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नेपोलियन बोनापार्ट
19वीं सदी के आरंभिक 15 वर्षों के काल को ‘नेपालियन युग’ के नाम से जाना जाता है। फ्रांस में कई वर्षों की क्रांति, अशांति एवं अव्यवस्था के पश्चात् एक निरंकुश शासक के रुप में नेपोलियन बोनापार्ट का उदय हुआ, जिसने न केवल फ्रांस, बल्कि पूरे यूरोप को चकाचैंध कर दिया। यद्यपि नेपालियन डिक्टेटर था और उसके शासन में स्वतंत्रता का कोई स्थान नहीं था, किंतु क्रांति की दो अन्य भावनाओं- समानता एवं बंधुत्व का उसने पूर्णतया पालन किया।
नेपोलियन बोनापार्ट का आरंभिक जीवन
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म कार्सिका और फ्रांस के एकीकरण के अगले वर्ष 15 अगस्त’ 1769 ई. को कार्सिका द्वीप के अजैसियो नगर में हुआ था। नेपोलियन बोनापार्ट के पिता का नाम कार्लो बोनापार्ट था जो पेशे से वकील थे। कार्लो बोनापार्ट ने मारिया लीतिशिया रमोलिनो नाम की एक उग्र स्वभाव की महिला से विवाह किया था, जिससे नेपोलियन पैदा हुआ था।
ब्रीन की सैनिक एकेदमी में 1779 से 1784 ई. तक सैनिक शिक्षा समाप्त करने के बाद नेपोलियन ने 1784 ई. में तोपखाने से संबंधित विषयों का अध्ययन करने के लिए पेरिस के एक कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद नेपोलियन फ्रांसीसी सेना के तोपखाने में उप-लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुआ। नेपोलियन को ढाई शिलिंग का प्रतिदिन का वेतन मिला करता था, जिससे वह अपने सात भाई-बहिनों का पालन-पोषण करता था।
कार्सिका के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण नेपोलियन की नौकरी छूट गई। 1792 ई. में नेपोलियन ने पेरिस में ‘जैकोबिन दल’ का सदस्य बन गया और फ्रांस में क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार करना आरंभ किया। जैकोबिन दल का सदस्य बनने पर नेपोलियन को उसकी नौकरी पुनः मिल गई। नेपोलियन के उदय तक फ्रांसीसी क्रांति पूर्ण अराजकता में परिवर्तित हो चुकी थी। जैकोबिन और जिरोंदिस्त दलों की प्रतिद्वंद्विता और वैमनस्य के परिणामस्वरूप फ्रांस में ‘आतंक का शासन’ चला, जिसमें एक-एक करके सभी क्रांतिकारी, यहाँ तक कि स्वयं राब्सपियर भी मारे गये।
नेपोलियन बोनापार्ट का उत्थान
नेपोलियन ने अपने सैनिक जीवन की शुरूआत एक सैनिक के रूप में की थी। अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में नेपोलियन ने 16 प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं, जिसमें से अधिकांश में उसे विजय मिली, कुछ लड़ाइयाँ अनिर्णयक रहीं और अंतिम दिनों में लड़ी गई लड़ाइयों में उसे पराजय का सामना करना पड़ा।
तूलों के बंदरगाह की सुरक्षा
28 अगस्त, 1793 ई. को अंग्रेजी जहाजी बेड़े ने फ्रांस पर आक्रमण कर तूलों बंदरगाह पर अधिकार कर लिया था। सैनिक के रूप में नेपोलियन ने तूलों के बंदरगाह पर आक्रमण करके अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया। तूलों से अंग्रेजी सेना को खदेड़ना नेपोलियन के जीवन की प्रथम महत्त्वपूर्ण विजय थी, जिससे नेपोलियन को बिग्रेडियर जनरल का पद मिल गया।
राष्ट्रीय सभा की रक्षा
फिर 5 अक्टूबर, 1795 ई. में नेपोलियन को दूसरी सफलता तब मिली जब प्रजातंत्रवादियों की उत्तेजित भीड़ ने राष्ट्रीय सभा को घेर लिया था। डाइरेक्टरी द्वारा विशेष रूप से नियुक्त नेपोलियन ने 40 तोपों की सहायता से मात्र दो घंटे के अंदर विद्रोहियों को खदेड़ दिया और कुशलतापूर्वक ‘नेशनल कंवेंशन’ की रक्षा की। नेपोलियन ने अपनी प्रतिभा से सारे फ्रांस का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। 9 मार्च, 1796 ई. को नेपोलियन ने जोसेफिन नामक एक उच्चवर्गीय विधवा से विवाह किया था।
किंतु अपनी पहली पत्नी जोसेफिन के निःसंतान रहने के कारण नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया के सम्राट की पुत्री मैरी लुईस से दूसरा विवाह किया। फ्रांस में 26 अक्टूबर, 1797 ई. में राष्ट्रीय सभा का पतन हो गया और डाइरेक्टरी का शासन आरंभ हुआ।
नेपोलियन का इटली का अभियान
डाइरेक्टरी के आदेश पर नेपोलियन ने 2 मार्च, 1796 ई. को इटली के सफल अभियान का नेतृत्व किया। नेपोलियन ने 28 अप्रैल, 1796 ई. को सार्डिनिया को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया और नीस तथा सेवाय पर फ्रांस का अधिकार हो गया।
नेपोलियन ने 10 मई, 1796 ई. को मिलान पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया और कई स्थानों पर आस्ट्रिया की सेना को पराजित किया। नेपोलियन ने मोडेना, रेग्गियो, बोलोन तथा फरारा को मिलाकर एक गणतंत्र की स्थापना की, इसके बाद नेपोलियन ने अपनी शक्ति के बल पर पोप को फ्रांस की अधीनता स्वीकार करने पर बाध्य दिया।
