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इंग्लैंड का जेम्स द्वितीय (1685-1688)
स्टुअर्ट राजा चार्ल्स द्वितीय की 1685 ई. में मृत्यु हो गई। उसके कोई वैध संतान नहीं थी, इसलिए उसने अपने भाई जेम्स को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। फरवरी, 1685 ई. में जेम्स बड़ी सरलता से इंग्लैंड की राजगद्दी पर बैठ गया। यद्यपि जेम्स के कैथोलिक होने के कारण ह्विग लोगों ने 1680 ई. के बहिष्कार बिल के द्वारा उसके राज्याधिकार को समाप्त करने का प्रयत्न किया था, किंतु 1685 ई. में वह बिना किसी विरोध के राजा बन गया। उसके राज्याभिषेक के समय इंग्लैंड की जनता ने न केवल उसका स्वागत किया, बल्कि अपनी राजभक्ति का भी परिचय दिया।
किंतु जेम्स को तीन वर्ष बाद ही इंग्लैंड से भागकर फ्रांस में शरण लेनी पड़ी। दरअसल अपने तीन वर्षीय अल्प शासनकाल में जेम्स ने जितने भी कार्य किये, उनके परिणामस्वरूप इंग्लैंड में वैभवशाली क्रांति हो गई। इस क्रांति में रक्त का एक बूँद भी धरती पर नहीं गिरा. इसलिए इसे ‘गौरवशाली क्रांति’ या ‘रक्तहीन क्रांति’ कहा जाता है।
जेम्स का आरंभिक जीवन
जेम्स द्वितीय राजा चार्ल्स प्रथम और हेनरिटा मारिया की दूसरी संतान था। उनका जन्म 14 अक्टूबर 1633 ई. को लंदन के सेंट जेम्स पैलेस में हुआ था। अपने पिता के मृत्युदंड के थोड़े समय पहले ही वह हालैंड भाग गया, फिर वहाँ से फ्रांस चला गया था। 1659 ई. में उसका विवाह एन हाइड से हुआ, जिससे उसकी दो लड़कियाँ मेरी और ऐन पैदा हुईं, जो बाद में इंग्लैंड की रानी बनीं। राजतंत्र की पुनर्स्थापना के बाद जेम्स को लॉर्ड हाई एडमिरल नियुक्त किया गया था।
सिंहासनारूढ़ होते ही जेम्स द्वितीय ने संसद का अधिवेशन आमंत्रित किया। इस संसद में अधिकांश सदस्य टोरी दल के थे, जो राजा के दैवी अधिकारों तथा उसके अन्य विशेषाधिकारों के समर्थक थे और राजा से अपेक्षा करते थे कि वह कानून-निर्माण तथा अर्थव्यवस्था में संसद को महत्व देगा और अपनी गृह एवं वैदेशिक नीति में एंग्लिकन चर्च का ध्यान रखेगा। इस संसद ने जेम्स के व्यक्तिगत व्यय के लिए उदारतापूर्वक पर्याप्त धनराशि स्वीकृत की, जो चार्ल्स द्वितीय और अन्य स्टुअर्ट शासकों की आवंटित धनराशि से कहीं अधिक थी। संसद ने जेम्स को भारी कर लगाने का अधिकार भी दे दिया।
इस समय परिस्थितियाँ राजतंत्र के पक्ष में थीं। टोरी दल ह्विगों के विरूद्ध राजा का समर्थन करने को तैयार था। इस प्रकार का राजतंत्र-समर्थक वातावरण जेम्स प्रथम या चार्ल्स को नहीं मिला था। एंग्लिकन चर्च के पादरी जनता में कर्तव्य-पालन तथा राज्य को शक्तिशाली बनाने का संदेश दे रहे थे और राजा के प्रति निष्ठावान थे। स्कॉटलैंड में प्रोटेस्टेंट विद्रोह का दमन किया जा चुका था और आयरलैंड की जनता एक कैथोलिक राजा के सिंहासन पर बैठने से खुश थी। इस प्रकार, जेम्स टोरी दल के साथ सद्व्यवहार और एंग्लिकन चर्च का ध्यान रखकर अत्यंत सरलतापूर्वक शासन कर सकता था, किंतु वह ऐसा नहीं कर सका।
