कांग्रेस समाजवादी पार्टी (Congress Socialist Party)

कांग्रेस में समाजवादी विचारधारा और राष्ट्रीय आंदोलन भारत में कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा के सर्वप्रमुख […]

कांग्रेस में समाजवादी विचारधारा और राष्ट्रीय आंदोलन

भारत में कांग्रेस के समाजवादी विचारधारा के सर्वप्रमुख प्रेरणा-प्रतीक जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस थे। जवाहरलाल नेहरू ने 1927 में उपनिवेशवादी दमन और साम्राज्यवाद के विरोध में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में ब्रुसेल्स में भाग लिया था। उसी वर्ष नेहरू ने सोवियत रूस की यात्रा की और सोवियत समाज से काफी प्रभावित हुए।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी (Congress Socialist Party)
जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस

1927 के बाद पूरे देश में युवा संगठन स्थापित हुए और युवाओं के सैकड़ों अधिवेशन आयोजित किए गए। जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस ने पूरे देश का दौरा किया। 1928 में जवाहरलाल नेहरू ने ‘अखिल बंगाल छात्र-सम्मेलन’ को संबोधित किया। अपने दौरे में नेहरू ने साम्राज्यवाद, पूँजीवाद और जमींदारी प्रथा की आलोचना की तथा समाजवादी विचारधारा को अपनाने की प्रेरणा दी।

भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे अतिवादी क्रांतिकारी भी समाजवाद की ओर झुके। 1929 की वैश्विक आर्थिक मंदी, पूँजीवादी देशों की दुर्दशा और सोवियत संघ के आर्थिक संकट से मुक्ति के कारण समाजवादी विचारधारा और अधिक लोकप्रिय हुई। समाजवाद के प्रतीक जवाहरलाल नेहरू 1929 में ऐतिहासिक लाहौर कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। 1936 और 1937 में पुनः उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। नेहरू ने अपने दौरों, पुस्तकों, लेखों और भाषणों के माध्यम से समाजवादी विचारों का प्रचार-प्रसार किया। सुभाषचंद्र बोस ने भी समाज के आर्थिक ढाँचे को समाजवादी रूप देने के लिए नेहरू का साथ दिया।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी (कांसपा)

जयप्रकाश नारायण, फूलन प्रसाद वर्मा और कुछ अन्य नेताओं ने मिलकर जुलाई 1931 में बिहार में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। 1933 में पंजाब में भी एक समाजवादी पार्टी का गठन किया गया। 1934 में जेल में बंद कुछ युवा कांग्रेसी नेताओं ने परस्पर विचार-विमर्श के बाद समाजवादी पार्टी बनाने का प्रस्ताव रखा। आचार्य नरेंद्रदेव, जयप्रकाश नारायण, मीनू मसानी और अशोक मेहता जैसे नेताओं ने 22-23 अक्टूबर 1934 को बंबई में कांग्रेस समाजवादी पार्टी (कांसपा) की स्थापना की।

कांसपा के सभी सदस्य मानते थे कि कांग्रेस राष्ट्रीय संघर्ष का नेतृत्व करने वाली आधारभूत संस्था है। कांग्रेस समाजवादी पार्टी का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस का अभिन्न अंग बने रहकर समाजवादी ढंग से स्वराज्य की प्राप्ति और उसके बाद समाजवाद की स्थापना करना था। जयप्रकाश नारायण ने समाजवाद ही क्यों? और आचार्य नरेंद्रदेव ने समाजवाद और राष्ट्रीय आंदोलन जैसी पुस्तकों की रचना की।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी (Congress Socialist Party)
जयप्रकाश नारायण

कांसपा ने विचारधारात्मक आधार पर कांग्रेस को समाजवादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। इसने एक पंद्रह-सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत देश के आर्थिक विकास की प्रक्रिया को राज्य द्वारा नियोजित और नियंत्रित करने की घोषणा की। 1936 में मेरठ सम्मेलन में कांसपा ने निर्णय लिया कि भारत के सभी वामपंथी दलों को एकजुट हो जाना चाहिए। पी.सी. जोशी के नेतृत्व में बड़ी संख्या में साम्यवादी कांसपा में शामिल हो गए। साम्यवादी दल और उसके अनुषंगी संगठन 1934 में अवैध घोषित किए जा चुके थे। कम्युनिस्टों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर रहकर बड़ी लगन और परिश्रम से कार्य किया। कांग्रेस की जिला और प्रांतीय समितियों में लगभग 20 साम्यवादी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने। 1936 से 1942 के दौरान कम्युनिस्टों ने केरल, आंध्र और पंजाब में शक्तिशाली किसान आंदोलनों का नेतृत्व किया।

