हेनरी अष्टम (Henry VIII, 1509-1547)

हेनरी अष्टम (1509-1547)

हेनरी सप्तम की मृत्यु (1509) के पश्चात् उसका पुत्र हेनरी अष्टम (1509-1547) इंग्लैंड के राजसिंहासन पर आसीन हुआ। ग्रीनविच पैलेस में जन्मा हेनरी अष्टम, हेनरी सप्तम व एलिज़ाबेथ ऑफ यॉर्क की तीसरी संतान था।

हेनरी अष्टम के राजगद्दी पर आरूढ़ होने का इंग्लैंड की जनता ने स्वागत किया, क्योंकि अठारहवर्षीय हेनरी अष्टम एक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, संगीत, नृत्य तथा खेलकूद में रुचि रखने वाला नवयुवक था। उसके समकालीन उसे एक आकर्षक, शिक्षित और निपुण राजा मानते थे और उसे ‘अंग्रेजी सिंहासन पर बैठने वाले सबसे करिश्माई शासकों में से एक’ बताया गया है। वह विद्यानुरागी तथा विद्वानों का आश्रदाता होने के साथ-साथ स्वयं भी विद्वान था और धर्मशास्त्र, फ्रांसीसी, लैटिन तथा अन्य अनेक भाषाओं का ज्ञाता था। उसके दरबार में कौलेट, इरैस्मस तथा टॉमस मूर जैसे विद्वान रहते थे। किंतु कहा जाता है कि अपने जीवन के अंतिम समय में वह विलासी, अहंकारी, पागल और अत्याचारी हो गया था।

हेनरी अष्टम (Henry VIII, 1509-1547)
हेनरी अष्टम

हेनरी अष्टम संभवतः अपने वंश का सर्वाधिक महत्वाकांक्षी शासक था। वह इंग्लैंड में अपनी शक्ति को पूर्ण बनाना चाहता था और यूरोपीय राजनीति में एक प्रमुख शक्ति हासिल करना चाहता था। विरासत में प्राप्त सुदृढ़ राजकीय शक्ति और संचित धनराशि का उपयोग कर उसने केवल दरबार की शान-शौकत ही नहीं बढ़ाई, अपितु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी पूर्ण भाग लिया। उसके समकालीन प्रत्येक राजा की यह महत्वाकांक्षा थी कि वह रोम का पवित्र सम्राट बने। हेनरी भी इस दौड में पीछे नहीं रहा, किंतु 1519 में उस पद के लिए होनेवाले चुनाव में स्पेन के चार्ल्स पंचम से वह हार गया। इसके पूर्व हेनरी ने स्पेन और फ्रांस के राजाओं का बारी बारी से पक्ष लेकर उन्हें एक दूसरे के विरुद्ध भिड़ाये रखने की नीति प्रारंभ कर दी थी। उसका मंत्री वुल्जे उस नीति के प्रयोग में दक्ष था और उसी से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में शक्ति-संतुलन के सिद्धांत का प्रारंभ माना जाता है।

अपने छः विवाहों के अलावा, हेनरी अष्टम चर्च ऑफ इंग्लैंड को रोमन कैथोलिक चर्च से पृथक करने में अपनी निभाई गई भूमिका के लिए भी प्रसिद्ध हैं। रोम के साथ हेनरी के संघर्षों के परिणामस्वरूप पोप के प्रभुत्व से चर्च ऑफ इंग्लैंड का पृथक्करण हुआ, मठों का विघटन हो गया और उसने स्वयं को चर्च ऑफ इंग्लैंड के सर्वोच्च प्रमुख के रूप में स्थापित कर लिया। उसने धार्मिक आयोजनों व रस्मों को बदल दिया तथा मठों का दमन किया। किंतु रोमन कैथलिक चर्च के साथ संबंध विच्छेद के बाद भी वह कैथलिक धर्मशास्त्र की मूल-शिक्षाओं का समर्थक बना रहा।

हेनरी अष्टम को वैभव तथा निरंकुशता उत्तराधिकार में मिले थे। उसने राजसिंहासन पर आसीन होते ही सबसे पहले अपने पिता के शासनकाल में मंत्री और सलाहकार के पद को सुशोभित करने वाले एंपसन तथा डडले को उनकी क्रूर नीति के कारण बंदी बना लिया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर 1510 में जनता के सामने फाँसी दे दी, जिससें जनता अत्यंत प्रसन्न हो गई।

किंतु हेनरी अष्टम शीघ्र ही प्रशासन के शुष्क एवं कठिन कार्य से ऊब गया और 1514 में प्रशासन का कार्य अपने विश्वासपात्र मंत्री कार्डिनल वुल्जे को सौंप दिया। थॉमस वुल्जे ने 1529 तक लॉर्ड चांसलर के रूप में व्यावहारिक रूप से युवा राजा के लिए घरेलू व विदेश नीति का संचालन किया। उसने फ्रांस के साथ युद्ध-विराम की संधि में वार्ता की, जिसका संकेत फील्ड ऑफ क्लॉथ ऑफ गॉड (1520) में मित्रता के नाटकीय प्रदर्शन से मिला। वुल्जे ने राष्ट्रीय सरकार को केंद्रीकृत कर दिया और अदालतों, विशिष्ट रूप से स्टार चैंबर के अधिकार-क्षेत्र का विस्तार किया। इस प्रकार उसने हेनरी की सरकार को पूरी तरह से निरंकुश बनाने की जमीन तैयार कर दिया था।

जब रानी कैथरीन से शीघ्र तलाक दिला पाने में वुल्जे विफल रहा, तो इससे राजा को निराशा हुई। उसने वुल्जे को प्रतिस्थापित कर दिया। 16 वर्षों तक शीर्ष पर रहने के बाद उसने सत्ता गँवा दी और 1530 में उसे राजद्रोह के झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

वुल्जे का पतन, पोप और इंग्लैंड के पादरी-वर्ग के लिए एक चेतावनी थी कि राजा की इच्छाओं की पूर्ति में विफल होने पर भयंकर परिणाम हो सकते हैं। इसके बाद हेनरी ने अपनी सरकार का पूरा नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया, यद्यपि दरबार में अनेक समूह एक दूसरे को नष्ट व समाप्त करने के प्रयासों में लगे रहे।

