इंग्लैंड का जेम्स प्रथम (James I of England, 1603–1625)

इंग्लैंड का जेम्स प्रथम (1603-1625)

जेम्स प्रथम स्टुअर्ट वंश का प्रथम शासक था। उसका जन्म 1566 में हुआ था। बचपन से ही वह अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का था। इंग्लैंड के राजाओं में जेम्स को सबसे विद्वान् माना जाता है क्योंकि उसने उच्चकोटि की शिक्षा प्राप्त की थी और वह गद्य-लेखन तथा कुशलतापूर्वक भाषण देने में कुशल था। वह अच्छी कविताओं की रचना भी कर लेता था। उसकी प्रमुख रचना ‘एकाउंटर ब्लास्ट टु टुबैको’ थी। इसके अलावा उसे शारीरिक व्यायाम और शिकार का भी शौक था। वह अत्यंत तीखे व्यंग्य भी करता था। 1621 में जब लोकसभा का एक शिष्टमंडल राजा से मिलने आया, तो उसने कहा, ‘इन राजदूतों के लिए स्टूल लाओ’, क्योंकि वह जानता था कि वे उसके प्रतिस्पर्धी होने जा रहे थे। जब उसके पुत्र चार्ल्स ने एक मंत्री पर महाभियोग चलाने की अनुमति माँगी, तो कहा ‘तुम अपने शासनकाल में जी भरकर अभियोग देखोगे।’

इंग्लैंड का जेम्स प्रथम (James I of England, 1603–1625)
इंग्लैंड का जेम्स प्रथम (1603–1625)

जेम्स प्रथम एक भद्र पुरुष था और अपनी प्रजा से प्रेम करता था। वह राजत्व के दैवीय सिद्धांत का अनुयायी और धर्मशास्त्र का प्रकांड विद्वान् था। धार्मिक अत्याचार के इस युग में भी वह धार्मिक सहिष्णुता में विश्वास करता था। युद्ध-प्रधान काल में भी उसका सिद्धांत और उद्देश्य शांति की स्थापना करना था।

यद्यपि जेम्स प्रथम में उपर्युक्त गुण थे, किंतु उसमें अनेक अवगुण भी थे, जिनके कारण वह अपनी जनता को प्रसन्न करने में असफल रहा। निःसंदेह जेम्स प्रथम कुशाग्र बुद्धि का था, किंतु शारीरिक रूप से अत्यंत कुरूप था। वह अभिमानी, सुस्त और परिश्रम से बचने वाला व्यक्ति था। उसे किसी भी प्रकार का कष्ट उठाना पसंद नहीं था और उसके लिए किसी भी विषय में पूर्णरूप से सोचना संभव नहीं था। यद्यपि उसके विचार उच्च थे, किंतु अनिश्चित थे। वह बहुत अहंकारी था। वह दरबारियों द्वारा प्रशंसा किये जाने पर खुश होता था, किंतु मनुष्यों को पहचानने की योग्यता उसमें नहीं थी। दैवीय सिद्धांत में विश्वास करने के कारण जनता और संसद उसे पसंद नहीं करती थी। वह प्यूरिटन संप्रदाय तथा लोकसभा की भावनाओं एवं आवश्यकताओं को समझने में असफल रहा। जेम्स प्रथम ने अंग्रेजी जनता की रीतियों एवं मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखा। वह ज्ञानी तो था, किंतु उसमें व्यावहारिकता नहीं थी। इस प्रकार वह गुणों और अवगुणों का एक अभूतपूर्व संमिश्रण था। यही कारण है कि उसे फ्रांस के राजा ने ‘शिक्षित मूर्ख’ (दि वाइजेस्ट फूल इन क्रिस्टेनडम) कहा था, जो संभवतः उसके चरित्र का सर्वोत्तम और उचित वर्णन लगता है। उसके अवगुणों के कारण इंग्लैंड में एक सदी तक राजनीतिक उथल-पुथल मची रही।