हालाँकि, साम्यवादियों और कांसपा का गठबंधन अधिक समय तक नहीं चल सका। 1938 में मीनू मसानी ने कम्युनिस्ट षड्यंत्र नामक एक दस्तावेज प्रकाशित किया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कांसपा ने साम्यवादियों को संगठन से बाहर कर दिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कांसपा के नेताओं, जैसे जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, और अरुणा आसफ अली ने भूमिगत रहकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जनता को प्रोत्साहित किया। कांसपा 1947 तक राष्ट्रीय आंदोलन और कांग्रेस को सशक्त बनाने में निरंतर योगदान देती रही।

कांसपा का पुनर्गठन और चुनौतियाँ

1947 में सरदार वल्लभभाई पटेल ने कांग्रेस में दोहरी सदस्यता का विरोध किया। 1948 में कांसपा ने अपने नाम से ‘कांग्रेस’ शब्द हटा लिया और एक नई समाजवादी पार्टी की स्थापना की। कांसपा का गठन इसलिए हुआ था ताकि कांग्रेस के अंदर रहकर उसे मजबूत किया जाए और उसकी नीतियों में प्रगतिशील परिवर्तन और संशोधन किया जाए। किंतु कांग्रेस में दक्षिणपंथी नेताओं का वर्चस्व रहा, जिसके कारण कांसपा अपने प्रगतिशील उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही। दक्षिणपंथी कांग्रेसी समाजवादियों को ‘अंतरराष्ट्रीयवादी’ कहते थे और उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में ‘अविश्वसनीय’ मानते थे।

समाजवादी गांधीजी की समझौतावादी नीति के विरोधी थे। गांधीजी घोर अहिंसावादी थे, जबकि समाजवादी आवश्यकतानुसार सशस्त्र आंदोलन के पक्षधर थे। समाजवादी जनता की आर्थिक माँगों के आधार पर संगठन स्थापित कर संघर्ष करना चाहते थे, जबकि गांधीजी को किसी भी प्रकार का वर्ग-विभाजन स्वीकार्य नहीं था। समाजवादी लोकतांत्रिक औद्योगिक राष्ट्र का निर्माण करना चाहते थे, जहाँ आय का समान वितरण हो। गांधीजी के अनुसार कांग्रेस में समाजवादी गुट का निर्माण स्वागतयोग्य था, किंतु उनके कार्यक्रम स्वीकार्य नहीं थे। उनके विचार में समाजवादियों द्वारा प्रचारित वर्ग-संघर्ष का सिद्धांत हिंसा पर आधारित था, जो कांग्रेस के मूल सिद्धांतों के सर्वथा विपरीत था।

कांग्रेस समाजवादी पार्टी (Congress Socialist Party)
जयप्रकाश नारायण अरुणा आसफ अली औरआचार्य नरेंद्रदेव

नेहरू के विषय में सुभाषचंद्र बोस ने लिखा है : “वे दिमाग से तो वामपंथियों के साथ थे, किंतु हृदय से महात्मा गांधी के समर्थक थे।” नेहरू और बोस भी अधिक समय तक एक साथ कार्य नहीं कर सके, और 1939 के बाद बोस और समाजवादी अलग हो गए। राष्ट्रीय आंदोलन में कांसपा ने कांग्रेस को और अधिक शक्तिशाली बनाया और उसे जनसाधारण के निकट लाया। कांसपा ने लोकप्रिय समाजवादी नारों के माध्यम से आम जनमानस को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसने किसानों और श्रमिकों को संगठित कर राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदार बनाया। यदि कांसपा की स्थापना न हुई होती और कांग्रेस के मंच से प्रगतिशील नारे न दिए गए होते, तो संभवतः कांग्रेस एकमात्र प्रमुख राजनीतिक दल न बन पाती।

अन्य वामपंथी दल

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अप्रैल 1939 में ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना की। 1947 में फॉरवर्ड ब्लॉक ने शक्ति हस्तांतरण को ‘झूठा शक्ति-हस्तांतरण’ करार दिया। एम.एन. राय ने 1940 में एक शक्तिशाली अतिवादी गुट ‘रैडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी’ (लोक दल) बनाया, जो ब्रिटिश सरकार का समर्थक था।

1940 में ‘क्रांतिकारी समाजवादी दल’ का गठन किया गया। गांधी-बोस विवाद में इस दल ने बोस का समर्थन किया। इसने शक्ति-हस्तांतरण को कांग्रेस के ‘विश्वासघाती बुर्जुआ नेताओं’ का साम्राज्यवाद से ‘पीछे के द्वार से समझौता’ बताया। एन. दत्त मजूमदार ने 1939 में ‘भारतीय बोल्शेविक दल’ की स्थापना की। सौम्येंद्रनाथ टैगोर ने 1942 में ‘क्रांतिकारी साम्यवादी दल’ का गठन किया। अजीत राय और इंद्रसेन ने 1941 में ‘लेनिनिस्ट दल’ स्थापित किया।

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