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इंग्लैंड का ट्यूडर राजवंश
इंग्लैंड में हेनरी षष्टम के शासनकाल में 1455 में लंकास्टर एवं यार्क वंशों के मध्य इंग्लैंड के राजसिंहासन पर अधिकार करने के लिए गृह-युद्ध प्रारंभ हुआ, जो इतिहास में ‘गुलाब के फूलों का युद्ध’ के नाम से प्रसिद्ध है। लंकास्टर तथा यार्क वंशों का राजचिह्न क्रमशः लाल गुलाब एवं सफ़ेद गुलाब था। इसलिए इन दोनों वंशों के बीच हुए युद्ध को ‘गुलाब के फूलों का युद्ध’ कहा जाता है।
यार्क वंश ने 1471 में लंकास्टरवंशीय शासक हेनरी षष्टम तथा उसके पुत्र प्रिंस ऑफ वेल्स को ड्यूक्सबरी के युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी और इंग्लैंड के राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया। लंकास्टरवंशीय लोग या तो इस युद्ध में मारे गये या इंग्लैंड छोड़कर भागने पर विवश हुए। यार्क वंश का संस्थापक एडवर्ड चतुर्थ था, जिसने 1471 से 1483 तक इंग्लैंड पर शासन किया। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र एडवर्ड पंचम इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा। शीघ्र ही एडवर्ड पंचम के चाचा रिचर्ड ने उसकी हत्या कर दी और स्वयं इंग्लैंड का राजा बन गया।
रिचर्ड ने इंग्लैंड में अत्यंत क्रूरतापूर्वक शासन किया, जिसके परिणामस्वरूप इंग्लैंड की जनता यार्क वंश के विरुद्ध हो गई। इस अवसर का लाभ उठाते हुए लंकास्टरवंशीय हेनरी ट्यूडर ने 1485 में इंग्लैंड पर आक्रमण किया और 21 अगस्त, 1485 को वॉसबर्थ के युद्ध में रिचर्ड तृतीय को पराजित कर तीसवर्षीय गुलाब के फूलों के युद्ध’ का अंत कर दिया।
हेनरी ट्यूडर, हेनरी सप्तम के नाम से 1485 में इंग्लैंड की गद्दी पर बैठा और ट्यूडर वंश की स्थापना की। ट्यूडर वंश को इंग्लैंड के इतिहास में मध्य और आधुनिक युग की कड़ी माना जा सकता है।
हेनरी सप्तम (1485-1509)
हेनरी सप्तम ट्यूडर वंश का संस्थापक और इस वंश का पहला शासक था। वह विख्यात वेल्स सरदार सर एविन ट्यूडर का पौत्र और रिशमांड का अर्ल था। उसने वासवर्थ के युद्ध में रिचर्ड तृतीय को निर्णायक रूप से पराजित किया और 18 जनवरी 1486 को यॉर्क वंश की एलिजाबेथ से वेस्टमिंस्टर एब्बे में विवाह किया। इस विवाह द्वारा गुलाबों के युद्ध का सदैव के लिए अंत हो गया और यॉर्क तथा लैंकेस्टर के राजघरानों का एकीकरण हो गया।
हेनरी सप्तम को मध्यकालीन दुर्व्यवस्थाओं एवं अशांत स्थितियों को दूर करने, इंग्लैंड के आधुनिक राजनीतिक युग के प्रवर्तन और राष्ट्र की महत्ता के दिनों प्रारंभ करने का श्रेय प्राप्त है। हेनरी सप्तम को इंग्लैंड के नवयुग का प्रतिनिधि भी कहा जाता है, क्योंकि उसने इंग्लैंड में न केवल एक शक्तिशाली राजतंत्र की स्थापना करके अपने सिंहासन की रक्षा की, बल्कि तत्कालीन समाज को मध्ययुगीन कुरीतियों एवं अंधविश्वासों, सामंती अत्याचारों से मुक्त कर आधुनिक युग में प्रविष्ट कराते हुए बौद्धिकता एवं तर्कवादिता के पथ की ओर अग्रसर किया। यही कारण है कि उसके शासनकाल को इंग्लैंड के इतिहास में ‘बीजारोपण एवं सुधारों का काल’ कहा गया है।