जेम्स और पार्लियामेंट के बीच संघर्ष के कारण

जेम्स प्रथम के राजसिंहासनारोहण से इंग्लैंड में स्टुअर्ट शासन की स्थापना हुई थी। स्टुअर्ट वंश के लगभग 111 वर्षों के शासनकाल में राजा और संसद के बीच संघर्ष चलता रहा, जो इंग्लैंड के संवैधानिक इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। यद्यपि राजा तथा संसद में संघर्ष के लक्षण ट्यूडरवंशीय शासिका एलिजाबेथ के समय में ही दृष्टिगोचर होने लगे थे, फिर भी, ट्यूडर शासकों ने जनमत को आधार बनाकर एक शक्तिशाली राजतंत्र की व्यवस्था विकसित कर ली थी, जिससे राजा और पार्लियामेंट में सहयोग बना रहा। परिस्थितियों के परिवर्तन के कारण स्टुअर्ट जेम्स प्रथम के शासनकाल से यह संघर्ष शक्तिशाली होता गया, जिससे स्टुअर्ट शासको को गंभीर परिणामों का सामना करना पड़ा और चार्ल्स प्रथम को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। दरअसल 1588 में स्पेनी आर्मेडा की पराजय ने इंग्लैंड में नवीन आत्म-विश्वास उत्पन्न कर दिया था और पार्लियामेंट अब अधिक प्रभावशाली भूमिका चाहती थी। सम्राट और संसद के बीच संघर्ष का प्रमुख कारण संप्रभुता का प्रश्न था, जिसका अंतिम समाधान गौरवपूर्ण क्रांति (1688) के द्वारा ही हो सका।

परिवर्तित परिस्थितियाँ

ट्यूडर शासकों ने इंग्लैंड में गृह-युद्ध को समाप्त करके शांति की स्थापना की थी। इंग्लैंड की जनता बाह्य आक्रमणों से बचने के लिए भी राजा का समर्थन करती थी। संसद ने भी ट्यूडरवंशीय राजाओं को किसी प्रकार से बाधा पहुँचाने का प्रयत्न नहीं किया, अपितु सामाजिक-धार्मिक विषयों पर अनेक नियम पारित किये जिससे संसद की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई, हालांकि उसकी स्वतंत्रता में कमी आई। ट्यूडर शासकों ने सभी कार्य संसद की सहमति से किये थे, यहाँ तक कि धर्मसुधार जैसा महत्वपूर्ण परिवर्तन भी संसद की अनुमति से ही किया गया था। यद्यपि ट्यूडरकाल के अंत से ही राजा तथा संसद के बीच खींचतान आरंभ हो गया था, जिसका महारानी एलिजाबेथ ने बड़ी कुशलता से समाधान कर लिया था।

स्टुअर्ट वंश की स्थापना के समय परिस्थितियाँ बदल चुकी थीं। एक तो, जेम्स प्रथम में एलिजाबेथ जैसी योग्यता और सूझबूझ नहीं थी। दूसरे, 1630 तक इंग्लैंड बाह्य आक्रमणों के भय से मुक्त हो चुका था और 1588 में स्पेन के जहाजी बेड़े की पराजय से इंग्लैंड की सामुद्रिक श्रेष्ठता स्थापित हो चुकी थी, जिससे देश समृद्धिशाली और आत्मविश्वास से पूर्ण था। इस परिवर्तित स्थिति में इंग्लैंड की जनता और संसद दोनों देश के आंतरिक मामलों में रुचि लेने लगे।

मध्यम वर्ग का शक्तिशाली होना

इंग्लैंड की राजनीतिक स्थिति में भी परिवर्तन हो गया था। सामंतों और चर्च के दुर्बल होने से राष्ट्रीय चरित्र का विकास हुआ और मध्यम वर्ग शक्तिशाली हो गया था। इस वर्ग में धनी व्यापारी तथा बौद्धिक वर्ग के लोग थे। ट्यूडर शासकों ने इस वर्ग की सहायता से राजतंत्र को सुदृढ़ किया था। इस वर्ग का प्रशासन पर प्रभाव था और पार्लियामेंट में भी उनके अधिकांश प्रतिनिधि थे। आर्थिक समृद्धि के कारण यह वर्ग शक्तिशाली था और राज्य के लिए राजस्व प्रदान करता था। अतः वे संसद के माध्यम से राजा की निरंकुशता सत्ता को सीमित और नियंत्रित करना चाहते थे, जिससे करारोपण तथा धन के व्यय पर उनका नियंत्रण स्थापित हो सके। इस मध्यम वर्ग का यह विचार भी था कि राजा की निरंकुश सत्ता देश की प्रगति में बाधक हो रही थी। आर्मेडा की पराजय के बाद इंग्लैंड में व्यापार और उद्योग में तीव्रता से प्रगति हुई थी और यह वर्ग इस प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए अब संसद को शक्तिशाली बनाना चाहता था। इससे राजा और संसद के बीच संघर्ष होना अनिवार्य हो गया।

