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मेसोपोटामिया की सभ्यता
मानव सभ्यता के इतिहास में पाषाणकाल के अनंतर क्रमशः ताम्रकाल एवं कांस्यकाल का आगमन हुआ। पाषाणकाल की सभ्यताएँ अरण्यों, कंदराओं, नखलिस्तानों, झीलों के किनारों एवं थोड़ा-बहुत नदी-घाटियों तक सीमित थीं। किंतु ताम्र एवं कांस्यकालीन सभ्यताएँ नदी-घाटियों में ही केंद्रित हो गईं। इनका विस्तार मिस्र एवं पूर्वी भूमध्यसागर के प्रदेश से लेकर भारत में सिंधु नदी उपत्यका तक था। इनमें दजला-फरात, नील तथा सिंधु नदियों के उर्वर एवं समृद्ध मैदान मानव सभ्यता के विकास के प्राथमिक केंद्र बने। इन नदी-घाटियों में उपलब्ध सुविधाएँ समकालीन हैं, किंतु मानव इनका एक साथ उपयोग नहीं कर सका। इसलिए अभी निर्विवाद रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि सबसे पहले सभ्यता का उद्भव एवं विकास कहाँ हुआ?
एक समय वूली, हाल, चाइल्ड, मार्शल आदि विद्वानों ने हड़प्पा सभ्यता को प्राचीनतम् होने का दावा किया था, किंतु अधुनातन उत्खननों एवं साक्ष्यों से प्राप्त सिंधु सभ्यता की तिथियों के आलोक में इन विद्वानों का मत यौक्तिक नहीं लगता।
जहाँ तक नील घाटी एवं दजला-फरात घाटी की सभ्यताओं की प्राचीनता का सवाल है, विल ड्युरेंट, फ्रैंकफोर्ट, मास्पेरो आदि पुराविदों ने दजला-फरात की घाटी में विकसित सुमेरियन सभ्यता को प्राचीनतम् मानने के पक्षधर हैं। इन विद्वानों के अनुसार धातु, लिपि, चाक, मुद्रा, पहियेदार गाड़ी आदि की जानकारी सबसे पहले सुमेरियनों को ही हुई थी। उसके बाद ही मिस्रवासी इनसे परिचित हुए थे।
उत्खननों से पता चलता है कि सुमेरियन सभ्यता के बहुत से सांस्कृतिक तत्त्व मिस्री सभ्यता के प्रारंभिक स्तरों पर अपनाये गये थे, लेकिन किन्हीं कारणों से बाद में विस्मृत कर दिये गये। कुछ पुरातत्ववेत्ता तो यहाँ तक कहते हैं कि प्राग्वंशीय मिस्री लिपि पर सुमेरियन कीलाक्षर लिपि का प्रभाव था।
किंतु ब्रेस्टेड, स्मिथ आदि विद्वान् नील घाटी की सभ्यता की प्राचीनता को स्वीकार करते हैं। इनका तर्क है कि नील घाटी में अत्यंत प्रारंभिक काल से संयुक्त राज्य की स्थापना हो गई थी, जबकि सुमेरिया में ऐतिहासिक काल के प्रारंभ में भी अनेक नगर-राज्यों का अस्तित्व था।
मेसोपोटामिया का अर्थ
विश्व की सभ्यताओं में मेसोपोटामिया की सभ्यता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मेसोपोटामिया ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘मेसो’ और ‘पोटामिया’ से मिलकर बना है। मेसो का अर्थ है- मध्य (बीच) और पोटामिया का अर्थ है- नदी, अर्थात् दो नदियों के बीच के क्षेत्र (देाआब) को मेसोपोटामिया कहा जाता था। पश्चिमी एशिया में फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित वर्तमान इराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया कहा जाता था।
सभ्यताओं का संगम-स्थल
मेसोपोटामिया का क्षेत्र उत्तर में कालासागर, दक्षिण में अरब सागर, पूरब में कैस्पियन सागर, ईरान का पठार, फारस की खाड़ी तथा पश्चिम में भूमध्य सागर एवं कालासागर से घिरा हुआ है।