हेनरी सप्तम को राजतंत्र को शक्तिहाली बनाने के लिए दृढ़ आधार नहीं था, क्योंकि उसके पास न तो शक्तिशाली सेना थी और न ही धन। फिर भी, वह इंग्लैंड में ‘राजा’ के पद की महत्ता, जो मध्ययुग के अंत तक शक्तिशाली सामंतों के कारण समाप्तप्रायः हो गई थी, को पुनर्स्थापित करने और देश में शक्तिशाली राजतंत्र (जिसे नवीन राजतंत्र कहा जाता है) की स्थापना करने में सफल रहा, जो निश्चित रूप से उसकी कार्य-कुशलता एवं योग्यता का प्रमाण है। इस प्रकार अपने शासनकाल में उसने इंग्लैंड को शांति, सुरक्षा, सम्मान एवं एक दृढ़ सरकार प्रदान की।
हेनरी सप्तम द्वारा नवीन राजतंत्र की स्थापना करने अथवा राजतंत्र को दृढ़ करने से एक महत्वपूर्ण लाभ यह हुआ कि इसने देश के सभी छोटे-बड़े भागों को आपस में मिलाकर लोगों में राष्ट्रवाद की भावना को जन्म दिया, जिसे हेनरी सप्तम की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाना चाहिए।
हेनरी ट्यूडर के सिंहासनारूढ़ होने से पूर्व देश में अशांति, अत्याचार एवं कुव्यवस्था व्याप्त थी। इंग्लैंड की सामाजिक स्थिति के संबंध में वेनिस के एक राजदूत ने कहा था : ‘संसार के किसी भी देश में इतने चोर और लुटेरे नहीं हैं, जितने इस समय इंग्लैंड में हैं।’ सामंत किसानों पर विभिन्न प्रकार से अत्याचार करते थे। उनकी शक्ति को चुनौती देने वाला कोई नहीं था। इसके अतिरिक्त, शिक्षा के अभाव में दिशाहीन इंग्लैंड की जनता अंधविश्वास के सघन अंधकार में भटक रही थी। ऐसे समय में हेनरी ट्यूडर का हेनरी सप्तम के नाम से इंग्लैंड के सिंहासन पर आरूढ़ होना, रात्रि के घोर अंधकार को मिटाते हुए ऊषा की लालिमा के समान था।
ट्यूडर वंश की स्थापना के साथ ही मध्यकाल की कुप्रथाओं का अंत होने लगा। हेनरी सप्तम ने सामाजिक कुरीतियों एवं धार्मिक बुराइयों को दूर करके समाज को शुद्ध करने का प्रयास किया। उसने सामंतवाद का अंत किया और राजा तथा प्रजा के बीच सीधा संपर्क स्थापित किया। उसने शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान दिया, परिणामस्वरूप इंग्लैंड का आधुनिकीकरण एवं लोगों की विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। हेनरी सप्तम के सम्मुख अपने राज्याधिकार को दृढ़ करने की समस्या थी, इसके हेतु जहाँ एक ओर उसने लैंबर्ट सिमनेल और पार्किन वार्बेक जैसे राज्य के नकली दावेदारों का विनाश किया, वहीं सामंतों की उपद्रवी शक्ति के विध्वंस के लिए वाद-विधान तथा भृत्य-विधान बनाये। उसने ‘स्टार चैंबर’ (नक्षत्रभवन) के न्यायालय की स्थापना और प्रिवी कौंसिल के शासन द्वारा अपनी शक्ति में वृद्धि की। यही नहीं, पार्लियामेंट से उसने अच्छा संबंध बनाये रखा और यथासंभव उसकी कम से कम बैठकें आहूत की।
