राजेंद्र चोल तृतीय (Rajendra Chola III, 1246-1279 AD)

राजेंद्रचोल तृतीय और चोल सत्ता का अवसान (Rajendra Chola III and the End of Chola Power)

राजेंद्रचोल तृतीय (1252-1279 ई.)

राजराज तृतीय के उपरांत 1252 ई. में राजेंद्र तृतीय चोल राजसिंहासन पर बैठा। संभवतः राजराज तृतीय ने 1246 ई. में ही उसको अपना युवराज और उत्तराधिकारी मनोनीत किया था। किंतु इन दोनों शासकों का पारस्परिक संबंध निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। कुछ इतिहासकार राजेंद्र तृतीय को राजराज तृतीय का पुत्र मानते हैं, किंतु लगता है कि वह राजराज तृतीय का भाई और प्रतिद्वंद्वी था। राजेंद्र तृतीय के लेखों से लगता है कि राजराज तृतीय और राजेंद्र तृतीय के बीच गृहयुद्ध हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप चोल साम्राज्य का विभाजन हो गया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि संभवतः राजेंद्र तृतीय ने राजराज तृतीय का वध कर दिया था। जो भी हो, इतना निश्चित है कि युवराज नियुक्त होने के बाद राजेंद्र तृतीय की शक्ति एवं प्रभाव में पर्याप्त अभिवृद्धि हो गई थी।

नीलकंठ शास्त्री जैसे कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि राजराज के शासन का अंत 1246 ई. में हुआ था। किंतु अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि राजराज तृतीय ने 1252 ई. तक शासन किया था। राजराज के शिलालेख उसके शासन के 34वें वर्ष के बाद बहुत कम संख्या में मिले हैं और मुख्यतः उत्तरी अर्काट और नेल्लोर जिलों तक ही सीमित हैं। इसके विपरीत, इस काल में न केवल युवराज राजेंद्र तृतीय के अभिलेखों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, बल्कि वे चोल साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्रों से भी मिले हैं, जो राजराज तृतीय की दुर्बलता और राजेंद्र तृतीय की बढ़ती शक्ति एवं उसके प्रभाव को स्पष्टतः प्रमाणित करते हैं।

राजेंद्र तृतीय की उपलब्धियाँ

राजेंद्र तृतीय अपने पूर्ववर्ती चोल नरेश राजराज तृतीय से अधिक शक्तिशाली और महत्त्वाकांक्षी था। युवराज काल में उसने संभवतः पांड्य राज्य को जीत लिया था और शासक बनने के बाद चोल राजवंश की गरिमा को पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए उसने होयसल एवं काकतीय राज्यों को पराजित करके कुछ समय के लिए उन्हें चोल राज्य में सम्मिलित कर लिया।

राजेंद्र चोल तृतीय (Rajendra Chola III, 1246-1279 AD)
1146 ई. में चोल साम्राज्य
पांड्यों के विरूद्ध आरंभिक सफलता

राजेंद्र तृतीय के लेखों से पता चलता है कि उसने पांड्य राज्य पर आक्रमण कर दो पांड्य राजकुमारों को पराजित किया, जिनमें से एक मारवर्मन् सुंदरपांड्य द्वितीय रहा होगा, किंतु दूसरे की निश्चित पहचान नहीं है। राजेंद्र तृतीय की एक प्रशस्ति में कहा गया है कि उसने चोलों के अपमान का प्रतिशोध लिया और अपनी शक्ति से राजराज तृतीय को तीन वर्ष तक दो राजमुकुट धारण करने के योग्य बना दिया। संभवतः इनमें से एक राजमुकुट चोलों का और दूसरा पांड्यों का रहा होगा।

होयसलों से शत्रुता

इस समय होयसल तमिल देश की राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका में थे। होयसल चोलों के स्वामिभक्त सामंत थे और उन्होंने कई बार संकट के समय चोलों की सहायता की थी। किंतु राजेंद्र तृतीय ने नेल्लोर, कडप्पा और चिंगलेपुट के शक्तिशाली तेलुगु चोड शासक गंडगोपाल के सहयोग से होयसलों पर आक्रमण कर सोमेश्वर को बुरी तरह पराजित किया। इस प्रकार गंडगोपाल ने कर्नाट के राजा सोमेश्वर को पराजित कर चोल शासक को राजसिंहासन पर प्रतिष्ठित किया और ‘चोलस्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की। तिरुचिरापल्ली से प्राप्त राजेंद्र तृतीय के शासनकाल के 7वें वर्ष के अभिलेखों में भी उसे (राजेंद्र तृतीय को) अपने मामा होयसल सोमेश्वर के विरुद्ध विजय प्राप्त करने का श्रेय दिया गया है।

होयसल राज्य पर चोलों की विजय के फलस्वरूप राजेंद्र तृतीय अपने पड़ोसी शत्रु-राज्यों, प्रतिद्वंदियों एवं विद्रोही शासकों से चारों ओर से घिर गया। अब होयसलों ने अपनी रणनीति को बदल दी और चोलों के विरुद्ध शक्तिशाली पांड्य शासक सुंदरपांड्य की सहायता करने लगे।