हेनरी अष्टम को अपने पिता हेनरी सप्तम से अपार धनराशि मिली थी, जिससे वह निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी बन गया। उसने अपने शासन के प्रथम बीस वर्ष विलासिता एवं ऐश्वर्य में बिताये और संचित कोष को खाली कर दिया। उसने अपनी पसंद के मंत्रियों को नियुक्त किया और अपने शासनकाल के पहले बीस वर्षों में शायद ही कोई संसद बलुाई गई हो। लेकिन हेनरी अष्टम ने महसूस किया कि जिस नीति पर वह चल रहा था, उसके लिए जरूरी था कि वह संसद को अपने पक्ष में रख और राष्ट्र के प्रतिनिधियों का समर्थन हासिल करे। दरअसल हेनरी अष्टम उन जन्मजात शासकों में से एक था, जो अपनी इच्छा के बल पर लोगों को अपने विचारों से प्रभावित करते हैं।

वुल्जे के पतन के बाद हेनरी अष्टम ने प्रशासन अपने हाथ में लेकर कुशलतापूर्वक शासन किया और इंग्लैंड को वैभवशाली तथा समृद्धिशाली बनाने में सफल हुआ। हेनरी अष्टम को व्यक्ति की पहचान थी और उसने योग्य व्यक्तियों को ही अपना सलाहकार नियुक्त किया। वह शासकीय कार्यों में गोपनीयता को पसंद करता था। उसने पोप के प्रभाव को इंग्लैंड से समाप्त कर अपनी सामर्थ्य एवं बुद्धिमता का परिचय दिया।

हेनरी अष्टम के विवाह

हेनरी को उसके छः विवाहों के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से उसकी पहली रानी कैथरीन ऑफ अरागॉन से संबंध-विच्छेद करने के कारण। हेनरी अष्टम का पहला विवाह इंग्लैंड और स्पेन के बीच अपने अग्रज आर्थर की विधवा कैथरीन ऑफ अरागॉन से 11 जून, 1509 को हुआ, क्योंकि आर्थर की युवावस्था में ही मृत्यु हो गई थी। कैथरीन अरागॉन के राजा फर्डिनेंड द्वितीय और कैस्टील की रानी इसाबेला प्रथम की जीवित बची संतानों में सबसे छोटी थी। यद्यपि तत्कालीन समाज में यह विवाह अवैध था, किंतु पोप ने स्पेन के राजा फर्डिनेंड के प्रभाव से इस विवाह की विशेष अनुमति दे दी। कैथरीन यद्यपि हेनरी से उम्र में बड़ी थी, फिर भी, सत्रह वर्षों तक उनके संबंध मधुर रहे, किंतु 1527 में हेनरी ने कई कारणों से कैथरीन से संबंध-विच्छेद करना चाहा।

एक, महारानी कैथरीन के कई बच्चे हुए, लेकिन एक पुत्री राजकुमारी मेरी के अलावा कोई जीवित नहीं रह सका। दूसरे, ट्यूडर राजवंश की शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए हेनरी एक पुरुष उत्तराधिकारी चाहता था और कैथरीन के अस्वस्थ रहने के कारण हेनरी को उससे अब पुत्र प्राप्त होने की आशा नहीं थी। तीसरे, हेनरी को लगता था कि उसने अपने बड़े भाई की पत्नी से विवाह करके पाप किया है और इसी कारण उसकी संतानों की मृत्यु हो गई। चौथा और प्रमुख कारण यह था कि वह रानी की सेविकाओं में से एक युवा महिला ऐनी बोलिन के प्रति आसक्त हो गया था और उससे विवाह करना चाहता था। चूंकि ईसाई धर्म में केवल एक ही पत्नी रखने की अनुमति थी, इसलिए वह चाहता था कि कैथरीन के साथ उसके विवाह को निरस्त किया जाए।

हेनरी ने विवाह के निरस्तीकरण के लिए कार्डिनल थॉमस वुल्जे को नियुक्त किया। राजा के पक्ष में वुल्जे ने हरसंभव प्रयास किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। फलतः हेनरी ने वुल्जे को न केवल सार्वजनिक पद से बर्खास्त कर दिया, बल्कि बंदी बना कर जेल में डाल दिया । यदि जेल में बीमारी से उसकी मृत्यु न हुई होती, तो उसे फाँसी दे दी जाती।

इसके बाद हेनरी ने समस्या के समाधान के लिए के लिए विलियम नाइट को पोप क्लीमेंट सप्तम के पास भेजा। लेकिन पोप ने संबंध-विच्छेद के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया और रोम के न्यायालय से निर्णय आने तक हेनरी को नया विवाह करने से रोक दिया।

अब वुल्जे के स्थान पर कैथोलिक थॉमस मूर की नियुक्ति की गई, जिसने इस मत का समर्थन किया कि कैथरीन के साथ हेनरी का विवाह ग़ैर-क़ानूनी था। 1532 में एक वकील थॉमस क्रॉमवेल ने संसद के समक्ष पोप और चर्च के विरूद्ध अनेक कानून प्रस्तुत किये, जिनसे न केवल इंग्लैंड का पोप से अलगाव हो गया, बल्कि राजा की सर्वोच्चता को भी मान्यता मिल गई।

इन कानूनों के बाद, थॉमस मूर ने चांसलर के रूप में अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और क्रॉमवेल हेनरी के प्रमुख मंत्री बन गये। हेनरी ने आर्कबिशप के पद पर क्रैनमर को नियुक्त किया, जिसने 23 मई, 1533 को हेनरी का कैथरीन से संबंध-विच्छेद करा दिया।

हेनरी ने 1532 में फ्रांस के फ्रांसिस प्रथम से अपने नये विवाह के लिए समर्थन माँगा और गुप्त रूप से ऐनी बोलिन से विवाह कर लिया। शीघ्र ही ऐनी बोलिन गर्भवती हो गई और 25 जनवरी, 1533 को लंदन में दूसरी बार वैवाहिक कार्यक्रम हुआ। 23 मई, 1533 को क्रैनमर ने हेनरी और कैथरीन के विवाह को शून्य व प्रभावहीन घोषित कर दिया और पाँच दिन बाद, 28 मई, 1533 को क्रैनमर ने घोषणा की कि हेनरी व ऐनी बोलिन का विवाह वैध था। कैथरीन से औपचारिक रूप से रानी की पदवी छीन ली गई और 1 जून, 1533 को ऐनी को रानी का ताज पहनाया गया।