मेसोपोटामिया क्षेत्र के समीपवर्ती सागर निकटवर्ती देशों के साथ इसके संपर्क में सहायक रहे, जिसके कारण यहाँ की सभ्यताएँ मिनोअन, सिंधु एवं चीन की सभ्यताओं के संपर्क में आईं।
इस प्रकार दक्षिणी पश्चिमी एशिया को समकालीन सभ्यताओं का संगम-स्थल कहा जा सकता है।
पुरातत्त्वविद् गार्डन चाइल्ड ने स्वीकार किया है कि मेसोपोटामिया एक ऐसे विस्तृत सरोवर की तरह है, जिसने असंख्य स्रोतों को उद्भूत किया। विलड्यूरेंट का भी मानना है कि आधुनिक अमेरिका और यूरोप की सभ्यताओं ने अपने आधार स्वरूप क्रीट, रोम तथा आधुनिक यूनान के माध्यम से इस क्षेत्र के सभ्यता की उपलब्धियों को प्राप्त किया।
भौगोलिक विस्तार
भौगोलिक विस्तार की दृष्टि से दक्षिण-पश्चिम एशिया को प्रमुखतया तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- उत्तर का पर्वतीय भाग, मध्य का उपजाऊ अर्द्धचंद्राकार भाग तथा दक्षिण का (अरब का) विशाल मरुस्थल। इन तीनों भागों को समय-समय पर अनेक जातियों ने अपनी-अपनी क्रीड़ा-स्थली बनाया और सभ्यताओं का विकास किया।
उत्तर के पर्वतीय भाग में सदैव क्रूर, निर्दयी एवं खानाबदोश बर्बर जातियों का निवास रहा है। यहाँ एशिया माइनर की लड़ाकू हित्ती जाति निवास करती थी। आर्मीनिया के पर्वतीय प्रदेश में एक ऐसी जाति रहती थी, जिसने असीरिया को सदा आक्रांत किया। मीड जाति ने असीरिया का और कसाइट जाति ने बेबीलोनिया का अंत किया।
पर्वतीय भाग के नीचे एक उपजाऊ पेटिका है। इसकी उर्वरता के कारण इसे उर्वर अर्धचंद्र (फर्टाइल क्रेसेंट) कहा गया है। इस उर्वर एवं समृद्ध भाग को दजला-फरात एवं उनकी सहायक नदियों द्वारा शस्य-श्यामल होने का सुयोग प्राप्त है। इन दोनों नदियों ने ईराक को वही सुविधाएँ दी हैं, जो मिस्र को नील नदी द्वारा प्राप्त हैं। यदि नील नदी मिस्र के लिए वरदान तुल्य है, तो दजला-फरात नदियाँ इस भूभाग के लिए वरदान के समान हैं। दोनों नदियाँ अर्मीनिया पर्वत से निकलती हैं। दक्षिण की ओर प्रवाहमान दोनों नदियाँ एक अति विस्तृत भूभाग को अपनी जलधारा से प्रच्छालित करती हुई अंततः फारस की खाड़ी में गिरती हैं। दोनों नदियों द्वारा निर्मित मैदान प्रतिवर्ष बाढ़ से आच्छादित होकर कुछ दिन तक अनुपयोगी बन जाता है। प्रारंभ में यह अनुपयोगिता बहुत दिनों के लिए होती थी, किंतु जब मानव ने अपने बुद्धि-कौशल के द्वारा प्रकृति पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया, तो यह भूभाग उसके लिए उपादेय सिद्ध हो गया और उसकी सारी आर्थिक व्यवस्था इसी पर अवलंबित हो गई।
उर्वर अर्धचंद्र के निकट एक बड़ा रेगिस्तान वाला भूभाग है, जो आकार में उर्वर अर्धचंद्र के समान ही है। शुष्क होने के कारण यह भूभाग कृषि के योग्य नहीं था। इसलिए यहाँ के निवासियों की जीविका मूलतः लूट-पाट पर आधारित थी और वे अपने पड़ोस में स्थित उर्वर अर्धचंद्र के निवासियों को लूटते रहते थे।
यद्यपि प्रजातीय दृष्टि से दोनों में सेमिटिक तत्त्व विद्यमान थे, किंतु एक की जीवन-विधा निश्चित थी, जबकि दूसरे की अनिश्चित। इस प्रकार जीवन-शैली के निर्धारण और सांस्कृतिक उन्नयन में दजला-फरात घाटी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