चोल सत्ता का अवसान

काकतीय शासक गणपति ने 1250 ई. में चोलों पर आक्रमण करके काँची पर अधिकार कर लिया था। राजेंद्र के शासन के 15वें वर्ष के एक अभिलेख में काकतीयों के विरुद्ध उसकी सफलता का संकेत मिलता है। किंतु चोलों की इन सैन्य-सफलताओं का कोई स्थायी परिणाम नहीं निकला। जटावर्मन् सुंदरपांड्य प्रथम (1251-72 ई.) ने होयसलों की सहायता से चोल राज्य पर आक्रमण किया। पांड्यों एवं होयसलों के संयुक्त सामरिक अभियान में अंततः 1258 ई. के लगभग चोल नरेश राजेंद्र तृतीय पराजित हुआ और उसे विवश होकर पांड्यों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। श्रीरंगम् से प्राप्त पांड्य शासक के एक अभिलेख में सुंदरपांड्य को ‘चोल प्रजातिरूपी पर्वत के लिए वज्र’ कहा गया है।

पांड्य अब दक्षिण की एक महान शक्ति बन चुके थे। जटावर्मन् सुंदरपांड्य प्रथम ने काडव सामंत कोप्परेजिंग को हराकर अपने अधीन किया, उत्तर की ओर आगे बढ़कर तेलुगु सामंत विजय गंडगोपाल की हत्या करके काँची पर अधिकार किया और काकतीय शासक गणपति को हराने के बाद वहाँ अपना वीराभिषेक (वीरों का अभिषेक) करवाया। इस बीच, उसके सेनापति वीरपांड्य ने सिंहल के राजा को पराजित कर द्वीप को अपने अधीन कर लिया।  इसके बाद, जटावर्मन् सुंदरपांड्य प्रथम ने होयसलों को कावेरी डेल्टा से खदेड़ कर उनके हस्तक्षेप को समाप्त कर दिया और बाद में 1262 ई. में श्रीरंगम् के युद्ध में होयसलों के राजा वीर सोमेश्वर की हत्या कर दी, जो तमिल क्षेत्र में चोलों का सहयोगी था।

राजेंद्र तृतीय के किसी युद्ध में मारे जाने की कोई सूचना नहीं है। इससे लगता है कि वह संभवतः 1279 ई. तक पांड्यों की अधीनता में शासन करता रहा। उसकी अंतिम ज्ञात तिथि 1279 ई. है। संभवतः कुलशेखर पांडय ने 1279 ई. के आसपास होयसलों को कन्ननूर कुप्पम में पराजित कर अंतिम चोल सम्राट राजेंद्र तृतीय को भी अंतिम रूप से पराजित किया, जिससे चोल साम्राज्य का अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो गया था।

इस प्रकार अपनी सामरिक शक्ति एवं लोकोपकारी शासन-तंत्र से भरपूर महान् चोल साम्राज्य अपनी आंतरिक दुर्बलताओं और बाह्य राजनीतिक समीकरणों तथा नवोदित संयुक्त शक्तियों के सामने अधिक समय तक संघर्ष कर पाने की स्थिति में नहीं था और अंततः चोल-शासित तमिलनाडु प्रदेश पर शक्तिशाली पांड्यों की प्रभुसत्ता स्थापित हो गई और चोल साम्राज्य पांड्य साम्राज्य में विलीन हो गया।

16वीं शताब्दी (1520 ई.) के आरंभ में वीरशेखर चोल नामक एक चोल प्रमुख का उल्लेख मिलता है, जिसने पांड्यों को पराजित कर मदुरा पर कब्जा कर लिया। इस समय पांड्य विजयनगर साम्राज्य के सामंत थे और पांड्यों के अनुरोध पर कृष्णदेवराय ने अपने सेनापति नगमा नायक को मदुरा भेजा। किंतु नगमा ने चोलों को पराजित कर मदुरा के सिंहासन पर स्वयं अधिकार कर लिया। संभवतः चोल वंश की एक विद्रोही शाखा फिलीपींस में 16वीं शताब्दी तक शासन करती रही थी।

इन्हें भी पढ़ सकते हैं-

भारत में प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ : पुरापाषाण काल 

अठारहवीं शताब्दी में भारत

बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा 

विजयनगर साम्राज्य का उत्थान और पतन 

वियेना कांग्रेस

प्रथम विश्वयुद्ध, 1914-1918 ई. 

पेरिस शांति-सम्मेलन और वर्साय की संधि 

द्वितीय विश्वयुद्ध : कारण, प्रारंभ, विस्तार और परिणाम 

भारत में राष्ट्रवाद का उदय

यूरोप में पुनर्जागरण पर बहुविकल्पीय प्रश्न-1 

प्राचीन भारतीय इतिहास पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न-1 

जैन धर्म पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न-1 

बौद्ध धर्म पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न-1

आधुनिक भारत और राष्ट्रीय आंदोलन पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न-1

भारत के प्राचीन इतिहास पर आधारित क्विज-1 

भारत के मध्यकालीन इतिहास पर आधारित क्विज-1

सिंधुघाटी की सभ्यता पर आधारित क्विज 

error: Content is protected !!
Scroll to Top