राजा का देवी अधिकार

जेम्स स्कॉटलैंड से इंग्लैंड में आया था। स्काटलैंड में उसकी सत्ता सर्वोपरि थी। वह राजत्व के दैवी सिद्धांत में विश्वास करता था। उसका विश्वास था कि राजा जनता द्वारा नहीं, बल्कि ईश्वर की इच्छा से चुना जाता है। ईश्वर उसे जनता पर शासन करने के लिए ही जन्म देता है। प्रजा का कर्तव्य है कि वह राजा की आज्ञाओं का पालन करे। राजा के विरुद्ध आवाज उठाना या उसके किसी कार्य में बाधा पहुँचाना ईश्वर के कार्य में बाधा पहुँचाना है। राजा अपने कार्य के लिए जनता के प्रति नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है। इस प्रकार जेम्स स्वयं को मानव कानून की सीमा से बाहर समझता था। रॉबर्ट ने अपनी पुस्तक पेट्रिआर्का में लिखा है कि स्वयं ईश्वर के समान राजाओं ने अपनी मौलिक एवं पैतृक शक्ति मानव समाज को सौंप रखी है। जैसा कि यह कहना कि ईश्वर क्या कर सकता है, नास्तिकता एवं ईश्वर निंदा है वैसे ही प्रजा का इस बात पर झगड़ना कि राजा क्या कर सकता है, राजद्रोह है।’ वास्तव में पुनर्जागरण और धर्म-सुधार आंदोलन के कारण इंग्लैंड में एक नवीन चेतना व दृष्टिकोण का विकास हो रहा था, जो स्टुअर्ट राजाओं की निरंकुशता के सर्वथा प्रतिकूल थी।

जेम्स स्वयं को मानव कानून की सीमा से बाहर समझता था और कानून का पालन करना आवश्यक नहीं समझता था। उसने अपने इन विचारों को ‘टू लॉ ऑफ दि मोनार्कीज’ पुस्तक में व्यक्त किया था, जिसकी रचना उसने स्वयं की थी। इसमें उसने लिखा कि राजा अपने विवेक से कार्य करता है और उसे किसी कार्य को करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। यदि वह उचित शासन नहीं कर रहा है, तो जनता को यह अधिकार नहीं है कि उसके विरूद्ध विद्रोह करे। राजा किसी सांसारिक शक्ति या संस्था के प्रति उत्तरदायी नहीं है, वह केवल ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है। जनता को राजा के अत्याचारों को यह सोचकर सहन करना चाहिए कि यह उनके पूर्वजों के किये गये पाप का परिणाम है।

जेम्स के अनुसार राजा ही पृथ्वी पर राजा की प्रतिमूर्ति है। वह न केवल ईश्वर का प्रतिनिधि है और न केवल ईश्वर की गद्दी पर आसीन है, बल्कि स्वयं ईश्वर के द्वारा ईश्वर कहलाते हैं। कोई भी मानवीय शक्ति किसी वैधानिक राजा को उसके अधिकारों से वंचित नहीं कर सकती। राजा ईश्वर के प्रति उत्तरदायी है, किसी सांसारिक शक्ति अथवा संस्था के प्रति नहीं।

इस प्रकार की ईश्वरीय शक्ति या प्रतिनिधित्व का दावा ट्यूडर राजाओं ने कभी नहीं किया था। वस्तुतः उन्होंने अपनी निरंकुश शक्ति को पार्लियामेंट की स्वीकृति और जन आकांक्षाओं के सम्मान के आवरण में छिपा कर रखा था। इंग्लैंड में दैवी सिद्धांत की परंपरा नहीं थी। राजा निरंकुशता का पक्षपाती था, जबकि संसद राजा के दैवी अधिकारों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी। संसद के अनुसार राजा के अधिकार सीमित तथा नियमबद्ध थे। इस प्रकार परंपरागत शक्तिशाली राजतंत्र तथा संचित अधिकारों की समर्थक संसद के बीच संघर्ष अवश्यसंभावी हो गया था।