जेम्स का चरित्र
जेम्स द्वितीय अपने भाई चार्ल्स द्वितीय के समान योग्य एवं दूरदर्शी नहीं था। चार्ल्स द्वितीय में अपने भावों को प्रकट न करने की अद्भुत क्षमता थी। यद्यपि चार्ल्स द्वितीय भी निरंकुशतापूर्वक राज्य करना चाहता था, किंतु जब उसे अपना रहस्य प्रकट होते प्रतीत होता, वह तुरंत उसका उत्तरदायित्व अपने मंत्रियों पर डाल देता था। जेम्स में यह गुण नहीं था। जेम्स स्पष्ट वक्ता था और अपने उद्देश्यों को कभी छिपाने का प्रयत्न नहीं करता था। उसके चरित्र में अपने पिता चार्ल्स प्रथम के समान दृढ़वादिता थी। वह संकीर्ण विचारोंवाला व्यक्ति था। उसमें न तो किसी समस्या पर व्यापक रूप से विचार करने की क्षमता नहीं थी और न ही उसने कभी किसी दूसरे के विचारों को समझने का प्रयत्न किया। वह एक निष्ठावान कैथोलिक था और उसकी यही धार्मिक कट्टरता उसके पतन का कारण बन गई।
जेम्स की अदूरदर्शिता
यद्यपि जेम्स द्वितीय वीर और साहसी था और चार्ल्स द्वितीय के शासनकाल में ड्यूक और सेनापति रह चुका था, किंतु उसमें राजनीतिक दूरदर्शिता और समय के अनुसार कार्य करने की क्षमता नहीं थी। जेम्स के कैथोलिक होने के बावजूद गद्दी पर बैठते समय इंग्लैंड की जनता ने जेम्स का स्वागत किया था। लोगों को विश्वास था कि जेम्स अपने कैथोलिक विचारों को देश पर नहीं थोपेगा। यही भावना चर्च में थी और चर्च ने उसे अपना प्रमुख स्वीकार लिया। किंतु जेम्स ने जनता की इस उदारता और सहानुभूति का गलत अर्थ लगाया। उसने समझा कि जनता ने उससे भयभीत होकर राजा के दैवी अधिकार को स्वीकार कर लिया था। उसे भ्रम था कि वह जनता को शक्ति के द्वारा भयभीत कर स्वेच्छाचारिता से शासन कर सकता है। उसे इतिहास से सबक लेना चाहिए था और यह नहीं भूलना चाहिए था कि जनता ने उसके पिता चार्ल्स प्रथम के विरुद्ध किस प्रकार अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था और उसे मृत्युदंड दिया था। जेम्स के लिए यह आवश्यक था कि वह जनता की भावनाओं को समझता और चार्ल्स द्वितीय की तरह शासन करता, किंतु उसने जनता की इच्छा के विरुद्ध कार्य किया और जनता की शक्ति को समझने में वह असफल रहा। जेम्स के विषय में चार्ल्स द्वितीय ने सही कहा था कि, ‘जब मेरी मृत्यु हो जायेगी और मैं नहीं रहूँगा, तब मैं नहीं जानता मेरा भाई क्या करेगा? जब वह राजा बनेगा तो मुझे भय है कि कहीं उसे सुदूर यात्रा पर जाने के लिए विवश न कर दिया जाए।’
जेम्स द्वितीय के शासनकाल की प्रमुख घटनाएँ
मन्मथ का विद्रोह