राजकीय व्यय चलाने के लिए पार्लियामेंट द्वारा स्वीकृत धन के अतिरिक्त धनी और व्यापारी वर्गों से कर्ज, दान तथा अर्थदंड जैसे उपायों के साथ ही मितव्ययता का सहारा लिया और पर्याप्त धन एकत्र किया। अपनी मृत्यु के समय उसने अपने पुत्र के लिए अठारह लाख पौंड की धनराशि छोड़ी थी।
इस प्रकार हेनरी सप्तम देश के आंतरिक प्रशासन में सशक्त राजतंत्र की स्थापना की। उसके समय में कृषि और व्यापार की उन्नति तथा गरीबों एवं बेकारों के भरण-पोषण की व्यवस्था की गई थी। वैदेशिक मामलों में तटस्थता और समकालीन राजपरिवारों से वैवाहिक संबंध की नीति का अबलंबन लेकर उसने राष्ट्रीय हित के संवर्धन के साथ ही परिवारिक प्रतिष्ठा में भी वृद्वि की।
हेनरी सप्तम एक कुशल एवं योग्य प्रशासक था। 21 अप्रैल, 1509 को उसकी मृत्यु के समय तक इंग्लैंड न केवल आंतरिक दृष्टि से ही सुदृढ़ हो गया, वरन् यूरोपीय राष्ट्रों के मध्य भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका था। हेनरी सप्तम की मृत्यु (1509) के पश्चात् उसका पुत्र हेनरी अष्टम इंग्लैंड के राजसिंहासन पर आसीन हुआ।
हेनरी सप्तम के संबंध में विस्तृत अध्ययन के लिए पढ़ें-
हेनरी अष्टम (1509-1547)
हेनरी अष्टम के राजगद्दी पर आरूढ़ होने का इंग्लैंड की जनता ने स्वागत किया, क्योंकि अठारहवर्षीय हेनरी अष्टम एक सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाला, संगीत, नृत्य तथा खेलकूद में रुचि रखने वाला नवयुवक था। वह विद्यानुरागी तथा विद्वानों का आश्रदाता होने के साथ-साथ स्वयं भी विद्वान था और धर्मशास्त्र, फ्रांसीसी, लैटिन तथा अन्य अनेक भाषाओं का ज्ञाता था। हेनरी अष्टम संभवतः अपने वंश का सर्वाधिक महत्वाकांक्षी शासक था। उसने विरासत में प्राप्त सुदृढ़ राजकीय शक्ति और संचित धनराशि का उपयोग कर उसने केवल दरबार की शान-शौकत ही नहीं बढ़ाई, अपितु अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी पूर्ण भाग लिया। उसके समकालीन प्रत्येक राजा की यह महत्वाकांक्षा थी कि वह रोम का पवित्र सम्राट बने। हेनरी भी इस दौड में पीछे नहीं रहा, किंतु 1519 में वह स्पेन के चार्ल्स पंचम से चुनाव हार गया।
अपने छः विवाहों के अलावा, हेनरी अष्टम चर्च ऑफ इंग्लैंड को रोमन कैथोलिक चर्च से पृथक करने में उनके द्वारा निभाई गई भूमिका के लिए भी प्रसिद्ध हैं। रोमन कैथलिक चर्च के साथ संबंध विच्छेद के बाद भी वह कैथोलिक धर्मशास्त्र की मूल-शिक्षाओं का समर्थक बना रहा।
किंतु हेनरी अष्टम शीघ्र ही प्रशासन के शुष्क एवं कठिन कार्य से ऊब गया और 1514 में प्रशासन का कार्य को अपने विश्वासपात्र मंत्री कार्डिनल वूल्जे को सौंप दिया। किंतु जब रानी कैथरीन से शीघ्र तलाक दिला पाने में वुल्जे विफल रहा, तो उसे राजद्रोह के झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और हिरासत में ही उसकी मृत्यु हो गई। वुल्जे के पतन के बाद हेनरी अष्टम ने प्रशासन अपने हाथ में लेकर कुशलतापूर्वक शासन किया और इंग्लैंड को वैभवशाली तथा शक्तिशाली बनाने का प्रयासकिया।