आस्ट्रिया के विरूद्ध अभियान
नेपोलियन ने आस्ट्रिया की ओर प्रस्थान करते हुए वेनिस की विजय की और ल्योबेन पर भी अधिकार कर लिया। नेपोलियन ने आस्ट्रिया के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि यदि वह लोम्बार्डी पर फ्रांस का अधिकार मान ले तो युद्ध समाप्त कर दिया जायेगा। अंततः आस्ट्रिया ने नेपोलियन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और आस्ट्रिया को 17 अक्टूबर, 1797 को ‘कैम्पोफोर्मियो की संधि’ करनी पड़ी। आस्ट्रिया से ‘कैम्पोफोर्मियो की संधि’ के बाद नेपोलियन 5 दिसंबर, 1797 ई. को ‘राष्ट्रीय नायक’ के रूप में पेरिस लौटा।
मिस्र का असफल अभियान
इस समय फ्रांस का प्रतिद्वंद्वी केवल ब्रिटेन रह गया था और नेपोलियन ने ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित करने की योजना बनाई, जिसे डाइरेक्टरी ने तुरंत स्वीकार कर लिया। वैसे भी नेपोलियन की इटली और आस्ट्रिया में मिली सफलता से डाइरेक्टी के सदस्य भयभीत हो गये थे और नेपोलियन को फ्रांस से दूर रखना चहते थे।
पिरामिडों का युद्ध
नेपोलियन ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण करने के क्रम में 19 मई, 1797 ई. को 35 हजार प्रशिक्षित सैनिकों को लेकर मिस्री अभियान पर निकला। नेपोलियन और मिस्री सेनाओं के बीच 21 जुलाई, 1798 ई. को ‘पिरामिडों का युद्ध’ हुआ। नेपोलियन ने काहिरा पर अधिकार बनाये रखने के लिए स्वयं को ‘मुसलमान’ घोषित किया और कुरान के प्रति श्रद्धा प्रकट की।
नील नदी का युद्ध
अभी नेपोलियन काहिरा में ही था कि ब्रिटिश नौसेना का भूमध्यसागरीय अध्यक्ष कमांडर नेल्सन नेपोलियन का पीछा करता हुआ सिंकदरिया पहुंच गया। नेपोलियन और नेल्सन की सेना के बीच ‘अबूबकर की खाड़ी’ में नील नदी का युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसीसी सेना तितर-बितर हो गई। नेल्सन की सफलता से ब्रिटेन को फ्रांस के विरुद्ध एक द्वितीय गुट बनाने का समय मिल गया और नेपोलियन द्वारा पराजित यूरोपीय राष्ट्र फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे।
नील नदी के युद्ध में अपनी सेना बिखर जाने और फ्रांस के विरूद्ध द्वितीय गुट बन जाने के कारण नोपोलियन गुप्त रूप से फ्रांस वापस आना पड़ा। नेपोलियन के मिस्री अभियान की असफलता के बावजूद फ्रांस की जनता ने नेपोलियन का स्वागत किया और उसे ‘फ्रांस का रक्षक’ कहा जाने लगा।
डाइरेक्टरी के शासन का अंत
फ्रांस में अक्टूबर 1799 ई. तक संचालक मंडल का शासन अपने कुकृत्यों के कारण बदनाम हो चुका था। नेपोलियन ने इस स्थिति का लाभ उठाकर 10 नवंबर, 1799 ई. को संचालक मडंल के शासन का अंत कर दिया। नेपोलियन ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 1799 में एक संविधान का निर्माण करवाया, जो क्रांतिकाल का चौथा संविधान था। इस नये संविधान को क्रांतिकाल के आठवें वर्ष का संविधान भी कहा जाता है।
इस नये संविधान के द्वारा सीनेट ने कार्यपालिका की संपूर्ण शक्तियां तीन निर्वाचित कौंसिलों- नेपोलियन, कैम्नेसरी और तृतीय कौंसिल लैब्रना को सौंप दी। कौंसिलों की कार्यावधि 10 वर्ष निर्धारित की गई। तीन निर्वाचित कौंसलों की सरकार को ‘कांसुलेट की सरकार’ कहा गया है।
कांसुलेट की सरकार में नेपोलियन प्रथम कौंसल था जिसे संपूर्ण अधिकार दिये गये थे, शेष द्वितीय एवं तृतीय कौंसल का कार्य केवल प्रथम कौंसल को परामर्श देना था। इस प्रकार कांसुलेट की सरकार की सारी शक्तियाँ प्रथम कौंसल नेपोलियन में ही केंद्रित हो गईं।
नेपोलियन के सुधार
नेपोलियन ने 1799 से 1803 ई. तक अपनी स्थिति सुदृढ़ करने तथा फ्रांस को प्रशासनिक स्थायित्व प्रदान करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सुधार-कार्य किया, जिसके कारण नेपोलियन को आधुनिक फ्रांस का निर्माता माना जाता है।
राजनीतिक-प्रशासनिक सुधार
नेपोलियन ने प्रशासन की संपूर्ण शक्ति अपने हाथों में केंद्रित कर लिया, किंतु क्रांति के समय जो प्रशासनिक ढांचा और स्वरूप था, उसे बनाये रखा। स्थानीय अधिकारियों की निर्वाचन व्यवस्था का अंत कर दिया गया और योग्यता के आधार पर इनकी नियुक्ति की गई।
नेपोलियन ने 17 फरवरी, 1800 ई. को स्थानीय प्रशासन-संबंधी एक अधिनियम पारित किया, जिसके अंतर्गत प्रत्येक प्रांत में एक प्रीफेक्ट और जिलें में उप-प्रीफेक्ट नियुक्त किया। फ्रांस के गांव और शहरों में सीधे केंद्रीय सरकार द्वारा मेयरों की नियुक्ति की गई। नेपोलियन ने अधिकारियों को पर्याप्त प्रशासकीय अधिकार दिये और शासन में फिजूलखर्ची और घूसखोरी रोकने के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की।
आर्थिक सुधार