मेसोपोटामिया क्षेत्र के दजला-फरात की घाटी में क्रमशः चार सभ्यताओें का विकास हुआ- सुमेरियन, बेबीलोनियन, असीरियन और कैल्डियन। इन सभ्यताओं के उन्नायकों में जहाँ सुमेरियनों, बेबिलोनियनों एवं कैल्डियनों ने शांतिपरक संस्कृति का सृजन किया, वहीं असीरियनों ने सैनिक तत्त्वों का अधिक विकास किया और एक प्रकार से मेसोपोटामिया की संस्कृति की रक्षा करने में सफल रहे। इन सभ्यताओं के विषय में यह कहावत प्रचालित है कि सुमेरियनों ने सभ्यता को जन्म दिया, बेबीलोनियनों ने उसे उत्पत्ति के चरम शिखर तक पहुँचाया और असीरियनों ने उसे आत्मसात् किया।
दूसरे शब्दो में, सुमेरिया, बेबीलोनिया, असीरिया और कैल्डियन सभ्यताओं के सम्मिलन से जो सभ्यता विकसित हुई, उसे सम्मिलित रूप से ‘मेसोपोटामिया की सभ्यता’ कहा जाता है।
सुमेरियन सभ्यता
प्राचीनकाल में मेसोपोटामिया क्षेत्र के दक्षिणी भाग को सुमेर कहा जाता था, जो इस सभ्यता का प्रमुख केंद्र था। यह दजला-फरात घाटी का दक्षिणी भाग है। सुमेर के उत्तर-पूर्व के भाग को बाबुल (बेबीलोन) तथा अक्काद कहते थे और उत्तर की ऊँची भूमि असीरिया कहलाती थी।
कालांतर में उत्तर के पर्वतीय प्रदेशों से आने वाले सुमेरियन लोग मेसोपोटामिया में ही बस गये और उन्होंने एक अत्यंत समृद्ध सभ्यता का विकास किया, जिसे सुमेरियन सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
सुमेरियन लोगों ने मूलतः नगर-राज्यों की स्थापना की। एरिडु, एरेक, उर, लगश, निप्पुर, ईशिन, लारसा, किश आदि प्रसिद्ध राज्य थे। इनमें एरिडु, एरेक तथा उर फरात के पश्चिम में, निप्पुर, ईशिन तथा लारसा पूरब में, किश तथा बेबीलोन निकट-पूर्व में और और लगश दोनों नदियों के मध्य स्थित थे। सारगोन प्रथम इस सभ्यता का संस्थापक था। सुमेरियन लोगों ने लगभग 3000 ईसापूर्व में ‘कीलाकार लिपि’ का आविष्कार किया था। इनकी कीलाक्षर लिपि सबसे प्राचीन मानी जाती है। ।
सुमेरियन टिन तथा ताँबा को मिलाकर काँसा तैयार करने के कौशल से परिचित थे। वास्तुकला में विशेष रूप से मेहराब, गुंबद एवं स्तंभों के प्रथम आविष्कर्ता सुमेरियन ही थे। इसके अतिरिक्त दास प्रथा, निरंकुशता, धर्मांधता तथा साम्राज्यवाद से ग्रसित निर्मम युद्धों के प्रथम दर्शन भी सुमेरिया में ही होते है। सामाजिक भेद-भाव एवं शोषण-उत्पीड़न के प्रथम जनक भी सुमेरियन ही थे। विलड्यूरेंट के अनुसार सिंचाई की सर्वप्रथम प्राचीन व्यवस्था, ऋण-प्रणाली, लेखन-कला, न्याय विधान, विद्यालय, पुस्तकालय, प्राचीन मंदिर, मूर्तियाँ, मेहराब एवं गुंबद सुमेरिया की अभूतपूर्व देन है।
बेबीलोनियन सभ्यता
किंतु 2100 ईसापूर्व के लगभग सुमेरियन सभ्यता के पतनोपरांत पश्चिमी सेमाइटों ने बाबुल या बेबीलोन में एक नवीन सभ्यता की नींव डाली। इसी कारण इस सभ्यता को बेबीलोनिया की सभ्यता कहा जाता है।
बेबीलोनियन संस्कृति के कर्ता-धर्ता सुमेरियन संस्कृति के अत्यंत निकट के माने जाते हैं। इसलिए बेबीलोनियन सभ्यता और सुमेरियन सभ्यता ता में अनेक समानताएँ मिलती हैं। इस सभ्यता का राजनीतिक और सांस्कृतिक क्षेत्र ईशिन, लारसा, बेबीलोनिया, मारी और असुर जैसे राज्य थे।