हेनरी अष्टम जिस समय गद्दी पर बैठा, उस समय वह पोप का अनन्य भक्त था। उसने 1521 में लूथर के विरुद्ध एक पुस्तक लिखी, जिससे प्रसन्न होकर पोप ने उसे ‘धर्म-रक्षक’ उपाधि दी थी। लेकिन बीस वर्षों तक पोप को प्रसन्न करने के प्रयत्न करते रहने के पश्चात् कैथरीन से संबंध-विच्छेद को लेकर हेनरी पोप के विरुद्ध हो गया। उसने इंग्लैंड से पोप का धार्मिक प्रभुत्व मिटाने के लिए क्रामवेल के परामर्श से संसद का अधिवेशन बुलाया और अंग्रेजी चर्च से पोप को अलग कर दिया। 1534 में स्वयं को चर्च ऑफ इंग्लैंड का सर्वोच्च प्रमुख घोषित करने के बावजूद हेनरी ने कभी भी औपचारिक रूप से रोमन कैथलिक चर्च को अस्वीकार नहीं किया था। पादरियों की शक्ति पर नियंत्रण रखने के लिए हेनरी ने संसद से अनेक नियम पारित कराये और एडवर्ड चतुर्थ के समय में पारित प्रेमुनायर अधिनियम को पुनः लागू किया।
हेनरी अष्टम (1509-1547) ने ‘आयरलैंड के राजा’ की उपाधि धारण की। उसने मठों से प्राप्त संपत्ति से अनेक जहाजों का निर्माण करवाया और उन पर तोपें लगवाकर लड़ाकू जहाजों का बेड़ा तैयार किया। अत्यंत हठी, चरित्रहीन, अत्याचारी और क्रूर होने के बावजूद, हेनरी का शासनकाल महान् सफलताओं और परिवर्तनों का युग था। अपने समकालीन राजाओं में, अपने समस्त अत्याचारों के पश्चात् भी वह एक शानदार राजा था। हेनरी अष्टम 55 वर्ष की आयु में पैलेस ऑफ व्हाइटहॉल में 28 जनवरी 1547 को, जो उसके पिता का 90वाँ जन्मदिन रहा होता, निधन हो गया। इसके बाद उसकी रानी जेन सेमोर से उत्पन्न पुत्र एडवर्ड षष्ठ आयरलैंड और इंग्लैंड का राजा हुआ। हेनरी अष्टम के संबंध में विस्तृत अध्ययन के लिए पढ़ें-
एडवर्ड षष्ठ (1547-1553)
हेनरी अष्टम की मृत्यु के बाद उसकी रानी जेन सेमोर से उत्पन्न पुत्र एडवर्ड षष्ठ 20 फरवरी, 1547 को नौ वर्ष की उम्र में आयरलैंड और इंग्लैंड का राजा हुआ। एडवर्ड ट्यूडर राजवंश का तीसरा शासक था। उसकी शिक्षा-दीक्षा प्रोटेस्टेंट विचारों के अनुरूप हुई थी। अल्पवयस्क एडवर्ड को पहले अपने मामा एडवर्ड सेमोर सोमरसेट (1547-1549) और बाद में नॉर्थबरलैंड के अर्ल जॉन डुडली (1547-1549) की अध्यक्षता में गठित एक समिति के माध्यम से शासन करना पड़ा।
एडवर्ड षष्ठ का शासनकाल इंग्लैंड में आर्थिक और सामाजिक विसंगतियों के कारण विशेष महत्वपूर्ण है। सोमरसेट प्रोटेस्टेंट मत का समर्थक था। उसने राजद्रोह नियम व हेनरी अष्टम के शासनकाल में पारित छः धाराओं वाला कानून समाप्त कर दिया और 1549 में कैंटरबरी के शीर्ष पादरी थॉमस क्रेनमर की सहायता से एक नई प्रार्थना प्रस्तक ‘इंग्लिश बुक ऑफ कॉमन प्रेयर’ (साधारण प्रार्थना की पुस्तक) तैयार करवाई, जो पूर्णतः प्रोटेस्टेंट धर्म के अनुरूप अंग्रेजी में लिखी गई थी। एकरूपता अधिनियम के द्वारा उसे प्रत्येक पादरी के लिए अनिवार्य कर दिया गया।
