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यूरोप में आधुनिक युग का आविर्भाव
इतिहास एक सतत् प्रक्रिया है, घटनाओं और प्रवृत्तियों का क्रमिक विकास है। प्रत्येक युग की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं और इन विशेषताओं के आधार पर किसी भी देश के इतिहास को सामान्यतया तीन कालों में विभाजित किया जाता है- प्राचीन युग, मध्य युग एवं आधुनिक युग। इसी प्रकार यूरोप के इतिहास में भी तीनों कालों की अपनी स्वतंत्र एवं मौलिक विशेषताएँ हैं, जो एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं, किंतु फिर भी, यूरोप के इतिहास में काल विभाजन करने में कुछ कठिनाई होती है, क्योंकि यूरोपीय इतिहास में मध्य और आधुनिक काल के बीच इतने धीरे-धीरे असमान गति से परिवर्तन हुए कि उन्हें अलग करने वाली कोई स्पष्ट रेखा खींचना कठिन है।
आधुनिक युग की प्रारंभ-तिथि
यूरोप मे आधुनिक युग के प्रारंभ का अर्थ है- मध्ययुगीन मूल्यों एवं प्रवृत्तियों का समाप्त होते जाना और नये मूल्यों, नई प्रवृत्तियों, नई सोच का प्रारंभ होना। किंतु यूरोप में आधुनिक युग का आरंभ कब से माना जाए, इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। फिशर ने लिखा है कि मध्यकालीन विश्व को आधुनिक विश्व से पृथक् करने के लिए कोई एक तिथि निश्चित नही की जा सकती क्योंकि यूरोप के अलग-अलग देशों मे अलग-अलग समय एवं घटनाओं से आधुनिकता की शुरुआत हुई।
विद्वानों का मानना है कि 1453 की कुस्तुन्तुनिया पर तुर्कों की विजय, 1460 ई. मे छापेखाने का आविष्कार, 1492 ई. में कोलबस द्वारा अमेरिका की खोज, 1498 ई. में वास्कोडिगामा का भारत पहुँचना, कॉपरनिकस (1473-1533 ई.) के क्रांतिकारी विचार और 1517 में मार्टिन लूथर द्वारा धर्म-सुधार आंदोलन के प्रारंभ से आधुनिक युग का आरंभ माना जा सकता है।
कुछ विद्वान् आधुनिकता का प्रारंभ बौद्धिक जागरण या पुनर्जागरण से मानते हैं क्योंकि सांस्कृतिक क्षेत्र में पुनर्जागरण के कारण ही विश्व में शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान का विकास हुआ और मध्यकालीन सामंतवादी विचारधारा और मूल्यों के स्थान पर मानवतावादी सिद्धांतों का विकास हुआ।
किंतु सामान्यतया यूरोप में आधुनिक युग का आगमन 1453 ई. से माना जाता है। इसका कारण यह है कि 1453 ई. में कुस्तुन्तुनिया (आधुनिक इस्तांबुल) पर उस्मानी तुर्कों (महमदशाह) की विजय से यूनानी विद्या, संस्कृति तथा कला एवं व्यापार का यह प्रमुख केंद्र यूनानियों के हाथों से निकलकर तुर्कों के अधीन हो गया। संस्कृति एवं सभ्यता से परिपूर्ण यूनानियों ने इटली में शरण ली, जो पहले से ही पुनर्जागरण का प्रमुख केंद्र था। यूनानियों के इटली पहुँचने से पुनर्जागरण को नई शक्ति एवं उत्साह मिला, जिससे उसकी गति असाधारण रूप से तेज हो गई। पुनर्जागरण के तीव्र हो जाने से यूरोप के मौलिक ढाँचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिन्होंने यूरोप के मध्यकालीन स्वरूप और आधुनिक रूप को स्पष्ट रूप से चित्रित किया।
कुस्तुन्तुनिया के पतन से यूरोप के आधुनिक युग का प्रारंभ मानने का कारण यह भी है कि इसके बाद कई भौगोलिक खोजें हुईं। यूरोप का भारत और अमेरिका जैसे विशाल देशों से संपर्क हुआ। सामाजिक, आर्थिक परिवर्तन हुए और नये व्यापारिक मार्ग खोजे गये। सामाजिक जीवन मे सामंतों की भूमिका समाप्त होने लगी और नये व्यापारिक वर्गों का प्रभुत्व बढ़ने लगा। राजनीतिक क्षेत्र मे राजाओं की शक्ति बढ़ी, सामंतो की भूमिका कम हुई, जिसके कारण नये सुदृढ़ राज्यों के उदय का मार्ग प्रशस्त हुआ। यही कारण है कि 1453 ई. से यूरोप के आधुनिक युग का प्रारंभ होना माना जाता है।