ऐनी बोलिन ने 7 सितंबर, 1533 को एक पुत्री को जन्म दिया, जिसे हेनरी की माँ यॉर्क की एलिज़ाबेथ के सम्मान में एलिज़ाबेथ नाम दिया गया। संसद ने उत्तराधिकार अधिनियम, 1533 के द्वारा हेनरी और ऐनी के विवाह को मान्यता दी गई, कैथरीन की पुत्री मेरी को अवैध घोषित कर दिया गया और ऐनी बोलिन की संतान को उत्तराधिकार की पंक्ति में अगला स्थान दिये जाने की घोषणा की गई। इस घोषणा में एक धारा सबसे महत्वपूर्ण थी, जो किसी भी विदेशी प्राधिकार, राजकुमार या राजा के आदेश को अस्वीकार करती थी। राज्य के सभी व्यस्कों के लिए इस कानून के प्रावधानों को शपथपूर्वक स्वीकार करना आवश्यक कर दिया गया। इससे इनकार करनेवाले आजीवन कारावास की सज़ा के पात्र थे। इस विवाह के अवैध होने का आरोप लगाने वाले किसी भी प्रकार के साहित्य का कोई भी प्रकाशक या मुद्रक स्वतः ही उच्च राजद्रोह का दोषी हो जाता और उसे मृत्युदंड दिया जा सकता था।

हेनरी किसी भी दशा में कोई पुरुष उत्तराधिकारी चाहता था। स्रोतों से पता चलता है कि जनवरी, 1536 में ऐनी बोलिन के एक नर-शिशु का, जो गर्भकाल के लगभग चार माह पूरे कर चुका था, गर्भपात हो गया। हेनरी ने घोषणा कर दी कि उनका विवाह जादू-टोने का परिणाम था। कुछ ही समय बाद राजा को बोलिन के चरित्र पर संदेह हो गया और अंततः हेनरी ने पराये पुरुष से शारीरिक संबंध बनाने, कौटुंबिक व्यभिचार और गंभीर राजद्रोह का दोषी घोषित कर 19 मई, 1536 को टॉवर ग्रीन में ऐनी बोलिन का सिर कलम करवा दिया।

पुरुष उत्तराधिकारी की चाह में हेनरी ने तीसरा विवाह रानी की एक दासी जेन सेमूर से किया। लगभग इसी समय, हेनरी ने वेल्स ऐक्ट 1535 के कानूनों पर अपनी सहमति प्रदान की, जिससे इंग्लैंड तथा वेल्स मिलकर वैधानिक रूप से एक एकीकृत राष्ट्र बन गये। उत्तराधिकार अधिनियम, 1536 के द्वारा रानी सेमूर से उत्पन्न होने वाली हेनरी की संतानों को उत्तराधिकार की पंक्ति में अगला स्थान दिया गया, लेडी मेरी व लेडी एलिज़ाबेथ दोनों को अवैध घोषित कर दिया और इस प्रकार उन्हें ताज से बेदखल कर दिया गया। जेन सेमूर से एक पुत्र राजकुमार एडवर्ड पैदा हुआ, जो बाद में एडवर्ड षष्टम के नाम से इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा। किंतु इस प्रसव के दौरान एक संक्रमण के कारण 24 अक्टूबर, 1537 को हैम्पटन कोर्टमहल में रानी की मृत्यु हो गई।

जर्मन प्रोटेस्टेंट राजकुमारों के साथ गठबंधन करने के लिए थॉमस क्रॉमवेल ने जर्मन राजकुमारी एन ऑफ क्लीब्ज का नाम सुझाया और हॉल्बिन द यंगर को एन ऑफ क्लीब्ज का चित्र बनाने के लिए भेजा। हॉल्बिन द्वारा किये गये चित्रण और दरबारियों के प्रशंसापूर्ण वर्णनों से उत्सुक होकर हेनरी ने अपना चौथा विवाह एन ऑफ क्लीब्ज से किया। कहा जाता है कि एन के इंग्लैंड आगमन पर हेनरी ने उसे पूरी तरह अनाकर्षक पाया और उसे एक ‘फ्लैंडर्स घोड़ी’ बताया।

हेनरी इस विवाह को अस्वीकृत करना चाहता था, ताकि वह किसी और से विवाह कर सके। रानी एन ने बुद्धिमानी से काम लिया और हेनरी की इच्छानुसार विवाह के निरस्तीकरण के लिए गवाही दी कि विवाह के बाद उन दोनों के बीच कभी शारीरिक संबंध नहीं बना था। इसके परिणामस्वरूप 1540 में विवाह रद्द हो गया और एन ‘द किंग्स़ सिस्टर’ (राजा की बहन) के रूप में रिचमंड कैसल में रहने लगी। इस विवाह की सलाह देने के लिए क्रॉमवेल की निंदा की गई और उसका सिर कटवा दिया गया।

हेनरी अष्टम ने क्रॉमवेल की फाँसी वाले दिन 28 जुलाई, 1540 को एक उन्नीस वर्षीय युवा सुंदरी कैथरीन हॉवर्ड, जो एनी बोलिन की चचेरी बहन थी, से पाँचवाँ विवाह किया। विवाह के शीघ्र बाद ही रानी हॉवर्ड का दरबारी थॉमस कल्पेपर के साथ प्रेम-संबंध बन गया। विवाह के दो साल बाद हेनरी ने उसे भी ऐनी बोलिन की तरह राजद्रोह के आरोप में 13 फ़रवरी, 1542 को मृत्युदंड दे दिया।

हेनरी ने 1543 में दो बार विधवा हो चुकी कैथरीन पार से अपना छठाँ और अंतिम विवाह किया। हेनरी कैथरीन का तीसरा पति था। धर्म को लेकर उसके व हेनरी के बीच मतभेद थे; लेकिन उसने आज्ञाकारिता का प्रदर्शन करके स्वयं को बचा लिया। उसने पहली दो पुत्रियों, लेडी मेरी व लेडी एलिज़ाबेथ के साथ पुनः सामंजस्य बनाने में हेनरी की सहायता की। 1544 में, संसद के एक कानून के द्वारा इन पुत्रियों को उत्तराधिकार की पंक्ति में प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड के बाद पुनः स्थान दिया गया, हालांकि वे अभी भी अवैध संतानें ही मानी गईं। इसी कानून के द्वारा हेनरी को आगे अपनी इच्छानुसार उत्तराधिकारी के निर्धारण का अधिकार भी दिया गया। हेनरी की 1547 में मृत्यु हो गई। हेनरी की मृत्यु के पश्चात् कैथरीन ने जेन सेमूर के भाई थॉमस सेमूर से चौथा विवाह कर लिया।

हेनरी के इन विवाह-संबंधों के अलावा कम से कम दो अन्य प्रेमिकाओं- एलिज़ाबेथ ब्लाउंट और मैरी बोलिन की सूचना मिलती है। एलिज़ाबेथ बेसी ब्लाउंट ने हेनरी के अवैध पुत्र हेनरी फिट्ज़रॉय को जन्म दिया था, जिसे वैधता प्रदान करने के लिए ड्यूक ऑफ रिचमंड बनाया गया था। हेनरी द्वारा एनी बोलिन को अपनी दूसरी पत्नी बनाये जाने के पहले मैरी बोलिन उसकी प्रेमिका थी। कहा जाता है कि मैरी की दो संतानों के पिता हेनरी ही थे।

