उत्तमचोल (973-985 ई.)
उत्तमचोल (मधुरांतक) परांतक द्वितीय का चचेरा भाई और शेंबियन महादेवी तथा गंडरादित्य का पुत्र था। उसने 973 ई. से 985 ई. तक शासन किया। गंडरादित्य की मृत्यु के समय मधुरांतक (उत्तमचोल) संभवतः अल्पायु था, इसलिए गंडरादित्य के बाद चोल सिंहासन पर उसका छोटा भाई अरिंजय बैठा था। अरिंजय के अल्पकालीन शासन के बाद उसका पुत्र परांतक द्वितीय (सुंदर चोल) चोल राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। इस प्रकार मधुरांतक अल्पायु के कारण दो बार राजसत्ता से वंचित रह गया।
परांतक द्वितीय ने पांड्यों के विरूद्ध चेवूर के युद्ध में अपने पुत्र आदित्य करिकाल की वीरता से प्रभावित होकर उसे अपना युवराज और सह-शासक घोषित किया। इस प्रकार आदित्य करिकाल को चोल सिंहासन का उत्तराधिकारी भी माना जाने लगा था। किंतु परांतक द्वितीय के शासनकाल के अंतिम दिनों में (971 ई.) संभवतः पांड्यों और कुछ चोल अधिकारियों के षड्यंत्र के फलस्वरूप आदित्य करिकाल की हत्या हो गई। आदित्य करिकाल की मृत्यु के बाद परांतक द्वितीय ने मधुरांतक (उत्तमचोल) को युवराज घोषित किया। अंत में, परांतक द्वितीय की मृत्यु के बाद उसके दूसरे पुत्र अरुमोलिवर्मन की सहमति से मधुरांतक उत्तमचोल के नाम से चोल राजगद्दी पर बैठा। तिरुवलंगाडु लेखों से पता चलता है कि आदित्य द्वितीय की मृत्यु के बाद जनता उसके भाई अरुमोलिवर्मन् (परांतक द्वितीय का दूसरा पुत्र) को चोल राजगद्दी पर बैठाना चाहती थी, किंतु राजकुमार अरुमोलिवर्मन ने उत्तमचोल की वरिष्ठता और संभवतः गृहयुद्ध की आशंका से अपने चाचा उत्तमचोल से समझौता कर लिया था। इस प्रकार उत्तमचोल ने 973 ई. में चोल शासन की बागडोर संभाली।
उत्तमचोल के शासनकाल की किसी विशेष उपलब्धि का ज्ञान नहीं है। आदित्य परकेशरी और पार्थिवेंद्रवर्मा के शिलालेखों के प्राप्ति-स्थलों, जो उत्तर मेरुर, काँचीपुरम्, तक्कोलम् तथा तिरुवन्नमालै में मिले हैं, से ज्ञात होता है कि उस समय दक्षिणी अर्काट, उत्तरी अर्काट और चिंग्लेपुत्त जिलों पर चोल सत्ता पुनः स्थापित थी। इन क्षेत्रों से प्राप्त लेखों में प्रायः धार्मिक कृत्यों एवं बिक्री तथा सिंचाई योजनाओं का वर्णन मिलता है। इससे स्पष्ट है कि इस क्षेत्र में चोल प्रशासन अच्छी तरह से प्रतिष्ठित था।
उत्तम चोल को संभवतः कल्याणी के चालुक्य शासक तैलप द्वितीय से संघर्ष करना पड़ा था। तैलप द्वितीय के सोगल लेख (980 ई.) तथा निलगुड लेख (982 ई.) में उसे ‘चोलों के लिए आतंक’ कहा गया है। इस चोल की पहचान उत्तमचोल से की जाती है। किंतु इस संघर्ष में तैलप द्वितीय को सफलता मिली और कल्याणी के चालुक्य राज्य का दक्षिण में विस्तार हुआ।
उत्तमचोल के कई सिक्के पांड्य देश और ईलम (सिंहल) से पाये गये हैं, जिससे लगता है कि चोल सेना ने पांड्यों और उनके सहयोगी सिंहलों को पराजित किया था। उत्तमचोल के स्वर्ण सिक्कों से पता चलता है कि उसने चोल साम्राज्य की सुरक्षा तथा सुव्यवस्था में अधिक समय एवं शक्ति लगाया था, जिसके कारण चोल राज्य आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था। उसने सेना में सैनिकों के स्तर पर ही नहीं, गुणवत्ता और संगठन के स्तर पर भी सुधार किया था। उत्तमचोल एक सहिष्णु शासक था क्योंकि शिवभक्त होने के बावजूद उसने कई मंदिरों को धन, मवेशी, भेड़ आदि दान दिया था।
चोल शिलालेखों में उत्तमचोल के कई अधिकारियों के नाम मिलते हैं। उसका एक महत्त्वपूर्ण सेनापति पलुवेट्टारियार मारवन कंडानार था, जिसने सुंदर चोल के अधीन भी काम किया था। उसके पुत्र कुमारन मारवन ने भी उत्तमचोल की सेवा की थी। उत्तमचोल का एक अधिकारी अरंवेलन पुलुवूरनक्कन पेरुंदरम् था, जिसे उत्तमचोल ने ‘विक्रमशोल शारायर’ की उपाधि दी थी। उसने विजयमंगलम् के प्राचीन मंदिर का निर्माण करवाया था। उत्तमचोल का पुत्र मधुरांतक गंडरादित्य भी एक उच्च अधिकारी था।
अभिलेखों में उत्तमचोल की कई रानियों के नाम मिलते हैं। उसकी अग्रमहिषी ओरट्टणन सोरब्बैयार थी, जिसे त्रिभुवन महादेवियार के नाम से भी संबोधित किया गया है। अन्य रानियों में कडुवेत्तिगल नंदीपोत्तैरैय्यर (संभवतः पल्लव राजकुमारी) और सिद्धवदवन सुत्तियार थीं। उसकी माँ शेंबियन महादेवी ने अनेक मंदिरों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ संभवतः कुर्रलम के चोलेश्वर मंदिर का निर्माण भी करवाया था। उत्तमचोल ने 985 ई. तक शासन किया था। उसके बाद परांतक द्वितीय का छोटा पुत्र और आदित्य करिकाल का छोटा भाई अरुमोलिवर्मन राजराज प्रथम के नाम से राजवंश के राजसिंहासन पर बैठा।
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