प्रथम कौंसल के रूप में फ्रांस की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए कर-पद्धति में सुधार किया। वित्तमंत्री के अधीन करों के लिए एक नवीन कार्यालय गठित किया गया। नेपोलियन ने करों में एकरूपता स्थापित की और कर-निर्धारण और नियमित कर वसूली के लिए सुयोग्य और सक्षम केंद्रीय कर्मचारियों को नियुक्त किया, जिससे राज्य की आय में वृद्धि हुई।
नेपोलियन ने मितव्ययिता पर बल दिया और घूसखोरी, सट्टेबाजी, ठेकेदारी में अनुचित मुनाफे पर रोक लगा दी। फ्रांस की वित्तीय साख को बनाये रखने के लिए नेपोलियन ने 1003 ई. में ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ की स्थापना की। 1803 ई. में ‘बैंक आफ फ्रांस’ को नोट छापने का अधिकार भी मिल गया। राष्ट्रीय ऋण को चुकाने के लिए नेपोलियन ने एक पृथक् कोष की भी स्थापना की।
नेपोलियन ने जहाँ तक संभव हुआ सेना के खर्च का बोझ विजित प्रदेशों पर डाला और फ्रांस की जनता को इस बोझ से मुक्त रखने की कोशिश की। नेपोलियन ने कृषि के सुधार पर भी बल दिया और बंजर और रेतीले इलाके को उपजाऊ बनाने की योजना बनाई।
व्यापार-वाणिज्य की प्रगति के लिए फ्रांस में ‘चैंबर्स आफ कामर्स’ की स्थापना की गई। नेपोलियन ने फ्रांसीसी औद्योगिक वस्तुओं को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदर्शनी के आयोजन को बढ़ावा दिया और स्वदेशी वस्तुओं एवं उद्योगों को प्रोत्साहन दिया। इस तरह नेपोलियन ने फ्रांस को जर्जर और दिवालियेपन की स्थित से उबारा।
धार्मिक सुधार
फ्रांस की बहुसंख्यक जनता कैथोलिक चर्च के प्रभाव में थी, किंतु 1789 ई. की क्रांति के दौरान चर्च को राज्य के अधीन कर दिया गया था। चर्च की संपति का राष्ट्रीयकरण किया गया और पादरियों को राज्य की वफादारी की शपथ लेने को कहा गया था जिससे पोप के साथ-साथ फ्रांस की आम जनता नाराज थी। नेपोलियन की धारणा थी कि राज्य का कोई एक धर्म अवश्य होना चाहिए क्योंकि वह धर्म के बिना राज्य को मल्लाह के बिना नौका के समान समझता था।
नेपोलियन ने धार्मिक मतभेद दूर करने के लिए एक ओर धार्मिक सहनशीलता और स्वतंत्रता की नीति अपनाई, तो दूसरी और 1801-02 ई. में रोम के पोप पायस सप्तम के साथ समझौता किया, जिसे कानकारडेट कहा जाता है।
- अब विशपों की नियुक्ति प्रथम कौंसल के द्वारा की जानी थी, और शासन की स्वीकृति पर ही विशप छोटे पादरियों की नियुक्ति करेगा। कानकारडेट के अनुसार नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार कर लिया।
- पोप ने चर्च की जब्त की गई संपत्ति और भूमि पर से अपना अध्किार त्याग दिया।
- देश के सभी गिरजाघरों पर राज्य का अधिकार हो गया और उसके अधिकारी राज्य से वेतन पाने लगे। चर्च के सभी अधिकारियों को राज्य-भक्ति का शपथ लेना आवश्यक था।
- गिरफ्तार पादरी छोड़ दिये गये और देश से भागे पादरियों और कुलीनों को वापस आने की इजाजत मिल गई।
- क्रांतिकाल के कैलेंडर को स्थगित कर प्राचीन कैलेंडर एवं अवकाश-दिवसों को पुनः लागू किया गया।
इस प्रकार नेपोलियन ने राजनीतिक उद्देश्यों से परिचालित होकर पोप से संधि की और क्रांतिकालीन अव्यवस्था को समाप्त कर चर्च को राज्य का सहभागी बना दिया।
किंतु इस घार्मिक समझौते के द्वारा नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राज्य का धर्म बनाकर राज्य के धर्मनिरपेक्ष भावना को ठेस पहुँचाई। नेपोलियन का पोप के साथ यह धार्मिक समझौता अस्थायी सिद्ध हुआ क्योंकि 1807 ई. में पोप के साथ उसे संघर्ष करना पड़ा तथा पोप के राज्य पर नियंत्रण स्थापित किया।
न्याय एवं दंड-व्यवस्था में सुधार
प्रथम कौंसल बनने के बाद नेपोलियन ने फ्रांस में अनेक सिविल एवं दंड न्यायालयों की स्थापना की। न्यायाधीशों की नियुक्ति नेपोलियन स्वयं करता था। नेपोलियन ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए मुद्रित पत्रों का पुनः प्रचलन किया और जूरी की प्रथा को प्रारंभ किया।
नेपोलियन की विधि संहिता
नेपोलियन एक स्थायी कीर्ति का आधार उसकी विधि संहिता है। नेपोलियन के पूर्व फ्रांस में विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग कानून थे जो जटिल और अस्पष्ट थे। नेपोलियन ने न्याय-व्यवस्था और कानून के क्षेत्र में एकरूपता और निष्पक्षता लाने के लिए प्रचलित कानूनों का संग्रह कर फ्रांस के लिए एक सिविल कोड तैयार करवाया, जिसे नेपोलियन की विधि संहिता (Napoleon Code) कहा जाता है।
नेपोलियन की विधि संहिता में पाँच प्रकार के कानूनों को संकलित किया गया था-
- नागरिक संहिता (व्यावहारिक संहिता) में वस्तुओं एवं संपपत्ति से संबंधित कानून थे।
- नागरिक प्रक्रिया संहिता (व्यावहारिक प्रक्रिया संहिता) में 1737-38 ई. के अध्यादेशों का संग्रह था।
- दंड विधान की संहिता (दंड संहिता) में विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए दंड का प्रावधान था।
