नेपोलियन युग
19वीं शताब्दी के प्रारंभिक 15 वर्ष विश्व इतिहास में ‘नेपोलियन युग’ के नाम से प्रसिद्ध हैं, जब फ्रांस की क्रांतिकारी आग ने पूरे यूरोप को झुलसा दिया और एक साधारण कोर्सिकाई सैनिक ने स्वयं को यूरोप का सम्राट घोषित कर दिया। फ्रांसीसी क्रांति (1789) की धधकती ज्वाला ने जहाँ एक ओर राजतंत्र की जड़ें काटकर समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के सिद्धांत स्थापित किए, वहीं दूसरी ओर अराजकता और रक्तपात का सैलाब भी लाया, जिसके मलबे पर नेपोलियन बोनापार्ट का उदय हुआ। 1799 में ब्रुमेर के तख्तापलट के माध्यम से वह प्रथम कौंसल बन गए और 1804 में स्वयं को सम्राट घोषित कर नेपोलियन प्रथम के रूप में ताज पहन लिया। नेपोलियन की तलवार ने ऑस्ट्रिया, प्रशा, रूस और इंग्लैंड जैसी महाशक्तियों को घुटनों पर ला दिया और कोड नेपोलियन जैसे कानूनों ने समानता व बंधुत्व की क्रांतिकारी भावना को नई जान दी।
यद्यपि नेपोलियन एक निरंकुश तानाशाह था, जिसने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का दमन किया, किंतु उसने क्रांति की मूल भावनाओं- समानता और बंधुत्व का व्यापक प्रसार किया, जिससे यूरोप के सामंती ढाँचे हिलने लगे। उनकी सेनाएँ, जिन्हें ‘ग्रैंड आर्मी’ कहा जाता था, न केवल युद्धक्षेत्र में विजयी रहीं, बल्कि कानूनी सुधारों, प्रशासनिक एकीकरण और राष्ट्रीय गौरव की भावना के माध्यम से यूरोप को नया रूप भी दिया। लेकिन नेपोलियन सूर्य की तरह चमक कर जल्दी ही अस्त हो गया। वाटरलू (1815) की पराजय के बाद उन्हें निर्वासित कर दिया गया और यूरोप में पुरानी व्यवस्था की बहाली हो गई। फिर भी, नेपोलियन युग का प्रभाव अमिट रहा, इसने राष्ट्रवाद की ज्वाला प्रज्वलित की, आधुनिक कानून की नींव रखी और यह सिद्ध कर दिया कि एक व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा इतिहास की धारा बदल सकती है। वास्तव में, नेपोलियन एक क्रांतिकारी योद्धा, साम्राज्य निर्माता और एक युग का प्रतीक था।

नेपोलियन बोनापार्ट का प्रारंभिक जीवन
नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म कोर्सिका और फ्रांस के एकीकरण के अगले वर्ष 15 अगस्त 1769 को कोर्सिका द्वीप के अजैसियो नगर में हुआ। उनके पिता कार्लो बोनापार्ट एक वकील थे, जिन्होंने मारिया लेटिशिया रमोलिनो नामक उग्र स्वभाव की महिला से विवाह किया, जिनसे नेपोलियन का जन्म हुआ था।
ब्रीन की सैनिक अकादमी में 1779 से 1784 तक सैनिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, नेपोलियन ने 1784 में तोपखाने से संबंधित विषयों का अध्ययन करने के लिए पेरिस के एक कॉलेज में प्रवेश लिया। इसके बाद वह फ्रांसीसी सेना के तोपखाने में उप-लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्त हुए। उन्हें ढाई शिलिंग प्रतिदिन का वेतन मिलता था, जिससे वह अपने सात भाई-बहनों का भरण-पोषण करते थे।
कोर्सिका के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण उनकी नौकरी छूट गई। 1792 में नेपोलियन पेरिस में ‘जैकोबिन दल’ के सदस्य बने और फ्रांस में क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार शुरू किया। जैकोबिन दल में शामिल होने के बाद उन्हें उनकी नौकरी पुनः मिल गई। नेपोलियन के उदय तक फ्रांसीसी क्रांति पूर्ण अराजकता में बदल चुकी थी। जैकोबिन और जिरोंदिस्त दलों की प्रतिद्वंद्विता और वैमनस्य के परिणामस्वरूप फ्रांस में ‘आतंक का शासन’ चला, जिसमें एक-एक करके सभी क्रांतिकारी, यहाँ तक कि स्वयं रॉब्सपियर भी मारे गए।
नेपोलियन बोनापार्ट का उत्थान
नेपोलियन ने अपने सैनिक जीवन की शुरुआत एक साधारण सैनिक के रूप में की थी। अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में उन्होंने 16 प्रमुख लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें से अधिकांश में उन्हें विजय प्राप्त हुई, कुछ लड़ाइयाँ अनिर्णायक रहीं और अंतिम दिनों में लड़ी गई लड़ाइयों में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
तूलों के बंदरगाह की सुरक्षा
28 अगस्त 1793 को अंग्रेजी जहाजी बेड़े ने फ्रांस पर आक्रमण कर तूलों बंदरगाह पर अधिकार कर लिया था। सैनिक के रूप में नेपोलियन ने तूलों बंदरगाह पर आक्रमण करके अंग्रेजी सेना को खदेड़ दिया। यह उनके जीवन की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी, जिसके लिए उन्हें ब्रिगेडियर जनरल का पद प्राप्त हुआ।
राष्ट्रीय सभा की रक्षा
इसके बाद 5 अक्टूबर 1795 को नेपोलियन को दूसरी सफलता तब मिली, जब प्रजातंत्रवादियों की उत्तेजित भीड़ ने राष्ट्रीय सभा को घेर लिया था। डायरेक्टरी द्वारा विशेष रूप से नियुक्त नेपोलियन ने 40 तोपों की सहायता से मात्र दो घंटे में विद्रोहियों को खदेड़ दिया और कुशलतापूर्वक ‘नेशनल कन्वेंशन’ की रक्षा की। इस उपलब्धि ने पूरे फ्रांस का ध्यान उनकी ओर आकर्षित किया। 9 मार्च 1796 को नेपोलियन ने जोसेफिन नामक एक उच्चवर्गीय विधवा से विवाह किया। जोसेफिन के निःसंतान रहने के कारण नेपोलियन ने बाद में ऑस्ट्रिया के सम्राट की पुत्री मैरी लुईस से दूसरा विवाह किया।
नेपोलियन का इटली अभियान
26 अक्टूबर 1795 को राष्ट्रीय सभा का पतन हो गया और डायरेक्टरी का शासन प्रारंभ हुआ। डायरेक्टरी के आदेश पर नेपोलियन ने 2 मार्च 1796 को इटली के सफल अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने 28 अप्रैल 1796 को सार्डिनिया को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया, जिसके फलस्वरूप नीस और सवॉय पर फ्रांस का अधिकार हो गया।