जेम्स का चरित्र

सम्राट और संसद के बीच संघर्ष का एक प्रमुख कारण जेम्स प्रथम का चरित्र भी था। यद्यपि जेम्स एक योग्य, शिक्षित, विद्वान् तथा मृदु स्वभाव वाला, दयालु एवं शांति में विश्वास रखने वाला व्यक्ति था, किंतु यह उसका दुर्भाग्य था कि जिन परिस्थितियों में वह शासक बना वह उसके योग्य नहीं था। वह अहंकारी था और राजा तथा प्रजा के मध्य बहुत अधिक अंतर मानता था। अपने अपने ज्ञान का भी अहंकार में वह संसद से विचार-विमर्श करना पसंद नहीं करता था। इस प्रकार संकीर्ण विचारधारा होने के कारण वह सदैव संसद के विरोध का सामना करता रहा। उसे चापलूसी पसंद थी और चापलूस लोगों को मंत्री तथा उच्च पदों पर नियुक्त करता था।

जेम्स यद्यपि एक उच्चकोटि का वक्ता था, किंतु उसकी अनावश्यक और व्यंग्य बोलने की आदत उसे संकट में डाल देती थी क्योंकि जिस समय किसी राजा को चुप रहना चाहिए, वह अपनी आदत से विवश होकर ऐसा नहीं कर पाता था। किसी के द्वारा उसके सम्मुख तर्क अथवा आलोचना करना सहन नहीं होता था। इसके अतिरिक्त, उसे व्यक्ति की पहचान भी नहीं थी।

जेम्स एक स्वाभिमानी व्यक्ति था, किंतु उसे चाटुकारिता पसंद थी। वह ऐसे लोगों को उच्च पद प्रदान करता जो उसकी खुशामद करते थे। इंग्लैंड का ‘सोलोमन’ कहने पर जेम्स उन्हें मंत्री तथा सलाहकार तक का पद प्रदान करता था। इंग्लैंड की जनता इस कार्य को पसंद नहीं करती थी। ऐसे व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य करते थे ओर संसद की उन्हें चिंता न थी। दूसरी ओर संसद में प्यूरिटन लोगों का बहुमत था, जो पवित्र जीवन, स्पष्टवादिता तथा राष्ट्रप्रेम से प्रेरित थे और राजा की प्रगल्भता, अहंकार आदि का विरोध करते थे।

जेम्स की वैदेशिक नीति

जेम्स प्रथम अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह स्पेन की राजकुमारी से करके दोनों देशों के बीच व्याप्त वैमनस्यता को समाप्त करना चाहता था। संसद प्रशा के प्रोटेस्टेंट राजा फ्रेडरिक की सहायता करने और उसके लिए धन स्वीकार करने को तैयार थी। जेम्स भी फ्रेडरिक की मदद करना चाहता था, किंतु इसके लिए वह स्पेन से मित्रता करके कूटनीतिक समाधान चाहता था। इसके लिए वह अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह स्पेन की राजकुमारी से करना चाहता था। स्पेन से मित्रता करने के उद्देश्य से जेम्स ने महान् नाविक रैले को मृत्युदंड दिया था। इंग्लैंड की संसद ने जेम्स की नीतियों का विरोध किया। जेम्स प्रथम अपने सभी प्रयत्नों के बाद भी स्पेन को प्रसन्न नहीं कर सका और उसने अपनी राजकुमारी का विवाह चार्ल्स से करने के लिए इनकार कर दिया। जेम्स ने अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह फ्रांस की राजकुमारी से किया और स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, किंतु जेम्स को इस युद्ध में सफलता नहीं मिल सकी। संसद, जेम्स के इन कार्यों की विरोधी थी।