हेनरी अष्टम यद्यपि एक योग्य शासक था, लेकिन अनेक विवाहों और विवाहेतर संबंधों के कारण वह बदनाम हो गया। उसके विषय में कहा जाने लगा था कि वह मंत्रियों के लिए निर्दयी, स्त्रियों के लिए दानव और अपने मित्रों के लिए घोखेबाज व्यक्ति था। उसने अपने क्रोध में किसी पुरुष को और अपनी वासना में किसी स्त्री को नहीं बख्शा।

हेनरी अष्टम और धर्म-सुधार

हेनरी अष्टम जिस समय गद्दी पर बैठा, उस समय वह पोप का अनन्य भक्त था। उसने 1512 में पोप को प्रसन्न करने के लिए फ्रांस से युद्ध किया, जिसमें जन-धन और समय के बर्बादी हुई। उसने 1521 में लूथर के विरुद्ध एक पुस्तक लिखी, जिससे प्रसन्न होकर पोप ने उसे ‘घर्म-रक्षक’ उपाधि दी थी।

1527 में हेनरी अष्टम के शासन का द्वितीय चरण प्रारंभ हुआ। बीस वर्षों तक पोप को प्रसन्न करने के प्रयत्न करते रहने के पश्चात् उसके 1529  में पोप से संबंध कटु हो गये। इस कटुता का कारण हैनरी का व्यक्तिगत स्वार्थ था। हेनरी अष्टम को अपनी पत्नी कैथरीन से कोई पुत्र संतान नहीं थी और वह उससे संबंध-विच्छेद करना चाहता था। किंतु पोप कैथरीन के भतीजे तथा रोमन सम्राट चार्ल्स पंचम के भय से स्वीकृति देने में आनाकानी करता रहा।

हेनरी अष्टम शीघ्रातिशीघ्र कैथरीन से संबंध-विच्छेद चाहता था, अतः हेनरी पोप के विरुद्ध हो गया। वुल्जे, जिसके पोप से मधुर संबंध थे, भी हेनरी को कैथरीन से मुक्ति दिलाने में सफल न हो सका, परिणामस्वरूप वुल्जे को पदच्युत कर दिया गया। वूल्जे के स्थान पर हेनरी ने क्रामवेल को नियुक्त किया और पोप का इंग्लैंड पर धार्मिक प्रभुत्व मिटाने के लिए क्रामवेल के परामर्श से संसद का अधिवेशन बुलाया। इस प्रकार तलाक के सवाल ने हेनरी को अंग्रेजी चर्च से पोप को अलग करने का मौका दिया। यह अंग्रेज़ राष्ट्र के उस विचार से पूर्णतः मेल खाता था, जो परंपरागत रूप से पोप-विरोधी था। राष्ट्रीय स्वतंत्रता की बढ़ती भावना में पोप के अधिकार से स्वतंत्रता भी शामिल थी। इसने सुधार को एक राजनीतिक चरित्र दिया।

हेनरी ने क्रैनमर नामक एक पादरी को अपना मित्र बनाया और 1533 में उसे आर्कबिशप नियुक्त किया। क्रैनमर ने हेनरी के प्रथम विवाह को अवैध घोषित कर दिया और कैथरीन से उसका संबंध-विच्छेद कराके ऐन बोलेन से विवाह करा दिया।

किंतु अंग्रेजी सुधार के चरित्र को निर्धारित करने में कैथरीन ऑफ एरागॉन का तलाक मुख्य कारण नहीं था, बल्कि एक अवसर था। यह भी नहीं था कि हेनरी मानसिक रूप से प्रोटेस्टेंट हो गया था। वास्तव में, यह राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और व्यक्तिगत उद्देश्यों का एक संयोजन था, जो अंग्रेजी चर्च के सुधार का कारण बना और इसके चरित्र को निर्धारित किया। तलाक का मुद्दा चर्च के सुधार की हेनरी की इच्छा में केवल एक कारक मात्र था। वैसे भी, 1534 में स्वयं को चर्च ऑफ इंग्लैंड का सर्वोच्च प्रमुख घोषित करने के बावजूद हेनरी ने कभी भी औपचारिक रूप से रोमन कैथलिक चर्च को अस्वीकार नहीं किया था।

संसद का अधिवेशन 1529 में प्रारंभ हुआ और यह संसद 1536 तक कार्य करती रही। इस संसद के सदस्य मुख्यतः व्यापारी तथा जमींदार थे, जिनकी दृष्टि चर्च की संपत्ति पर थी। इसलिए संसद ने 1532 से 1537 के बीच हेनरी अष्टम की इच्छानुसार राजा तथा पोप के बीच संबंधों व चर्च ऑफ इंग्लैंड की संरचना से संबंधित अनेक कानून लागू किये। हेनरी द्वारा संसद की सहायता से पारित किये गये अधिनियमों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. पोप से संबंध-विच्छेद संबंधी नियम,
  2. पादरियों पर नियंत्रण-संबंधी नियम और
  3. मठों की समाप्ति-संबंधी नियम।
पोप से संबंध-विच्छेद संबंधी अधिनियम
ऐनेट्स अधिनियम

पोप के प्रभाव को समाप्त करने के उद्देश्य से हेनरी ने सबसे पहले 1532 में ऐनेट्स अधिनियम पारित किया गया। पोप यूरोप के ईसाई राज्यों में खुलने वाले चर्चों की पहले वर्ष की आय को ले लिया करता था, जिसको ‘फर्स्ट फ्रूट्स’ (प्रथम फल) कहते थे। इस अधिनियम के द्वारा यह आय रोम जाने से रोक दी गई और उस पर राजा का अधिकार घोषित कर दिया गया।

पीटर्स पेंस अधिनियम

यूरोप के राज्यों द्वारा पोप को समय-समय पर धन अथवा अन्य उपहार भेजे जाते थे। हेनरी अष्टम अपने राज्यकाल के प्रारंभ में पोप का अनन्य भक्त था और पोप को उपहार भेजता था। किंतु इस नियम के द्वारा इंग्लैंड से पोप के लिए उपहार भेजने की प्रथा को समाप्त कर दिया गया।

अपील अघिनियम

हेनरी ने 1533 में अपील अघिनियम पारित करवाया। इस नियम के पूर्व पोप के धर्म-संबंधी न्यायालय सभी ईसाई राज्यों में थे और उनकी अपील वह स्वयं रोम में सुनता था। इस अधिनियम के द्वारा अपीलों के रोम जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और पोप के प्रभाव को पूर्णतः समाप्त कर दिया।