10 मई 1796 को नेपोलियन ने मिलान पर आक्रमण कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया और कई स्थानों पर ऑस्ट्रिया की सेना को पराजित किया। उन्होंने मोडेना, रेजियो, बोलोन्या और फेरारा को मिलाकर एक गणतंत्र की स्थापना की। इसके बाद नेपोलियन ने अपनी शक्ति के बल पर पोप को फ्रांस की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।
ऑस्ट्रिया के विरुद्ध अभियान
नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया की ओर प्रस्थान करते हुए वेनिस पर विजय प्राप्त की और ल्योबेन पर भी अधिकार कर लिया। उन्होंने ऑस्ट्रिया के समक्ष प्रस्ताव रखा कि यदि वह लोम्बार्डी पर फ्रांस का अधिकार स्वीकार कर ले, तो युद्ध समाप्त कर दिया जाएगा। अंततः ऑस्ट्रिया ने नेपोलियन के प्रस्ताव को स्वीकार किया और 17 अक्टूबर 1797 को ‘कैम्पो फोर्मियो की संधि’ की। इस संधि के बाद नेपोलियन 5 दिसंबर 1797 को ‘राष्ट्रीय नायक’ के रूप में पेरिस लौटा।
मिस्र का असफल अभियान
इस समय फ्रांस का एकमात्र प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन रह गया था, और नेपोलियन ने ब्रिटिश साम्राज्य को पराजित करने की योजना बनाई, जिसे डायरेक्टरी ने तुरंत स्वीकार कर लिया। वैसे भी, नेपोलियन की इटली और ऑस्ट्रिया में मिली सफलता से डायरेक्टरी के सदस्य भयभीत हो गए थे और उसे फ्रांस से दूर रखना चाहते थे।
पिरामिडों का युद्ध
नेपोलियन ने ब्रिटिश साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए 19 मई 1798 को 35 हजार प्रशिक्षित सैनिकों के साथ मिस्र अभियान पर प्रस्थान किया। नेपोलियन और मिस्री सेनाओं के बीच 21 जुलाई 1798 को ‘पिरामिडों का युद्ध’ हुआ। नेपोलियन ने काहिरा पर अधिकार बनाए रखने के लिए स्वयं को ‘मुसलमान’ घोषित किया और कुरान के प्रति श्रद्धा प्रकट की।
नील नदी का युद्ध
अभी नेपोलियन काहिरा में ही था कि ब्रिटिश नौसेना के भूमध्यसागरीय कमांडर नेल्सन ने उसका पीछा करते हुए सिकंदरिया पहुँच गया। नेपोलियन और नेल्सन की सेना के बीच ‘अबू बकर की खाड़ी’ में नील नदी का युद्ध हुआ, जिसमें फ्रांसीसी सेना तितर-बितर हो गई। नेल्सन की सफलता से ब्रिटेन को फ्रांस के विरुद्ध एक दूसरा गठबंधन बनाने का अवसर मिला और नेपोलियन द्वारा पराजित यूरोपीय राष्ट्र फ्रांस के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने लगे।
नील नदी के युद्ध में अपनी सेना के बिखर जाने और फ्रांस के विरुद्ध दूसरा गठबंधन बनने के कारण नेपोलियन को गुप्त रूप से फ्रांस वापस लौटना पड़ा। उनके मिस्र अभियान की असफलता के बावजूद फ्रांस की जनता ने उनका स्वागत किया और उन्हें ‘फ्रांस का रक्षक’ कहा।
डायरेक्टरी के शासन का अंत
फ्रांस में अक्टूबर 1799 तक डायरेक्टरी का शासन अपने कुकृत्यों के कारण बदनाम हो चुका था। नेपोलियन ने इस स्थिति का लाभ उठाकर 9 नवंबर 1799 को डायरेक्टरी के शासन का अंत कर दिया। उन्होंने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए 1799 में एक नया संविधान बनवाया, जिसे क्रांतिकाल का चौथा संविधान या क्रांतिकाल के आठवें वर्ष का संविधान कहा जाता है। इस संविधान के द्वारा सीनेट ने कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ तीन निर्वाचित कौंसलों- नेपोलियन, कैम्बेसेरेस, और लेब्रनकृको सौंप दीं। कौंसलों की कार्यावधि 10 वर्ष निर्धारित की गई। तीन कौंसलों की सरकार को ‘कौंसुलेट की सरकार’ कहा गया। इस सरकार में नेपोलियन प्रथम कौंसल थे, जिन्हें समस्त अधिकार प्राप्त थे; शेष द्वितीय और तृतीय कौंसल का कार्य केवल प्रथम कौंसल को परामर्श देना था। इस प्रकार कौंसुलेट की सरकार की सारी शक्तियाँ नेपोलियन में केंद्रित हो गईं।
प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन के सुधार
नेपोलियन ने 1799 से 1803 तक अपनी स्थिति सुदृढ़ करने और फ्रांस को प्रशासनिक स्थायित्व प्रदान करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सुधार किए, जिनके कारण उन्हें आधुनिक फ्रांस का निर्माता माना जाता है।
राजनीतिक-प्रशासनिक सुधार
नेपोलियन ने प्रशासन की समस्त शक्ति अपने हाथों में केंद्रित कर ली, किंतु क्रांति के समय का प्रशासनिक ढाँचा और स्वरूप बनाए रखा। स्थानीय अधिकारियों की निर्वाचन व्यवस्था समाप्त कर दी गई और उनकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर की गई।
17 फरवरी 1800 को नेपोलियन ने स्थानीय प्रशासन-संबंधी एक अधिनियम पारित किया, जिसके अंतर्गत प्रत्येक प्रांत में एक प्रीफेक्ट और जिले में उप-प्रीफेक्ट नियुक्त किया गया। फ्रांस के गाँवों और शहरों में सीधे केंद्रीय सरकार द्वारा मेयरों की नियुक्ति की गई। नेपोलियन ने अधिकारियों को पर्याप्त प्रशासकीय अधिकार दिए और शासन में फिजूलखर्ची व भ्रष्टाचार रोकने के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की।
आर्थिक सुधार
प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन ने फ्रांस की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कर प्रणाली में सुधार किया। वित्तमंत्री के अधीन करों के लिए एक नया कार्यालय गठित किया गया। उन्होंने करों में एकरूपता स्थापित की और कर-निर्धारण तथा नियमित कर वसूली के लिए सुयोग्य और सक्षम केंद्रीय कर्मचारियों को नियुक्त किया, जिससे राज्य की आय में वृद्धि हुई।