इंग्लैंड की गद्दी पर बैठने के बाद जेम्स द्वितीय ने मन्मथ और ड्यूक ऑफ आरगाइल के विद्रोहों का दमन किया। मन्मथ चार्ल्स द्वितीय का अवैध पुत्र था। ह्विग दल इंग्लैंड में जेम्स द्वितीय के राजगद्दी पर आसीन होने का विरोधी था। ह्विग नेताओं ने चार्ल्स द्वितीय के शासनकाल में मन्मथ को उसका उत्तराधिकारी घोषित किये जाने का षड्यंत्र किया था, किंतु चार्ल्स इसके लिए तैयार नहीं था और इसी कारण उसने बहिष्कार बिल पर हस्ताक्षर नहीं किये थे। इसी प्रश्न पर उसने तीनों लघु संसद भंग कर दी थी। ह्विग नेताओं ने चार्ल्स की हत्या करने के लिए राई हाउस षड्यंत्र रचा, किंतु यह षड्यंत्र असफल हो गया, जिसके कारण अनेक नेताओं को दंडित किया गया और कुछ को इंग्लैंड छोड़कर भागना पड़ा था।
जेम्स के राजगद्दी पर आसीन होने पर ह्विग नेताओं ने चार्ल्स के अवैध पुत्र मन्मथ को विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। मन्मथ ने स्कॉटलैंड से इंग्लैंड आकर स्वयं को चार्ल्स द्वितीय का पुत्र घोषित करते हुए स्वयं को इंग्लैंड का वास्तविक शासक घोषित किया। उसने एक सेना भी एकत्र कर ली, जिसमें अधिकांश कृषक और मजदूर थे।
मन्मथ के विद्रोह को दबाने के लिए जेम्स द्वितीय ने सेना भेजी। दोनों सेनाओं के बीच ‘सेजमूर’ नामक स्थान पर युद्ध हुआ। यद्यपि मन्मथ की सेना ने अत्यंत वीरता का परिचय दिया, किंतु अशिक्षित होने एवं अस्त्र-शस्त्र की कमी के कारण वे पराजित हुए और मन्मथ को बंदी बना लिया गया। बाद में मन्मथ को मृत्युदंड दे दिया गया।
जेम्स ने स्कॉटलैंड एवं आयरलैंड में कैथोलिक अधिकारी नियुक्त किये, जो वहाँ के प्रोटेस्टेंटों पर अत्याचार करते थे। फलतः स्कॉटलैंड में अर्ल ऑफ अरगिल ने भी विद्रोह कर दिया, जिसका कठोरतापूर्वक दमन कर दिया गया।
जेम्स ने विद्रोहियों को दंडित करने के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किया। इस विशेष न्यायालय का न्यायाधीश जेफ्रीज अत्यंत क्रूर और निर्दयी था। उसने विद्रोहियों के प्रति अत्यंत कठोर नीति अपनाई और उनके साथ अमानुषिक व्यवहार किया। उसने क्रूरतापूर्वक तीन सौ लोगों को मृत्युदंड दिया और उनके शव सड़क के किनारे वृक्षों पर लटका दिये गये। यही नहीं, आठ सौ से अधिक लोग दास बनाकर वेस्टइंडीज भेज दिये गये। इस कठोर नीति के कारण इस न्यायालय को ‘खूनी न्यायालय’ कहा गया। जेम्स द्वितीय की इस कठोर नीति से इंग्लैंड की जनता आतंकित हो गई और उससे घृणा करने लगी।
कोर्ट ऑफ हाई कमीशन
जेम्स ने गिरजाघरों पर पूर्ण रूप से राजकीय श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए 1685 ई. में कोर्ट ऑफ हाई कमीशन को पुनः स्थापित किया। इसमें कैथोलिक धर्म की अवहेलना करने वालों पर मुकदमा चलाकर उनको दंडित किया जाता था। गिरजाघरों में जो पादरी राजा की आज्ञा का पालन नहीं करते थे, उन्हें पदच्युत् कर दिया जाता था। इसके अलावा, उसने कैथोलिक धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए लंदन में एक नवीन कैथोलिक कलीसिया स्थापित किया।