इस नियम के पारित होने पर तत्कालीन चर्च के अधिकारी टॉमस मूर ने त्यागपत्र दे दिया और उसके स्थान पर हेनरी ने टॉमस क्रामवेल को नियुक्त किया। इसी समय क्रैनमर को भी कैंटबरी का आर्कबिशप बनाया गया। इसी नियम के परिणामस्वरूप कैनमर, हेनरी अष्टम का उसकी पत्नी कैथरीन से संबंध-विच्छेद करने में सफल हुआ और ऐन बोलिन से उसको विवाह की अनुमति दे दी। उत्तराधिकार संबंधी नियम: यह नियम 1534 में पारित किया गया। इसके द्वारा ऐन बोलिन के बच्चों को इंग्लैंड के राजसिंहासन का वैध उत्तराधिकारी घोषित किया गया। यह पोप की आज्ञा की सर्वथा अवहेलना थी।

सर्वोच्चता के अधिनियम

पोप ईसाई जगत का सम्राट माना जाता था। 1534 में सर्वोच्चता के इस अधिनियम ने हेनरी अष्टम को इंग्लैंड के चर्च का प्रधान घोषित कर दिया। जिन लोगों ने इस नियम को स्वीकार करने से इनकार किया, उसको मौत के घाट उतार दिया। इन नियंमों के परिणामस्वरूप हेनरी अष्टम पोप के प्रभाव को इंग्लैंड से लगभग समाप्त करने में सफल हुआ।

इस प्रकार पार्लियामेंट द्वारा पारित उपर्युक्त विधानों के फलस्वरूप इंग्लैंड की राजशक्ति पोप के नियंत्रण से मुक्त हो गई, चर्च ऑफ इंग्लैंड का रोम से विलगाव हो गया और हेनरी स्वयं चर्च ऑफ इंग्लैंड का सर्वोच्च प्रमुख बन गया।

पादरियों पर नियंत्रण-संबंधी अधिनियम

पादरियों की शक्ति पर नियंत्रण रखने के लिए हेनरी ने संसद से अनेक नियम पारित कराये। इससे जहाँ एक ओर हेनरी का पादरियों पर प्रभुत्व स्थापित हुआ, वहीं दूसरी ओर उसे आर्थिक लाभ भी हुआ-

‘प्रोबेट्स एवं मार्टनेरीज’ अधिनियम के द्वारा शादी एवं मृत्यु के समय पादरियों का शुल्क निर्धारित कर दिया गया। अब प्लूरेलिटिज अघिनियम के द्वारा एक बिशप एक ही गिरजाघर का अध्यक्ष हो सकता था। इससे पूर्व पोप की अनुमति से एक ही बिशप अनेक गिरजाघरों का अध्यक्ष बन जाता था। अब राजा की अनुमति पर ही किसी विशेष कारणवश ऐसा होना संभव था।

हेनरी अष्टम की संसद ने 1531 में एडवर्ड चतुर्थ के समय में पारित प्रेमुनायर अधिनियम को पुनः लागू किया और इसके द्वारा पादरी वर्ग पर यह आरोप लगाया कि वे देशद्रोही थे, क्योंकि उन्होंने एक विदेशी सत्ता के अधिकार को स्वीकार करते हुए प्रेमुनायर अधिनियम को भंग किया था। दंड से मुक्ति पाने के लिए कैंटबरी के संघ ने एक लाख पौंड तथा यार्क संघ ने अठारह हजार पौंड हेनरी को भेंट किये। कानून के अनुसार साधारण जनता भी दंड की भागी थी, किंतु हेनरी ने उदारता का परिचय देते हुए उसे क्षमा. कर दिया।

इसके अलावा, 1539 में हेनरी ने पादरियों की शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए छः नियम पारित किये, जिनको मानना प्रत्येक पादरी के लिए अनिवार्य था, जैसे-पादरियों के विवाह पर प्रतिबंध, ब्रह्मचर्य ब्रत की शपथ, व्यक्तिगत प्रार्थना को स्वीकारना, गलती तथा पाप को स्वीकारने की प्रथा, कम्युनियन तथा ट्रांसब्सटेंशियेसन की प्रथा को स्वीकारना। इन छः नियमों को न मानने पर मृत्युदंड का विधान किया गया था।

मठों की समाप्ति-संबंधी नियम

इंग्लैंड में अनेक ईसाई आश्रम थे, जिन्हें ‘मठ’ कहा जाता था। इन मठों के पास बड़े-बड़े भूखंड थे, जिन पर किरायेदार काम किया करते थे। इन आश्रमों (मठों) के ईसाई धर्म-प्रचारकों को भिक्षु (पादरी) या भिक्षुणी (ननरीज) कहा जाता था। मध्य युग तक इन मठों का अत्यधिक महत्व था, क्योंकि इन मठों के भिक्षु-भिक्षुणी न केवल जनता को पवित्र जीवन का उपदेश देते थे, बल्कि अनेक प्रकार से उनकी सेवा करते थे। मठों की उपयोगिता के कारण राज्य और धार्मिक व्यक्ति इनकी आर्थिक सहायता करते थे, किंतु हेनरी अष्टम ने चर्च में सुधार के अपने प्रयासों के अंतर्गत 1536 से 1541 के बीच इन मठों और धर्म-स्थलों को तोड़ने व उनकी संपत्तियाँ जब्त करने की अनुमति दी। इसके पीछे कई कारण थे।

एक, मध्य युग की समाप्ति तक ये मठ और धार्मिक स्थल भ्रष्टाचार तथा भोग-विलास के केंद्र बन गये थे। दूसरे, मठों पर पोप का प्रभाव रहता था तथा ये देश के नियमों की अवहेलना करते थे, इसलिए पोप की रही-सही शक्ति को नष्ट करने के लिए मठों को नष्ट किया जान आवश्यक था। तीसरे, मठों के पास अपार संपत्ति थी और राजा एवं जनता दोनों ही इस अपार संपत्ति पर अधिकार करना चाहते थे। चौथे, लेकिन सबसे बडा कारण यह था कि हेनरी ताज के प्रति कृतज्ञ ज़मींदारों को मठों की भू-संपदा प्रदान कर एक नये कुलीन वर्ग का निर्माण करना चाहता था।

हेनरी ने 1535 में मठों की आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए क्रामवेल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया। इस आयोग की संस्तुति के आधार पर हेनरी ने 1536 में एक नियम पारित किया, जिसके द्वारा 200 पौड से कम वार्षिक आय वाले मठों को समाप्त कर दिया। इस प्रकार 376 मठ समाप्त कर दिये गये और इन मठों की संपत्ति पर राजा का अधिकार हो गया।