संसद के विशेष अधिकार

राजा को पार्लियामेंट को बुलाना और भंग करने का विशेषाधिकार था। इसी प्रकार पार्लियामेंट के भी कुछ विशेषाधिकार ट्यूडर काल से ही मिले हुए थे। इन अधिकारों में चुनाव-संबंधी झगड़ों को दूर करना और भाषण देना सम्मिलित था। इसके अतिरिक्त, संसद सदस्यों को यक्तिगत सुरक्षा प्राप्त थी और उन्हें बंदी भी नहीं बनाया जा सकता था। पार्लियामेंट की स्वीकृति के बिना कोई कर नहीं लगाया जा सकता था। पार्लियामेंट को कानून बनाने का अधिकार था। इन विशेषाधिकारों के कारण जेम्स प्रथम इंग्लैंड में निरंकुश शासन की स्थापना नहीं कर सकता था। इसलिए उसने संसद के इन विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। जेम्स का मत था कि संसद को ये विशिष्ट अधिकार राजा द्वारा ही दिये गये थे और राजा ही वापस ले रहा है, तो इसमें कुछ भी अनुचित नहीं है। संसद ने अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए राजा के इस कार्य का घोर विरोध किया और संघर्ष का मार्ग अपनाया ।

जेम्स की धार्मिक नीति

इंग्लैंड में ईसाई धर्म के तीन प्रमुख संप्रदाय एंग्लिकन, प्यूरिटन एवं कैथोलिक थे। संसद में प्यूरिटन सदस्य बड़ी संख्या में थे। प्यूरिटन प्रोटेस्टंट धर्म के अतिवादी थे और एंग्लिकन चर्च में पवित्रता लाना चाहते थे। जेम्स प्यूरिटन संप्रदाय का विरोधी था, इसलिए प्यूरिटन सदस्य उसके विरोधी हो गये। जेम्स का झुकाव कैथोलिक धर्म की ओर था। उसके राज्यारोहण के समय इंग्लैंड के कैथोलिकों को आशा थी कि जेम्स उनके पक्ष में कार्य करेगा, किंतु जेम्स ने उनके लिए कुछ नहीं किया,जिससे वे भी उससे असंतुष्ट थे। इस प्रकार धार्मिक मतभेदों के कारण प्यूरिटन एवं कैथोलिक संसद सदस्यों ने राजा का विरोध करना प्रारंभ कर दिया, जिससे राजा और पार्लियामेंट में संघर्ष अनिवार्य हो गया।

जेम्स की आर्थिक नीति

इस संघर्ष के पीछे आर्थिक समस्या भी थी क्योंकि स्टुअर्ट राजाओं के पास धन का अभाव था और वे अवैधानिक तरीके से आर्थिक साधन जुटाना चाहते थे। जेम्स प्रथम अत्यंत अपव्ययी व्यक्ति था और मित्रों को उदारता से दान देता था। प्रशासन का व्यय भी बढ़ रहा था। जेम्स की अपव्ययता के कारण इंग्लैंड का राजकोष खाली हो गया, इसलिए उसे आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। संसद उसे धन देते समय शासन में सुधार की माँग करती थी। फलतः जेम्स ने संसद के अधिवेशन को भंग कर नवीन कर लगाकर आय में वृद्धि का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त, उसने धन लेकर अनेक व्यक्तियों को अनुचित प्रकार से ठेके और पदवियाँ बाँटी। संसद ने राजा से ऐसा न करने का अनुरोध किया, किंतु जेम्स ने संसद की कोई परवाह न की और पार्लियामेंट के विरोध की अनदेखी कर वह करों को वसूलता रहा और धन लेकर पदवियाँ बेचता रहा।

इस प्रकार जेम्स ट्यूडर काल में प्राप्त राजा के विशेषाधिकारों से लाभ उठाते हुए अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता रहा। अपने विशेषाधिकारों के द्वारा राजा कर लगा सकता था, धर्म के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता था और किसी भी संपत्ति पर अधिकार कर सकता था। संसद द्वारा राजा की इस प्रकार की नीति का विरोध करना स्वाभाविक था। अंततः जेम्स और संसद के बीच विवाद का गंभीर परिणाम उसके पुत्र चार्ल्स प्रथम को सहना पड़ा।

संसद ने प्रारंभ में यह स्पष्ट कर दिया था कि अब इन कार्यों के सुधार का समय आ गया था, जिन पर एलिजाबेथ के समय में यथोचित ध्यान नहीं दिया गया था। प्रथम अधिवेशन के समय ही संसद ने घोषणा कर दी थी कि अब उन कार्यों को सुधारने, ठीक करने तथा उचित अधिकारों को प्राप्त करने का समय आ गया था जिनकी अब तक उपेक्षा की गई थी। जेम्स का कथन था: ‘गद्दी पर बैठते समय मुझे संसद मिली और मुझे उसके सदस्यों की बात सहन करनी पड़ी।’ यद्यपि यह सत्य है कि जेम्स को गद्दी पर आसीन होते समय संसद-संबंधी संकटों का सामना करना पड़ा, किंतु जेम्स ने इस स्थिति को सुधारने के स्थान पर और भी गंभीर बना दिया। यदि जेम्स सूझबूझ और कुशलता का परिचय देता, तो संभवतः राजा एवं संसद का संघर्ष इतना गंभीर न होता और न ही इसके इतने व्यापक प्रभाव हुए होते।