जेम्स और संसद के बीच संघर्ष
जेम्स ने संसद से भी झगड़ा मोल ले लिया। संसद की दूसरी बैठक में जेम्स ने दो माँगें रखी। एक, उसे विद्रोहों का दमन करने के लिए स्थायी सेना रखने की अनुमति दी जाए और दूसरे, सेना के व्यय के लिए सात लाख पौंड स्वीकृत किये जायें। विद्रोहों का बहाना बनाकर जेम्स ने अपनी सेना तैयार कर ली थी और अनेक कैथोलिक अधिकारियों को नियुक्त कर लिया था। यद्यपि इस सेना का निर्माण मन्मथ के विद्रोह के दमन के लिए किया गया था, किंतु जेम्स ने इस सेना को स्थायी रूप से रख लिया था। इंग्लैंड की जनता को लगा कि इंग्लैंड में पुनः सैनिक शासन की स्थापना हो सकती है और जनता इंग्लैंड में पुनः सैनिक शासन नहीं चाहती थी क्योंकि क्रामवेल के सैनिक शासन से वह तंग आ चुकी थी। संसद इस सेना के लिए धन देने के लिए तैयार थी, किंतु वह चाहती थी कि जेम्स इस सेना के कैथोलिक अधिकारियों को हटा दे, किंतु जेम्स इसके लिए तैयार नहीं था। फलतः जेम्स ने संसद को भंग कर दिया और फिर कभी नहीं बुलाया।
टेस्ट नियम की अवहेलना
इंग्लैंड में चार्ल्स द्वितीय के समय संसद ने टेस्ट अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम के अनुसार किसी भी कैथोलिक को राज्य के किसी पद पर नियुक्त नहीं किया जा सकता था। केवल एंग्लिकन चर्च के अनुयायी ही सरकारी कर्मचारी नियुक्त हो सकते थे।
जेम्स द्वितीय कैथोलिक था और कैथोलिकों को अधिक से अधिक सुविधा प्रदान करने के लिए कटिबद्ध था। टेस्ट अधिनियम के कारण वह अपनी इच्छा की पूर्ति नहीं कर पा रहा था। अंततः जेम्स ने अपने राजा के विशेष अधिकारों का प्रयोग करना प्रारंभ किया। इसी समय गोडेन बनाम हेल्स के मुकदमे में एक न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि कानून राजा के द्वारा बनाये जाते हैं, इसलिए राजा अपने विशेषाधिकारों के द्वारा इन कानूनों के विरुद्ध कार्य कर सकता है। इसके आधार पर जेम्स ने ‘राजा के निलंबन’ और ‘विमोचन’ अधिकार का प्रयोग करना प्रारंभ किया क्योंकि इस अधिकार के द्वारा राजा किसी भी अधिनियम को स्थगित कर सकता था और किसी भी व्यक्ति को दंड से मुक्त कर सकता था। जेम्स ने इन अधिकारों के द्वारा टेस्ट अधिनियम को स्थगित कर दिया और मंत्री, न्यायाधीश, नगर निगम के सदस्य और सेना में उच्च पदों पर कैथोलिकों की नियुक्तियाँ की। उसने कैंब्रिज विश्वविद्यालय के कुलपति को पदच्युत् कर दिया क्योंकि उसने एक कैथोलिक को उपाधि देने से इनकार कर दिया था। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में कैथोलिकों ने धर्म-प्रचार और प्रार्थना करना आरंभ कर दिया। जेम्स ने क्राइस्ट चर्च कॉलेज और मैक्डालेन कॉलेज में कैथोलिक शिक्षकों की नियुक्तियाँ की। इंग्लैंड की संसद ने जेम्स के इन कार्यों का विरोध किया क्योंकि संसद द्वारा पारित नियमों की अवहेलना करना देश के संविधान का अपमान था। किंतु जेम्स ने संसद के विरोध की कोई परवाह नहीं की।