आधुनिक युग की प्रमुख विशेषताएँ
आधुनिक युग के प्रारंभ होते ही यूरोप में अनेक प्रमुख परिवर्तन हुए। यूरोप के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन ने अपना मध्यकालीन स्वरूप छोड़कर सर्वथा नवीन स्वरूप धारण किया। आधुनिक युग की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं-
सामंतवाद का पतन
आधुनिक युग की सर्वप्रमुख विशेषता सामंतवाद का पतन होना था। सामंतवादी व्यवस्था ने किसानों की स्थिति को दयनीय बना दिया था। इसी कारण समय-समय पर कृषक विद्रोह होते रहे। सामंतवादी व्यवस्था में अनेक अन्य दोष भी थे, जैसे- इंग्लैंड में ‘गुलाब के फूलों के युद्ध’ के तीस वर्षों तक चलने का प्रमुख कारण सामंतवादी व्यवस्था ही थी। जैसे ही बारूद का आविष्कार हुआ, वैसे की सामंतों की शक्ति का हृास हो गया। सामंतों की शक्ति क्षीण हो जाने से राजाओं की शक्ति बढ़ गई। अपनी इस शक्ति के आधार पर सामंतों की शक्ति को समाप्त करके शक्तिशाली राजाओं ने केंद्रीय शासन का सूत्रपात किया।
हेनरी सप्तम् (1485-1509 ई.) के सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व इंग्लैंड के वास्तविक शासक सामंत ही थे। इनकी शक्ति अपार थी और इन पर किसी प्रकार का नियंत्रण न था। राजा और प्रजा के मध्य सीधा संपर्क न था। राजा की कोई अलग से सेना नहीं थी। राजा को सामंतों की शक्ति एवं सेना पर ही निर्भर रहना पड़ता था। राजा के अशक्त होने के कारण प्रजा में राजा के प्रति विश्वास अथवा श्रद्धा की भावना नहीं थी। राजाओं की शक्तिहीनता से लाभ उठाकर और अपनी शक्ति बढ़ाकर सामंतों ने अपने छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना कर ली थी, जो एक तरह से स्वतंत्र थे। वास्तव में सामंत ही छोटे-छोटे राजा थे जो परस्पर युद्ध किया करते थे। यही नहीं, कभी-कभी वे राजा से भी युद्ध ठान लेते थे। हेनरी सप्तम ने अपनी शक्ति में भी वृद्धि की और सामंतों की शक्ति का दमन करने का प्रयास किया, जिसके कारण शीघ्र ही वह सामंतों की शक्ति को कुचलने, राजा की शक्ति में वृद्धि करने तथा राजा और प्रजा के बीच सीधा संपर्क स्थापित करने में सफल हो गया। यूरोप के अन्य देशों में भी इसी प्रकार की घटनाएँ हुईं और सामंतवाद का विरोध हुआ। सामंतवाद का विरोध राजा और जनता दोनों ने ही किया।
राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान
पवित्र रोमन साम्राज्य का विघटन और शक्तिशाली राष्ट्रीय राज्यों का प्रादुर्भाव, आधुनिक युग की सबसे बड़ी विशेषता है। 1450 ई. से 1550 ई. के बीच पश्चिमी यूरोप मे फ्रांस, इंग्लैंड और स्पेन जैसे शक्तिशाली राजतंत्रों की स्थापना हुई। इन राष्ट्रीय राज्यों का उदय ईसाई जगत की राजनीतिक एवं धार्मिक एकता की कब्र पर हुआ था। सामंतीय व्यवस्था का पतन होने से पुर्गगाल, डेनमार्क, नार्वें, स्वीडन, और पोलैंड मे भी स्वतंत्र राज्य स्थापित हुए।
बौद्धिक विकास
मध्य युग अंध-विश्वास का युग था। चारों ओर अज्ञानता का अंधकार छाया हुआ था। जनता को बौद्धिक विकास के साधन उपलब्ध नहीं थे। शिक्षा की कोई विशेष व्यवस्था न थी, जिसके कारण जनता में सोचने व तर्क करने की शक्ति नहीं थी। कुस्तुन्तुनिया के पतन के कारण यूनानी विद्वानों को पलायन कर यूरोप के विभिन्न देशो मे शरण और जीविका के लिए जाना पड़ा। पहले नवीन विचारों के अपनाने पर चर्च द्वारा उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। आधुनिक युग में यूरोप में शिक्षा, विज्ञान, विचार-प्रणाली, कला, साहित्य, गणित आदि मे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन और विकास हुए, जिससे मध्ययुगीन धर्माडंबर, अंधविश्वास