जेम्सकालीन चार संसद

अपने बाईस वर्षों के शासनकाल में जेम्स ने चार बार संसद का अधिवेशन बुलाया, किंतु प्रत्येक संसद से उसका झगड़ा हुआ और अंतिम संसद के अतिरिक्त प्रथम तीन को उसने भंग कर दिया।

पहली संसद

जेम्स ने 1604 में पहली संसद बुलाई, जो 1611 तक चली, जिसने लगभग सात वर्षों तक कार्य किया और इसके अनेक अधिवेशन हुए। 1604 में संसद ने जेम्स प्रथम के समक्ष कई माँगें रखी और राजा को कामन्स सभा के अधिकारों से अवगत कराने की कोशिश की। संसद ने जेम्स प्रथम को प्रथम अधिवेशन में टनेज तथा पौंडेज का अधिकार दिया। 1606 में संसद ने कैथोलिकों के प्रति कठोर अधिनियम पारित किया।

प्रथम अधिवेशन के समय ही जेम्स प्रथम और संसद में कई संवैधानिक प्रश्नों पर विवाद हुआ। प्रथम विवाद गाडविन का कॉमंस सभा के लिए निर्वाचन था। राजा के न्यायालय ने गाडविन (ळवकूपद) नामक संसद के एक सदस्य के चुनाव को इस आधार पर रद्द कर दिया कि जेम्स ने अपनी एक घोषणा में यह कहा था कि कानून की अवज्ञा करने वाले चुनाव में भाग नहीं सकेंगे। इस पर लोकसभा ने विरोध किया और निर्णय किया कि विवादग्रस्त चुनावों का निर्णय करना उसका अधिकार है। जेम्स ने इसका विरोध किया और कहा कि लोकसभा के अधिकारों का स्रोत राजकीय घोषणाएँ हैं और उन्हें स्वयं राजा के प्रचलित नियमों के विरुद्ध नहीं समझना चाहिए। अंत में, राजा को संसद की बात स्वीकार कर लिया कि निर्वाचन संबंधी विवादों को हल करने का अधिकार संसद का था। यह घटना संसद के प्रथम अधिवेशन के समय की है।

इससे भी महत्वपूर्ण समस्या 1606 में उत्पन्न हुई। यह समस्या अर्थ-संबंधी थी। राजकीय आय का एक साधन तो राजकीय भूमि तथा सामंतवादी कर थे तथा दूसरा स्रोत आयात कर था, जिसे टनेज तथा पौंडेज (टनेज और पौंडेज) कहा जाता था। टनेज का अर्थ प्रत्येक टन मदिरा से आय और पाउंडेज का अभिप्राय बिक्री के लिए लाई गई वस्तु पर पौंड के हिसाब से कर था। सिंहासनारूढ़ होने के कुछ समय पश्चात् जेम्स ने टनेज तथा पाउंडेज कर के अतिरिक्त भी कुछ कर लगा दिये और इस प्रकार निर्यात कर में वृद्धि कर दी। ।

जान बेट नामक एक व्यापारी ने किशमिश पर लगे अतिरिक्त कर को देने में आपत्ति की और कहा कि यह वृद्धि पार्लियामेंट को स्वीकृति के बिना की गई थी, इसलिए अवैधानिक है। न्यायाधीशों ने भी राजा के पक्ष में निर्णय दिया कि बेट को यह कर देना होगा क्योंकि बंदरगाह राजा का है और राजा का अधिकार है कि वह देश के व्यापार की स्वेच्छानुसार व्यवस्था करे। इसके परिणामस्वरूप राजा की आज्ञा से अनेक अन्य वस्तुओं पर भी कर लगाये गये, जिनका संसद निरंतर विरोध करती रही। 1610 में इस आर्थिक झगड़े का निर्णय करने के उद्देश्य से राजा ने ‘महान् समझौता (ग्रेट कांट्रैक्ट) का प्रस्ताव रखा, जिसके अनुसार निश्चित धनराशि के बदले में राजा के सामंतवादी अधिकारों को लोकसभा खरीद ले और सामंतवादी कर पचास वर्षों के लिए समाप्त कर दिये जायें, किंतु यह आर्थिक समझौता कभी भी कार्यान्वित नहीं हो सका। इसलिए यह विवाद पूर्ववत् बना रहा। जेम्स इंग्लैंड और स्कॉटलैंड को संयुक्त करना चाहता था, किंतु संसद इसके लिए तैयार न हुई। इस प्रकार जेम्स और संसद के मध्य संबंधों में कटुता उत्पन्न होती गई और अंततः 1611 में जेम्स ने इस संसद को भंग कर दिया।