बेबीलोन का सर्वप्रमुख शासक हम्मूराबी था, जिसने विभिन्न नगर-राज्यों में होने वाली लड़ाइयाँ रोककर और सारे देश में एक जैसे कानून लागू कर एक दृढ़ राज्य स्थापित किया। उसकी विधि-संहिता के कारण उसे विश्व का प्रथम कानून निर्माता माना जाता है। यहाँ ‘जिगुरात’ अर्थात मंदिर राज्य की संपत्ति माने जाते थे।
इस प्रकार बेबिलोनियन सभ्यता एवं संस्कृति अंग-सौष्ठव की दृष्टि से अपनी परिपक्वता को प्राप्त कर चुकी थी। इसमें राजनीतिक उतार-चढ़ाव के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक विकास भी हुए। यह संस्कृति अपनी गरिमारश्मि से अन्य संस्कृतियों को भी आलोकित करती रहीं। इनके कुछ आविष्कार एवं अनुसंधान वास्तव में अत्यंत महत्त्वपूर्ण थे। धर्म में पुरोहित को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इनके जिगुरतों का प्रभाव मुस्लिम मस्जिदों पर देखा जा सकता है।
विधि के क्षेत्र में प्राचीन विश्व हम्मूराबी की विधि-संहिता का उतना ही ऋणी है, जितना आधुनिक संसार रोम का। यद्यपि बेबिलोनियन समाज, अर्थ-व्यापार, कला-साहित्य, विज्ञाना आदि क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति तो नहीं कर सके, लेकिन सुमेरियन सभ्यता के सांस्कृतिक पक्षों के मूल तत्वों का परिष्कार करने में उन्हें कुछ सफलता अवश्य मिली थी।
असीरियन सभ्यता
हम्मूराबी की मृत्यु के पश्चात् असीरियाई लोगों ने 1100 ईसापूर्व के आसपास बेबीलोन पर आक्रमण कर अपना लगभग अधिकार कर लिया। इन्होंने मेसोपोटोमिया के विशाल भू-भाग पर अपने साम्राज्य की स्थापना की। असीरियनों के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्रिया-कलापों का केंद्र ‘असुर’ नामक नगर रहा है, इइसलिए इन्हें असीरियन नाम से संबोधित किया गया है। इनकी सभ्यता के प्रमुख केंद्र असुर, आरवेला, कालाख और निनवेह थे। असीरियनों की राजधानी निनवेह थी जो दजला नदी के किनारे स्थित थी।
असीरियनों ने बेबिलोनियन सभ्यता के सांस्कृतिक तत्वों को ग्रहण कर उसमें यथासंभव परिवर्तन एवं परिवर्द्धन कर सुरक्षित रखने का प्रशंसनीय कार्य किया। यद्यपि असीरियन सभ्यता बेबिलोनियन सभ्यता की अनुकृति थी, किंतु यह अनुकरण आसन्नानुकरण ही था, अंधानुकरण नहीं। जीवन के विविध क्षेत्रों में अपने नूतन अनुभवों एवं आविष्कारों से असीरियनों ने परवर्ती विश्व को प्रभावित किया। इतिहास में सर्वप्रथम सैनिक-शक्ति के बल पर एक अति विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की संभावना को असीरियनों ने ही यथार्थ रूप में परिवर्तित किया था। प्राचीनतम एशियाई वास्तुकला असीरियन युग में ही अपनी पूर्णता पर पहुँची, जो पारसीक एवं यूनानियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी।
कैल्डियन पुनर्जागरण
बेबीलोनियन सभ्यता को असीरियनों की बढ़ती शक्ति से प्रभावित होना पड़ा था, किंतु 612 ईसापूर्व के आसपास सेमेटिक जाति की एक शाखा कैल्डियनों ने इसे अंतिम रूप से स्वतंत्र कराने में सफलता प्रगाप्त की। चूंकि बेबीलोलियन सभ्यता का पुनर्जागरण सेमेटिक जाति की कैल्डियन शाखा द्वारा किया गया था, इसलिए इस नवबेबीलोलियन सभ्यता को कैल्डियन पुनर्जागरण के नाम से जाना जाता है।