सोमरसेट के पतन के बाद बाद नार्थम्बरलैंड ने 1552 में द्वितीय प्रार्थना पुस्तक निकाली, जो पहली पुस्तक से भी अधिक प्रोटेस्टेंट सिद्धांतों पर आधारित थी। उसने 42 धाराओं वाला एक कानून पारित किया, जो पूर्णतः प्रोटेस्टेंट धर्म के पक्ष में था। इस प्रकार एडवर्ड के शासनकाल में धर्म सुधार आंदोलन की प्रगति हुई।
एडवर्ड षष्ठ फरवरी, 1553 में बीमार पड़ा और उसे लगा कि उसकी मृत्यु निकट है, तो उसने अपने सलाहकार समिति की सहमति से ‘उत्तराधिकार के लिए इच्छापत्र’ तैयार करवाया, जिससे कैथोलिक मेरी को सत्ता ग्रहण करने से रोका जा सके। नये कानून के द्वारा एडवर्ड ने अपनी बुआ (हेनरी अष्टम की छोटी बहन) मेरी ट्यूडर की नातिन जेन ग्रे को अपना उत्तराधिकारी बनाया और अपनी सौतेली बहनों- मेरी और एलिज़ाबेथ के उत्तराधिकार को निरस्त कर दिया।
किंतु एडवर्ड की मृत्यु 6 जुलाई 1553 को हुई और उसके बाद नॉर्थम्बरलैंड की बहू लेडी जेन ग्रे 10 जुलाई 1553 को, लेडी जेन ग्रे को नॉर्थम्बरलैंड और उनके समर्थकों द्वारा रानी घोषित कर दिया गया। किंतु एडवर्ड की मृत्यु के 13 दिनों के अंदर 19 जुलाई 1553 को मेरी ने जेन ग्रे को पदच्युत् कर दिया। इसलिए जेन ग्रे को ‘नौ दिनों की रानी’ भी कहा जाता है।
मेरी ट्यूडर (1553-1558)
एडवर्ड षष्ठ की 1553 में मृत्यु के बाद मेरी ट्यूडर इंग्लैंड की राजगद्दी की उत्तराधिकारिणी हुई, जिसने 1553 ई. से 1558 तक शासन किया। वह कैथरीन से उत्पन्न हेनरी अष्टम की पुत्री थी। उसकी माँ के तलाक के प्रश्न को लेकर इंग्लैंड मे धर्मसुधार प्रारंभ हुआ था, जिससे मेरी ट्यूडर स्वाभावतः प्रतिक्रियावादी हो गई थी।
आरंभ में मेरी ट्यूडर ने एक घोषणा जारी की कि वह अपने किसी भी विषय को अपने धर्म का पालन करने के लिए मजबूर नहीं करेगी, किंतु मेरी कट्टर कैथोलिक थी और उसका उद्देश्य प्रोटेस्टेंट धर्म को समाप्त कर इंग्लैंड में पुनः कैथलिक धर्म और पोप के प्रभुत्व को स्थापित करना था। इसके लिए उसने एडवर्ड षष्ठ के समय के सभी धर्मसुधार विधानों का ही अंत नहीं किया, अपितु अपने पिता के अनेक तटस्थ और राजहितकारी सुधारों को भी वापस ले लिया। यही नहीं, उसने आगे बढ़कर रोम से पुनः संबंध स्थापित कर पोप के प्रतिनिधि का इंग्लैंड में स्वागत किया और 1554 में स्पेन के कैथोलिक शासक फिलिप द्वितीय से विवाह करके 1556 में हैब्सबर्ग स्पेन की पटरानी भी बन गई।
पाँच वर्षों के कार्यकाल के दौरान मेरी ट्यूडर ने प्राटेस्टेंटों पर अत्यधिक अत्याचार किये गये, उन्हें कठोर दंड दिया गया और लगभग 280 प्राटेस्टेंटों को जीवित जला दिया गया। अनेक लोग भयभीत होकर प्रोटेस्टेंट धर्म को त्यागने पर विवश हो गये। अनेक प्रोटेस्टेंट नेताओं, जैसे- थॉमस क्रैनमर, जॉन ब्रैडफोर्ड, जॉन रोजर्स, जॉन हूपर लैटिमर आदि को जिंदा जला दिया गया। प्रोटेस्टेंटों पर किये गये अत्याचारों के कारण मेरी ट्यूडर को इतिहास में ‘खूनी मैरी’ (ब्लॉडी मेरी) के नाम से जाना जाता है। 17 नवंबर, 1558 को इंग्लैंड की इस क्रूर शासिका की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद इंग्लैंड पर राज करने वाली हेनरी और एन बोलिन की पुत्री एलिज़ाबेथ प्रथम इंग्लैंड की शासिका बनी।