- अपराधमूलक कानून संहिता (दंड प्रक्रिया संहिता) में अपराधी को न्यायालयों में अपने पक्ष में वकील आदि रखने का विधान था।
- व्यवसायमूलक कानून संहिता (वाणिज्य संहिता) में व्यापार-संबंधी नियम और कानून थे।
शैक्षिक सुधार
नेपालियन ने अच्छे नागरिकों का निर्माण करने लिए 1802 ई. में शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त कर शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कर दिया। नेपोलियन की राज्य-नियंत्रित शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को शासन के प्रति निष्ठावान बनाना था। नेपोलियन ने शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तरों पर संगठित किया।
- प्रत्येक कम्यून में प्राथमिक विद्यालय स्थापित किये गये, जो प्रीफेक्ट और उप-प्रीफेक्ट की देख-रेख में संचालित होते थे।
- बड़ी संख्या में माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की गई जिनमें कला, लैटिन और फ्रांसीसी भाषा तथा विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।
- नेपोलियन ने 1808 ई. में पेरिस में इंपीरियल विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसमें लैटिन, फ्रेंच, विज्ञान, गणित इत्यादि विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
- इंपीरियल विश्वविद्यालय में पांच विभाग थे- धर्मज्ञान, कानून, चिकित्सा, साहित्य और विज्ञान।
- इंपीरियल विश्वविद्यालय के प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति नेपोलियन स्वयं करता था।
- नेपोलियन ने शोध कार्यों के लिए इंस्टीच्यूट ऑफ फ्रांस की स्थापना की।
सामाजिक समानता
नेपोलियन का मानना था कि फ्रांस के लोग स्वतंत्रता नहीं, समानता के भूखे है। नेपोलियन ने उच्च एवं निम्न वर्गों के भेद को समाप्त कर दिया। अब कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता के बल पर शासन के किसी भी पद को प्राप्त कर सकता था। नेपोलियन ने फ्रांस से भागे हुए कुलीनों और पादरियों के विरूद्ध पारित किये गये कानूनों का अंत कर दिया, जिसके कारण 40 हजार से भी अधिक परिवार फ्रांस वापस आ गये।
सार्वजनिक कार्य
प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन ने अनेक सड़कों और नहरों का निर्माण और मरम्मत करवाया। पेरिस का सौंदर्यीकरण करते हुए उसे सुंदर भवनों और वृक्षों से सुसज्जित किया गया। नेपोलियन ने विभिन्न देशों से लाई गई कलाकृतियों का एक संग्रहालय भी फ्रांस में स्थापित करवाया।
अमीन्स की संधि और नेपोलियन को मान्यता
अपनी आंतरिक स्थिति मजबूत करने के बाद नेपोलियन ने फ्रांस के विरूद्ध बने त्रिगुट की ओर ध्यान दिया जिसमें इंग्लैंड, आस्ट्रिया और रूस थे। नेपोलियन ने फ्रांस के विरूद्ध बने त्रिगुट को भंग करने के लिए सबसे पहले आस्ट्रिया पर आक्रमण किया। 1801 ई. में पराजित आस्ट्रिया को फ्रांस के साथ ‘ल्यूविले की संधि’ करनी पड़ी, जिसमें पहले की कैम्पोफोर्मियो की सारी शर्तें दोहराई गईं।
आस्ट्रिया-फ्रांस संधि ने नाराज होकर रूस त्रिगुट से अलग हो गया और इस प्रकार नेपोलियन के विरूद्ध बना द्वितीय गुट टूट गया। अकेले इंग्लैंड ने युद्ध से बचने के लिए 27 मार्च, 1802 ई. को बिना युद्ध किये ही फ्रांस के साथ अमीन्स की संधि कर ली। अमीन्स की संधि के अनुसार इंग्लैंड ने पहली बार नेपोलियन के नेतृत्व में गठित सरकार को मान्यता दी और अधिकांश जीते हुए प्रदेश फ्रांस को वापस कर दिये।
सम्राट नेपोलियन (1804 ई.)
1804 ई. में सीनेट ने नेपोलियन को ‘फ्रांस का सम्राट’ घोषित कर दिया। अपने राज्याभिषेक के अवसर पर नेपोलियन ने कहा था कि ‘मैंने फ्रांस के शाही ताज को धरती पर पड़ा पाया और उसे अपनी तलवार की नोंक से उठा लिया।’ शासक बनने के बाद नेपोलियन ने यूरोप के विभिन्न देशों के साथ युद्ध किया।
नेपोलियन के प्रमुख अभियान
नेपोलियन के विरूद्ध त्रिगुट (1805 ई.)
इंगलैंड के विलियम पिट ने 1805 ई. में नेपोलियन के विरूद्ध एक त्रिगुट गुट का निर्माण किया। फ्रांस के विरूद्ध तृतीय गुट में इंग्लैंड, आस्ट्रिया, रूस, स्वीडन आदि देश शामिल थे, जबकि आस्ट्रिया के विरोधी दक्षिण जर्मनी के राज्य नेपोलियन का साथ थे।
ट्रेफलगर का युद्ध (21 अक्टूबर, 1805 ई.)
21 अक्टूबर, 1805 ई. को फ्रांस तथा स्पेन की संयुक्त जल सेना और नेल्सन के नेतृत्व में अंग्रेजी जल सेना के मध्य ट्रेफलगर के समीप समुद्र में भयंकर युद्ध हुआ, जिसे ‘ट्रेफलगर का युद्ध’ कहते हैं। यद्यपि ट्रेफलगर के युद्ध में नेल्सन वीरगति को प्राप्त हुआ, किंतु इंग्लैंड की जल सेना ने फ्रांस और स्पेन की संयुक्त जल सेना को पराजित कर तितर-बितर कर दिया। ट्रेफलगर में फ्रांस की इस पराजय से नेपोलियन द्वारा समुद्र की ओर से इंग्लैंड पर आक्रमण करने का भय समाप्त हो गया।
उल्म का युद्ध (1805 ई.)
