरोध किया। इसके अलावा, राजा अपनी प्रजा पर एंग्लिकन चर्च को थोपना चाहता था, इसलिए संसद उसका विरोध करती थी क्योंकि संसद में प्यूरिटन तथा प्रेस्बिटेरियन के साथ अन्य मतावलंबी भी थे। उसकी धार्मिक नीति के कारण ही स्कॉटलैंड से युद्ध हुआ और इंग्लैंड को अपमानित होना पड़ा।

सामाजिक कारण

अंग्रेजी गृहयुद्ध में एक ओर राजा और उसके समर्थक उच्च व्यापारी तथा बड़े-बड़े जमींदार थे, जबकि दूसरी ओर संसद का नेतृत्व करने वाले कर्मठ किसान या छोटे व्यापारी थे। 1590 तक राजा और कुलीन वर्ग के स्वार्थ एक समान थे, इसलिए कुलीन वर्ग राजा का समर्थन करता था, किंतु स्टुअर्ट वंश के प्रथम दो शासकों के समय में कुलीन वर्ग को राजा के समर्थन की आवश्यकता नहीं रह गई थी। कुलीन वर्ग को लगता था कि राजा और उसकी नीतियाँ उनके प्रगति के मार्ग में बाधक हैं। इस समय स्टुअर्टकालीन संसद में अधिकांशतः नये युग के सदस्य थे, जो सामंती युग के सिद्धांतों में विश्वास नहीं करते थे। अतः इन स्टुअर्टकालीन संसद द्वारा राजा और उसके दैवीय अधिकारों के सिद्धांत का विरोध किया गया, जो गृहयुद्ध के रूप में सामने आया।

दीर्घ संसद और चार्ल्स के मध्य संघर्ष

धन की आवश्यकता से विवश होकर चार्ल्स ने 1640 में दीर्घ संसद को बुलाया था। इस संसद ने कार्यभार ग्रहण करते ही राजा की शक्ति पर रोक लगाने के लिए अनेक नियम पारित किये और चार्ल्स प्रथम को विवश होकर इन पर हस्ताक्षर करने पड़े थे। संसद राजा की शक्ति को पूर्णतः समाप्त करने और उसको अपमानित करना चाहती थी। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण ‘महान् विरोध-पत्र’ था, जिसको लेकर संसद में भी दो दल बन गये, किंतु राजा के विरोधी दल ने ग्यारह वोटों के बहुमत से उसे पारित किया और उसकी प्रतिलिपियाँ जनता में वितरित करके राजा को अपमानित किया।

चार्ल्स ने अनुभव किया कि संसद के विरोध की कोई सीमा नहीं थी, अतः उसने संसद के पाँच प्रमुख नेताओं को बंदी बनाने का प्रयास किया, किंतु पाँचों सदस्य भाग निकलने में सफल रहे। इससे चार्ल्स की अत्यधिक बदनामी हुई और संसद सदस्यों को लगा कि उन्हें किसी भी समय बंदी बनाया जा सकता है। अतः वे राजा से युद्ध करने के लिए तत्पर हो गये। संसद सदस्यों ने अनुभव किया कि सेना का राजा के अधीन रहना उनके लिए संकट पैदा कर सकता है, इसलिए उन्होंने एक सैन्य-नियम पारित किया, जिसके द्वारा सेना संसद के अधीन हो जाती। चार्ल्स प्रथम ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और इस समय मतभेद इतना गंभीर हो गया कि राजा लंदन छोड़कर नौटिंघम चला गया।

संसद ने पुनः शांतिपूर्वक राजा को अपने अधीन करने का प्रयत्न किया और उन्नीस प्रस्तावों को पारित करके राजा को भेजा। संसद ने राजा से अनुरोध किया कि वह इनके अनुसार वैधानिक शासन करे, परंतु राजा ने इसको अस्वीकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष युद्ध की तैयारी में लग गये।

अंग्रेजी गृहयुद्ध (English Civil War, 1642-1649)
चार्ल्स प्रथम, हेनरीटा मारिया एवं क्रामवेत (क्रमशः बांयें से दांयें)

