हित्ती सभ्यता, जिसे खत्ती सभ्यता भी कहा जाता है, प्राचीन अनातोलिया (आधुनिक तुर्की) में कांस्य युग (लगभग 1700-1200 ईसा पूर्व) के दौरान पल्लवित-पुष्पित हुई। यह इंडो-यूरोपीय मूल की एक सभ्यता थी, जिसने अनातोलिया, उत्तरी सीरिया और ऊपरी मेसोपोटामिया के विशाल क्षेत्रों पर शासन किया। इसकी राजधानी हट्टूसा (आधुनिक बोगाजकोय, तुर्की) थी, जो एक शक्तिशाली किला-शहर था। हित्ती सभ्यता ने प्राचीन विष्व में मिस्र, मेसोपोटामिया और भूमध्यसागरीय सभ्यताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य किया, जिसने सांस्कृतिक, व्यापारिक और राजनयिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया। यह सभ्यता अपनी सैन्य शक्ति, कला, स्थापत्य और विष्व की पहली लिखित शांति संधि (कादेश की संधि) के लिए प्रसिद्ध है। सुप्पिलुल्युमस प्रथम (1375-1335 ईसा पूर्व) के शासनकाल में हित्ती साम्राज्य अपने चरम पर पहुंचा और उनके द्वारा किए गए सैन्य, प्रशासनिक और राजनयिक सुधारों ने साम्राज्य को मध्य पूर्व की एक महाशक्ति बनाया।
परिचय और भौगोलिक महत्त्व
भौगोलिक स्थिति
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Toggleहित्ती सभ्यता का उदय अनातोलिया के कठिन भू-भाग में हुआ, जो एशिया, यूरोप और अफ्रीका के संगम पर स्थित है। यह क्षेत्र काला सागर, भूमध्य सागर, ईजियन सागर और पूर्व में अर्मेनियाई पर्वतमालाओं से घिरा हुआ है। इसकी रणनीतिक स्थिति ने इसे व्यापार और सैन्य दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण बनाया। भूगोलवेत्ता डडले स्टाम्प ने अनातोलिया को ‘एशिया का प्रवेशद्वार’ कहा है, जो इसकी भौगोलिक और सांस्कृतिक स्थिति को रेखांकित करता है। अनातोलिया की खनिज संपदा, विशेष रूप से लोहा, ताँबा और चाँदी ने हित्ती अर्थव्यवस्था को मजबूत किया। उनकी राजधानी हट्टूसा चट्टानी पहाड़ियों पर बनी थी, जिसे दोहरी प्राचीरों, गुप्त सुरंगों और विशाल मंदिरों ने अभेद्य बना दिया था। हट्टूसा की प्राकृतिक ऊँचाइयाँ और रणनीतिक स्थिति ने इसे आक्रमणों से सुरक्षित रखा, जिससे यह हित्ती साम्राज्य का प्रशासनिक और धार्मिक केंद्र बन गया। अनातोलिया का कठिन भू-भाग, जिसमें पर्वत, नदियाँ और उपजाऊ मैदान शामिल थे, ने हित्तियों को कृषि, पशुपालन और खनन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान कीं। यह क्षेत्र प्राचीन व्यापार मार्गों का केंद्र था, जो मेसोपोटामिया, मिस्र और ईजियन क्षेत्र को जोड़ता था।
ऐतिहासिक महत्त्व
हित्ती सभ्यता का प्राचीन विष्व इतिहास में विशिष्ट महत्त्व है, क्योंकि इसने मिस्र, मेसोपोटामिया और भूमध्यसागरीय क्षेत्र की सभ्यताओं को परस्पर निकट लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे सांस्कृतिक और व्यापारिक आदान-प्रदान का केंद्र बनाया। हित्तियों ने एशियाई सांस्कृतिक तत्वों को यूरोप में और यूरोपीय तत्वों को एशिया में प्रसारित किया। उनकी लोहे की तकनीक ने प्राचीन विष्व में तकनीकी क्रांति लाई, जिससे लौह युग की शुरुआत हुई। हित्ती साम्राज्य ने मिस्र, असीरिया और बेबीलोनिया जैसे समकालीन साम्राज्यों के साथ जटिल राजनयिक संबंध स्थापित किए, जिसकी पुष्टि अमरना पत्रों और कादेश की संधि से होती है। सुप्पिलुल्युमस प्रथम के शासनकाल में साम्राज्य का विस्तार अनातोलिया, उत्तरी लेवेंट और ऊपरी मेसोपोटामिया तक हुआ, जिसने इसे मध्य पूर्व की प्रमुख शक्तियों में से एक बना दिया। हित्तियों की राजनयिक प्रथाएँ, विशेष रूप से लिखित संधियाँ और विवाह गठबंधन ने प्राचीन विष्व में शांति और सहयोग की नींव रखी। उनकी कला, स्थापत्य और कानून व्यवस्था ने पड़ोसी सभ्यताओं, विशेष रूप से असीरियनों और लेवेंट क्षेत्र की संस्कृतियों को प्रभावित किया।