एलिजाबेथ प्रथम (1558-1603)
इंग्लैंड की क्रूर शासिका मेरी ट्यूडर की मृत्यु (17 नवंबर 1558) के कुछ ही समय बाद पच्चीस वर्षीय एलिजाबेथ को इंग्लैंड की राजगद्दी पर बैठी। हेनरी अष्टम की वसीयत के आधार पर बिना किसी वाद-विवाद के एलिजाबेथ इंग्लैंड की महारानी बन गई।
एलिजाबेथ एक योग्य, दूरदर्शी, साहसी तथा दृढ़ निश्चय वाली महिला थी। वह स्पष्ट विचारोंवाली, दूरदर्शी, योग्य, शक्तिशाली एवं साहसी महिला थी। उसका प्रारंभिक जीवन अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में व्यतीत हुआ था। इसलिए उसने अपनी अपनी बुद्धि पर विश्वास करना, वाणी में संयम रखना और ओठों पर हँसी बनाये रखने का अभ्यास कर लिया था। किंतु एलिजाबेथ चरित्रवान नहीं थी। उसके अनेक प्रेमी बताये जाते हैं। वह अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए कोई भी कार्य कर सकती थी और बिना झिझके झूठ बोल सकती थी। अपने तमाम व्यक्तिगत दोषों के बावजूद वह इंग्लैंड की जनता का विश्वास जीतने और एक सुदृढ़ प्रशासन स्थापित करने में सफल रही।
एलिजाबेथ ने देश को धर्मिक वाद-विाद से बचाने के लिए मध्यम मार्ग का सहारा लिया और अपने पिता के समय की धार्मिक व्यवस्था को पुनर्प्रचलित किया। उसने इंग्लैंड को पोप के प्रभाव से मुक्त रखने के लिए ‘सर्वोच्चता का नियम’ पारित करवाया जिससे वह चर्च की सर्वोच्च अधिकारी हो गई और ‘चर्च की शासिका’ की उपाधि धारण की। उसने प्यूरिटनों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की और दोनों संप्रदायों को संरक्षण प्रदान किया।
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में एलिज़ाबेथ ने भिक्षा माँगने पर प्रतिबंध लगाया और दरिद्रालय (पुअर हॉउसेज) की व्यवस्था की। उसने इंग्लैंड में विशाल एवं भव्य भवनों का निर्माण करवाया, नगरों की सफाई का प्रबंध किया और मकानों में रोशनदान व खिड़कियों की व्यवस्था करवाई। उसके शासनकाल में व्यापार में असाधारण प्रगति हुई और समुद्री लुटेरों द्वारा स्पेन के जहाजों की लूट के कारण इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ। एलिजाबेथ के काल में अंग्रेजी साहित्य की बड़ी उन्नति हुई, विशेषकर कविता एवं नाटकों के क्षेत्र में, जिसके कारण एलिजाबेथ का शासनकाल ‘गाने वाले पक्षियों का घोसला’ कहा जाने लगा था।
एलिजाबेथ ने अपनी दूरदर्शिता से इंग्लैंड के तीनों शक्तिशाली शत्रुओं-स्कॉटलैंड, स्पेन तथा फ्रांस का भिन्न-भिन्न तरीकों से सामना किया। एलिजाबेथ के शासनकाल में अनेक नाविकों ने अपनी साहसिक यात्राओं द्वारा इंग्लैंड को लाभ पहुँचाया और अनेक उपनिवेशों की स्थापना हुई। इस प्रकार ऐलिजाबेथ अपनी कुशल वैदेशिक नीति के परिणामस्वरूप अपने उद्देश्यों को पूर्ण करने में सफल रही। एलिजाबेथ के संबंध में विस्तृत अध्ययन के लिए पढ़ें-
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