अंग्रेजी गृहयुद्ध की प्रकृति

अंग्रेजी गृहयुद्ध कोई वर्ग-संघर्ष नहीं था। दोनों ही ओर से सभ्य व्यक्ति अपनी सेनाओं का नेतृत्व कर रहे थे। संसद में 80 लॉर्ड चार्ल्स के समर्थक थे और 30 उसके विरोधी, जबकि लोकसभा में 175 सदस्य चार्ल्स के समर्थन में थे और 315 उसके विरोध में। भौगोलिक विभाजन की दृष्टि से हम्बर से साउथेम्पटन तक खींची जाने वाली रेखा दोनों दलों के क्षेत्रों को विभाजित करती थी। इस रेखा के पूर्व का क्षेत्र संसद के पक्ष में और पश्चिमी क्षेत्र राजा के समर्थकों का था।

इस अंग्रेजी गृहयुद्ध के राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक पहलू थे। राजनीतिक दृष्टि से इस गृहयुद्ध से इस बात का निर्णय होना था कि राजा अथवा संसद में किसके अधिकार अधिक हैं? धार्मिक रूप से यह तय होना था कि एंग्लिकन और प्यूरिटन संप्रदाय में से किसकी विजय होगी। इस युद्ध में इंग्लैंड के अतिरिक्त स्कॉटलैंड और आयरलैंड के भी उद्देश्य निहित थे। स्कॉटलैंड के निवासी प्रेस्बिटेरियन संप्रदाय की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे और आयरलैंड में यह प्रोटेस्टेंट प्रभुसत्ता के विरुद्ध संघर्ष था। यद्यपि इस युद्ध की प्रमुख घटनाएँ इंग्लैंड में हुई, तथापि इसका व्यापक प्रभाव स्कॉटलैंड और आयरलैंड पर भी पड़ा। गृहयुद्ध का एक सामाजिक पक्ष भी था। इस युद्ध में संसद का पक्ष नवीन विचारों वाले यौमैनों ने भी लिया। बड़े-बड़े व्यापारियों को छोड़कर, शेष उपेक्षित व्यापारी वर्ग भी संसद के साथ था। इस वर्ग को पता था कि यदि राजा की विजय हो गई, तो सामंती प्रथा पुनः लागू हो जायेगी, जिससे व्यापार में बाधा उत्पन्न होगी। अतः नये सामाजिक वर्गों ने अपनी उन्नति का मार्ग खुला रखने के उद्देश्य से संसद का साथ दिया। इस प्रकार इस युद्ध ने सामाजिक स्वरूप धारण किया, जो जनता में संपत्ति के वितरण में परिवर्तन, जड़ता से मुक्त होने की भावना, उच्च वर्ग में प्रवेश पाने के रास्तों का बंद होने के कारण उत्पन्न निराशा का द्योतक था।

इंग्लैंड में प्रत्येक श्रेणी, काउंटी तथा परिवार में गृहयुद्ध को लेकर मतभेद थे। गिरजाघरों का उच्च वर्ग चार्ल्स के साथ था और प्यूरिटन संसद के समर्थक थे। अधिकांश जमींदार चार्ल्स का समर्थन कर रहे थे। पूर्वी इंग्लैंड में किसान मुख्यतः संसद के समर्थक थे। व्यापार एवं कारखाने वाले शहरों में संसद का प्रभाव था। अनेक व्यक्ति तटस्थ भी थे, जो या तो इनमें सन्निहित प्रश्नों पर विचार ही नहीं करते थे या सम्राट की उपलब्धियों और उसके चरित्र पर यदि उन्हें संदेह था, तो संसद के नेताओं पर भी उन्हें विश्वास नहीं था। अनेक काउंटियों ने युद्ध से अलग रहने के लिए संघ बना लिये थे। यही कारण था कि दोनों पक्षों को सैनिक भर्ती करने में परेशानी हुई।