1.3. पुरातात्त्विक और भाषाई खोजें
हित्ती सभ्यता के बारे में जानकारी का प्रमुख स्रोत पुरातात्त्विक खोजें और क्यूनिफॉर्म टैबलेट्स हैं। 1906 में जर्मन पुरातत्त्वविद ह्यूगो विंकलर ने हट्टूसा में लगभग 10,000 क्यूनिफॉर्म टैबलेट्स की खोज की, जो अक्कादी और हित्ती की विभिन्न बोलियों में लिखे गए थे। इन टैबलेट्स से राजनयिक पत्राचार, शाही अभिलेख, कानून संहिताएँ और धार्मिक ग्रंथों की जानकारी मिलती है। 1887 में मिस्र के तैल-एल-अमर्ना में अमरना पत्रों की खोज से हित्ती शासक सुप्पिलुल्युमस प्रथम के मिस्र के फराओ आमेनहोतेप चतुर्थ को लिखे पत्र मिले, जो उनके राजनयिक प्रभाव के सूचक हैं। कानेस (कुलतेपे) में असीरियन व्यापारियों के दस्तावेजों ने ‘हत्ती की भूमि’ के साथ व्यापारिक गतिविधियों को उजागर किया है। 1915 में बेद्रिच हृोजनी ने हित्ती भाषा की व्याख्या की, जिसने इसे इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की अनातोलियन शाखा से जोड़ा और भाषा अध्ययन में क्रांति आई। हट्टूसा में 1907 से जर्मन पुरातत्त्व संस्थान द्वारा की जा रही खुदाइयों और याजिलीका चट्टान मंदिर जैसे स्थलों सेे हित्ती सभ्यता की कला, धर्म और स्थापत्य को समझने में मदद मिलती है। 1948 से 2005 तक कुलतेपे में प्रोफेसर ताहसिन ओजगुच की खुदाइयों ने व्यापारिक और सामाजिक गतिविधियों के बारे में और जानकारी प्रदान की। इन खोजों ने हित्ती सभ्यता को केवल बाइबिल और मिस्री लेखों तक सीमित एक अज्ञात संस्कृति से एक अच्छी तरह से प्रलेखित साम्राज्य में बदल दिया।
हित्तियों की उत्पत्ति और प्रारंभिक बसावट
उत्पत्ति
हित्ती लोग इंडो-यूरोपीय भाषी समूह थे, जो संभवतः 4400-4100 ईसा पूर्व के बीच काला सागर के स्टेपी क्षेत्र से काकेशस के रास्ते अनातोलिया पहुँचे। डेविड रीच और अन्य पुरातत्त्वविदों के आनुवंशिक अध्ययनों से पता चलता है कि प्रोटो-हित्ती भाषा लगभग 2100 ईसा पूर्व में विकसित हुई। हित्ती अनातोलिया के मूल निवासी नहीं थे; उन्होंने हत्ती, हुर्रियन और अन्य गैर-इंडो-यूरोपीय समुदायों को आत्मसात किया या उन पर विजय प्राप्त की। पेट्रा गोएडेगेबुरे के शोध के अनुसार हित्ती भाषा ने पूर्वी सीमाओं से कृषि संबंधी शब्द उधार लिए, जो काकेशस मार्ग का समर्थन करता है। डेविड डब्ल्यू. एंथनी और जे. पी. मैलोरी जैसे विद्वानों का मानना है कि इंडो-यूरोपीय भाषी लोग तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में अनातोलिया पहुँचे, संभवतः यमनाया संस्कृति के प्रवास के माध्यम से। हित्तियों ने हत्ती और हुर्रियन लोगों के साथ सह-अस्तित्व स्थापित किया, जिसके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक मिश्रण हुआ। उनकी भाषा और संस्कृति में स्थानीय अनातोलियन तत्वों का समावेश हुआ, जो उनकी धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं में देखा जा सकता है।