छोटे मठों को समाप्त करने के बाद हेनरी ने बड़े मठों को भी समाप्त करने का निर्णय किया। जिस आयोग ने छोटे मठों के विरुद्ध रिपोर्ट दी थी, उसी ने बड़े मठों के विरुद्ध भी अभियोग लगाये। प्रारंभ में रिश्वत तथा अन्य प्रलोभन देकर मठों पर अधिकार करने का प्रयास किया गया, किंतु जब मठाधीशों ने ना-नुकुर की, तो उन्हें डरा-धमका कर ऐसा करने के लिए विवश किया गया। 1540 तक एक-एक करके सभी मठ समाप्त कर दिये गये और उनकी संपत्ति पर हेनरी ने अधिकार कर लिया। कुछ भिक्षुओं को जीवन-वृति दी गई, छः बड़े मठों को पुनः संगठित किया गया और उनकी संपत्ति का कुछ भाग शिक्षा और सुरक्षा पर व्यय किया गया। किंतु मठों का अधिकांश भाग राजा को मिला और उसने उनमें से बहुत कुछ अपने मंत्रियों तथा दरबारियों को उपहार के रूप में अथवा मूल्य लेकर बेंच दिया।

मठों की समाप्ति का प्रभाव

हेनरी अष्टम द्वारा मठों को समाप्त करना निश्चित रूप से उसका एक साहसिक कदम था। लेकिन हेनरी के इस कार्य में संसद ने भी पूरा सहयोग किया। मठों की समाप्ति ने इंग्लैंड को राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक रूप ये प्रभावित किया।

एक, इंग्लैंड में मठ ही पोप की सत्ता के प्रतीक थे, जबकि पोप रोम में रहता था। इन मठों की समाप्ति से पोप का प्रभाव भी इंग्लैंड पर से समाप्त हो गया। पोप के प्रभाव के समाप्त होने से इंग्लैंड में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। दूसरे, मठों की समाप्ति से इंग्लैंड में राजा की शक्ति राजनीतिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में सर्वोपरि हो गई। मठों की समाप्ति के बाद हेनरी ने केवल छः बड़े गिरजाघरों की व्यवस्था की, जो वेस्टमिनिस्टर, ऑक्सफोर्ड, पीटर बरो, ब्रिस्टल, चेस्टर तथा ग्लोस्टर में थे और उन पर पूर्ण नियंत्रण रखा। तीसरे, मठों की समाप्ति से पोप को भेजी जाने वाली धनराशि का इंग्लैंड में ही प्रयोग होने लगा, जिससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। देश में अनेक उद्योगों का विकास हुआ, जिससे बेरोजगारी को दूर करने में सहायता मिली। चौथे, हेनरी ने इन मठों की संपत्ति में से कुछ भाग अपने दरबारियों तथा मंत्रियों में बाँट दिया, जिसके परिणामस्वरूप राजा के पक्षपातियों का एक वर्ग बन गया, जिससे हेनरी की स्थिति सुदृढ़ हुई। पाँचवें,मठों से प्राप्त भूमि बहुत अधिक होने के कारण मूमि का मूल्य कम हो गया, अतः मध्यवर्गीय लोगों के लिए भी भूमि खरीदना संभव हो गया। छठवाँ, मठों की समाप्ति से इंग्लैंड में धर्म-आंदोलन का आरंभ हुआ। मठों की भूमि जिन्होंने प्राप्त की थी या खरीदी थी, वे प्रोटेस्टेंट हो गये क्योंकि यदि वह कैथोलिक धर्म का समर्थन करते, तो उन्हें वह भूमि वापस करनी पड़ती। इसके अलावा, इंग्लैंड में मठों पर हजारों व्यक्तियों की जीविका आधारित थी, किंतु इन मठों की समाप्ति से हजारों लोग बेरोजगार हो गये और उनकी जीविका का कोई साधन नहीं रहा। यही नहीं, बड़े मठों की समाप्ति से अनेक मूर्तियाँ एवं पूजा-स्थल भी तोड़ दिये गये, जिसके कारण इंग्लैंड कला के कुछ बेहतरीन नमूनों से वंचित हो गया।

हेनरी ने पारंपरिक धार्मिक पद्धतियों में भी मौलिक परिवर्तन किये। क्रामवेश के प्रोत्साहन पर माइल्स कवरडेल ने बाईबिल का अंग्रेजी में अनुवाद किया। कैनमर ने इसकी भूमिका लिखी। इसे प्रत्येक गिरजाघरों में रखा गया तथा इसका प्रयोग किया जाने लगा। हेनरी ने पादरियों की अंधविश्वासपूर्ण मूर्तियों, शवों, जादू-टोने और चमत्कारों को भी खत्म करने का आदेश दिया। 1545 की धार्मिक शिक्षा, जिसे ‘किंग्ज़ प्राइमर’ के नाम से जाना जाता है, से संतों को बाहर कर दिया गया। लैटिन अनुष्ठानों का स्थान अंग्रेज़ी अनुष्ठानों ने ले लिया। निश्चित रूप से यह एक क्रांतिकारी कदम था, जिससे धार्मिक आंदोलन को प्रोत्साहन मिला और इंग्लैंड का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकास हुआ।

विरोधों का दमन

हेनरी की धार्मिक नीतियों के विरोध का इंग्लैंड में तेज़ी से दमन किया गया। अनेक असहमत भिक्षुओं को यातनाएँ दीं गईं और मार डाला गया। सबसे प्रमुख विरोधियों में जॉन फिशर और सर थॉमस मूर थे, जिन्होंने राजा के प्रति शपथ लेने से इनकार कर दिया था और जिसके परिणामस्वरूप उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर टॉवर हिल पर उनके सिर कटवा दिये गये थे।

पिल्ग्रिमेज ऑफ ग्रेस

हेनरी की मठों और धार्मिक स्थलों से संबंधित नीतियों और दमनात्मक कार्यवाहियों के विरोध में अक्टूबर 1536 में उत्तरी इंग्लैंड में ‘पिल्ग्रिमेज ऑफ ग्रेस’ (ग्रेस की तीर्थयात्रा) नामक लोकप्रिय विद्रोह हुआ, जो ट्यूडर काल के विद्रोहों में सबसे गंभीर विद्रोह था। नौ समूहों में फैले लगभग 30,000 विद्रोहियों का नेतृत्व रॉबर्ट आस्के ने किया। हेनरी ने बातचीत के लिए रॉबर्ट आस्के को लंदन आमंत्रित किया और हेनरी ने उसको क्षमा भी कर दिया,  लेकिन कुछ मठाधीशों के बहकावे में आकर रॉबर्ट आस्के ने पुनः विद्रोह कर दिया। फलतः आस्के को गिरफ़्तार कर लिया गया और उस पर राजद्रोह का अभियोग लगाकर फाँसी दे दी गई। लगभग 200 विद्रोहियों को भी मौत की सज़ा दी गई और इस प्रकार ताज पर आया संकट समाप्त हो गया।