दूसरी संसद

जेम्स ने 1611 में प्रथम संसद को भंग करने के पश्चात् तीन वर्षों तक संसद के बिना ही कार्य किया, किंतु आर्थिक आवश्यकताओं के कारण उसे 1614 में दूसरी संसद बुलानी पड़ी। वह आर्थिक संकटों में फंसा था और धन चाहता था। जेम्स को उम्मीद थी कि द्वितीय संसद उदार होगी, किंतु इस पार्लियामेंट में भी प्यूरिटन सदस्य बहुमत में थे और राजा के विरुद्ध अधिक उग्र थे। इस संसद ने धन स्वीकार करने के पहले राजा से अपनी शिकायतों को दूर करने की माँग की और जेम्स द्वारा स्कॉटलैंड के निवासियों को दी गई सुविधाओं की निंदा की। राजा ने दो माह पश्चात् ही संसद को भंग कर दिया। इंग्लैंड के इतिहास में इस संसद को ‘बांझ संसद’ कहा जाता है, क्योंकि इस संसद के द्वारा एक भी नियम पारित नहीं किया जा सका था

तृतीय संसद

जेम्स ने आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सात वर्ष बाद 1621 में तीसरी संसद बुलाई। यूरोप में 1618 में तीसवर्षीय युद्ध प्रारंभ हो चुका था। संसद धन स्वीकार करने को तैयार थी और चाहती थी कि राजा स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करे। किंतु जेम्स इसके लिए तैयार नहीं था। अतः पार्लियामेंट ने एक विरोध-पत्र राजा को प्रस्तुत किया, जिसमें कहा गया था कि विदेश नीति तथा राजा के पुत्र के विवाह ऐसे मामलों में भी पार्लियामेंट को हस्तक्षेप का अधिकार था। तृतीय संसद ने दो अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किये। एक, राजा के मंत्रियों तथा अधिकारों पर लॉर्ड सभा के समक्ष अभियोग लगाने की प्रथा को पुनर्जीवित किया और दूसरे, भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार को स्थापित किया।

संसद ने राजा के मंत्रियों तथा पदाधिकारियों पर महाभियोग लगाने की परंपरा को पुनर्जीवित किया। लॉर्ड चांसलर फ्रांसिस, जो राजा का मंत्री लॉर्ड चांसलर तथा एक न्यायाधीश था, पर भी रिश्वत लेने का दोषारोपण किया गया। बेकन ने स्वीकार किया कि वह उपहार स्वीकार करता था, किंतु इन उपहारों से उसके निर्णय अथवा फैसलों में कोई अंतर नहीं आता था। यद्यपि बेकन के विरुद्ध रिश्वत का आरोप प्रमाणित नहीं हो सका, फिर भी उसे चांसलर पद से हटा दिया गया। इस सदमे के कारण कुछ समय बाद ही बेकन की मृत्यु हो गई। इस प्रकार दोषारोपण से संसद राजा के अत्यंत विश्वासपात्र मंत्री को अपने रास्ते से हटाने में सफल हो गई। संसद ने यह कार्य इतनी कुशलतापूर्वक किया कि जेम्स प्रथम भी हस्तक्षेप कर उसे बचा नहीं सका।