प्रारंभिक बसावट
हित्तियों का प्रारंभिक केंद्र कुस्सारा था, जो 1750 ईसा पूर्व से पहले एक महत्त्वपूर्ण नगर था। पिथाना और उनके पुत्र अनित्ता जैसे प्रारंभिक शासकों ने कनेश (नेशा) और हट्टूसा पर विजय प्राप्त की। अनित्ता ने 1700 ईसा पूर्व में हट्टूसा को लूटा और इसे शाप दिया, लेकिन बाद में हत्तुसिली प्रथम ने इसे पुनर्निर्मित कर राजधानी बनाया। कनेश एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, जहाँ असीरियन व्यापारिक उपनिवेश (कारुम) स्थापित थे। इन उपनिवेशों ने मेसोपोटामिया और अनातोलिया के बीच व्यापार को सुगम बना दिया, जिसमें टिन, वस्त्र और चाँदी का आदान-प्रदान होता था। हत्तुसिली प्रथम ने हट्टूसा को एक शक्तिशाली किला-शहर में बदल दिया, जिसने साम्राज्य के प्रशासनिक और सैन्य केंद्र के रूप में कार्य किया। कुस्सारा और नेशा जैसे नगरों ने हित्ती सभ्यता की प्रारंभिक नींव रखी और इनका विकास छोटे नगर-राज्यों से एक विशाल साम्राज्य की ओर हुआ।
भाषा और लिपि
हित्ती भाषा, जिसे नेशिली कहा जाता था, इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की अनातोलियन शाखा की थी। यह लुवियन और पाला भाषाओं से संबंधित थी। हित्तियों ने असीरियन व्यापारियों से क्यूनिफॉर्म लिपि अपनाई, जिसका उपयोग प्रशासनिक, धार्मिक और राजनयिक दस्तावेजों के लिए किया जाता था। बाद में, उन्होंने अपनी चित्रलिपि विकसित की, जिसमें लगभग 220 चिह्न थे। यह चित्रलिपि मुख्य रूप से स्मारकों, शाही मुहरों और शिलालेखों पर उपयोग की जाती थी। चार ‘कुशन-आकार’ टैबलेट्स, जो कुस्सारा या नेशा में 18वीं शताब्दी ईसा पूर्व में लिखे गए पुरानी हित्ती भाषा और लिपि का उपयोग दर्शाते हैं। ये टैबलेट्स हत्तुसिली प्रथम के समय के शाही अभिलेखों को प्रकट करते हैं। हित्ती भाषा में हुर्रियन, अक्कादी और सुमेरियन शब्दों का समावेश हुआ, जो उनके व्यापक सांस्कृतिक संपर्कों के प्रमाण हैं। चित्रलिपि का उपयोग बाद के नव-हित्ती राज्यों में भी जारी रहा, विशेष रूप से कार्केमिश जैसे क्षेत्रों में।
राजनीतिक इतिहास
हित्ती इतिहास को तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया जाता है: पुरा-हित्ती राज्यकाल (1700-1500 ईसा पूर्व), मध्य काल (1500-1430 ईसा पूर्व) और नया साम्राज्यकाल (1430-1180 ईसा पूर्व)। प्रत्येक काल में हित्ती साम्राज्य को विभिन्न चुनौतियों और उपलब्धियों का सामना करना पड़ा।
पुरा-हित्ती राज्यकाल
पुरा-हित्ती राज्यकाल की शुरुआत लबार्ना प्रथम या हत्तुसिली प्रथम (1680-1650 ईसा पूर्व) से मानी जाती है। हत्तुसिली प्रथम ने हट्टूसा को राजधानी बनाया और उत्तरी सीरिया के यमहद (हलब) पर विजय प्राप्त की। उन्होंने अनातोलिया के दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों को एकीकृत किया और हुर्रियन जनजातियों के खिलाफ सफल अभियान चलाए। उनके पोते मुर्सिली प्रथम (1620-1590 ईसा पूर्व) ने 1595 ईसा पूर्व में बेबीलोन पर आक्रमण किया और एमोराइट राजवंश को समाप्त किया, जो हित्ती सैन्य शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन था। लेकिन आंतरिक अस्थिरता, जैसे राजवंशीय