राजा और संसद दोनों पक्षों में से किसी के पास प्रशिक्षित सेना नहीं थी, क्योंकि इंग्लैंड के पास स्थायी सेना नहीं थी। 1645 तक की लड़ाई मुख्यतः जमींदारों या उनके पुत्रों के नेतृत्व में काम करने वाले या अर्द्ध-प्रशिक्षित सेना और लंदन के प्रशिक्षण पाने वाले सैनिकों द्वारा लड़ी गई। क्रामवेल के द्वारा वास्तविक व्यावसायिक सेना की स्थापना से पहले चार्ल्स को सबसे बड़ा लाभ यह था कि घुड़सवारी, निशानेबाजी तथा शिकार में दक्ष व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या उसके अधीन रहती थी। इसी कारण घुड़सवार सेना का इस अंग्रेजी गृहयुद्ध में महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस गृहयुद्ध की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि इसमें कटुता नहीं थी। ‘गुलाब के फूलों के युद्ध’ के समान न तो इस गृहयुद्ध में कत्लेआम हुए और न ही विजय के पश्चात् मृत्युदंड दिये गये।

अंग्रेजी गृहयुद्ध की प्रमुख घटनाएँ

अंग्रेजी गृहयुद्ध की घटनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है- प्रथम अंग्रेजी गृहयुद्ध और द्वितीय अंग्रेजी गृहयुद्ध।

प्रथम अंग्रेजी गृहयुद्ध (1642 से 1646)

प्रथम अंग्रेजी गृहयुद्ध 1642 से 1646 तक चला, जिसमें आरंभ में राजा की विजय हुई, किंतु बाद में पराजय हुई। राजा चार्ल्स प्रथम का उद्देश्य शीघ्रताशीघ्र लंदन पर अधिकार करके युद्ध को समाप्त करना था, किंतु संसद की सेना का सेनापति एसेक्स राजा को लंदन से दूर रखना चाहता था। एसेक्स ने चार्ल्स का मार्ग अवरुद्ध करने के उद्देश्य से वोर्सेस्टर पर अधिकार कर लिया और सैनिकों को नार्थम्पटन बोर्सेस्टर तक लगा दिया। चार्ल्स ने अपनी सेना के साथ लंदन की ओर प्रस्थान किया और एसेक्स की सेनाओं को भेदता हुआ वेनवरी के समीप एजहिल पर अधिकार कर लिया।

एजहिल का युद्ध

चार्ल्स ने एसेक्स का मार्ग रोकने के लिए एजहिल के स्थान का चयन किया, क्योंकि एसेक्स बोर्सेस्टर से लंदन जा रहा था। राजा को सीधे लंदन जाकर लंदन पर अधिकार करना चाहिए था, लेकिन वह लंदन न जाकर रास्ते में ही रुक गया। दूसरे उसे खुले मैदान में एसेक्स से युद्ध नहीं लड़ना चाहिए था। एजहिल का युद्ध 23 अक्टूबर, 1642 को हुआ, जिसमें चार्ल्स के भतीजे राजकुमार रूपर्ट की वीरता से राजा को विजय मिली, किंतु एसेक्स भाग निकलने में सफल हो गया।

चार्लग्रोव का युद्ध

चार्ल्स प्रथम ने 1643 में लंदन पर आक्रमण करने की योजना बनाई, जिसमें चार्ल्स ऑक्सफोर्ड से, न्यूकैसल के अर्ल को उत्तर से और सर हॉप्टन को दक्षिण-पश्चिम से पहुँचकर आक्रमण करना था, किंतु न तो हॉप्टन और न ही अर्ल ऑफ न्यूकैसल लंदन पहुँच सके क्योंकि उनके रास्ते में संसद की सेना थी, जिसको वे पराजित नहीं कर सके। अंततः चार्ल्स को अपनी योजना स्थगित करनी पड़ी। इसके बाद दोनों पक्षों के बीच चालग्रोव के मैदान में युद्ध हुआ। इसमें राजकुमार रूपर्ट ने जॉन हैम्पडन की हत्या कर दी और संसद की सेना पराजित हुई।