फ्रांस के साथ मैत्री-संबंध
इस समय यूरोप में फ्रांस के शासक का प्रभाव छाया हुआ था। चार्ल्स द्वितीय की तरह जेम्स द्वितीय भी लुई चौदहवें से प्रभावित था। वह फ्रांस से आर्थिक एवं सैनिक सहायता प्राप्त कर इंग्लैंड में अपने निरकुश को स्थापित करना चाहता था। लुई चौदहवाँ कट्टर कैथोलिक था और फ्रांस में प्रोटेस्टेंटों पर अत्याचार करता था। इंग्लैंड की जनता लुई चौदहवें से घृणा करती थी और चाहती थी कि जेम्स फ्रांस से मित्रता न रखे, किंतु जेम्स लुई चौदहवें के पिछलग्गू बना रहा।
धार्मिक अनुग्रह की घोषणाएँ
एलिजाबेथ के शासनकाल तक इंग्लैंड मुख्यतः प्रोटेस्टेंट (एंग्लिकन) धर्म को अपना चुका था, किंतु स्टुअर्ट शासक इंग्लैंड को एक कैथोलिक देश बनाना चाहते थे। ऐसे में जब चार्ल्स द्वितीय (1660-1625 ई.) ने चुपके से कैथोलिक धर्म अपना लिया, तो इसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी।
जेम्स द्वितीय ने इतिहास से कोई सबक नहीं सीखा। उसने कैथोलिकों को अधिकाधिक सुविधाएँ देने के लिए 1687 ई. में धार्मिक अनुग्रह की पहली घोषणा की, जिसके द्वारा कैथोलिक और डिसेंटर कठोर कानूनों से मुक्त हो गये और उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता मिल गई। देखने में तो यह धार्मिक सहिष्णुता की नीति लगती थी, किंतु वास्तव में इसका उद्देश्य कैथोलिकों को अधिकार प्रदान करना था। इंग्लैंड की जनता ने इस घोषणा का विरोध किया क्योंकि यदि राजा अपने विशोषाधिकारों से किसी कानून को निलंबित कर सकता है तो फिर किसी कानून की सुरक्षा की क्या गारंटी होगी? इसके अलावा, जनता कैथोलिकों को किसी भी प्रकार के अधिकार नहीं देना चाहती थी। जेम्स की इस घोषणा से टोरी और ह्विग, दोनों दल राजा के विरूद्ध हो गये, किंतु जेम्स ने विरोध की कोई परवाह नहीं की और अपनी नीति पर चलता रहा। उसने जेसुइट पादरी पेट्रे सहित चार अन्य कैथोलिकों को प्रीवी कौंसिल में नियुक्त कर दिया।
जेम्स द्वितीय की नीतियों से सामंत और ग्रामीण क्षेत्रों के जमींदार रुष्ट हो गये, जिन्होंने गृहयुद्ध में उसके पिता चार्ल्स द्वितीय का साथ दिया था। जेम्स को स्थिति की गंभीरता का ज्ञान नहीं था कि उसके समर्थक भी उसके विरोधी होते जा रहे थे। उसने 1688 ई. में धर्म-अनुग्रह की दूसरी घोषणा प्रकाशित की, जिससे धार्मिक पक्षपात किये बिना सभी को राजकीय पदों पर नियुक्त किये जाने का मार्ग प्रशस्त हो गया। जेम्स द्वितीय ने आदेश दिया कि उसकी धार्मिक अनुग्रह की दूसरी घोषणा पादरियों