षड्यंत्र और हत्या ने स्थिति को कमजोर कर दिया। मुर्सिली प्रथम की हत्या के बाद हन्तिली प्रथम (1590-1560 ईसा पूर्व) ने सत्ता हथिया ली, लेकिन हुर्रियन और कास्कियन आक्रमणों ने साम्राज्य को कमजोर किया। तेलिपिनु (1525-1500 ईसा पूर्व) ने उत्तराधिकार नियमों को व्यवस्थित किया और ‘पंकु’ सभा को संवैधानिक अपराधों के लिए उच्च न्यायालय बनाया। तेलिपिनु के सुधारों ने अराजकता को नियंत्रित करने और शांतिनीति को बढ़ावा देने का प्रयास किया, लेकिन स्थायी स्थिरता नहीं ला सके।
मध्य काल
मध्य काल, जिसे ‘अंधकार युग’ भी कहा जाता है, अभिलेखों की कमी के कारण कम प्रलेखित है। इस काल में कास्कियन और हुर्रियन जनजातियों के आक्रमणों ने हट्टूसा को कमजोर किया और राजधानी को सपिनुवा और समुहा स्थानांतरित करना पड़ा। इस अवधि में शासकों जैसे अल्लुवम्नस, हन्तिली द्वितीय और जिदान्तस द्वितीय के बारे में बहुत कम जानकारी है। मितानी जैसे पड़ोसी राज्यों ने हित्ती क्षेत्रों पर दबाव डाला, जिससे साम्राज्य संकुचित हो गया। इस काल में कोई उल्लेखनीय सैन्य या प्रशासनिक प्रगति नहीं हुई और हित्ती प्रभाव क्षेत्र सीमित रहा।
नया साम्राज्यकाल
नया साम्राज्यकाल तुधलिया प्रथम (1430 ईसा पूर्व) से शुरू हुआ और सुप्पिलुल्युमस प्रथम (1375-1335 ईसा पूर्व) के शासनकाल में अपने चरम पर पहुँचा। सुप्पिलुल्युमस ने आंतरिक सुरक्षा को सुदृढ़ किया, हट्टूसा को प्राचीरों से सुरक्षित किया और रथों का बड़े पैमाने पर उपयोग कर अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया। उनके सैन्य अभियानों में अरजावा, मितानी और सीरिया के खिलाफ सफल अभियान शामिल थे। मितानी की राजधानी वस्सुकन्नी को लूटा गया और सीरिया ने बिना प्रतिरोध के समर्पण कर दिया। कादेश ने प्रतिरोध किया, लेकिन उसे भी पराजित किया गया। सुप्पिलुल्युमस ने मितानी को वशीभूत राज्य बनाया और लेवेंट क्षेत्र, जिसमें बाइब्लोस जैसे बंदरगाह शामिल थे, को मिस्र से छीन लिया। उनके प्रभाव का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि मिस्र की विधवा महारानी (संभवतः अंखेसेनामुन) ने उनके पुत्र जन्नान्जा से विवाह का प्रस्ताव भेजा, लेकिन यह विवाह नहीं हुआ क्योंकि जन्नान्जा की हत्या कर दी गई।
सुप्पिलुल्युमस के बाद उनके पुत्र अर्नुवंदस द्वितीय (1346-1345 ईसा पूर्व) और मुर्सिली द्वितीय (1345-1315 ईसा पूर्व) ने शासन किया। मुर्सिली द्वितीय ने अरजावा में विद्रोह दबाया और उत्तरी सीमाओं को सुरक्षित किया। मुवातल्ली द्वितीय (1315-1296 ईसा पूर्व) के शासनकाल में कादेश का युद्ध (1274 ईसा पूर्व) हुआ, जिसमें उन्होंने मिस्र के रामेसेस द्वितीय का सामना किया। इस युद्ध को रामेसेस ने अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया, लेकिन हित्ती अभिलेखों के अनुसार यह एक कड़ा मुकाबला था। हत्तुसिली तृतीय (1289-1265 ईसा पूर्व) ने 1258 ईसा पूर्व में रामेसेस द्वितीय के साथ विष्व की पहली लिखित शांति संधि पर हस्ताक्षर किए, जो सीमा, व्यापार और युद्धबंदियों के आदान-प्रदान को नियंत्रित करती थी। हत्तुसिली ने अपनी पुत्री का विवाह रामेसेस से भी किया, जिसने दोनों साम्राज्यों के बीच संबंध और मजबूत हो गए।
साम्राज्य का पतन