नेपोलियन ने आस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण कर उसे 1805 ई. को उल्म के युद्ध में पराजित कर दिया। इस विजय के बाद नेपालियन का वियेना पर अधिकार हो गया। आस्ट्रिया का शासक फ्रांसिस द्वितीय वियेना छोड़कर रूस भाग गया।
आस्टरलिट्ज का युद्ध (26 दिसंबर, 1805 ई.)
नेपोलियन ने अक्टूबर, 1805 ई. में आस्टरलिट्ज के युद्ध में रूस और आस्ट्रिया की संयुक्त सेनाओं को पराजित किया। आस्टरलिट्ज के युद्ध को ‘तीन सम्राटों का युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। आस्टरलिट्ज की विजय नेपोलियन की महत्वपूर्ण विजयों में से एक थी। आस्टरलिट्ज के युद्ध में पराजय के बाद रूस ने अपनी सेनाएँ पीछे हटा लीं और आस्ट्रिया ने नेपोलियन के साथ 26 दिसंबर, 1805 ई. को ‘प्रेसवर्ग की संधि’ कर ली।
जेना और आवरसेट के युद्ध (14 अक्टूबर, 1806 ई.)
6 अगस्त 1806 ई. को नेपोलियन ने पवित्र रोमन साम्राज्य का अंत कर दिया। इसके बाद 14 अक्टूबर, 1806 ई. को नेपोलियन ने जेना और आवरसेट के युद्ध में प्रशा को पराजित किया। राइन संघ की रचना कर अपने भाई जोसेफ बोनापर्ट के शासन को मजबूत किया।
फ्रीडलैंड का युद्ध (14 जून, 1807 ई.)
नेपोलियन के विरूद्ध तीसरे गुट में अब केवल इंग्लैंड और रूस ही शेष बचे थे, बाकी सदस्य देश नेपोलियन के हाथों पराजित हो चुके थे। 14 जून, 1807 ई. को फ्रीडलैंड के युद्ध में नेपालियन ने रूस को हरा दिया। फ्रीडलैंड के युद्ध में पराजय के बाद रूसी सम्राट जार एलेक्जेंडर ने ‘नीमेन नदी’ में एक शाही नाव में नेपोलियन से भेंट की। अंततः टिलसिट में फ्रांस, रूस और प्रशा के प्रतिनिधियों में 8 जुलाई, 1807 ई. को ‘टिलसिट की संधि’ हो गई।
पुर्तगाल पर आक्रमण (1807 ई. )
1807 ई. में ही नेपोलियन ने स्पेन के साथ मिलकर पुर्तगाल पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया।
महाद्वीपीय युद्ध (1808-1814 ई.)
1808 ई. में नेपोलियन को स्पेन के साथ युद्ध शुरू हुआ, जो 1814 ई. तक चलता रहा। स्पेन के साथ युद्ध नेपोलियन के युद्ध को ‘महाद्वीपीय युद्ध’ भी कहते है।
आस्ट्रिया के साथ पुनः युद्ध (अप्रैल, 1809 ई.)
अप्रैल, 1809 ई. में नोपोलियन ने आस्ट्रिया के साथ पुनः युद्ध किया और उसके साथ वियेना की संधि की।
रूस पर आक्रमण ( 7 सितंबर, 1812 ई.)
नेपोलियन ने जून, 1812 ई. में रूस पर आक्रमण किया। 7 सितंबर, 1812 ई. को बोरोडिनों के मैदान में रूस और फ्रासीसी सेना के बीच युद्ध हुआ, जिसका कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। इस रूसी अभियान में नोपोलियन को भरी क्षति उठानी पड़ी थी।
लुटजेन और बुटजेन का युद्ध (मई, 1813 ई.)
मई, 1813 ई. में लुटजेन और बुटजेन के युद्ध में नेपोलियन ने प्रशा और रूस की संयुक्त सेना को पराजित किया
लिपजिंग का युद्ध (अक्टूबर, 1813 ई.)
यूरोप के राष्ट्रों- प्रशा, आस्ट्रिया, रूस और इंग्लैंड की संयुक्त सेनाओं ने अक्टूबर, 1813 ई. में लिपजिंग नामक स्थान पर नेपोलियन को बुरी तरह हराया और उसे बंदी बनाकर एल्बा के टापू पर भेज दिया। परंतु नेपोलियन एल्बा से भाग निकला और पुनः 100 दिनों के लिए फ्रांस का सम्राट बन गया।
वाटरलू का युद्ध (18 जून, 1815 ई.)
नेपोलियन के वापस लौटने की सूचना पाकर मित्रराष्ट्रों की मिली-जुली सेनाओं ने 18 जून, 1815 ई. को वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन को निर्णायक रूप से पराजित कर बंदी बना लिया। बंदी नेपोलियन को सेंट हेलेना टापू पर भेजा गया, जहां 5 मई 1821 ई. को उसकी मृत्यु हो गई।
महाद्वीपीय व्यवस्था (1806-1812 ई.)
नेपोलियन यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों-आस्ट्रिया, प्रशा, रूस को क्रमशः 1805, 1806 और 1807 में पराजित कर चुका था। यूरोप में मात्र इंगलैंड ही बचा था, जो नेपोलियन को चुनौती दे रहा था। ट्रेफलगर के युद्ध में इंग्लैंड से पराजित होने के बाद नेपोलियन समझ गया था कि इंग्लैंड को समुद्री की लहरों पर पराजित करना असंभव है। इसी समय नेपोलियन को मांटगैलार्ड ने सलाह दी कि इंग्लैंड एक व्यापारिक देश है, इसलिए उसे आर्थिक युद्ध में पराजित किया जा सकता है।
नेपोलियन ने इंग्लैंड से आर्थिक युद्ध करने के लिए इंग्लैंड के आयात-निर्यात की नाकेबंदी करने का फैसला किया। नेपोलियन ने इंग्लैंड के विरूद्ध आर्थिक बहिष्कार की जो नीति अपनाई, उसे महाद्वीपीय व्यवस्था (Continental System) कहा जाता है। नेपोलियन का विचार था कि ‘बनियों के देश’ से जब आयात-निर्यात बंद कर दिया जायेगा, तो खाने-पीने की वस्तुओं के लाले पड़ जायेंगे और इंग्लैंड घुटने टेकने पर विवश हो जायेगा। इसके अलावा नेपोलियन चाहता था कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था का केंद्र लंदन न होकर पेरिस हो।
नेपोलियन का बर्लिन आदेश (21 नवंबर, 1806 ई.)
