देवी-देवताओं का मंडल
बेबीलोनियन धर्म और आध्यात्मिकता प्राचीन मेसोपोटामिया की सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना का एक अभिन्न हिस्सा थी, जो सुमेरियन सभ्यता की समृद्ध विरासत से गहराई से प्रभावित थी। जब पश्चिमी सेमाइट्स (एमोराइट्स) बेबीलोनिया में आए, तब सुमेरियन संस्कृति लगभग 1000 वर्ष पुरानी थी और इसकी धार्मिक परंपराएँ और देवी-देवता बेबीलोनियन विश्वास प्रणाली में गहराई से समाहित हो गए। बेबीलोनियनों ने सुमेरियन देवताओं को अपनाया, किंतु उन्हें अपने सामाजिक और राजनीतिक ढ़ाँचे के अनुरूप ढाला, विशेष रूप से बेल-मार्दुक को सर्वोच्च देवता के रूप में स्थापित करके। यह धार्मिक मंडल न केवल आध्यात्मिक जीवन को निर्देशित करता था, बल्कि सामाजिक व्यवस्था, प्रशासन और आर्थिक गतिविधियों को भी प्रभावित करता था। हम्मुराबी की विधि-संहिता (लगभग 1750 ईसा पूर्व) में धार्मिक प्रथाओं और पुरोहित वर्ग की भूमिका को विनियमित करने वाले नियम थे, जो मंदिरों को आर्थिक और सामाजिक केंद्र बनाते थे।
प्रमुख देवी-देवता
बेबीलोनियन धर्म बहुदेववादी था, जिसमें सैकड़ों देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी, जिनमें से कई सुमेरियन परंपराओं से ग्रहण किए गए थे। इन देवताओं का स्वरूप मानवीय था, और प्रत्येक का विशिष्ट कार्यक्षेत्र जैसे प्रकृति, युद्ध, प्रजनन या सृष्टि से संबंधित था। प्रमुख देवी-देवताओं का विवरण निम्नलिखित है :
बेल-मार्दुक: शुरू में बेबीलोन शहर का नगर-देवता, मार्दुक बाद में बेबीलोनिया का राष्ट्रीय और सर्वोच्च देवता बन गया। हम्मुराबी के शासनकाल में उसकी स्थिति को विशेष रूप से ऊँचा किया गया, जिसने सुमेरियन देवता एनलिल को पीछे छोड़ दिया। बेबीलोनियन सृष्टि महाकाव्य एनुमा एलिश में मार्दुक की विश्वोत्पत्ति और तियामत (अराजकता की देवी) पर विजय की कहानी वर्णित है, जिसमें उसे 50 नामों से संबोधित किया गया, जो उसकी सर्वोच्चता और बहुमुखी शक्तियों को दर्शाते हैं। मार्दुक का मंदिर, ए-सग-इला और उसका जिगुरात, एतेमेनांकी (बेबल का मीनार) बेबीलोन के धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र थे। उनकी पत्नी सर्पेनिटम प्रजनन और मातृत्व की देवी और उसका पुत्र नेबु लेखन और बुद्धि के देवता के रूप में पूजे जाते थे। मार्दुक की सर्वोच्चता ने बेबीलोन को धार्मिक और राजनीतिक एकता का प्रतीक बना दिया।
शमश: सूर्य और प्रकाश का देवता शमश को न्याय और सत्य का प्रतीक माना जाता था। हम्मुराबी की विधि-संहिता के पाषाण-स्तंभ पर शमश को हम्मुराबी को कानून प्रदान करते हुए चित्रित किया गया है, जो उसकी दैवीय प्रेरणा का प्रतीक है। उसका मंदिर सिप्पर शहर में था।
ईश्तर: प्रेम, प्रजनन और युद्ध की देवी ईश्तर मातृशक्ति का प्रतीक थी। उसका प्रतीक अष्टकोणीय तारा था, जो उसकी शक्ति और प्रभाव का द्योतक था। ईश्तर की पूजा उरुक तथा अन्य शहरों में प्रचलित थी और वह बेबीलोनियन समाज में स्त्री शक्ति और यौन स्वतंत्रता से जुड़ी थी।
सिन: चंद्रमा का देवता सिन का मंदिर उर और हार्रन में था। वह समय और चंद्र चक्रों का नियामक माना जाता था।
तामुज: वनस्पति और नवजीवन का देवता, तामुज पतझड़ में मृत्यु और बसंत में पुनर्जनन का प्रतीक था। उसकी मृत्यु और पुनर्जनन की कहानी बेबीलोनियन अनुष्ठानों में महत्त्वपूर्ण थी और उसकी पूजा प्रजनन और कृषि से जुड़ी थी।
अन्य देवता: सुमेरियन परंपरा से प्राप्त एनलिल (हवा और तूफान), एनकी (बुद्धि और जल), अनु (आकाश), नर्गल (महामारी और मृत्यु), अदद (विद्युत और तूफान) और निनुरता (युद्ध) जैसे देवता भी पूजे जाते थे। प्रत्येक देवता का विशिष्ट क्षेत्र था और उनकी पूजा स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर की जाती थी।