लगभग 1180 ईसा पूर्व में कांस्य युग के पतन के दौरान हित्ती साम्राज्य कई कारणों से ढह गया। समुद्री लोगों के आक्रमण, फ्रीजियन हमले, गृहयुद्ध और असीरियन दबाव ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया। हट्टूसा को आग के हवाले कर दिया गया, और साम्राज्य छोटे-छोटे नव-हित्ती राज्यों, जैसे कार्केमिश, तबाल और मेलिद में बिखर गया। ये राज्य 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित रहे, लेकिन अंततः नव-असीरियन साम्राज्य में समाहित हो गए। काँस्य युग का पतन जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट और बड़े पैमाने पर प्रवास से भी प्रभावित था। नव-हित्ती राज्यों ने हित्ती सांस्कृतिक तत्वों, जैसे लुवियन भाषा और चित्रलिपि को बनाए रखा, लेकिन उनकी राजनीतिक शक्ति सीमित थी।
सुप्पिलुल्युमस प्रथम का शासनकाल: संगठन और उत्कर्ष
आंतरिक संगठन और सुरक्षा
सुप्पिलुल्युमस प्रथम ने हित्ती साम्राज्य को एक सुसंगठित और शक्तिशाली इकाई में बदल दिया। उन्होंने आंतरिक अस्थिरता को समाप्त करने के लिए प्रशासनिक सुधार किए। हट्टूसा को दोहरी प्राचीरों, गुप्त सुरंगों और विशाल द्वारों से सुरक्षित किया गया, जिसने इसे आक्रमणों से अभेद्य बनाया। पंकु सभा को और सशक्त किया गया, जो राजा को सलाह देने और गंभीर अपराधों, जैसे राजद्रोह और हत्या के मामलों में निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार थी। सुप्पिलुल्युमस ने प्रांतीय प्रशासन को मजबूत किया, जिसमें राजपुत्रों और वफादार सामंतों को प्रांतों का प्रबंधन सौंपा गया। उन्होंने केंद्रीकृत कर प्रणाली लागू की, जिसने साम्राज्य की आर्थिक स्थिरता को बढ़ाया। उनके सुधारों ने साम्राज्य को एकजुट और सुव्यवस्थित बनाया, जिसने सैन्य और राजनयिक अभियानों के लिए मजबूत आधार प्रदान किया।
सैन्य संगठन और रथ शक्ति
सुप्पिलुल्युमस के शासनकाल में हित्ती सेना अपनी रथ शक्ति के लिए प्रसिद्ध थी। उनके रथ छह तीली वाले पहियों के साथ थे और तीन सैनिकों-चालक, धनुर्धर और भालाधारी को ले जाते थे। रथों का बड़े पैमाने पर उपयोग ने हित्ती सेना को गतिशील और अजेय बनाया। सुप्पिलुल्युमस ने सैन्य प्रशिक्षण और संगठन को बेहतर किया, जिससे उनकी सेना ने मितानी, अरजावा और सीरिया में अभूतपूर्व सफलताएँ हासिल कीं। रथों की रणनीति में आश्चर्य और गति का उपयोग प्रमुख था, जैसा कि कादेश और वस्सुकन्नी के आक्रमणों में देखा गया। हित्ती सेना में पैदल सैनिकों की संख्या भी अधिक थी, लेकिन रथारोही युद्ध में निर्णायक थे। सुप्पिलुल्युमस ने सैन्य अभियानों में जासूसी और गुप्त रणनीतियों का भी उपयोग किया, जिसने उनकी विजयों को और प्रभावी बनाया।
राजनयिक उपलब्धियाँ
सुप्पिलुल्युमस ने जटिल कानून और संधियाँ विकसित कीं, जो हित्ती साम्राज्य की राजनयिक शक्ति का परिचायक थीं। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि मिस्र के साथ कादेश की शांति संधि (1258 ईसा पूर्व, उनके उत्तराधिकारी हत्तुसिली तृतीय के समय) की नींव रखना थी। उनके शासनकाल में मिस्र की विधवा महारानी (संभवतः अंखेसेनामुन) ने उनके पुत्र जन्नान्जा से विवाह का प्रस्ताव भेजा, जो मिस्र-हित्ती संबंधों की सुदृढ़ता का प्रमाण है। लेकिन इस प्रस्ताव का दुखद अंत हुआ, क्योंकि जन्नान्जा की हत्या कर दी गई। सुप्पिलुल्युमस ने असीरिया, बेबीलोनिया और अन्य पड़ोसी राज्यों के साथ भी राजनयिक पत्राचार बनाए रखा, जो अमरना पत्रों से स्पष्ट है। उनके पत्र मिस्र के फराओ आमेनहोतेप चतुर्थ को बधाई और शुभकामनाएँ देते हैं, जो उनके कूटनीतिक कौशल के द्योतक हैं। सुप्पिलुल्युमस ने वशीभूत राज्यों के साथ संधियाँ कीं, जो कर और सैन्य सहायता प्रदान करते थे, जिसने साम्राज्य की स्थिरता को बढ़ाया।