और कुरीतियों के बादल छँटने लगे और इनके विरूद्ध प्रतिक्रिया हुई और जनसाधारण में व्याप्त अंधविश्वास समाप्त होने लगा। अब यूरोप के लोगों में आध्यात्मिकता और नवीन खोजों के प्रति रुचि उत्पन्न हुई, जिसके परिणामस्वरूप नवीन आविष्कार हुए और आधुनिक विज्ञान का जन्म हुआ। साहित्यिक क्षेत्र में भी अनेक विद्वानों का उदय हुआ, जिन्होंने यूरोपीय समाज में बौद्धिकता और तार्किकता के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन विद्वानों में ग्रोसिन, लिने कर तथा थॉमस मूर प्रमुख थे।
राष्ट्रीयता की भावना का उदय
मध्यकाल में समस्त ईसाई जगत राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक इकाई माना जाता था और सिद्धांततः उसका शासन पोप और सम्राट दोनों के अधीन था। धार्मिक क्षेत्र में पोप और राजनीतिक क्षेत्र में राजा को प्रमुख माना जाता था, किंतु कालांतर में पोप राजनीतिक मामलों में भी हस्तक्षेप करने लगे थे और राष्ट्रीय भावना कोई स्थान नहीं था।
आधुनिक युग के आगमन के साथ ही परिस्थितियों में परिवर्तन हुआ और यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता की भावना प्रबल होने लगी। सामंतों का पतन हो जाने के कारण राज्य सत्ता् सम्राट के हाथ में आ गई, राजा और प्रजा के बीच सीधा संबंध स्थापित हुआ और यूरोप में फ्रांस, इंग्लैंड व स्पेन में शक्तिशाली राजतंत्रों का उदय हुआ। राजतंत्रों की स्थापना के साथ इस युग में राष्ट्रीयता की भावना का भी संचार हुआ।
राष्ट्रीयता के विकास के परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्नति होने लगी। इंग्लैंड में ट्यूडरवंशीय शासकों के समय में राज्य-शक्ति के विकास का मुख्य कारण राष्ट्रीय भावना का विकास ही था जिसने राजा के व्यक्तित्व को एक नया सम्मान एवं महत्व प्रदान किया।
आज राष्ट्रीयता राष्ट्र से मानी जाती है, किंतु आधुनिक युग के प्रारंभ में राजाओं को ही राष्ट्रीयता का प्रतीक समझा जाता था। राजाओं के ही उत्थान अथवा पतन पर राष्ट्र का उत्थान अथवा पतन निर्भर था। सेनाएँ राज्य के लिए नहीं, अपितु राजा के लिए युद्ध करती थीं।
राष्ट्र भाषा एवं राष्ट्रीय साहित्य का विकास
मध्ययुगीन यूरोप में पोप का प्रभुत्व होने के कारण लैटिन भाषा सर्वप्रमुख थी। आधुनिक युग के आगमन के साथ जब पोप का प्रभाव घटने लगा तो राष्ट्रीय साहित्य व राष्ट्रीय भाषाओं को विकसित होने का अवसर मिला। साहित्यकारों, सुधारकों तथा विचारकों ने अपने हृदय के उदगारों को अपनी राष्ट्र भाषा में लिखा। मार्टिन लूथर ने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया और और अनेक उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना की। शेक्सपियर ने अंग्रेजी में ‘हेलमेट’ जैसी असाधारण कृतियों का सृजन किया। फ्रांस के साहित्यकारों ने अपनी भावनाओं को फ्रांसीसी भाषा में लिपिबद्ध किया। इस प्रकार अपने ही देश की भाषा में रचित साहित्य ने जनता के बौद्धिक विकास में सहायता पहुँचाई।
प्रजातीय भावना का विकास
आधुनिक युग की एक प्रमुख विशेषता प्रजातीयता का विकास था। राष्ट्रीयता की भावना के साथ-साथ अपनी प्रजाति के प्रति आदर और सम्मान की भावना भी बढ़ने लगी थी। अब उन्हें इस बात का ज्ञान हुआ कि वे उच्च प्रजाति के हैं और उनका प्रजातीय गौरव भी है। इंग्लैंड के निवासी अपने को यूरोप के अन्य राष्ट्रों की जनता से उच्च समझने लगे, जिसके परिणामस्वरूप यूरोप में इंग्लैंड का प्रभाव बढ़ने लगा।
व्यक्तिवाद का विकास