नेपोलियन ने मितव्ययिता पर बल दिया और भ्रष्टाचार, सट्टेबाजी तथा ठेकेदारी में अनुचित मुनाफे पर रोक लगा दी। फ्रांस की वित्तीय साख बनाए रखने के लिए उनकी प्रेरणा से बैंकरों के एक समूह ने 18 जनवरी 1800 को ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ की स्थापना की। 1803 में ‘बैंक ऑफ फ्रांस’ को नोट छापने का अधिकार भी प्राप्त हुआ। राष्ट्रीय ऋण चुकाने के लिए नेपोलियन ने एक पृथक कोष की स्थापना की।
नेपोलियन ने जहाँ तक संभव हुआ, सेना के खर्च का बोझ विजित प्रदेशों पर डाला और फ्रांस की जनता को इस बोझ से मुक्त रखने का प्रयास किया। उन्होंने कृषि सुधार पर बल दिया और बंजर तथा रेतीले इलाकों को उपजाऊ बनाने की योजना बनाई।
व्यापार-वाणिज्य की प्रगति के लिए फ्रांस में ‘चैंबर्स ऑफ कॉमर्स’ की स्थापना की गई। नेपोलियन ने फ्रांसीसी औद्योगिक वस्तुओं को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रदर्शनियों के आयोजन को बढ़ावा दिया और स्वदेशी वस्तुओं व उद्योगों को प्रोत्साहन दिया। इस प्रकार नेपोलियन ने फ्रांस को जर्जर और दिवालियापन की स्थिति से उबारा।
धार्मिक सुधार
फ्रांस की बहुसंख्यक जनता कैथोलिक चर्च के प्रभाव में थी, किंतु 1789 की क्रांति के दौरान चर्च को राज्य के अधीन कर दिया गया था। चर्च की संपत्ति का राष्ट्रीयकरण करके पादरियों को राज्य की वफादारी की शपथ लेने को कहा गया था, जिससे पोप और फ्रांस की जनता नाराज थी। नेपोलियन की धारणा थी कि राज्य का कोई एक धर्म होना चाहिए, क्योंकि वह धर्म के बिना राज्य को मल्लाह के बिना नौका के समान मानता था।
पोप पायस सप्तम के साथ समझौता: कॉनकॉर्डेट
नेपोलियन ने धार्मिक मतभेद दूर करने के लिए एक ओर धार्मिक सहिष्णुता और स्वतंत्रता की नीति अपनाई, तो दूसरी ओर 1801-02 में रोम के पोप पायस सप्तम के साथ समझौता किया, जिसे ‘कॉनकॉर्डेट’ कहा जाता है।
- अब बिशपों की नियुक्ति प्रथम कौंसल द्वारा की जानी थी और शासन की स्वीकृति पर ही बिशप छोटे पादरियों की नियुक्ति करते।
- कॉनकॉर्डेट के अनुसार नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार किया। पोप ने चर्च की जब्त की गई संपत्ति और भूमि पर से अपना अधिकार त्याग दिया।
- देश के सभी गिरजाघरों पर राज्य का अधिकार हो गया और उसके अधिकारी राज्य से वेतन प्राप्त करने लगे।
- चर्च के सभी अधिकारियों को राज्य-भक्ति की शपथ लेना अनिवार्य था। गिरफ्तार पादरियों को छोड़ दिया गया और देश से भागे पादरियों और कुलीनों को वापस आने की अनुमति दी गई।
- क्रांतिकाल के कैलेंडर को स्थगित कर प्राचीन कैलेंडर और अवकाश-दिवसों को पुनः लागू किया गया।
इस प्रकार नेपोलियन ने राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर पोप से संधि की और क्रांतिकालीन अव्यवस्था को समाप्त कर चर्च को राज्य का सहभागी बना दिया। इस धार्मिक समझौते के द्वारा नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राजकीय धर्म बनाकर राज्य की धर्मनिरपेक्ष भावना को ठेस पहुँचाई। यह समझौता अस्थायी सिद्ध हुआ, क्योंकि 1808 में पोप के साथ उनका संघर्ष हुआ और उन्होंने पोप के राज्य पर नियंत्रण स्थापित किया।
न्याय एवं दंड-व्यवस्था में सुधार
प्रथम कौंसल बनने के बाद नेपोलियन ने फ्रांस में अनेक सिविल और दंड न्यायालयों की स्थापना की। न्यायाधीशों की नियुक्ति वह स्वयं करते थे। उन्होंने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए मुद्रित पत्रों का पुनः प्रचलन किया और जूरी की प्रथा प्रारंभ की।
नेपोलियन की विधि संहिता
नेपोलियन की एक स्थायी कीर्ति उनकी विजयें नहीं, बल्कि उनकी विधि संहिता है। उनके समय से पहले फ्रांस के विभिन्न प्रांतों में अलग-अलग जटिल और अस्पष्ट कानून प्रचलित थे। नेपोलियन ने न्याय-व्यवस्था और कानून के क्षेत्र में एकरूपता और निष्पक्षता लाने के लिए प्रचलित कानूनों का संग्रह कर फ्रांस के लिए एक सिविल कोड तैयार करवाया, जिसे नेपोलियन की विधि संहिता (नेपोलियन कोड) कहा जाता है।
नेपोलियन की विधि संहिता में पाँच प्रकार के कानून संकलित किए गए थे:
नागरिक संहिता (व्यावहारिक संहिता): इसमें वस्तुओं और संपत्ति से संबंधित कानून शामिल थे।
नागरिक प्रक्रिया संहिता (व्यावहारिक प्रक्रिया संहिता): इसमें 1737-38 के अध्यादेशों का संग्रह था।
दंड विधान की संहिता (दंड संहिता): इसमें विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए दंड का प्रावधान था।
अपराधमूलक कानून संहिता (दंड प्रक्रिया संहिता): इसमें अपराधी को न्यायालयों में अपने पक्ष में वकील रखने का विधान था।
व्यवसायमूलक कानून संहिता (वाणिज्य संहिता) : इसमें व्यापार-संबंधी नियम और कानून शामिल थे।
शैक्षिक सुधार
नेपोलियन ने अच्छे नागरिकों का निर्माण करने के लिए 1802 में शिक्षा को चर्च के प्रभाव से मुक्त कर इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया। उनकी राज्य-नियंत्रित शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों को शासन के प्रति निष्ठावान बनाना था। नेपोलियन ने शिक्षा को प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तरों पर संगठित किया।
प्रत्येक कम्यून में प्राथमिक विद्यालय स्थापित किए गए, जो प्रीफेक्ट और उप-प्रीफेक्ट की देखरेख में संचालित होते थे।