सैन्य अभियान
सुप्पिलुल्युमस के सैन्य अभियानों ने हित्ती साम्राज्य को मध्य पूर्व की महाशक्ति बनाया। उनके प्रमुख अभियान निम्नलिखित थे:
अरजावा के खिलाफ: दक्षिण-पश्चिम अनातोलिया में अरजावा के विद्रोही राज्यों को कुचलकर हित्ती नियंत्रण स्थापित किया। अरजावा के शासकों को पराजित कर उनकी स्वायत्तता समाप्त की गई और यह क्षेत्र हित्ती साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
मितानी के खिलाफ: मितानी की राजधानी वस्सुकन्नी को लूटा गया और मितानी को वशीभूत राज्य बनाया गया। यह अभियान हित्ती साम्राज्य की पूर्वी सीमाओं को सुरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण था। मितानी के शासक को करदाता बनाया गया और हित्ती प्रभाव मेसोपोटामिया तक विस्तारित हुआ।
सीरिया और लेवेंट: उत्तरी सीरिया में हलब और कादेश पर विजय प्राप्त की। कादेश ने प्रतिरोध किया, लेकिन अंततः पराजित हुआ। बाइब्लोस जैसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों को मिस्र से छीन लिया गया। इन अभियानों ने हित्ती साम्राज्य को अनातोलिया, उत्तरी लेवेंट और ऊपरी मेसोपोटामिया तक फैलाया। 1340 ईसा पूर्व तक हित्ती मध्य पूर्व की प्रमुख शक्तियों में से एक बन गए।
सुप्पिलुल्युमस की रणनीति में गति, आश्चर्य और कूटनीति का संयोजन था। उन्होंने शत्रु राज्यों को कमजोर करने के लिए उनके आंतरिक विद्रोहों का लाभ उठाया और संधियों के माध्यम से दीर्घकालिक नियंत्रण स्थापित किया।
सामाजिक और राजनीतिक संगठन
केंद्रीय प्रशासन
हित्ती राज्य एक संवैधानिक राजतंत्र था, जिसमें राजा सर्वाेच्च शासक, सेनापति, मुख्य न्यायाधीश और प्रधान पुरोहित था। ‘पंकु’ नामक सभा ने राजा को सलाह दी और गंभीर अपराधों, जैसे राजद्रोह और हत्या का निर्णय लिया। तवन्नन्नस (महारानी) प्रशासन में महत्त्वपूर्ण थीं और कभी-कभी स्वतंत्र रूप से शासन भी करती थीं, जैसे पुदुहेपा, जिन्होंने मिस्र के साथ राजनयिक पत्राचार किया। तेलिपिनु के सुधारों ने उत्तराधिकार के नियमों को स्पष्ट किया, जिसमें प्रथम साम्राज्ञी का पुत्र, फिर द्वितीय साम्राज्ञी का पुत्र और उनके अभाव में प्रथम साम्राज्ञी का जामाता उत्तराधिकारी होता था। सुप्पिलुल्युमस ने इस व्यवस्था को और मजबूत किया, जिससे प्रशासन अधिक कुशल और केंद्रीकृत हुआ। पंकु सभा को संवैधानिक शक्ति प्रदान की गई, जिसने राजा की निरंकुशता को संतुलित किया।
प्रांतीय प्रशासन
साम्राज्य के प्रांत तीन श्रेणियों में थे: प्रथम श्रेणी में राजपुत्रों द्वारा शासित क्षेत्र, जो राजा के प्रति वफादार थे; द्वितीय श्रेणी में स्वायत्त क्षेत्र, जो कर और सैन्य सहायता प्रदान करते थे और तृतीय श्रेणी में पूर्णतः अधीन क्षेत्र, जिनका प्रशासन केंद्रीय नियंत्रण में था।