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वैदेशिक नीति

हेनरी अष्टम को उत्तराधिकार में एक बड़ी धनराशि मिली थी और उसके राज्याभिषेक के समय राज्य में शांति थी। इसलिए उसने युद्ध-प्रिय विदेश नीति को अपनाया।

पवित्र संघ

फ्रांस और इंग्लैंड हेनरी अष्टम के समय से ही इंग्लैंड के दो प्रमुख प्रतिद्वंद्वी थे। इस समय पोप के इटली के रोम में रहता था, इसलिए इटली के महत्व बढ़ गया था। उत्तरी इटली पर फ्रांस का प्रभुत्य था क्योंकि फ्रांस का सम्राट लुई बारहवाँ का मिलान का भी ड्यूक था। मिलान तथा सिसली पर स्पेन के राजा का अधिकार था। इन दोनों देशों के शासकों को भय था कि वेनिस के लोग उन पर आक्रमण न कर दें।  इसलिए उन्होंने आस्ट्रिया के सम्राट मैक्सीमिलियन के साथ एक समझौता किया, जिस ‘लीग ऑफ कैंबराई’ कहते हैं। इस समझौते के बाद यूरोप में इंग्लैंड का महत्व समाप्त हो गया। इसके बाद भी, हेनरी सप्तम ने शांतिपूर्ण नीति का पालन करते हुए स्पेन के साथ अपना संबंध मधुर बनाये रखा, लेकिन वेनिस की जनता इस समझौते के विरूद्ध थी, क्योंकि यह उनके स्वार्थ-सिद्धि के रास्ते में बाधक था।

 लेकिन 1511 में उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता मिल गई। पोप जूलियस द्वितीय को यह शक हुआ कि कहीं फ्रांस, इटली पर अधिकार न कर ले। उसने मैक्सीमिलियन तथा फर्डिनेंड को फ्रांस से संबंध-विच्छेद करने पर दबाव डाला और वेनिस से समझौता करने के लिए प्रेरित किया, जिसका उद्देश्य फ्रांस के प्रभाव को इटली से समाप्त करना था। इस पवित्र संघ का प्रधान पोप था। हेनरी को इससे बड़ी प्रसन्नता हुई और वह भी पवित्र संघ का सदस्य बन गया। उसे लगा कि अब वह फ्रांस को परास्त करने में सफल होगा। हेनरी का मंत्री वूल्जे, जो स्वयं पोप बनने की फिराक में था, पोप का अनन्य भक्त था। उसने एक विशाल सेना और धनराशि एकत्रित की।

फ्रांस से युद्ध

पोप के आदेश पर हेनरी ने एक सेना फ्रांस के दक्षिणी भाग पर आक्रमण करने के लिए भेजी, किंतु वह असफल रही। अगले वर्ष हेनरी ने स्वयं सेना का संचालन किया। 1513 में उसने थरौन पर अधिकार कर लिया और स्पर्स के युद्ध में फ्रांस को पराजित किया। फ्रांस के मित्र स्कॉटलैंड के राजा ने इंग्लैंड पर आक्रमण किया, किंतु अर्ल ऑफ सरे ने फ्लोडन मैदान में स्कॉटलैंड की सेना को परास्त किया और स्कॉटिश राजा को मार डाला। इस युद्ध से इंग्लैंड को सम्मान तो मिला, किंतु कोई विशेष लाभ नहीं हुआ क्योंकि पोप ने फ्रांस से संधि कर ली।

1515 में फ्रांस का सम्राट फ्रांसिस प्रथम बना। उसने इटली पर आक्रमण किया और मैरिगनानो के युद्ध में इटली को परास्त कर पोप को अपने अधिकार में ले लिया। 1516 में स्पेन के शासक फर्डिनेंड की मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर चार्ल्स पंचम शासक बना। चार्ल्स पंचम और हेनरी अष्टम ने पोप को फ्रांस के अधिकार से मुक्त कराने का प्रयास किया, किंतु फ्रांस की विजय हुई, जिससे इंग्लैंड के सम्मान को चोट पहुँची।

1519 में स्पेन के शासक चार्ल्स पंचम को पवित्र रोम साम्राज्य का सम्राट चुना गया। फ्रांस ने चार्ल्स पंचम की शक्ति नष्ट करने के लिए हेनरी की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया। हेनरी अष्टम आस्ट्रिया के सम्राट मैक्सीमिलियन की मृत्यु के बाद आस्ट्रिया पर अधिकार करना चाहता था, किंतु यह अधिकार स्पेन को मिल गया था। अतः हेनरी अष्टम ने भी फ्रांस से मित्रता करनी चाही, किंतु इंग्लैंड के व्यापार की रक्षा करने के कारण ऐसा करने में सफल न हो सका, क्योंकि इंग्लैंड का ऊन का व्यापार फ्लैंडर्स से होता था और फ्लैंडर्स इस समय स्पेन के अधिकार में था। अतः हेनरी ने स्पेन का साथ ही देना चाहा। इसके साथ ही, हेनरी अष्टम का मंत्री वुल्जे भी स्पेन को सहायता देने के पक्ष में था क्योंकि वुल्जे पोप बनना चाहता था और स्पेन के राजा ने उसे इसमें सहायता करने का वचन दिया था। अतः 1521 में सैफोट के नेतृत्व में एक सेना फ्रांस पर आक्रमण करने के लिए भेजी। 1923 में युद्ध हुआ, परंतु इससे कोई लाभ नहीं हुआ। इसी समय पोप लिओ के स्थान पर क्लीमेंट पोप बन गया। वुल्जे को इससे निराशा हुई। नये पोप क्लीमेंट ने तुर्कों के कारण फ्रांस के राजा फ्रांसिस से संधि कर ली। इस प्रकार इन युद्धों से इंग्लैंड को कोई लाभ नहीं हुआ, वरन् उसका सम्मान आहत हुआ।