न्यूबरी का युद्ध

राजा और एसेक्स दोनों की सेनाएँ लंदन की ओर बढ़ रही थीं। फलतः दोनों के बीच न्यूबरी में युद्ध हुआ। इस भयंकर युद्ध में चार्ल्स का सेनापति फाकलैंड मारा गया। एसेक्स को लंदन पहुँचने में सफलता मिल गई और चार्ल्स को ऑक्सफोर्ड लौटना पड़ा।

इसी समय संसद के नेता पिम ने स्कॉटलैंड से संधि कर ली। संसद की सेना की सहायता के लिए स्कॉटलैंड के 21,000 सैनिक आ गये, जिससे संसद की शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो गई। पिम की इस संधि से भयभीत होकर चार्ल्स प्रथम ने आयरलैंड के विद्रोहियों के साथ संधि की, जिसके कारण आयरलैंड में तैनात सेना राजा की सहायता के लिए आ गई।

मार्सटन मूर की लड़ाई

चार्ल्स ने रूपर्ट को यार्क का घेरा हटाने और अपने पास आने का आदेश दिया, किंतु संसद की सेना ने उसका रास्ता रोक लिया। रूपर्ट इस समय युद्ध नहीं चाहता था, किंतु उस पर आक्रमण कर दिया गया। यह लड़ाई 1644 में हुई। रूपर्ट की पराजय हुई, किंतु वह भाग निकलने में सफल रहा। इस युद्ध के पश्चात् चार्ल्स के अधीन केवल दक्षिण-पश्चिम और पश्चिमी क्षेत्र रह गये। इस युद्ध में क्रामवेल ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित की थी।

क्रामवेल के सुधार

संसद के पास प्रशिक्षित सेना नहीं थी, इसलिए क्रामवेल सेना में सुधार करना आवश्यक समझा। उसने घुड़सवार सेना का गठन किया और उसे प्रत्येक दृष्टि से प्रशिक्षित किया। इसके अतिरिक्त, संसद की सेना के अयोग्य सेनापतियों को सेना से हटाकर उनके स्थान पर युद्ध-कुशल और अनुभवी लोगों को रखा गया। इस प्रकार सेना का पुनर्संगठन कर क्रामवेल ने सेना को पर्याप्त शक्तिशाली बना दिया।

इसके पश्चात् संसद ने एक बार पुनः चार्ल्स प्रथम से समझौता करने का प्रयास किया, किंतु राजा ने अस्वीकार कर दिया। अंततः 1645 में राजा के परामर्शदाता लौड को मृत्युदंड दे दिया गया।

नेजबी की लड़ाई

जून, 1645 में क्रामवेल और सेनापति फेयरफाक्स ने नेजबी के स्थान पर चार्ल्स प्रथम को पराजित किया। राजा ने भागकर स्कॉटलैंड में शरण ली और लगभग सभी स्थानों पर संसद की सेना का अधिकार हो गया था। इस प्रकार नेजबी का युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ। इस युद्ध के साथ ही गृहयुद्ध का भी अंत हो गया।

द्वितीय अंग्रेजी गृहयुद्ध (1646-1649)