‘हत्ती की भूमि’ साम्राज्य का मुख्य क्षेत्र थी, जिसमें हट्टूसा, नेशा और अन्य प्रमुख नगर शामिल थे। सुप्पिलुल्युमस ने प्रांतीय प्रशासकों की नियुक्ति और निगरानी को व्यवस्थित किया, जिसने साम्राज्य की एकता को बनाए रखा। प्रांतों को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान करने के लिए बाध्य किया गया, जिसने साम्राज्य की स्थिरता को बढ़ाया।
विधि संहिता
हित्ती विधि संहिता में 186 लेख थे, जो कृषि, व्यापार, चोरी, हत्या, यौन अपराध और संपत्ति विवादों को नियंत्रित करते थे। दंड मुख्य रूप से क्षतिपूर्ति पर आधारित थे और मृत्युदंड केवल गंभीर अपराधों, जैसे राजद्रोह या बलात्कार, के लिए था। 15वीं शताब्दी में सुधारों ने दंड को और मानवीय बनाया, जैसे शारीरिक दंड को हटाना और मौद्रिक जुर्माने को बढ़ावा देना, जैसे चोरी के लिए सजा चोरी की गई वस्तु का मूल्य लौटाना पड़ता था। हत्या के मामले में मृत्युदंड के बजाय मुआवजा देना पड़ता था, जो अन्य समकालीन सभ्यताओं से भिन्न था। सुप्पिलुल्युमस के समय में ये कानून और सख्ती से लागू किए गए, जिसने सामाजिक व्यवस्था को मजबूत किया। विधि संहिता में विवाह और संपत्ति के नियम भी शामिल थे, जैसे दास और स्वतंत्र व्यक्तियों के विवाह के लिए दिशानिर्देश।
सैन्य संगठन
हित्ती सेना अपनी रथ शक्ति के लिए प्रसिद्ध थी। उनके रथ छह तीली वाले पहियों के साथ थे और तीन सैनिकों- चालक, धनुर्धर और भालाधारी को ले जाते थे। सुप्पिलुल्युमस ने रथों की संख्या और प्रशिक्षण में सुधार किया, जिससे उनकी सेना गतिशील और प्रभावी बनी। रथारोही युद्ध में निर्णायक थे, क्योंकि वे शत्रु की पैदल सेना को आसानी से भेद सकते थे। हित्ती सेना में पैदल सैनिकों की संख्या भी अधिक थी, जो रक्षात्मक और आक्रामक दोनों भूमिकाएँ निभाते थे। हट्टूसा जैसे नगरों को दोहरी प्राचीरों और गुप्त सुरंगों से सुरक्षित किया गया था, जो आपातकाल में निकास के रूप में कार्य करती थीं। कादेश का युद्ध (1274 ईसा पूर्व) हित्ती सैन्य रणनीति का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें उन्होंने मिस्र की सेना को आश्चर्यचकित किया और रथों का प्रभावी उपयोग किया। सुप्पिलुल्युमस ने जासूसी और गुप्त रणनीतियों का भी उपयोग किया, जिसने उनकी विजयों को और प्रभावी बनाया।
आर्थिक संगठन
हित्ती अर्थव्यवस्था कृषि, पशुपालन और खनन पर आधारित थी। जौ, गेहूँ, अंगूर, जैतून और फल प्रमुख उपज थे। भूमि मुख्यतः राजा, मंदिरों और अभिजात वर्ग के पास थी। हित्ती लोहे के उपयोग में अग्रणी थे, जिसने उनके सैन्य उपकरणों और व्यापार को मजबूत किया। सुप्पिलुल्युमस के शासनकाल में लोहे की तकनीक को और विकसित किया गया, जिसने लौह युग की शुरुआत में योगदान दिया। चाँदी के शेकेल और छल्ले मुद्रा के रूप में उपयोग होते थे। एक शेकेल 8.3 ग्राम चाँदी के बराबर था और 150 लीटर गेहूँ या 3,600 वर्ग मीटर भूमि खरीद सकता था। असीरियन व्यापारिक उपनिवेशों के साथ व्यापार ने हित्ती अर्थव्यवस्था को समृद्ध किया, जिसमें टिन, वस्त्र और धातुओं का आयात-निर्यात होता था। मंदिर अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे और सुप्पिलुल्युमस ने मंदिरों को आर्थिक सहायता प्रदान की। पशुपालन में बैल, भेड़ और बकरियाँ शामिल थीं, जो खाद्य और ऊन के स्रोत थे। अनातोलिया की खनिज संपदा, विशेष रूप से चाँदी और लोहा ने हित्ती व्यापार को मध्य पूर्व में प्रभावशाली बनाया।