आधुनिक युग से पूर्व समाज में व्यक्ति का कोई महत्व नहीं था। जनता की स्थिति शोचनीय और कष्टप्रद थी। किंतु आधुनिक युग के आगमन के साथ ही व्यक्ति के महत्त्व में वृद्धि हुई। अब व्यक्ति के हित को प्रत्येक दृष्टि से सर्वोपरि माना जाने लगा, जिससे राजनीतिक, धार्मिक एवं सामाजिक क्षेत्र में उसका महत्व बढ़ा और सामंतशाही का अंत हो गया।
छापेखाने का आविष्कार
छापेखाने का आविष्कार सर्वप्रथम जर्मनी में गुटनबर्ग ने किया था। इंग्लैंड में कैक्सटन नामक अंग्रेज ने 1476 ई. में छापेखाने का प्रचलन किया। छापेखाने का आविष्कार अत्यंत परिवर्तनकारी सिद्ध हुआ क्योंकि इससे शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवतन हो गया। इसके पूर्व पुस्तकें हाथ से लिखी जाती थीं, जिनकी संख्या कम होती थी और उनका मूल्य बहुत अधिक होता था। छापेखाने के आविष्कार से पुस्तकों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई और पुस्तकों के मूल्य में कमी आई, जिससे जनसाधारण का बौद्धिक विकास संभव हुआ।
मानवतावादी आंदोलन
आधुनिक युग की शुरुआत ही शोषणपरक व्यवस्था के विरूद्ध हुई थी। सदियो से दमित, कुंठित मानवता के उद्धार हेतु मानवतावादी मूल्यों की स्थापना हेतु पश्चिमी यूरोप मे आंदोलन हुए, जिससे शोषितो की दशा मे परिवर्तन तो आया ही, साथ ही मानवता के स्थायी आदर्शों का भी उन्मेष हुआ। वास्तव मे यह आधुनिक युग की स्थायी उपलब्धि थी।
धार्मिक आंदोलन
शिक्षा के प्रसार के कारण जनता की तर्क-शक्ति अत्यधिक बढ़ गई। अब पोप की आज्ञाओं को आँख बंद करके स्वीकार करने को कोई तैयार नहीं था। इसी समय अनेक धर्म-सुधारकों ने, जिनमें जर्मनी का मार्टिन लूथर प्रमुख है, पोप का विरोध किया। इंग्लैंड में भी पोप के प्रभुत्व को समाप्त कर दिया गया और एक नवीन चर्च की स्थापना की गई, जिसे एंग्लिकन चर्च कहा जाता है। धार्मिक क्षेत्र में स्वतंत्रता प्राप्त करना जनसाधारण की एक बड़ी उपलब्धि थी।
साम्राज्यवाद का उदय
औपनिवेशिक विस्तार भी आधुनिक यूरोप की एक महान् विशेषता थीं। नवीन देशों का पता लगने पर दूसरे देशों ने वहाँ अपनी सत्ता स्थापित की। धीरे-धीरे औपनिवेशिक विस्तार को लेकर महान् उथल-पुथल मच गई। लोगों ने धीरे-धीरे विश्व् के कोने-कोने में अपने व्यापारिक अड्डे स्थापित कर लिये। इसी समय दिशा-सूचक यंत्र (कुतुबनुमा) का भी आविष्कार हुआ, जिसने समुद्री यात्रा को एक नया आयाम दिया। कोलंबस ने 1492 ई. में नई दुनिया की खोज की, जिसका नाम बाद में अमरीका रखा गया। 1497 ई. में हेनरी सप्तम् की आज्ञा पाकर अंग्रेज यात्री जॉन कैवेर ने न्यूफाउंडलैंड का पता लगाया। 1497 ई. में ही पुर्तगाल के वास्कोडिगामा ने भारत के एक नये समुद्रीमार्ग की खोज की। इस प्रकार नये-नये देशों की खोज होने लगी। जो यात्री किसी नये प्रदेश की खोज करता, वह उस क्षेत्र पर अपने देश का झंडा फहरा देता था। इस प्रकार उपनिवेशों की स्थापना होने लगी। इंग्लैंड ने भी अनेक उपनिवेशों की स्थापना की जिसके परिणामस्वरूप साम्राज्यवादिता का उदय हुआ। अधिक से अधिक उपनिवेशों पर अधिकार करने की भूख ने अनेक युद्धों को जन्म दिया, जिससे यूरोपीय राष्ट्रों में नौशक्ति में वृद्धि करने के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी। स्पेनी अर्माडा को पराजित कर इंग्लैंड ने इसमें सफलता प्राप्त की और एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया, जिसमें कभी सूरज नहीं डूबता था। बाद में यही उपनिवेशों की खोज और प्रतिस्पर्धा की भावना विश्वयुद्धों का प्रमुख कारण बने।
व्यावसायिक संगठन और व्यापारिक उन्नति
