परमार वंश के शक्तिशाली शासक वाक्पति द्वितीय (मुंजराज, 974-995 ई.) सीयक के दत्तक पुत्र थे, जिनका नाम घास में मिलने के कारण ‘मुंज’ पड़ा। उन्होंने कोंकण, गुजरात, मेवाड़, हूणमंडल और चाहमान क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की, साथ ही कलचुरियों और लाट के चालुक्य सामंतों को पराजित किया। चालुक्य नरेश तैलप द्वितीय के विरूद्ध छह बार उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन गोदावरी पार के आक्रमण में वह बंदी बना लिए गए और 995 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। कवि और कला संरक्षक के रूप में मुंज ने पद्मगुप्त, धनंजय जैसे विद्वानों को संरक्षण दिया, मुंजसागर झील और मुंजपुर नगर बसाया। उन्होंने धारा को सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया। उनकी उपाधियाँ उत्पलराज, श्रीवल्लभ उसके गौरव के प्रमाण हैं।
परमार शासक सीयक के दो पुत्र थे- मुंज (दत्तक) और सिंधुराज (जैविक)। सीयक की मृत्यु के बाद उनके दत्तक पुत्र मुंज परमार वंश की गद्दी पर बैठे। वाक्पति को वाक्पति द्वितीय, मुंजराज और उत्पलराज के नाम से भी जाना जाता है।
वाक्पति द्वितीय (मुंज) की सैन्य उपलब्धियाँ
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Toggleवाक्पति द्वितीय (मुंजराज) एक शक्तिशाली शासक थे, जिन्होंने अपने सैनिक अभियानों के द्वारा परमार साम्राज्य का विस्तार कोंकण, गुजरात और मेवाड़ तक किया। उनकी विजयों की सूची उदयपुर प्रशस्ति में मिलती है।
कलचुरियों पर विजय
उदयपुर प्रशस्ति के अनुसार मुंज ने कलचुरि शासक युवराज द्वितीय को हराकर त्रिपुरी (तेवर) को लूटा। लेकिन वह त्रिपुरी को अधिक समय तक अपने अधिकार में नहीं रख सके और उन्हें कलचुरि नरेश से संधिकर उकी राजधानी वापस करनी पड़ी।
हूणों पर सफलता
एक लेख के अनुसार मुंज ने हूणमंडल क्षेत्र में वणिका ग्राम को ब्राह्मणों को दान दिया, जो हूण क्षेत्र पर उसकी विजय का प्रमाण है। यह क्षेत्र तोरमाण और मिहिरकुल के विशाल साम्राज्य का अंतिम अवशेष था।
मेवाड़ के गुहिलों पर विजय
मुंज ने मेवाड़ के गुहिलवंशी शासक शक्तिकुमार को हराकर उसकी राजधानी आघाट (अहर, उदयपुर) को लूटा। राष्ट्रकूटवंशी धवल के बीजापुर लेख के अनुसार गुहिल नरेश ने भागकर उसके दरबार में शरण ली। इस युद्ध में गुर्जर क्षेत्र के किसी शासक ने शक्तिकुमार की मदद की, लेकिन वह भी मुंज द्वारा पराजित हुआ। इस पराजित नरेश की पहचान दशरथ शर्मा और एच.सी. राय चालुक्य नरेश मूलराज से करते हैं, जबकि मजूमदार जैसे इतिहासकारों के अनुसार वह कन्नौज के प्रतिहारों का कोई सामंत था।
चाहमानों पर विजय
परमार नरेश वाक्पति मुंज का शाकंभरी और नड्डुल के चाहमानों से भी युद्ध हुआ। उन्होंने नड्डुल के चाहमान शासक बलिराज को हराकर आबू पर्वत तथा जोधपुर के दक्षिणी भाग पर अधिकार कर लिया।
लाट राज्य पर आक्रमण
पश्चिम में मुंजराज ने लाट राज्य पर आक्रमण किया। इस समय लाट प्रदेश पर कल्याणी के चालुक्यों का अधिकार था, जहाँ तैलप द्वितीय का सामंत वारप्प और उसका पुत्र गोगीराज शासन कर रहे थे। मुंज ने वारप्प को पराजित किया, जिसके कारण चालुक्य नरेश तैलप से उसका संघर्ष आरंभ हो गया।
चालुक्य राज्य पर आक्रमण और मृत्यु
वाक्पति द्वितीय की सबसे प्रमुख सैन्य उपलब्धि चालुक्य शासक तैलप द्वितीय के विरूद्ध अभियान थी। प्रबंधचिंतामणि के अनुसार वाक्पति मुंज ने तैलप की सेनाओं को छह बार पराजित किया। लेकिन बाद में उसने मंत्री रुद्रादित्य के परामर्श की उपेक्षा करते हुए गोदावरी नदी पार कर स्वयं सेना लेकर चालुक्य राज्य पर में घुस गए। फलतः वह चालुक्य सेना द्वारा बंदी बना लिए गए और बंदीगृह में ही 995 ई. में उनकी मृत्यु हो गई। तैलप ने परमार राज्य के नर्मदा के दक्षिणी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस घटना का उल्लेख प्रबंधचिंतामणि के अलावा कैथोम और गडग जैसे चालुक्य लेखों में भी मिलता है।
वाक्पति मुंज की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
वाक्पति द्वितीय (मुंज) स्वयं उच्चकोटि के कवि और विद्या-कला के संरक्षक थे। उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों से मालवा में विद्वानों को आमंत्रित किया, जिनमें पद्मगुप्त, धनंजय, धनिक, हलायुध आदि थे। पद्मगुप्त ने नवसाहसांकचरित, धनंजय ने दशरूपक, धनिक ने दशरूपावलोक और हलायुध ने अभिधानरत्नमाला तथा मृतसंजीवनी की रचना की। पद्मगुप्त ‘परिमल’ ने मुंज की विद्वता की प्रशंसा में लिखा कि विक्रमादित्य के चले जाने और सातवाहन के अस्त हो जाने पर सरस्वती को कवियों के मित्र मुंज के दरबार में ही आश्रय मिला।
एक महान निर्माता के रूप में वाक्पति मुंज ने उज्जैन, धर्मपुरी, माहेष्वर आदि में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया। उन्होंने अपनी राजधानी धारा (धार) में मुंजसागर झील और गुजरात में मुंजपुर नामक नगर बसाया।
मुंज ने उत्पलराज, श्रीवल्लभ, पृथ्वीवल्लभ और अमोघवर्ष जैसी प्रसिद्ध उपाधियाँ धारण की। वह प्रबंधचिंतामणि की अनेक कथाओं के नायक हैं।
इस प्रकार वाक्पति मुंज एक शक्तिशाली शासक, कवि और उदार संरक्षक थे। उन्होंने धार को एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित किया। लेकिन चालुक्य शासक तैलप द्वितीय के हाथों उनकी पराजय और मृत्यु ने परमार के साम्राज्य की सीमाओं को सीमित कर दिया।