द्वितीय अंग्रेजी गृहयुद्ध 1646 से 1649 तक चला, जिसमें चार्ल्स की पराजय हुई और वह बंदी बना लिया गया, किंतु सेना एवं संसद में मतभेद हो गया। नेजबी में पराजित होने के बाद भी चार्ल्स ने अपनी वाक्-पटुता से विभिन्न वर्गों को आपस में लड़ाकर अपना मतलब सिद्ध करने का प्रयास किया। स्कॉटलैंड की सेना चार्ल्स प्रथम पर अधिकार करके अत्यंत प्रसन्न हुई। स्कॉटलैंड की सेना अपने ही देश के व्यक्ति को राजा के पद से हटाना नहीं चाहती थी। अतः उसने चार्ल्स से प्रेस्बिटेरियन धर्म को राजधर्म घोषित करने के लिए कहा, किंतु चार्ल्स ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। फलतः स्कॉटलैंड की सेना ने अपना मुआवजा लेकर चार्ल्स को संसद को सौंप दिया। संसद ने पुनः राजा से बातचीत करनी चाही, किंतु स्वयं संसद तथा नवनिर्मित क्रामवेल की सेना में चर्च के प्रश्न को लेकर विवाद हो गया। राजा को स्वतंत्र कर दिया गया और अपने अधिकार के प्रश्न पर संसद एवं सेना में संघर्ष हुआ। संसद ने सेना की शक्ति को कम करना चाहा और चार्ल्स प्रथम को बंदी बना लिया, किंतु सेना ने चार्ल्स प्रथम को बलपूर्वक अपने अधिकार में ले लिया और उसके समक्ष दो प्रस्ताव रखे कि वह बिशप की अध्यक्षता में गिरजाघर को रखे तथा सभी मतों को समान अधिकार दे, किंतु राजा ने इन प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह संसद और सेना के झगड़े से लाभ उठाना चाहता था। उसने सेना की कैद से भागकर स्कॉटलैंड से सहायता माँगी और प्रेस्बिटेरियन धर्म की सहायता करने का वादा किया। स्कॉटलैंड ने चार्ल्स का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उसे सहायता दी। इस प्रकार द्वितीय गृहयुद्ध प्रारंभ हो गया।

प्रेस्टन की लड़ाई

सम्राट चार्ल्स प्रथम के समर्थकों एवं स्कॉट सेना ने अप्रैल, 1648 में विद्रोह और आक्रमण की अग्नि प्रज्जवलित की। जून, 1648 तक इंग्लैंड के समस्त भागों में चार्ल्स के समर्थकों ने विद्रोह कर दिया, किंतु चार्ल्स को क्रामवेल की सेना की शक्ति का अनुमान नहीं था। तीन माह के अंदर क्रामवेल ने विद्रोह को कुचल दिया। उसने प्रेस्टन के मैदान में स्कॉटलैंड की सेना और उत्तरी इंग्लैंड के चार्ल्स समर्थकों का सामना किया। अंततः क्रामवेल ने चार्ल्स समर्थकों को पराजित करके स्कॉटलैंड की संपूर्ण सेना को बंदी बना लिया। इस प्रकार द्वितीय गृहयुद्ध का अंत हो गया।

क्रामवेल और उसके समर्थकों ने निर्णय किया कि चार्ल्स से समझौता करना बेकार है और अब उसे मृत्युदंड देना ही उचित होगा। क्रामवेल ने एक अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया। क्रामवेल के आदेश पर 6 दिसंबर, 1648 को कर्नल प्राइड के नेतृत्व में सैनिकों ने 41 प्रेस्बिटेरियन संसद सदस्यों को बंदी बना लिया और 26 सदस्यों को कभी सदन के निकट न आने का आदेश दिया। जिस समय 1640 में दीर्घ संसद आमंत्रित की गई थी, उसमें 420 सदस्य थे, जिसमें से केवल 60 सदस्यों को लोकसभा के सदस्य के रूप में अब मान्यता दी गई। इसे इतिहास में रम्प के नाम से जाना जाता है और इस घटना को ‘प्राइड का नश्तर’ कहा गया है।

चार्ल्स प्रथम की मृत्यु

संसद ने चार्ल्स प्रथम को संसद तथा इंग्लैंड के राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आरोप में अदालत के सामने उपस्थित होने का आदेश दिया। न्यायालय में अधिकाश सैनिक थे, जिन्हें आदेश प्राप्त हो चुके थे। चार्ल्स ने उस न्यायालय को वैध न्यायालय तथा रम्प संसद को संसद मानने से इनकार कर दिया और शांतिपूर्वक गर्व से पूर्वनिश्चित मृत्युदंड की सजा को सुना। 30 जनवरी, 1649 को सबेरे ह्वाइट हाल के सामने उसको फांसी दे दी गई। राजा के धैर्य को देखकर जनता पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और जनता उसे ‘शहीद’ मानने लगी।

यद्यपि चार्ल्स प्रथम में अनेक बुराइयाँ थी, किंतु जिस प्रकार से उसे मृत्युदंड दिया गया, वह कानून के विरुद्ध था। उसे मृत्युदंड देने वालों का विचार था कि वह एकतंत्र को नष्ट कर रहे हैं, किंतु वास्तव में उन्होंने उसे पवित्र बना दिया।