महाद्वीपीय व्यवस्था की घोषणा 21 नवंबर, 1806 ई. को बर्लिन से एक आदेश निकालकर की गई। बर्लिन आदेश में कहा गया था कि यूरोप का कोई भी राष्ट्र इंग्लैंड और उसके उपनिवेशो के साथ व्यापार नहीं करेगा। ‘बर्लिन आदेश’ के द्वारा इंग्लैंड के जहाजों के लिए सभी समद्री बंदरगाह बंद कर दिये गये।
1806 ई. में नेपोलियन ने नेपल्स पर अधिकार कर उसके बंदरगाह को ब्रिटेन के व्यापार के लिए बंद कर दिया। फिर, प्रशा को पराजित करने के बाद 25 जुलाई, 1807 ई. को नेपोलियन ने वार्सा आदेश जारी कर प्रशा तथा हनोवर के समुद्रतट से भी अंग्रेजी व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।
टिलसिट की संधि के बाद रूस, प्रशा तथा डेनमार्क ने भी ब्रिटिश माल का बहिष्कार किया, जिससे इंग्लैंड को काफी हानि उठानी पड़ी।
इंग्लैंड का प्रथम आर्डर इन कौंसिल (7 जनवरी, 1807 ई.)
नेपोलियन द्वारा लारी बर्लिन आदेश के पूर्व ही इंग्लैंड उत्तरी समुद्र के महादेशीय बंदरगाहों और इंग्लिश चैनल से होकर आने-जाने वाले सामानों पर खुद ही नाकेबंदी कर चुका था। नेपोलियन के बर्लिन आदेश का जवाब देने के लिए इंग्लैंड ने 7 जनवरी, 1807 ई. को आर्डर्स इन कौंसिल (First Order in Council of England) अध्यादेश जारी किया, जिसके अनुसार-
- यदि किसी जहाज में फ्रांस अथवा उसके उपनिवेशों का बना हुआ माल पाया जायेगा, उसे जब्त कर लिया जायेगा।
- इंग्लैंड ने अपने विदेशी व्यापार को बनाये रखने के लिए तटस्थ राष्ट्रों को कम करों पर सामान देने की घोषणा की।
- इंग्लैंड से व्यापार करनेवाले तटस्थ जहाजों को हर प्रकार की सुविधा दी जायेगी।
- प्रशा तथा पुर्तगाल जैसे देशों ने विवशता मे महाद्वीपीय व्यवस्था को स्वीकार किया है, इसलिए उनके जहाज छोड़ दिये जायेंगे।
इस प्रकार इंग्लैंड ने अपने उपनिवेशों से व्यापार बढ़ाकर अपनी क्षतिपूर्ति करने का प्रयास किया।
नेपोलियन का मिलान आदेश (17 दिसंबर, 1807 ई.)
17 दिसंबर, 1807 ई. को नेपोलियन ने मिलान से आदेश जारी किया कि कोई भी ऐसा जहाज, जो ब्रिटिश अधिकार-क्षेत्रवाले बंदरगाहों से होकर आया हो, उसे अपने अधिकार में लेकर उस पर लदे माल को जब्त कर लिया जायेगा।
नेपोलियन का फांटेब्ल्यू आदेश (18 अक्टूबर, 1810 ई.)
18 अक्टूबर, 1810 ई. को नेपोलियन ने फांटेब्ल्यू से एक कठोर आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया था कि जब्त अंग्रेजी माल को जला दिया जायेगा और अवैध ढंग से व्यापार करनेवालों को कठोर दंड दिया जायेगा।
महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता
1806 ई. में लागू की गई नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था 1812 ई. में समाप्त हो गई। यद्यपि दूरदर्शी नेपोलियन ने ब्रिटेन को पराजित करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त कूटनीति को अपनाया, किंतु अपने देश के औद्योगिक पिछड़ेपन और ब्रिटिश उत्पादों की गुणवत्ता तथा उसकी सुदृढ़ नौशक्ति के कारण नेपोलियन की नीति विफल रही। महाद्वीपीय व्यवस्था के विरुद्ध सबसे पहले स्पेन ने विद्रोह किया। नेपोलियन ने स्पेन पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। नेपोलियन के विरूद्ध स्पेन में एक राष्ट्रीय विद्रोह छिड़ गया और स्पेनी नासूर ने नेपोलियन का सत्यानाश कर दिया।
स्पेन के बाद एक-एक करके यूरोपीय राष्ट्र महाद्वीपीय व्यवस्था से अलग होने लगे और नेपोलियन अनिवार्य रूप से आक्रामक युद्धों में उलझ गया जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। अंततः महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता ही नेपोलियन के पतन का कारण बनी। महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता के कारण फ्रांस के पास सशक्त जलसेना का अभाव और विभिन्न यूरोपीय देशों की इंग्लैंड के जहाजों और उत्पादों पर निर्भरता थी।
नेपोलियन ने फ्रांस की क्रांति के सिद्धांतो को अन्य देशो में पहुँचाया तथा जनसाधारण में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न की। यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के निर्माण का श्रेय नेपोलियन को है।
नेपोलियन के पतन के कारण
यूरोप राजनीतिक क्षितिज पर नेपोलियन का प्रादुर्भाव एक घूमकेतु की तरह हुआ और अपनी सैन्य-प्रतिभा तथा परिश्रम के बल पर वह शीघ्र ही यूरोप का भाग्यविधाता बन बैठा। नेपोलियन की आश्चर्यजनक सैनिक कुशलता और प्रशासनिक क्षमता नेे सभी को चकित कर दिया। परंतु उसकी शक्ति का स्तंभ जैसे बालू की भीत पर टिका था, जो कुछ ही वर्षों में ध्वस्त हो गया। वास्तव में नेपोलियन का उत्थान और पतन चकाचैंध करनेवाली एक उल्का की भाँति हुआ। वह यूरोप के आकाश में सैनिक सफलता के बल पर चमकता रहा परंतु पराजय के साथ ही उसके भाग्य का सितारा डूब गया। जिस साम्राज्य को उसने अपने कठिन परिश्रम के पश्चात् कायम किया गया था, वह देखते ही देखते समाप्त हो गया। नेपोलियन के पतन के अनेक कारण थे-