कैडिल्यन सभ्यता के लोगों ने अपनी सभ्यता का निर्माण तो कर लिया, परंतु मजबूत शासक नहीं होने के कारण धीरे-धीरे यह सभ्यता कमजोर होती गई। अंततः 539 ईसापूर्व में पारसीक साइरस की विजय से मेसोपोटामिया की सभ्यता का अंत हो गया।
मेसोपोटामिया सभ्यता की विशेषताएँ
हम्मूराबी की विधि संहिता: बेबीलोन के सम्राट हम्मूराबी ने अपनी प्रजा के लिए एक विधि संहिता बनाई थी, जो सबसे प्राचीन विधि संहिता है। सम्राट ने इसे एक 8 फुट ऊँची पत्थर की शिला पर उत्कीर्ण करवाया था। हम्मूराबी का दंड-विषयक सिद्धांत जैसे को तैसा था।
सामाजिक जीवन: मेसोपोटामिया सभ्यता में राजा पृथ्वी पर देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था। राजा व राजपरिवार के बाद दूसरा स्थान पुरोहित वर्ग का था, जो संभवत राजतंत्र की प्रतिष्ठा से पूर्व शासक रहे थे। मध्यम वर्ग में व्यापारी, जमींदार व दुकानदार थे। समाज में दासों की स्थति सबसे नीचे थी। लगातार युद्ध होते रहने के कारण समाज में सेना का महत्वपूर्ण स्थान था।
कृषि व पशुपालन: मेसोपोटामिया के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। वहाँ के किसान भूमि की जुताई हलों से करते थे और बीज कीप द्वारा बोते थे। खेतों की सिंचाई के लिए नदियों के बाढ़ के पानी को नहर तक ले जाकर बड़े बड़े बाँधो में इकट्ठा कर लेते थे। हलों से जुताई हेतु मवेशी काम में लेते थे और उनकी नस्ल सुधार के लिए पशुओं का प्रजनन भी किया जाने लगा था। कुम्हार के चाक का प्रयोग सर्वप्रथम इसी सभ्यता में हुआ।
व्यापार और उद्योग: मेसोपोटामिया की सभ्यता मूलतः एक व्यावसायिक सभ्यता थी। वहाँ देवता का मंदिर एक धार्मिक स्थल ही नहीं, एक व्यावसायिक केंद्र भी था। यहीं सर्वप्रथम बैंक प्रणाली का विकास हुआ। मेसोपोटामिया का भारत की सिंधु सभ्यता से व्यापारिक संबंध था।
धार्मिक मान्यताएँ: मेसोपोटामिया लोग अनेक देवी-देवताओं में विशवास करते थे। प्रत्येक नगर का अपना एक संरक्षक देवता होता था। ‘जिगुरात’ का अर्थ है- स्वर्ग की पहाड़ी। उर नगर में जिगुरात का निर्माण एक कृत्रिम पहाड़ी पर ईंटों से हुआ था। उर के जिगुरात में तीन मंजिलें थीं और उसकी ऊँचाई 20 मीटर से अधिक थी। मेसोपोटामिया के लोग परलोक की अपेक्षा इस लोक के जीवन की व्यवहारिक समस्याओं पर केंद्रित था। उनके पुरोहित भी व्यवसाय में लगे थे।
ज्ञान-विज्ञान: विज्ञान के क्षेत्र में मेसोपोटामिया के लोगों की उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण थीं। खगोल विज्ञान के क्षेत्र में उन्होंने काफी उन्नति कर ली थी। उन्होंने सूर्योदय, सूर्यास्त तथा चंद्रोदय, चंद्रोस्त का ठीक समय ज्ञात कर लिया था। उन्होंने दिन और रात का समय हिसाब लगाकर पूरे दिन को 24 घंटो में बाँटा था। साठ सैकंड का मिनट और साठ मिनट के एक घंटे का सबसे पहले विभाजन मेसोपोटामिया में ही किया गया था। चंद्र कलैंडर भी इनके द्वारा बनाया गया।
रेखागणित के वृत को इन्होंने 360 डिग्री में विभाजित करना प्रारंभ किया था। इस तरह मेसोपोटामिया के निवासी विज्ञान और गणित की उन्नत परंपराओं से अवगत थे। पाइथोगोरस प्रमेय भी मेसोपोटामिया सभ्यता की ही देन है।