आधुनिक युग के आगमन के साथ-साथ यूरोप की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। आधुनिक युग के आते ही यूरोप में शांति एवं सुव्यवस्था की स्थापना हुई और व्यापार का विकास होने लगा। समाज में आर्थिक परिवर्तन का श्रेय मुख्यतः औद्योगिक क्रांति को है, जिसने उत्पादन के साधनों में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिया। अब दूर देशो से संपर्क हो जाने और उपनिवेशों की स्थापना से उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल आयात किया जाने लगा, जिससे औद्योगिक उन्नति तो हुई ही, इसके साथ-साथ दो नये प्रतिस्पर्धी वर्गों का भी जन्म हुआ, जिन्हें पूँजीपति और श्रमिक वर्ग के नाम से जाना जाता है। पूँजीपति और श्रमिक वर्ग के संघर्ष ने समाजवाद को जन्म दिया। समाजवाद आधुनिक युग का एक आर्थिक एवं क्रांतिकारी परिवर्तन है।
नवीन नगरों का विकास
नवीन वैज्ञानिक और भौगोलिक आविष्कारों तथा औपनिवेशिक विस्तार के कारण व्यापार, यातायात, कच्चे माल की प्राप्ति मे पर्याप्त वृद्धि हुई। इस कारण बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हुये और इनके कारण बड़े-बड़े औद्योगिक नगरो की स्थापना हुई, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के केंद्र बन गये। शेविल ने लिखा कि, बड़े-बड़े नगरो के विकास के कारण यूरोप मे न केवल आधुनिकता ही आई, बल्कि इसने अंतर्राष्ट्रीय भावनाओं के विकास को भी प्रोत्साहन दिया।
अस्त्र-शस्त्र की उन्नति
यद्यपि बारूद का प्रचलन यूरोप में पिछली डेढ शताब्दी से था, किंतु आधुनिक युग में तोप एवं बंदूक के आविष्कार ने बारूद को अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया। शासकों ने बारूद पर सरकारी अधिकार की घोषणा की और जनता द्वारा बारूद के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे राजाओं की शक्ति में वृद्धि हुई और वे अपनी निरंकुश सत्ता स्थापित करने में सफल हुए।
वैवाहिक संबंध
राजपरिवारों में परस्पर संबंध स्थापित करके राज्य विस्तार अथवा राज्य को सुदृढ़ करने की नीति का प्रचलन इसी युग मे हुआ। ईसाबेला और फर्डिनेंड की जोड़ी इसका सफल उदाहरण है। अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को मधुर बनाने तथा सामंतों की बढती हुई शक्ति पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से इंग्लैंड के हेनरी सप्तम ने भी अन्य देशों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित कर न केवल इंग्लैंड को शक्तिशाली बनाया, बल्कि उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिष्ठित कर दिया।
मध्यम वर्ग का उदय
मध्यम वर्ग का उदय आधुनिक युग के आगमन की एक अन्य प्रमुख विशेषता थी। व्यापार, वाणिज्य तथा उद्योगो की उन्नति से पश्चिमी यूरोप मे बड़े-बड़े नगरों का विकास हुआ। संपन्न और शिक्षित होने के बाद इस वर्ग की राजनीतिक सत्ता मे भागीदारी के लिए कही कम और कही अधिक समय लगा, जैसे इंग्लैंड मे भागीदारी शीघ्र हुई, अन्य देशों मे बहुत बाद मे।
पूँजीवाद का जन्म
आधुनिक यूरोप में सामंतावाद के स्थान पर पूँजीवाद का जन्म हुआ। पूँजीपतियों ने मजदूरों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिये, जिससे दोनों के बीच संघर्ष होने लगे। सरकार ने इसमें किसी प्रकार से हस्तरक्षेप नही किया, जिससे मजदूरों की दशा बहुत ही खराब हो गई। पूँजीपतियों तथा श्रमिकों के बीच ऐसी खाई पैदा हो गई, जिसका पाट पाना कठिन था।
इस प्रकार अने क परिवर्तनों के कारण आधुनिक युग का आगमन हुआ। कुछ समय तक आधुनिकता की इस भावना को पुराने विश्वासों,पुरानी नीतियों,पुरानी परंपराओं, मध्यकालीन पोप तथा मध्यकालीन साम्राज्य ने घेरे रखा, किंतु धीरे-धीरे नई भावना इस घेरे से बाहर आई और एक नये तंत्र का उदय हुआ, जिसमे समाज का रूप ‘राष्ट्र’ ने ले लिया।
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