असीम महत्त्वाकांक्षा
नेपोलियन में असीम महत्त्वाकांक्षा थी और असीम महत्त्वाकांक्षा किसी भी व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण बन जाती है। नेपोलियन के साथ भी यही हुआ। युद्ध में जैसे-जैसे नेपोलियन विजयी होता गया वैसे-वैसे उसकी महत्त्वाकांक्षा बढ़ती गई और वह विश्व-राज्य की स्थापना का सपना देखने लगा। यदि थोड़े से ही वह संतुष्ट हो जाता और जीते हुए सम्राज्य की देखभाल करता तो संभव है कि उसका पतन इतना शीघ्रता से नहीं होता।
चारित्रिक दुर्बलता
नेपोलियन में साहस संयम और धैर्य कूट-कूट कर भरा था, परंतु उसके चरित्र की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि वह संधि को सम्मानित समझौता नहीं मानता था। किसी भी देश की मैत्री उसके लिए राजनीतिक आवश्यकता से अधिक नहीं थी। फलतः वह धीरे- धीरे जिद्दी होता गया। उसे यह भ्रम हो गया था कि उसके द्वारा उठाया गया प्रत्येक कदम उचित होता है और उससे कभी भूल नहीं हो सकती। वह दूसरों की सलाह की उपेक्षा करने लगा, जिसके कारण उसके सच्चे मित्र भी उससे दूर होते चले गये।
सैन्यवाद पर आधारित व्यवस्था
नेपोलियन की राजनीतिक प्रणाली सैन्यवाद पर आधारित थी जो इसके पतन का प्रधान कारण सिद्ध हुआ। वह सभी मामलों में सेना पर निर्भर रहता था, जिसके कारण वह सदैव युद्धों में ही उलझा रहा। वह यह भूल गया कि सैनिकवाद सिर्फ संकट के समय ही लाभदायक हो सकता है। जब तक फ्रांस विपत्तियों के बादल छाये रहे वहाँ की जनता ने उसका साथ दिया। विपत्तियों के हटते ही जनता ने उसका साथ देना छोड़ दिया। फ्रांसीसी जनता की सहानुभुति और प्रेम का खोना उसके लिए घातक सिद्ध हुआ।
इसके अतिरिक्त, पराजित राष्ट्र धीरे-धीरे उसके शत्रु बनते गये जो अवसर मिलते ही उसके खिलाफ उठ खड़े हुए। इतिहासकार काब्बन ने ठीक ही लिखा है कि, ‘नेपोलियन का साम्राज्य युद्ध में पनपा था, युद्ध ही उसके अस्तित्व का आधार था और युद्ध में ही उसका अंत हुआ।’
दोषपूर्ण सैनिक व्यवस्था
प्रारंभ में फ्रांस की सेना देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत थी। उसके समक्ष एक आदर्श का और वह एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए युद्ध करता था। परन्तु ज्यों- ज्यों उसके साम्राज्य का विस्तार हुआ सेना का राष्ट्रीय रूप विघटित होता गया। पहले उसकी सेना में फ्रांसीसी सैनिक थे, परंतु बाद में उसमें जर्मन, इटालियन पुर्तगाली और डच सैनिक भी शामिल कर लिये गये। फलतः नेपोलियन की सेना अनेक राज्यों की सेना बन गई जिसके सामने कोई आदर्श और उद्देश्य नहीं था। अंततः नेपोलियन की सैनिक शक्ति कमजोर होती गई और यह उसके पतन का महत्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।
नौसेना की दुर्बलता
नेपोलियन ने स्थल सेना का संगठन ठीक से किया था, किंतु उसके पास शक्तिशाली नौसेना का अभाव था, जिसके कारण उसे इंग्लैंड से पराजित होना पड़ा। अगर उसके पास शक्तिशाली नौसेना होती, तो संभव है कि उसे इंग्लैंड से पराजित नहीं होना पड़ता।
विजित प्रदेशों में देशभक्ति का अभाव
नेपोलियन ने जिन प्रदेशों की विजय की, वहाँ की जनता के मन में उसके प्रति सद्भावना और प्रेम नहीं था। वे नेपोलियन की शासन से घृणा करते थे। जब उसकी शक्ति कमजोर पड़ने लगी तो उसके अधीनस्थ राज्य अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करने लगे। यूरोपीय राष्ट्रों ने उसके खिलाफ संघर्ष के लिए चैथे गुट का निर्माण किया और इसी के कारण उसे वाटरलू के युद्ध में पराजित होना पड़ा।
पोप से शत्रुता
महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण नेपोलियन ने पोप को अपना शत्रु बना लिया। जब पोप ने उसकी महाद्वीपीय व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया तो उसने अप्रैल, 1808 में रोम पर अधिकार कर लिया और 1809 ई. में पोप को बंदी बना लिया। नेपोलियन के इस कार्य से कैथोलिकों को यह विश्वास हो गया कि नेपोलियन केवल राज्यों की स्वतंत्रता नष्ट करनेवाला दानव ही नहीं है, वरन् उनका धर्म नष्ट करनेवाला भी है।
औद्योगिक क्रांति