- बड़ी संख्या में माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की गई, जिनमें कला, लैटिन, फ्रांसीसी भाषा और विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।
- 1808 में नेपोलियन ने पेरिस में इंपीरियल विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसमें लैटिन, फ्रेंच, विज्ञान, गणित आदि विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
- इंपीरियल विश्वविद्यालय में पाँच विभाग थे: धर्मज्ञान, कानून, चिकित्सा, साहित्य और विज्ञान।
- विश्वविद्यालय के प्रमुख अधिकारियों की नियुक्ति नेपोलियन स्वयं करता था। उन्होंने शोध कार्यों के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रांस की स्थापना की।
सामाजिक समानता
नेपोलियन का मानना था कि फ्रांस के लोग स्वतंत्रता नहीं, बल्कि समानता के भूखे हैं। उन्होंने उच्च और निम्न वर्गों के भेद को समाप्त कर दिया। अब कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता के बल पर शासन के किसी भी पद को प्राप्त कर सकता था। नेपोलियन ने फ्रांस से भागे हुए कुलीनों और पादरियों के विरुद्ध पारित कानूनों को समाप्त कर दिया, जिसके कारण 40 हजार से अधिक परिवार फ्रांस वापस लौट आए।
सार्वजनिक कार्य
प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन ने अनेक सड़कों और नहरों का निर्माण व मरम्मत करवाया। पेरिस का सौंदर्यीकरण करते हुए उसे सुंदर भवनों और वृक्षों से सुसज्जित किया गया। उन्होंने विभिन्न देशों से लाई गई कलाकृतियों का एक संग्रहालय भी फ्रांस में स्थापित करवाया।
अमीन्स की संधि और नेपोलियन को मान्यता
अपनी आंतरिक स्थिति मजबूत करने के बाद नेपोलियन ने फ्रांस के विरुद्ध बने त्रिगुट (इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, और रूस) की ओर ध्यान दिया। उन्होंने सबसे पहले ऑस्ट्रिया पर आक्रमण किया। 1801 में पराजित ऑस्ट्रिया को फ्रांस के साथ ‘ल्यूनविल की संधि’ करनी पड़ी, जिसमें पहले की कैम्पो फोर्मियो की सारी शर्तें दोहराई गईं।
ऑस्ट्रिया-फ्रांस संधि से नाराज होकर रूस त्रिगुट से अलग हो गया और इस प्रकार नेपोलियन के विरुद्ध बना दूसरा गठबंधन टूट गया। अकेले इंग्लैंड ने युद्ध से बचने के लिए 27 मार्च 1802 को बिना युद्ध किए फ्रांस के साथ अमीन्स की संधि कर ली। इस संधि के अनुसार इंग्लैंड ने पहली बार नेपोलियन के नेतृत्व में गठित सरकार को मान्यता दी और अधिकांश जीते हुए प्रदेश फ्रांस को वापस कर दिए।
सम्राट के रूप में राज्याभिषेक (1804)
1804 में सीनेट ने नेपोलियन को ‘फ्रांस का सम्राट’ घोषित कर दिया। 2 दिसंबर 1804 को नोट्रे डेम कैथेड्रल में अपने भव्य राज्याभिषेक के अवसर पर नेपोलियन ने पोप पायस सप्तम को दरकिनार कर स्वयं ताज पहनते हुए कहा: “मैंने फ्रांस के शाही ताज को धरती पर पड़ा पाया और उसे अपनी तलवार की नोक से उठा लिया।” यह क्षण उनकी महत्त्वाकांक्षा का प्रतीक था। वह क्रांति का पुत्र था, लेकिन राज्याभिषेक ने उन्हें वैधता प्रदान की और अब वह राजशाही के उत्तराधिकारी बन चुके थे। सम्राट बनने के बाद नेपोलियन ने यूरोप के विभिन्न देशों के साथ युद्ध शुरू किए।
नेपोलियन के प्रमुख अभियान
नेपोलियन के विरुद्ध त्रिगुट (1805)
इंग्लैंड के विलियम पिट ने 1805 में नेपोलियन के विरुद्ध एक त्रिगुट का निर्माण किया। फ्रांस के विरुद्ध तृतीय गठबंधन में इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, रूस, स्वीडन आदि देश शामिल थे, जबकि ऑस्ट्रिया के विरोधी दक्षिण जर्मनी के राज्य नेपोलियन के साथ थे। इस गठबंधन का उद्देश्य नेपोलियन की बढ़ती शक्ति को रोकना था, क्योंकि उनकी विजयें यूरोप के संतुलन को भंग कर रही थीं। इंग्लैंड ने आर्थिक सहायता और नौसैनिक समर्थन देकर इस गठबंधन को मजबूत किया, जबकि ऑस्ट्रिया और रूस ने भूमि सेनाओं की कमान सँभाली। इस त्रिगुट ने नेपोलियन को एक साथ कई मोर्चों पर चुनौती दी, लेकिन उनकी रणनीतिक प्रतिभा ने इसे विफल कर दिया।
ट्रफाल्गर का युद्ध (21 अक्टूबर 1805)
21 अक्टूबर 1805 को फ्रांस और स्पेन की संयुक्त जल सेना और नेल्सन के नेतृत्व में अंग्रेजी जल सेना के बीच ट्रफाल्गर के समीप समुद्र में भयंकर युद्ध हुआ, जिसे ‘ट्रफाल्गर का युद्ध’ कहा जाता है। यह युद्ध नेपोलियन की इंग्लैंड पर आक्रमण की योजना को चूर-चूर करने वाला सिद्ध हुआ। फ्रांसीसी-स्पेनिश नौसेना, जिसमें 33 जहाज थे, नेपोलियन के भाई जेरोम के नेतृत्व में इंग्लैंड पर हमला करने को तैयार थी, लेकिन एडमिरल नेल्सन की 27 जहाजों वाली ब्रिटिश फ्लीट ने चतुराई से हमला कर दिया। नेल्सन ने ‘नेल्सन टच’ रणनीति अपनाई, जिसमें दुश्मन की पंक्ति तोड़कर दोनों ओर से हमला किया गया। यद्यपि इस युद्ध में नेल्सन वीरगति को प्राप्त हुए, किंतु इंग्लैंड की जल सेना ने फ्रांस और स्पेन की संयुक्त जल सेना को पराजित कर तितर-बितर कर दिया। इस युद्ध में 22 फ्रांसीसी-स्पेनिश जहाज डूब गए या हथिया लिए गए, जबकि ब्रिटिश पक्ष को केवल एक जहाज का नुकसान हुआ। ट्रफाल्गर में फ्रांस की इस पराजय से नेपोलियन द्वारा समुद्र के रास्ते इंग्लैंड पर आक्रमण करने का भय समाप्त हो गया और ब्रिटेन का समुद्री वर्चस्व स्थापित हो गया।
उल्म का युद्ध (1805)
नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण कर उसे 1805 में उल्म के युद्ध में पराजित किया। यह युद्ध उनकी रणनीतिक प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण था, जहाँ उन्होंने ऑस्ट्रियाई जनरल मैक के 70,000 सैनिकों को घेर लिया। नेपोलियन ने डेन्यूब नदी के किनारे चतुराई से सेना तैनात की, जिससे ऑस्ट्रियाई सेना को पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं मिला। 20 अक्टूबर को मैक ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिसमें 27,000 कैदी और 60 तोपें नेपोलियन के हाथ लगीं। इस विजय के बाद नेपोलियन का वियना पर अधिकार हो गया। ऑस्ट्रिया का शासक फ्रांसिस द्वितीय वियना छोड़कर रूस भाग गया। उल्म की जीत से त्रिगुट कमजोर हो गया और नेपोलियन के पूर्वी यूरोप की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
ऑस्टरलिट्ज़ का युद्ध (2 दिसंबर 1805)
नेपोलियन ने दिसंबर 1805 में ऑस्टरलिट्ज़ के युद्ध में रूस और ऑस्ट्रिया की संयुक्त सेनाओं को पराजित किया। इस युद्ध को ‘तीन सम्राटों का युद्ध’ भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें नेपोलियन, रूसी सम्राट अलेक्जेंडर प्रथम और ऑस्ट्रियाई सम्राट फ्रांसिस द्वितीय आमने-सामने थे। नेपोलियन की 73,000 सैनिकों वाली सेना ने 85,000 की संयुक्त रूसी-ऑस्ट्रियाई सेना को घेर लिया। नेपोलियन ने चतुराई से आक्रमण कर दुश्मनों को पराजित किया। इस युद्ध में 15,000 से अधिक दुश्मन सैनिक मारे गए, जबकि नेपोलियन को बहुत कम नुकसान हुआ। ऑस्टरलिट्ज़ की विजय उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। इस युद्ध में पराजय के बाद रूस ने अपनी सेनाएँ पीछे हटा लीं और ऑस्ट्रिया ने 26 दिसंबर 1805 को ‘प्रेसबर्ग की संधि’ कर ली। इस संधि से ऑस्ट्रिया ने वेनिस, टायरोल और दक्षिणी जर्मनी के क्षेत्र खो दिए और नेपोलियन का प्रभुत्व यूरोप में स्थापित हो गया।
जेना और आवरसेट के युद्ध (14 अक्टूबर 1806)
6 अगस्त 1806 को नेपोलियन ने पवित्र रोमन साम्राज्य का अंत कर दिया। इसके बाद 14 अक्टूबर 1806 को जेना और आवरसेट के युद्ध में उन्होंने प्रशा को पराजित किया। यह युद्ध उनकी दोहरी रणनीति का प्रमाण था, जहाँ उन्होंने प्रशा की सेना को दो मोर्चों पर विभाजित कर हमला किया। जेना में नेपोलियन ने 100,000 प्रशा के सैनिकों को हराया, जबकि मार्शल डावू ने आवरसेट में विजय प्राप्त की। इस पराजय से प्रशा की राजधानी बर्लिन पर नेपोलियन का अधिकार हो गया। उन्होंने राइन संघ की रचना की और अपने भाई जोसेफ बोनापार्ट को इसका शासक बनाया। इस विजय से प्रशा नेपोलियन की व्यवस्था के अधीन हो गया और जर्मनी में उनका वर्चस्व स्थापित हो गया।
फ्रीडलैंड का युद्ध (14 जून 1807)
नेपोलियन के विरुद्ध तृतीय गठबंधन में अब केवल इंग्लैंड और रूस ही शेष बचे थे, बाकी सदस्य देश उनके हाथों पराजित हो चुके थे। 14 जून 1807 को फ्रीडलैंड के युद्ध में नेपोलियन ने रूस को हरा दिया। उनकी 80,000 सैनिकों वाली सेना ने रूसी जनरल बेनिग्सेन की 120,000 सैनिकों वाली सेना को घेरकर पराजित किया, जिसमें 20,000 रूसी सैनिक मारे गए। इस युद्ध में पराजय के बाद रूसी सम्राट जार अलेक्जेंडर ने नीमेन नदी में एक शाही नाव में नेपोलियन से भेंट की। अंततः 7-9 जुलाई 1807 को टिल्सिट में फ्रांस, रूस और प्रशा के प्रतिनिधियों के बीच ‘टिल्सिट की संधि’ हुई। इस संधि से रूस नेपोलियन का सहयोगी बन गया और पूर्वी यूरोप में शांति स्थापित हुई।
पुर्तगाल पर आक्रमण (1807)
1807 में नेपोलियन ने स्पेन के साथ मिलकर पुर्तगाल पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। यह आक्रमण उनकी महाद्वीपीय व्यवस्था (कॉन्टिनेंटल सिस्टम) का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य ब्रिटेन के साथ व्यापार को रोकना था। पुर्तगाल ने ब्रिटिश जहाजों को बंदरगाह खोलने का वादा किया था, इसलिए नेपोलियन ने जून 1807 में जनरल जूनोट को 25,000 सैनिकों के साथ पुर्तगाल भेजा। लिस्बन पर कब्जे के बाद पुर्तगाल का राजपरिवार ब्राजील भाग गया। इस विजय से इबेरियन प्रायद्वीप में नेपोलियन का वर्चस्व बढ़ गया।
महाद्वीपीय युद्ध (1808-1814)
1808 में नेपोलियन ने स्पेन के साथ युद्ध शुरू किया, जो 1814 तक चला। इसे ‘महाद्वीपीय युद्ध’ भी कहा जाता है। नेपोलियन ने स्पेन को ब्रिटिश व्यापार से अलग करने के लिए उसके राजा को अपदस्थ कर अपने भाई जोसेफ को सम्राट बनाया। लेकिन स्पेनिश जनता ने विद्रोह कर दिया और ब्रिटिश जनरल वेलिंगटन ने उनकी सहायता की। नेपोलियन ने 300,000 सैनिक भेजे, लेकिन गुरिल्ला युद्ध और वेलिंगटन की रणनीति के सामने हार गए। इस युद्ध ने उनकी सेना को कमजोर कर दिया और यूरोप में गठबंधन को मजबूत किया।
ऑस्ट्रिया के साथ पुनः युद्ध (अप्रैल 1809)
अप्रैल 1809 में नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया के साथ पुनः युद्ध किया और वियना की संधि की। ऑस्ट्रिया ने त्रिगुट से अलग होकर नेपोलियन पर हमला किया, लेकिन नेपोलियन ने वाग्राम की लड़ाई में ऑस्ट्रियाई सेना को हरा दिया। 14 अक्टूबर 1809 को वियना की संधि से ऑस्ट्रिया ने सल्ज़बर्ग, टायरोल और पोलैंड के क्षेत्र खो दिए। नेपोलियन ने ऑस्ट्रियाई राजकुमारी मैरी लुईस से विवाह कर मित्रता स्थापित की।
रूस पर आक्रमण (7 सितंबर 1812)
नेपोलियन ने जून 1812 में रूस पर आक्रमण किया। 7 सितंबर 1812 को बोरोडिनो के मैदान में रूस और फ्रांसीसी सेना के बीच युद्ध हुआ, जिसका कोई निर्णायक परिणाम नहीं निकला। नेपोलियन की 600,000 सैनिकों वाली सेना ने मॉस्को पर कब्जा कर लिया, लेकिन रूसी जलाने की नीति और कठोर सर्दी ने उनकी सेना को तबाह कर दिया और उन्हें पीछे हटना पड़ा, जिसमें 400,000 सैनिक मारे गए। इस अभियान में भारी क्षति ने उनकी शक्ति को कमजोर किया।