द्वारा कलीसिया में प्रार्थना के अवसर पर प्रत्येक रविवार को पढ़ी जाये। यद्यपि राज्यादेशों को प्रार्थना सभाओं में सुनाये जाने की परंपरा थी, किंतु पादरी वर्ग का कहना था कि यह आदेश धार्मिक हस्तक्षेप था और अवैधानिक था। अंत में, कैंटरबरी के आर्चबिशप सेनक्राफ्ट ने अपने छः साथियों से परामर्श कर जेम्स को एक आवेदन पत्र दिया, जिसमें राजा से निवेदन किया गया था कि वह अपनी आज्ञा को निरस्त कर दे और पुराने नियमों को भंग करने की नीति को त्याग दें। इस पत्र के अंत में यह भी गया था कि हम राजा की आज्ञा की अवहेलना नहीं कर रहे हैं, बल्कि राजा ही देश के नियमों का उल्लंघन कर रहा है। जेम्स ने पादरियों के इस कार्य को अपमान तथा विद्रोह समझा और उन्हें राजद्रोह के आरोप में लंदन के टॉवर में कैद कर लिया। किंतु न्यायाधीशों ने इन पादरियों को निर्दोष घोषित कर मुक्त कर दिया। इंग्लैंड की जनता ने पादरियों की मुक्ति पर प्रसन्नता व्यक्त की और जनता के इस उल्लास में सेना ने भी भाग लिया।
जेम्स द्वितीय के पुत्र का जन्म
जेम्स की पहली पत्नी एन हाइड से से दो पुत्रियाँ थीं-मेरी तथा ऐन, और दोनों ही प्रोटेस्टेंट थीं। मेरी का विवाह हॉलैंड के राजकुमार विलियम से हुआ था, जो एक प्रोटेस्टेंट था। इंग्लैंड की जनता को विश्वास था कि जेम्स द्वितीय की मृत्यु के बाद मेरी ही इंग्लैंड की शासिका बनेगी। इसी आशा और विश्वास के साथ जनता जेम्स के अत्याचारी शासन को सहन कर रही थी। किंतु जिस दिन सात पादरियों को टावर में बंदी बनाया गया था, उसके दो दिन बाद 10 जून, 1588 ई. को जेम्स द्वितीय की दूसरी पत्नी मेरी ऑफ मोडेना ने एक पुत्र को जन्म दिया। इस पुत्र-जन्म के समाचार से सारे देश में भय और आशंका फैल गई कि भविष्य में इंग्लैंड में कैथोलिक राजाओं का शासन स्थापित हो जायेगा। इस संभावना मात्र से जनता में घोर असंतोष फैल गया।
जिस दिन सात पादरियों को मुक्त किया गया, उसी रात अर्थात् 30 जून 1688 ई. को सात प्रमुख पादरियों, टोरियों और ह्विगों ने लंदन में एक सभा का आयोजन किया। इस सभा ने एकमत से निर्णय लिया कि जेम्स द्वितीय के दामाद विलियम ऑफ ऑरेंज को, जो हॉलैंड का राजा था, इंग्लैंड के राजसिंहासन के लिए आमंत्रित किया जाए। इस निर्णय के अनुसार एडमिरल हार्वर्ड भेष बदल कर विलियम को निमंत्रित करने हॉलैंड गया। विलियम ने तुरंत निमंत्रण को स्वीकार कर लिया और इंग्लैंड आने के लिए राजी हो गया।
लुई चौदहवें ने जेम्स को इस खतरे के विरूद्ध चेतावनी दी। अतः जेम्स ने अपनी नीति ने परिवर्तन करते हुए धार्मिक न्यायालय को भंग कर दिया। जिन गिरजाघरों, विश्वविद्यालयों, न्यायालयों, नगर निगमों तथा सेना के अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया था, उन्हें पुनः उनके पदों पर बहाल कर दिया। कुछ अन्य प्रोटेस्टेंट भी उच्च पदों पर नियुक्त किये गये, किंतु अब बहुत देर हो चुकी थी और जेम्स जनता का विश्वास खो चुका था।