स्पेन से युद्ध

1525 में स्पेन के राजा चार्ल्स पंचम ने फ्रांस पर आक्रमण किया और फ्रांसिस को पराजित कर बंदी बना लिया। तत्पश्चात् 1526 में स्पेन की सेना ने इटली पर आक्रमण किया और रोम पर अधिकार कर पोप को भी कैद कर लिया। हेनरी अष्टम, जो पोप का भक्त था, ने फ्रांस से संधि की और स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। स्पेन के प्रभाव को इटली से समाप्त करने के लिए वुल्जे के प्रयत्न से पुनः एक पवित्र संघ की स्थापना की गई। प्रारंभ में पवित्र संघ (जिसमें फ्रांस, इंग्लैंड तथा पोप थे), की सेनाओं को सफलता मिली, किंतु शीघ्र ही उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।

स्कॉटलैंड

यद्यपि स्कॉटलैंड का राजा जेम्स चतुर्थ इंग्लैंड के हेनरी अष्टम का संबंधी था, किंतु वह फ्रांस का समर्थक और इंग्लैंड का विरोधी था। 1513 में फ्लाइन के मैदान में इंग्लैंड के साथ युद्ध में जेम्स चतुर्थ की मृत्यु हो गई थी। जेम्स पंचम ने 1542 में इंग्लैंड को पराजित करना चाहा, लेकिन उसकी पराजय हुई। इस आघात से जेम्स पंचम की मृत्यु हो गई।

हेनरी अष्टम ने अपने पुत्र एडवर्ड का विवाह स्कॉटलैंड की राजकुमारी मेरी से करना चाहा, इससे स्कॉटलैंड इंग्लैंड के अधीन हो जाता। किंतु स्कॉटलैंड के सरदार इस विवाह के लिए राजी नहीं हुए। फलतः हेनरी ने क्रुद्ध होकर स्कॉटलैंड पर आक्रमण किया और एडिनबरा को अग्नि की भेंट कर दिया।

आयरलैंड

हेनरी अष्टम ने इंग्लैंड से पोप के प्रभाव को पूर्णतः समाप्त कर दिया था और चाहता था कि आयरलैंड निवासी भी पोप की प्रभुता को अस्वीकार करके प्रोटेस्टेंट बन जायें, किंतु आयरलैंड के निवासियों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। हेनरी अष्टम इससे अत्यंत क्रोधित हुआ।

आयरलैंड की संसद, जो कि इंग्लैंड की संसद के अधीन थी, ने घोषणा की कि इंग्लैंड का राजा आयरलैंड के चर्च का मुख्य अधिकारी है। ईसाई मठों को नष्ट करने के कानून को भी आयरलैंड की संसद ने स्वीकार किया। आयरलैंड में अनेक मठों को समाप्त किया गया तथा मूर्तियाँ तोड़ी गईं। हेनरी ने आयरलैंड के सरदारों को धन और भूमि देकर अपने पक्ष में कर लिया और वहाँ शांति और सुख का साम्राज्य स्थापित किया।

शक्तिशाली नौ सेना

हेनरी सप्तम को इंग्लैंड के व्यापारिक बेड़े का निर्माता कहा जाता है, क्योंकि उसने अनेक जहाज बनवा कर इंग्लैंड के व्यापार को प्रोत्साहित किया था। ब्रिटिश इतिहास में हेनरी अष्टम पहला राजा था, जिसने नौ-सेना को शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयास किया और राष्ट्रीय रक्षा की आवश्यकता को अनुभव किया। उसके आदेश पर कई नये जहाजों का निर्माण किया गया। उनके शासनकाल के अंत तक शाही नौ-सेना में दो हजार तोपों के साथ 53 लड़ाकू जहाज थे। जहाज निर्माण के लिए हेनरी द्वारा पोर्ट्समाउथ के अलावा दो डॉकयार्ड भी बनाये गये थे।

हेनरी अष्टम को वैदेशिक नीति में कोई विशेष सफलता नहीं मिली। फ्रांस और स्पेन के साथ हुए युद्धों में इंग्लैंड को अत्यधिक हानि उठानी पड़ी। इससे जन-धन की हानि हुई और व्यापार को क्षति ही पहुँची।

हेनरी अष्टम 55 वर्ष की आयु में पैलेस ऑफ व्हाइटहॉल में 28 जनवरी, 1547 को, जो उसके पिता का 90वाँ जन्मदिन रहा होता, निधन हो गया। हेनरी अष्टम को विंडसर कैसल में सेंट जॉर्ज चैपल में उनकी पत्नी जेन सेमूर के पास दफनाया गया। सौ से भी अधिक वर्षों बाद चार्ल्स प्रथम को भी उसी कक्ष में दफनाया गया।

हेनरी अष्टम का मूल्यांकन

हेनरी अष्टम (1509-1547) ने अपने शासनकाल में उसने अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। यद्यपि वैदेशिक नीति में उसे विशेष सफलता नहीं मिली, फिर भी, उसने ‘आयरलैंड के राजा’ की उपाधि धारण की। हेनरी अष्टम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य पोप की सत्ता को इंग्लैंड से उखाड़ फेंकना था, जिसमें वह पूर्णतः सफल हुआ। हेनरी अष्टम ने मठों से प्राप्त संपत्ति से अनेक जहाजों का निर्माण करवाया और उन पर तोपें लगवाकर लड़ाकू जहाजों का बेड़ा तैयार किया।

यद्यपि हेनरी के शासनकाल में साहित्यिक क्षेत्र में प्रगति नहीं हुई, किंतु उसका बीजारोपण उसके राज्यकाल में हो गया था। हेनरी स्वयं एक बुद्धिजीवी राजा था, उसने व्यक्तिगत रूप से अनेक पुस्तकों की व्याख्या की और कैंब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज की स्थापना की। उसके शासनकाल के दौरान वुल्जे ने ऑक्सफोर्ड में कार्डिनल कॉलेज की स्थापना की, जो क्राइस्ट चर्च कॉलेज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसने अनेक महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण और सुधार भी करवाया था। हेनरी की प्रमुख विशेषता यह थी कि वह अपनी भावनाओं के साथ-साथ जनता की भावनाओं को भी समझता था और उनमें यह विश्वास उत्पन्न कर सकता था कि वह जनता के साथ है।

वास्तव में, अत्यंत हठी, चरित्रहीन, अत्याचारी और क्रूर होने के बावजूद, हेनरी का शासनकाल महान् सफलताओं और परिवर्तनों का युग था। अपने समकालीन राजाओं में, अपने समस्त अत्याचारों के पश्चात् भी वह एक शानदार राजा था। यूरोप के शासक ही नहीं, बल्कि उसकी साधारण प्रजा भी उसके प्रति सम्मान प्रकट करती थी। ट्रेवेलियन ने हेनरी अष्टम के विषय में लिखा है : ‘हेनरी बुरा था, कठोर था, डाकू था…..परंतु इन सबके पीछे उसकी अपने पद की महानता की भावना तथा इंग्लैंड को महान् बनाने की अभिलाषा थी।

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