इन देवताओं की उपासना में मंदिर केंद्र बिंदु थे, जहाँ पुरोहित वर्ग द्वारा आयोजित अनुष्ठान होते थे। भेंट के रूप में भोजन, मधु, घृत, तैल, दुग्ध, लवण, मक्खन, मत्स्य और शाक चढ़ाए जाते थे। दैनिक और मासिक अनुष्ठान नियमित रूप से आयोजित होते थे, जैसे अकितु उत्सव, जो नववर्ष के अवसर पर मार्दुक की सर्वोच्चता का उत्सव था। पुरोहित वर्ग समाज में उच्च स्थान रखता था और पूँजीपति, भूस्वामी और दासों-श्रमिकों का नियंत्रण करता था। मंदिर आर्थिक केंद्र भी थे, जो व्यापार, कृषि और प्रशासन को संचालित करते थे।
आध्यात्मिकता, अभिचार और परलोक
बेबीलोनियन धर्म में आध्यात्मिकता और नैतिकता की तुलना में भौतिक और व्यावहारिक पहलू अधिक प्रभावी थे। उपासना का आधार भय, स्वार्थ और सामाजिक-आर्थिक समृद्धि था, जिसमें कृषि की उर्वरता, व्यापार की सफलता और व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए प्रार्थनाएँ की जाती थीं। प्रायश्चित भी भौतिक रूप में था, जैसे भेंट चढ़ाना या अनुष्ठान करना। भूत-प्रेतों में गहरा विश्वास था और नर्गल जैसे दानवों को प्रेत उत्पीड़न का कारण माना जाता था। इन बाधाओं से बचने के लिए ताबीज, मूर्तियाँ, पत्थर की मालाएँ और रंगीन धागों का उपयोग किया जाता था। मंत्र और शकुन विद्या भी प्रचलित थी, जिसमें पुरोहित विशेषज्ञ की भूमिका निभाते थे।
ज्योतिष और शकुन: बेबीलोनियन ज्योतिष प्राचीन विश्व में अग्रणी था। ग्रहों, नक्षत्रों और चंद्र-सौर चक्रों की गतिविधियों का अध्ययन कर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं। जन्म, मृत्यु, नदियों का प्रवाह, स्वप्न और दैनिक व्यवहार से शकुन निकाले जाते थे। यकृत अध्ययन (हेपाटोस्कोपी) विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण था, जिसमें पशुओं के यकृत की संरचना का विश्लेषण कर दैवीय संदेशों को समझा जाता था। ये प्रथाएँ राजकीय निर्णयों, युद्ध और व्यक्तिगत जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करती थीं।
अभिचार और अनुष्ठान: दैवीय रौद्र (देवताओं का क्रोध) और दानवों से बचाव के लिए अभिचार (जादू-टोना) और अनुष्ठान किए जाते थे। पुरोहित इन अनुष्ठानों के विशेषज्ञ थे, जो मंत्रों, तावीजों और बलिदानों के माध्यम से बुरी शक्तियों को दूर करते थे, जैसे यदि किसी को प्रेत उत्पीड़न का संदेह होता था, तो पुरोहित विशेष अनुष्ठान कर ताबीज प्रदान करते थे।
परलोक विश्वास: बेबीलोनियनों का परलोक में विश्वास सीमित और निराशावादी था। अमरत्व या पुनर्जन्म की अवधारणा का अभाव था। पाताल (कुर या अराल्लु) को एक अंधकारमय और भयानक स्थान माना जाता था, जहाँ मृत आत्माएँ भटकती थीं। गिल्गमेश महाकाव्य में मृत्यु के बाद कीड़े द्वारा शरीर खाए जाने का वर्णन है, जो परलोक की निराशाजनक छवि प्रस्तुत करता है। मृतक के लिए परिवार द्वारा भोजन और जल की भेंट चढ़ाया जाता था, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले। मृतक संस्कार में शव को पेटिका में दफनाया जाता था या दाह-संस्कार के बाद भस्म को मिट्टी के घड़े में रखा जाता था।
धार्मिक और सामाजिक प्रभाव
बेबीलोनियन धर्म ने समाज के हर पहलू को प्रभावित किया। मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र थे, बल्कि आर्थिक, शैक्षिक और प्रशासनिक गतिविधियों के केंद्र भी थे। पुरोहित वर्ग समाज में उच्च स्थान रखता था और मंदिरों के पास विशाल भूमि, दास और श्रमिक थे। एनुमा एलिश जैसे महाकाव्यों ने मार्दुक की सर्वोच्चता को स्थापित कर बेबीलोन की राजनीतिक और धार्मिक एकता को मजबूत किया। धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों, जैसे अकितु (नववर्ष उत्सव) ने सामाजिक एकजुटता को बढ़ाया। ज्योतिष और शकुन विद्या ने बेबीलोनियन विज्ञान को प्रभावित किया, जिसने बाद में यूनानी और रोमन परंपराओं को प्रेरित किया। परलोक के निराशावादी विश्वास ने जीवन को महत्त्व देने और वर्तमान में समृद्धि की खोज पर जोर दिया।
इस प्रकार बेबीलोनियन देवी-देवताओं का मंडल और उनकी उपासना न केवल धार्मिक विश्वासों को दर्शाती थी, बल्कि समाज की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना को भी मजबूत करती थी। यह धार्मिक ढ़ाँचा प्राचीन विश्व में बेबीलोनिया की सांस्कृतिक विशिष्टता का प्रतीक था, जिसने बाद की सभ्यताओं पर गहरा प्रभाव छोड़ा।