लुटजेन और बुटजेन का युद्ध (मई 1813)
मई 1813 में लुटजेन और बुटजेन के युद्ध में नेपोलियन ने प्रशा और रूस की संयुक्त सेना को पराजित किया। उन्होंने पूर्वी जर्मनी में 200,000 सैनिकों को हराया, लेकिन यह विजय अस्थायी सिद्ध हुई।
लाइपजिग का युद्ध (अक्टूबर 1813)
यूरोप के राष्ट्रों- प्रशा, ऑस्ट्रिया, रूस और इंग्लैंड की संयुक्त सेनाओं ने अक्टूबर 1813 में लाइपजिग में नेपोलियन को बुरी तरह हराया और उसे बंदी बनाकर एल्बा टापू पर भेज दिया। इस युद्ध को ‘लोकतंत्र की लड़ाई’ कहा जाता है। इस युद्ध में नेपोलियन की 195,000 सैनिकों वाली सेना को 330,000 की गठबंधन सेना ने घेर लिया, जिसमें 38,000 फ्रांसीसी मारे गए और नेपोलियन को पीछे हटना पड़ा। लेकिन नेपोलियन एल्बा से भाग निकला और 100 दिनों के लिए पुनः फ्रांस का सम्राट बन गया।
वाटरलू का युद्ध (18 जून 1815)
नेपोलियन के एल्बा से वापस लौटने की सूचना पाकर मित्र राष्ट्रों की संयुक्त सेनाओं ने ब्रिटिश जनरल आर्थर वेलिंगटन और प्रशा के जनरल गेबहार्ड ब्लूचर के नेतृत्व में 118,000 सैनिकों वाली सेना के साथ नेपोलियन की 72,000 सैनिकों वाली फ्रांसीसी सेना को निर्णायक रूप से पराजित किया। भारी वर्षा ने नेपोलियन की तोपों को निष्क्रिय कर दिया और उनकी घुड़सवार सेना असफल रही, जिससे युद्ध का पासा पलट गया। इस हार के बाद नेपोलियन को बंदी बना लिया गया और सेंट हेलेना टापू पर निर्वासित कर दिया गया, जहाँ 5 मई 1821 को उनकी मृत्यु हो गई। वाटरलू का युद्ध नेपोलियन युग का अंत कर यूरोप में संतुलित शक्ति व्यवस्था को बहाल करने का प्रतीक बन गया।
महाद्वीपीय व्यवस्था (1806-1812)
नेपोलियन ने यूरोप के प्रमुख राष्ट्रों- ऑस्ट्रिया, प्रशा, रूस को क्रमशः 1805, 1806 और 1807 में पराजित कर दिया था। यूरोप में केवल इंग्लैंड ही बचा था, जो उन्हें चुनौती दे रहा था। ट्रफाल्गर के युद्ध में इंग्लैंड से पराजित होने के बाद नेपोलियन समझ गए थे कि इंग्लैंड को समुद्र पर पराजित करना असंभव है। इस समय मॉन्टगेलार्ड ने उन्हें सलाह दी कि इंग्लैंड एक व्यापारिक देश है, इसलिए उसे आर्थिक युद्ध में पराजित किया जा सकता है।
नेपोलियन ने इंग्लैंड से आर्थिक युद्ध करने के लिए उसके आयात-निर्यात की नाकाबंदी करने का निर्णय लिया। उनकी इस नीति को महाद्वीपीय व्यवस्था (कॉन्टिनेंटल सिस्टम) कहा जाता है। नेपोलियन का विचार था कि ‘बनियों के देश’ से जब आयात-निर्यात बंद हो जाएगा, तो खाने-पीने की वस्तुओं की कमी हो जाएगी, और इंग्लैंड घुटने टेकने को विवश हो जाएगा। इसके अलावा, वह यूरोपीय अर्थव्यवस्था का केंद्र लंदन के बजाय पेरिस बनाना चाहते थे।
नेपोलियन का बर्लिन आदेश (21 नवंबर 1806)
महाद्वीपीय व्यवस्था की घोषणा 21 नवंबर 1806 को बर्लिन से एक आदेश जारी करके की गई। बर्लिन आदेश में कहा गया कि यूरोप का कोई भी राष्ट्र इंग्लैंड और उसके उपनिवेशों के साथ व्यापार नहीं करेगा। इस आदेश के द्वारा इंग्लैंड के जहाजों के लिए सभी समुद्री बंदरगाह बंद कर दिए गए। 1806 में नेपोलियन ने नेपल्स पर अधिकार कर उसके बंदरगाह को ब्रिटेन के व्यापार के लिए बंद कर दिया। फिर, प्रशा को पराजित करने के बाद 25 जुलाई 1807 को नेपोलियन ने वारसॉ आदेश जारी कर प्रशा और हनोवर के समुद्रतट से भी अंग्रेजी व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। टिल्सिट की संधि के बाद रूस, प्रशा और डेनमार्क ने भी ब्रिटिश माल का बहिष्कार किया, जिससे इंग्लैंड को काफी हानि उठानी पड़ी।
इंग्लैंड का प्रथम ऑर्डर इन कौंसिल (7 जनवरी 1807)
नेपोलियन के बर्लिन आदेश से पहले ही इंग्लैंड ने उत्तरी समुद्र के महाद्वीपीय बंदरगाहों और इंग्लिश चौनल से होकर आने-जाने वाले सामानों पर नाकाबंदी कर दी थी। नेपोलियन के बर्लिन आदेश का जवाब देने के लिए इंग्लैंड ने 7 जनवरी 1807 को ऑर्डर्स इन कौंसिल (प्रथम ऑर्डर इन कौंसिल) जारी किया, जिसमें कहा गया:
- यदि किसी जहाज में फ्रांस या उसके उपनिवेशों का बना हुआ माल पाया जाएगा, उसे जब्त कर लिया जाएगा।
- इंग्लैंड ने अपने विदेशी व्यापार को बनाए रखने के लिए तटस्थ राष्ट्रों को कम करों पर सामान देने की घोषणा की।
- इंग्लैंड से व्यापार करने वाले तटस्थ जहाजों को हर प्रकार की सुविधा दी जाएगी।
- प्रशा और पुर्तगाल जैसे देशों ने विवशता में महाद्वीपीय व्यवस्था को स्वीकार किया है, इसलिए उनके जहाज छोड़ दिए जाएँ।
इस प्रकार इंग्लैंड ने अपने उपनिवेशों से व्यापार बढ़ाकर अपनी क्षतिपूर्ति करने का प्रयास किया।
नेपोलियन का मिलान आदेश (17 दिसंबर 1807)
17 दिसंबर 1807 को नेपोलियन ने मिलान से आदेश जारी किया कि कोई भी जहाज, जो ब्रिटिश अधिकार-क्षेत्र वाले बंदरगाहों से होकर आया हो, उसे अपने अधिकार में लेकर उस पर लदे माल को जब्त कर लिया जाएगा।
नेपोलियन का फॉन्टेब्ल्यू आदेश (18 अक्टूबर 1810)
18 अक्टूबर 1810 को नेपोलियन ने फॉन्टेब्ल्यू से एक कठोर आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि जब्त अंग्रेजी माल को जला दिया जाएगा, और अवैध ढंग से व्यापार करने वालों को कठोर दंड दिया जाएगा।
महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता
1806 में लागू की गई नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था 1812 में समाप्त हो गई। यद्यपि नेपोलियन ने ब्रिटेन को पराजित करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त कूटनीति अपनाई, किंतु फ्रांस के औद्योगिक पिछड़ेपन, ब्रिटिश उत्पादों की गुणवत्ता, और ब्रिटेन की सुदृढ़ नौशक्ति के कारण उनकी नीति विफल रही। महाद्वीपीय व्यवस्था के विरुद्ध सबसे पहले स्पेन ने विद्रोह किया। नेपोलियन ने स्पेन पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया, लेकिन स्पेन में राष्ट्रीय विद्रोह छिड़ गया और ‘स्पेनी नासूर’ ने नेपोलियन की शक्ति को क्षति पहुँचाई।
स्पेन के बाद एक-एक करके यूरोपीय राष्ट्र महाद्वीपीय व्यवस्था से अलग होने लगे, और नेपोलियन अनिवार्य रूप से आक्रामक युद्धों में उलझ गया, जिसकी उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी। अंततः महाद्वीपीय व्यवस्था की असफलता ही नेपोलियन के पतन का प्रमुख कारण बनी। इसकी असफलता के कारणों में फ्रांस की सशक्त जल सेना का अभाव और विभिन्न यूरोपीय देशों की इंग्लैंड के जहाजों और उत्पादों पर निर्भरता शामिल थी।
नेपोलियन ने फ्रांस की क्रांति के सिद्धांतों को अन्य देशों में पहुँचाया और जनसाधारण में स्वतंत्रता की भावना उत्पन्न की। यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों के निर्माण का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है।
नेपोलियन के पतन के कारण
यूरोप के राजनीतिक क्षितिज पर नेपोलियन का प्रादुर्भाव एक धूमकेतु की तरह हुआ और अपनी सैन्य प्रतिभा व परिश्रम के बल पर वे शीघ्र ही यूरोप के भाग्यविधाता बन गए। उनकी आश्चर्यजनक सैन्य कुशलता और प्रशासनिक क्षमता ने सभी को चकित कर दिया। लेकिन उनकी शक्ति का आधार जैसे बालू की दीवार पर टिका था, जो कुछ ही वर्षों में ध्वस्त हो गया। वास्तव में, नेपोलियन का उत्थान और पतन एक चकाचौंध करने वाली उल्का की भाँति हुआ। वे यूरोप के आकाश में सैन्य सफलता के बल पर चमकते रहे, लेकिन पराजय के साथ उनके भाग्य का सितारा डूब गया। जिस साम्राज्य को उन्होंने अपने कठिन परिश्रम से स्थापित किया था, वह देखते ही देखते समाप्त हो गया। नेपोलियन के पतन के अनेक कारण थे:
असीम महत्त्वाकांक्षा
नेपोलियन में असीम महत्त्वाकांक्षा थी, और यह किसी भी व्यक्ति के पतन का प्रमुख कारण बन सकती है। नेपोलियन के साथ भी यही हुआ। जैसे-जैसे वे युद्धों में विजयी होते गए, उनकी महत्त्वाकांक्षा बढ़ती गई, और वे विश्व-राज्य की स्थापना का सपना देखने लगे। यदि वे थोड़े में संतुष्ट हो जाते और जीते हुए साम्राज्य की देखभाल करते, तो संभवतः उनका पतन इतनी शीघ्रता से नहीं होता।
चारित्रिक दुर्बलता
नेपोलियन में साहस, संयम और धैर्य कूट-कूटकर भरा था, लेकिन उनके चरित्र की सबसे बड़ी कमजोरी यह थी कि वे संधियों को सम्मानित समझौता नहीं मानते थे। किसी भी देश की मैत्री उनके लिए राजनीतिक आवश्यकता से अधिक नहीं थी। फलस्वरूप, वे धीरे-धीरे जिद्दी होते गए। उन्हें यह भ्रम हो गया था कि उनके द्वारा उठाया गया प्रत्येक कदम उचित है, और उनसे कभी भूल नहीं हो सकती। वे दूसरों की सलाह की उपेक्षा करने लगे, जिसके कारण उनके सच्चे मित्र भी उनसे दूर होते चले गए।
सैन्यवाद पर आधारित व्यवस्था
नेपोलियन की राजनीतिक प्रणाली सैन्यवाद पर आधारित थी, जो उनके पतन का प्रमुख कारण सिद्ध हुई। वे सभी मामलों में सेना पर निर्भर रहते थे, जिसके कारण वे सदा युद्धों में उलझे रहे। वे यह भूल गए कि सैन्यवाद केवल संकट के समय ही लाभकारी हो सकता है। जब तक फ्रांस पर विपत्तियों के बादल छाए रहे, तब तक जनता ने उनका साथ दिया। लेकिन विपत्तियों के हटते ही जनता ने उनका साथ छोड़ दिया। फ्रांसीसी जनता की सहानुभूति और प्रेम का खोना उनके लिए घातक सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त, पराजित राष्ट्र धीरे-धीरे उनके शत्रु बनते गए, जो अवसर मिलते ही उनके खिलाफ उठ खड़े हुए। इतिहासकार काबन ने ठीक ही लिखा है: “नेपोलियन का साम्राज्य युद्ध में पनपा था, युद्ध ही उसके अस्तित्व का आधार था, और युद्ध में ही उसका अंत हुआ।”
दोषपूर्ण सैनिक व्यवस्था
प्रारंभ में फ्रांस की सेना देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत थी। उसके समक्ष एक आदर्श था, और वह एक उद्देश्य की पूर्ति के लिए युद्ध करती थी। लेकिन जैसे-जैसे उनके साम्राज्य का विस्तार हुआ, सेना का राष्ट्रीय रूप विघटित होता गया। पहले उनकी सेना में केवल फ्रांसीसी सैनिक थे, लेकिन बाद में उसमें जर्मन, इटालियन, पुर्तगाली और डच सैनिक भी शामिल कर लिए गए, जिसके फलस्वरूप नेपोलियन की सेना अनेक राज्यों की सेना बन गई, जिसके सामने कोई आदर्श या उद्देश्य नहीं था। अंततः उनकी सैनिक शक्ति कमजोर होती गई और यह उनके पतन का महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।
नौसेना की दुर्बलता
नेपोलियन ने स्थल सेना का संगठन तो ठीक किया था, लेकिन उनके पास शक्तिशाली नौसेना का अभाव था, जिसके कारण उन्हें इंग्लैंड से पराजित होना पड़ा। यदि उनके पास शक्तिशाली नौसेना होती, तो संभवतः उन्हें इंग्लैंड से पराजय का सामना नहीं करना पड़ता।
विजित प्रदेशों में देशभक्ति का अभाव