कहा जाता है कि नेपोलियन की पराजय वाटरलू के मैदान में न होकर मैनचेस्टर के कारखानों और बरकिंधम के लोहे के भट्टियों में हुई। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरुप इंग्लैंड में बड़े-बड़े कारखाने खोले गये और देखते ही देखते इंग्लैंड एक समृद्धशाली देश बन गया। औद्योगिक क्रांति के अभाव में नेपोलियन अपनी सेना के आधुनिक हथियार और संसाधन नहीं उपलब्ध करा सका, जो उसके लिए घातक सिद्ध हुआ।
महाद्वीपीय व्यवस्था
महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन की भयंकर भूल थी। वह इंग्लैंड को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता था। इंग्लैंड की शक्ति का मुख्य आधार उसकी नौसेना और विश्वव्यापी व्यापार था। अपनी समस्त कोशिशों के बावजूद उसकी नौशक्ति को नेपोलियन समाप्त नहीं कर सका, इसलिए उसने इंग्लैंड के व्यापार पर आघात करने की कोशिश में महाद्वीपीय व्यवस्था को जन्म दिया। नेपोलियन ने आदेश जारी किया कि कोई देश न तो इंग्लैंड के साथ व्यापार करेगा और न ही इंग्लैंड की बनी हुई वस्तुओं का प्रयोग करेगा। अपनी महाद्वीपीय व्यवस्था से नेपोलियन एक ऐसे जाल में फँस गया जिससे निकलना उसके लिए मुश्किल हो गया। इसलिए महाद्वीपीय व्यवस्था का नेपोलियन के पतन का मुख्य कारण माना जाता है।
पुर्तगाल के साथ युद्ध
पुर्तगाल का इंग्लैंड के साथ व्यापारिक संबंध था, किंतु नेपोलियन के दवाब के कारण उसे इंग्लैंड से संबंध तोड़ना पड़ा। इससे पुर्तगाल को काफी नुकसान हुआ। इसलिए उसने फिर से इंग्लैंड के साथ व्यापारिक संबंध कायम किया। इससे नेपोलियन ने क्रोधित होकर पुर्तेगाल पर आक्रमण कर दिया। यह भी नेपोलियन के लिए घातक सिद्ध हुआ।
स्पेन का नासूर
स्पेन के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप नेपोलियन के लिए नासूर साबित हुआ। स्पेन में हस्तक्षेप के कारण नेपोलियन के लाखों सैनिक मारे गये। फलतः इस युद्ध में उसकी स्थिति बिल्कुल कमजोर हो गई। इससे उसके विरोधियों को प्रोत्साहन मिला और जब नेपोलियन ने अपने भाई को स्पेन का राजा बनाया तो वहाँ के निवासी उस विदेशी को राजा मानने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने नेपोलियन की सेना को स्पेन से भगा दिया। स्पेन के विद्रोह से अन्य देशों को भी प्रोत्साहन मिला और वे भी विद्रोह करने लगे, जिससे नेपोलियन का पतन अवश्यंभावी हो गया।
रुस का अभियान
रुस ने नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया, इसलिए उसने 1812 ई. में 5 लाख सैनिकों के साथ रुस पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में यद्यपि नेपोलियन ने मास्को पर आधिकार कर लिया, लेकिन जब वह पराजित होकर वापस लौटा तो उसके मात्र 20 हजार सैनिक बचे थे। इस प्रकार उसे रूसी अभियान में भारी क्षति उठानी पड़ी।
थकान
नेपोलियन के पतन का समस्त कारण एक ही शब्द थकान में निहित है। अनेक युद्धों में लगातार व्यस्त रहने के कारण नेपोलियन थक चुका था। वह जैसे-जैसे युद्धों में उलझता गया, वैसे-वैसे उसकी शक्ति कमजोर पड़ती गई। अंततः वह थक गया और उसके चलते भी उसका पतन हो गया।
सगे-संबंधी
नेपोलियन के पतन के लिए उसके सगे संबधी भी कम उत्तरदायी नहीं थे। हलांकि वह अपने संबंधियों के प्रति उदारता का व्यवहार करता था। लेकिन जब भी वह संकट में पड़ता था, तो उसके सगे-संबंधी उसकी मदद नहीं करते थे। उसने अपने भाइयों को हालैंड, स्पेन व वेस्टफेलिया का शासक बनाया था, किंतु संकट के समय में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। नेपोलियन ने मेटरनिख को लिखा था कि, ‘‘मैंने अपने संबंधियों का जितना भला किया, उन्होंने उससे अधिक मेरा नुकसान किया।’’
चतुर्थ गुट के संगठन
नेपोलियन की कमजोरी से लाभ उठाकर उसके शत्रुओं ने चतुर्थ गुट का निर्माण किया और मित्र राष्ट्रों ने उसे पराजित किया। उसे पकड़कर एल्बा टापू पर भेज दिया गया, लेकिन नेपोलियन वहाँ बहुत दिनों तक नहीं रह सका और शीघ्र ही फ्रांस लौट आया और वहाँ का शासक बन बैठा। लेकिन इस बार वह सिर्फ सौ दिनों तक के लिए सम्राट रहा। मित्र राष्ट्रों ने 18 जून, 1815 ई. को वाटरलू के युद्ध में अंतिम रूप से पराजित कर दिया। उसे पकड़कर मित्र राष्ट्रों ने कैदी के रूप में सेंट हेलेना टापू पर भेज दिया, जहाँ 52 वर्ष की आयु में 5 मई, 1821 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारण प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उसके पतन के लिए उत्तरदायी थे। उसने युद्ध के द्वारा ही अपने साम्राज्य का निर्माण किया था और युद्धों के कारण ही उसका पतन भी हुआ। दूसरे शब्दों में, जिन तत्वों ने नेपोलियन के साम्राज्य का निर्माण किया था, उन्हीं तत्वों ने उसका विनाश भी कर दिया।
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