स्थापत्य कला: मेहराब स्थापत्य कला की एक महत्वपूर्ण खोज थी। मेसोपोटामिया के कलाकारों ने मेहराब का भी आविष्कार किया। झूलता हुआ बाग (हेंगिंग गार्डेन) की गणना विश्व के सात आश्चर्यों में की जाती है, जिसका निर्माण नेबुकद्रेज्जर ने अपनी मीडियन रानी के लिए करवाया था।
कीलाक्षर लिपि: मेसोपोटामिया की पहली लिपि का विकास सुमेर में हुआ था। सुमेरियन व्यापारियों ने अपना हिसाब-किताब रखने के लिए कील जैसे चिन्ह बनाकर लेखन कला का विकास किया, इसे क्यूनीफोर्म या कीलाक्षर लिपि कहते हैं। क्यूनीफार्म लिपि को सबसे पहले एक ब्रिटिश अफसर हेनरी रॉलिंसन ने इसे इसे पढ़ा था।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंध : ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सिद्ध होता है कि मेसोपोटामिया और सिंधु घाटी सभ्यता समकालीन थीं और समुद्री मार्ग से सुमेर, बेबीलोन और सिंधु प्रदेश के बीच गहरे व्यापारी संबंध थे। इस कारण दोनों में कई समानताएँ भी मिलती हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता से काफी मिलता-जुलता जीवन और परंपराएँ मेसोपोटामिया में थी। दोनों सभ्यता के लोग आस्तिक और मूर्तिपूजक थे। उस समय के समाज में मंदिर और देवताओं की मूर्ति और पूजा करने की परंपरा थी।
दोनों सभ्यताओं में महीनों की संख्या बारह ही थी और काल-गणना भी चंद्रमा की गति पर आधारित थी। अधिकमास, अष्टमी और पूर्णिमा भी बड़ी तिथियाँ मानी जाती थी।
सिंधु से मेसोपोटामिया को निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में सूती वस्त्र, इमारती लकड़ी, मशाले, हाथीदांत एवं पशु-पक्षी रहे होगें। उर, किश, लगश, निष्पुर, टेल अस्मर, टेपे, गावरा, हमा आदि मेसोपोटामिया के नगरों से सिंधु सभ्यता की लगभग एक दर्जन मुहरें मिली हैं।
मेसेपोटामिया से सिंधु सभ्यता के नगरों द्वारा आयात की जाने वाली वस्तुओं में मोहनजोदाड़ो से प्राप्त हरिताभ रंग का क्लोराइट प्रस्तर का टुकड़ा, जिस पर चटाई की तरह डिजाइन बनी है, उल्लेखनीय है।
अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर यह ज्ञात होता है कि दिलमुन से सोना, चाँदी, लाजवर्द, माणिक्य के मनके, हाथीदाँत, की कंघी, पशु-पक्षी, आभूषण आदि आयात किया जाता था। दिलमुन की पहचान फ़ारस की खाड़ी के बहरीन द्वीप से की जाती है। दिलमुन सैंधव व्यापारिक केंद्रों तथा मेसोपोटामिया के साथ व्यापार का मध्यस्थ बंदरगाह था।
मेसोपाटामिया में प्राप्त सिंधु सभ्यता से संबंधित अभिलेखों एवं मुहरों पर ‘मेलुहा’ का ज़िक्र मिलता है। मेसोपोटामिया में प्रवेश हेतु ‘उर’ एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह था। भारत में लोथल से फ़ारस की मुहरें प्राप्त हुई हैं। इस बंदरगाह पर मिस्र तथा मेसोपोटामिया से जहाज़ आते जाते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्य उपनिवेश स्थापित किया था, जिसके सहारे उनका व्यापार मध्य एशिया के साथ चलता था।
इसमें संदेह नहीं कि हड़प्पा समुदाय की शहरी आबादी में जो आर्थिक विषमता थी, वह लगभग वर्गभेद जैसी थी। व्हीलर का अनुमान है कि हड़प्पा और मेसोपोटामिया के निवासियों के बीच दास व्यापार भी हुआ करता था।
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