नेपोलियन ने जिन प्रदेशों पर विजय प्राप्त की, वहाँ की जनता के मन में उनके प्रति सद्भावना और प्रेम नहीं था। वे उनके शासन से घृणा करते थे। जब उनकी शक्ति कमजोर पड़ने लगी, तो उनके अधीनस्थ राज्य अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करने लगे। यूरोपीय राष्ट्रों ने उनके खिलाफ संघर्ष के लिए चौथा गठबंधन बनाया, और इसी के कारण उन्हें वाटरलू के युद्ध में पराजित होना पड़ा।
पोप से शत्रुता
महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण नेपोलियन ने पोप को अपना शत्रु बना लिया। जब पोप ने उनकी महाद्वीपीय व्यवस्था को मानने से इंकार किया, तो उन्होंने अप्रैल 1808 में रोम पर अधिकार कर लिया और 1809 में पोप को बंदी बना लिया। इस कार्य से कैथोलिकों को यह विश्वास हो गया कि नेपोलियन न केवल राज्यों की स्वतंत्रता नष्ट करने वाला दानव है, बल्कि उनका धर्म नष्ट करने वाला भी है।
औद्योगिक क्रांति
कहा जाता है कि नेपोलियन की पराजय वाटरलू के मैदान में नहीं, बल्कि मैनचेस्टर के कारखानों और बर्मिंघम की लोहे की भट्टियों में हुई थी। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप इंग्लैंड में बड़े-बड़े कारखाने खोले गए और वह एक समृद्धशाली देश बन गया। औद्योगिक क्रांति के अभाव में नेपोलियन अपनी सेना के लिए आधुनिक हथियार और संसाधन उपलब्ध नहीं करा सका, जो उनके लिए घातक सिद्ध हुआ।
महाद्वीपीय व्यवस्था
महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन की भयंकर भूल थी। वे इंग्लैंड को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते थे। इंग्लैंड की शक्ति का मुख्य आधार उसकी नौसेना और विश्वव्यापी व्यापार था। अपनी समस्त कोशिशों के बावजूद उनकी नौशक्ति को नेपोलियन समाप्त नहीं कर सका, इसलिए उन्होंने इंग्लैंड के व्यापार पर आघात करने के लिए महाद्वीपीय व्यवस्था को जन्म दिया। उन्होंने आदेश जारी किया कि कोई भी देश न तो इंग्लैंड के साथ व्यापार करेगा और न ही इंग्लैंड की बनी वस्तुओं का प्रयोग करेगा। इस व्यवस्था से नेपोलियन एक ऐसे जाल में फँस गए, जिससे निकलना उनके लिए मुश्किल हो गया। इसलिए महाद्वीपीय व्यवस्था को उनके पतन का प्रमुख कारण माना जाता है।
पुर्तगाल के साथ युद्ध
पुर्तगाल का इंग्लैंड के साथ व्यापारिक संबंध था, लेकिन नेपोलियन के दबाव के कारण उसे इंग्लैंड से संबंध तोड़ना पड़ा। इससे पुर्तगाल को काफी नुकसान हुआ। इसलिए उसने फिर से इंग्लैंड के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। इससे क्रोधित होकर नेपोलियन ने पुर्तगाल पर आक्रमण कर दिया। यह भी उनके लिए घातक सिद्ध हुआ।
स्पेन का नासूर
स्पेन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नेपोलियन के लिए नासूर साबित हुआ। इस हस्तक्षेप के कारण उनके लाखों सैनिक मारे गए। फलस्वरूप, इस युद्ध में उनकी स्थिति बिल्कुल कमजोर हो गई। इससे उनके विरोधियों को प्रोत्साहन मिला, और जब नेपोलियन ने अपने भाई को स्पेन का राजा बनाया, तो वहाँ के निवासी उस विदेशी को राजा मानने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने नेपोलियन की सेना को स्पेन से खदेड़ दिया। स्पेन के विद्रोह से अन्य देशों को भी प्रोत्साहन मिला और वे भी विद्रोह करने लगे, जिससे नेपोलियन का पतन अवश्यंभावी हो गया।
रूस का अभियान
रूस ने नेपोलियन की महाद्वीपीय व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया, इसलिए उन्होंने 1812 में 500,000 सैनिकों के साथ रूस पर आक्रमण किया। इस युद्ध में यद्यपि उन्होंने मॉस्को पर अधिकार कर लिया, लेकिन जब वह पराजित होकर वापस लौटे, तो उनके मात्र 20,000 सैनिक बचे थे। इस प्रकार उन्हें रूसी अभियान में भारी क्षति उठानी पड़ी।
थकान
नेपोलियन के पतन का समस्त कारण एक शब्द ‘थकान’ में निहित है। अनेक युद्धों में लगातार व्यस्त रहने के कारण नेपोलियन थक चुके थे। जैसे-जैसे वे युद्धों में उलझते गए, उनकी शक्ति कमजोर पड़ती गई। अंततः वे थक गए और इसके चलते भी उनका पतन हुआ।
सगे-संबंधी
नेपोलियन के पतन के लिए उनके सगे-संबंधी भी कम उत्तरदायी नहीं थे। यद्यपि वे अपने संबंधियों के प्रति उदारता का व्यवहार करते थे, लेकिन जब भी वे संकट में पड़ते थे, उनके सगे-संबंधी उनकी मदद नहीं करते थे। उन्होंने अपने भाइयों को हॉलैंड, स्पेन और वेस्टफालिया का शासक बनाया था, किंतु संकट के समय में किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। नेपोलियन ने मेटरनिख को लिखा था: “मैंने अपने संबंधियों का जितना भला किया, उन्होंने उससे अधिक मेरा नुकसान किया।”
चतुर्थ गठबंधन का संगठन
नेपोलियन की कमजोरी से लाभ उठाकर उनके शत्रुओं ने चतुर्थ गठबंधन का निर्माण किया, और मित्र राष्ट्रों ने उन्हें पराजित किया। उन्हें पकड़कर एल्बा टापू पर भेज दिया गया, लेकिन नेपोलियन वहाँ बहुत दिनों तक नहीं रह सके और शीघ्र ही फ्रांस लौट आए, जहाँ वे सिर्फ सौ दिनों तक सम्राट रहे। मित्र राष्ट्रों ने 18 जून 1815 को वाटरलू के युद्ध में उन्हें अंतिम रूप से पराजित कर दिया। उन्हें पकड़कर मित्र राष्ट्रों ने कैदी के रूप में सेंट हेलेना टापू पर भेज दिया।
इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारण प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नेपोलियन के पतन के लिए उत्तरदायी थे। उन्होंने युद्ध के द्वारा ही अपने साम्राज्य का निर्माण किया था और युद्धों के कारण ही उनका पतन भी हुआ। दूसरे शब्दों में, जिन तत्वों ने नेपोलियन के साम्राज्य का निर्माण किया था, उन्हीं तत्वों ने उसका विनाश भी कर दिया।