अंग्रेजी गृहयुद्ध के परिणाम

गृहयुद्ध का प्रमुख परिणाम चार्ल्स प्रथम को मृत्युदंड दिया जाना था। इग्लैंड के इतिहास की यह एक महत्वपूर्ण घटना थी। राजा चार्ल्स को मृत्युदंड देने के पश्चात् क्रामवेल ने राजतंत्र की समाप्ति की घोषणा की और प्रजातंत्र की स्थापना की। प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली की स्थापना भी इंग्लैंड के लिए महत्वपूर्ण थी।

गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप प्यूरिटन संप्रदाय का महत्व बढ़ गया क्योंकि इस संप्रदाय के व्यक्तियों ने चार्ल्स प्रथम को परास्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसके अतिरिक्त, क्रामवेल ने शीघ्र ही शक्ति का केंद्रीकरण करने का प्रयास किया और संसद की लॉर्ड सभा को समाप्त कर दिया। उसने इंग्लैंड की प्रशासनिक व्यवस्था के लिए एक सभा बनाई गई, जिसमें 4 सदस्य थे और इसे कौंसिल ऑफ स्टेट कहा गया।

चार्ल्स प्रथम की पराजय के कारण

संसद के कुशल सेनापति

चार्ल्स की पराजय का प्रमुख कारण संसद के सेनापतियों का कुशल एवं अनुभवी होना था। क्रामवेल एक कुशल सेनापति था। उसने अपने सैनिकों में अनुशासन, धार्मिक प्रवृत्ति तथा राजनीतिक स्वतंत्रता की भावना को जाग्रत किया। नौ-सेना भी संसद की सहायता कर रही थी और ब्लेक ने नौसेना को शक्तिशाली बना दिया था। इसके विपरीत, राजा के सैनिक पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं थे और सेनापति राजकुमार रूपर्ट साहसी एवं वीर होते हुए भी एक कुशल सेनापति नहीं था।

चार्ल्स का निरंकुश शासन

राजा की पराजय का द्वितीय कारण राजा का निरंकुश एवं व्यक्तिगत शासन था। जनता चार्ल्स के अत्याचारों और निरंकुशता से तंग आ चुकी थी, उसे अपना शत्रु समझने लगी थी और संसद का समर्थन करने लगी थी।

स्कॉटलैंड से संसद को मदद

गृहयुद्ध के समय पिम द्वारा स्कॉटलैंड से सहायता प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करने से भी संसद की सैनिक शक्ति बढ़ गई, जिसने संसद को विजय मिल सकी।

चार्ल्स के पास धनाभाव

राजा चार्ल्स के पास धन का अभाव था। राजा के अधिकांश साथी गरीब थे। धन के अभाव में राजा को सेना तथा अस्त्र-शस्त्र का प्रबंध करने में अत्यंत कठिनाई होती थी। इसके विपरीत, संसद के पास धन की कमी नहीं थी क्योंकि संसद के समर्थक अधिकांश धनी लोग थे और कर लगाने का अधिकार भी संसद के पास था।

संसद की कुशल सेना

संसद की पैदल सेना कुशल थी और उसे कम सैनिकों की आवश्यकता होती थी क्योंकि संसद के पास थोड़ी-थोड़ी दूरी पर दुर्ग थे। चार्ल्स प्रथम के अधिकार में कोई दुर्ग नहीं था।

कुशल परामर्शदाताओं का अभाव

चार्ल्स प्रथम की पराजय का एक कारण उसके पास किसी कुशल सलाहकार का न होना भी था। बकिंघम, वेंटवर्थ एवं लौड की हत्या हो चुकी थी, जबकि संसद में अनेक योग्य व्यक्ति थे, विशेष रूप से पिम और क्रामवेल। इन कारणों से गृहयुद्ध में चार्ल्स प्रथम की पराजय और संसद की विजय हुई, जिससे इंग्लैंड के इतिहास में एक नवीन मोड़ आया।

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