विलियम ऑफ ऑरेंज पंद्रह हजार सेना के साथ 5 नवंबर 1688 ई. को ट्रोबे के बंदरगाह पर उतरा। अभी तक इंग्लैंड में जेम्स की स्थिति बहुत अच्छी थी। जेम्स के अधीन चालीस हजार सेना थी और नौसेना भी उसके प्रति वफादार थी। जेम्स की तुलना में विलियम की सेना बहुत छोटी थी और विभिन्न राष्ट्रों के सैनिकों के कारण उसकी सेना संगठित भी नहीं थी। इस समय यदि जेम्स एक स्वतंत्र संसद के निर्वाचन और उसकी इच्छानुसार शासन करने का आश्वासन देता तो संभव है कि क्रांति नहीं होती क्योंकि इंग्लैंड की प्रतिक्रियावादी जनता विलियम की अपेक्षा जेम्स को ही समर्थन देती, किंतु जेम्स ने ऐसा नहीं किया।
विलियम अपनी सेना के साथ लंदन की ओर बढ़ा। जेम्स भी अपनी सेना के साथ विलियम का सामना करने आगे बढ़ा, किंतु रास्ते में उसके साथी उसका साथ छोड़कर विलियम के साथ चले गये। यहाँ तक कि उसके प्रमुख और विश्वासपात्र सेनापति जॉन चर्चिल और उसकी छोटी पुत्री ऐन ने भी उसका साथ छोड़ दिया। अपने सैनिकों और सरदारों से निराश होकर जेम्स ने कहा: ‘ईश्वर दया कर मेरे अपने ही बच्चे मेरा साथ छोड़ चुके हैं।’ अंततः जेम्स 23 दिसंबर 1688 ई. को राजमुहर को टेम्स नदी में फेंककर भेष बदलकर फ्रांस भाग गया, जहाँ उसकी पत्नी और पुत्र पहले ही पहुँच चुके थे। ह्विग और टोरी नेताओं ने जेम्स को बंदी न बनाकर भाग जाने दिया क्योंकि वे चार्ल्स प्रथम की फाँसी की घटना की पुनरावृत्ति नहीं चाहते थे।
रक्तहीन क्रांति
फरवरी 1689 ई. में, संसद ने घोषणा की कि जेम्स के पलायन से इंग्लैंड का सिंहासन खाली हो चुका था, इसलिए विलियम और मेरी को संयुक्त रूप से इंग्लैंड के राजा का ताज पहनाया गया। इस शांतिपूर्ण सत्ता-परिवर्तन को इंग्लैंड के इतिहास में ‘रक्तहीन क्रांति’ या ‘गौरवशाली क्राति’ के नाम से जाना जाता है।
इस क्रांति का महत्वपूर्ण पक्ष यह था कि सत्ता-परिवर्तन का यह प्रयास इंग्लैंड की संसद द्वारा किया गया था, जिसे दोनों राजनीतिक दलों- ह्विग और टोरी का समर्थन प्राप्त था। इस क्रांति के समर्थन में पूरा देश एकजुट था। इस प्रकार एक महान राजा अपनी मजबूत सेना और दैवी अधिकारों के बावजूद सत्ता से बेदखल हो गया।
जेम्स ने 1690 ई. में फ्रांस के सहयोग से इंग्लैंड की गद्दी पुनः प्राप्त करने के लिए आयरलैंड में विद्रोह किया। किंतु जुलाई 1690 ई. में बॉयन की लड़ाई में विलियम ने उसे पराजित कर दिया। अंततः 16 सितंबर 1701 ई. में सेंट जर्मन में ब्रेन हैमरेज से जेम्स की मृत्यु हो गई। इस प्रकार जेम्स इंग्लैंड, आयरलैंड और स्कॉटलैंड का अंतिम रोमन कैथोलिक राजा सिद्ध हुआ।
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