इस संसद ने भाषण की स्वतंत्रता के अधिकार को स्थापित किया। लोक सभा, स्पेन और कैथोलिकों का विरोध करती थी। इसी समय जेम्स ने अपने पुत्र चार्ल्स का विवाह स्पेन की राजकुमारी से करने का प्रयत्न किया। संसद ने इसका विरोध किया और जेम्स से निवेदन किया कि वह कैथोलिक संप्रदाय की राजकुमारी से चार्ल्स का विवाह न करे। किंतु जेम्स ने इस निवेदन को अस्वीकृत कर दिया। फलतः संसद ने दिसंबर की एक रात मोमबत्ती के प्रकाश में अपना भाषण स्वतंत्रता संबंधी प्रस्ताव पारित किया। जेम्स ने इस संसद की पुस्तिका से उन पृष्ठों को फाड़ दिया, जिन पर यह प्रस्ताव लिखे गये थे। इसने यह प्रमाणित कर दिया कि इंग्लैंड में कम से कम संसद एक स्थान ऐसा था, जहाँ एक अंग्रेज अपनी बात कह सके।’

चतुर्थ संसद

जेम्स प्रथम ने 1624 में चौथी और अंतिम संसद बुलाई। इस संसद के साथ जेम्स के संबंध अपेक्षाकृत मधुर रहे, क्योंकि चार्ल्स का विवाह स्पेन की राजकुमारी के साथ नहीं हो सका और स्पेन के साथ युद्ध भी प्रारंभ हो गया था, किंतु संसद ने जेम्स को उसकी इच्छानुसार धन न देकर सीमित धन देना ही स्वीकार किया। संसद ने धन के व्यय पर नियंत्रण रखने के लिए उसके कोषाध्यक्ष मिलिडसेक्स को हटाकर उस पर महाभियोग चलाय। इस मामले में चार्ल्स और ड्यूक ऑफ बकिंघम ने भी संसद को सहयोग दिया। चार्ल्स तथा बकिंघम द्वारा मिडिलसेक्स के विरोध का कारण यह था कि मिडिलसेक्स स्पेन से युद्ध करने का विरोधी था, जबकि राजकुमार चार्ल्स स्पेन से युद्ध चाहता था। मिडिलसेक्स पर गबन करने का आरोप प्रमाणित हुआ और जेम्स उसे बचाने में असफल रहा। चौथी संसद ने डिक्लराटरी ऐक्ट भी पारित किया, जिसके अनुसार एकाधिकार को गैर-कानूनी घोषित किया गया। 1525 में जेम्स प्रथम की मृत्यु हो गई। उसके साथ ही चतुर्थ संसद समाप्त हो गई।

इस प्रकार जेम्स प्रथम के 22 वर्षों के शासनकाल में राजा और पार्लियामेंट के मध्य निरंतर संघर्ष चलता रहा, फिर भी लोकसभा अनेक अधिकार प्राप्त करने में सफल रही। इस संघर्ष से संसद शक्तिशाली हुई और उसने कई संवैधानिक प्रश्नों पर विजय प्राप्त की। राजा के मंत्रियों और पदाधिकारियों पर महाभियोग चलाना, पार्लियामेंट के सदस्यों के निर्वाचन संबंधी विवाद, पार्लियामेंट में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कर लगाने के लिए पार्लियामेंट की स्वीकृति आदि संसद की उपलब्धियाँ थीं। यद्यपि इन विवादों के उत्पन्न करने के लिए जेम्स भी उत्तरदायी था, फिर भी उसने समझौता भी किया। वह संसद को पसंद नहीं करता था, लेकिन धन की आवश्यकता होने पर संसद का अधिवंशन बुलाता भी था। जेम्स का कहना था कि मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पूर्वजों ने ऐसी संस्था को क्यों बनने दिया होगा। जेम्स की संसद के प्रति इसी धारणा ने इस संघर्ष को गंभीर बना दिया था। जेम्स में संकटों में फंसने की प्रतिभा थी, किंतु उसमें एक निश्चित प्रकार की चतुरता भी थी, जिससे वह समस्याओं को महान विपत्ति बनने से रोक देता था। वह चट्टानों से जहाज को निकालने में तो सफल रहा, लेकिन उसके पुत्र ने जहाज को चट्टान से टकराकर नष्ट कर दिया।

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भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित क्विज-1 

भारत के मध्यकालीन इतिहास पर आधारित क्विज-1

भारत के मध्यकालीन इतिहास पर आधारित क्विज-1 

सिंधुघाटी की सभ्यता पर आधारित क्विज 

राष्ट्र गौरव पर आधारित क्विज