धर्म और पौराणिक कथाएँ
देवमंडल
हित्ती धर्म बहुदेववादी और प्रकृति-पूजा पर आधारित था। तेशुब (तूफान देवता), हेबत (सूर्य देवी) और अरिन्ना (सूर्य देवी) प्रमुख देवता थे। तेशुब को बैल और हेबत को सिंह से दर्शाया जाता था। हित्तियों ने हत्ती, हुर्रियन और मेसोपोटामियाई देवताओं को आत्मसात किया, जिससे उनका देवमंडल ‘हज़ार देवताओं’ के रूप में जाना गया। सुप्पिलुल्युमस ने धार्मिक एकीकरण को बढ़ावा दिया, जिसमें स्थानीय देवताओं, जैसे कट्टाहा (हत्ती देवी), को हित्ती परंपराओं में शामिल किया गया। यह एकीकरण साम्राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक एकता को बढ़ाने का प्रयास था। तेशुब को विजय और युद्ध का देवता माना जाता था और उनकी पूजा सैन्य अभियानों से पहले विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण थी।
8.2. धार्मिक प्रथाएँ
मंदिर सामाजिक और आर्थिक केंद्र थे। राजा और रानी धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते थे, जिसमें पशुबलि (वृषभ, मेष और अजा), नृत्य और रथ-यात्राएँ शामिल थीं। हट्टूसा में याजिलीका चट्टान मंदिर में 83 देवताओं की नक्काशी मिली है, जो हित्ती धर्म की जटिलता का साक्षी है। सुप्पिलुल्युमस ने धार्मिक उत्सवों, जैसे पुरुली और नुनतारियास को प्रोत्साहित किया, जिसने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। हित्ती स्वप्नों और यकृत परीक्षण के माध्यम से देवताओं की इच्छा जानने का प्रयास करते थे। काला जादू दंडनीय था, लेकिन सफेद जादू शुभ कार्यों के लिए उपयोग होता था। धार्मिक प्रथाएँ साम्राज्य की एकता और शासक की वैधता को मजबूत करती थीं।
सांस्कृतिक योगदान
कला और स्थापत्य
हित्ती कला में चट्टान नक्काशी और स्मारक प्रमुख थे। याज़िलीका चट्टान मंदिर में देवताओं की गत्यात्मक नक्काशी उनकी कलात्मक कुशलता को दर्शाती है। अलाका होयूक के स्फिंक्स गेट और हट्टूसा के सिंह द्वार जटिल अभियंत्रिकी के उदाहरण हैं। हट्टूसा एक विशाल किला-शहर था, जिसमें मंदिर, महल और दोहरी प्राचीरें थीं। सुप्पिलुल्युमस के समय में हट्टूसा का पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण किया गया, जिसमें नए मंदिर और प्राचीरें बनाई गईं। हित्ती स्थापत्य में मेसोपोटामियाई और स्थानीय अनातोलियन तत्वों का मिश्रण था। उनकी मूर्तियाँ, जैसे बोगाजकोय का द्वाररक्षक योद्धा शक्तिशाली लेकिन सादगीपूर्ण शैली को प्रदर्षित करते हैं। नव-हित्ती काल में कला में सीरियन, असीरियन और मिस्री प्रभाव देखे गए।
9.2. साहित्य और लेखन
हित्ती साहित्य में पौराणिक कथाएँ, प्रार्थनाएँ और राजनयिक पत्र शामिल थे। अनीता की कहानी और तेलिपिनु की पौराणिक कथा उनकी साहित्यिक परंपरा का प्रमाण हैं। गिल्गामेश और नागदेव के वध जैसे मेसोपोटामियाई कथाओं का हित्ती संस्करण भी मिलता है। क्यूनिफॉर्म और चित्रलिपि ने उनके लेखन को समृद्ध किया। सुप्पिलुल्युमस के समय में राजनयिक पत्राचार, जैसे अमरना पत्र उनकी बौद्धिक प्रगति का सूचक हैं। ये पत्र अक्कादी भाषा में लिखे गए थे, जो प्राचीन विष्व की राजनयिक भाषा थी। हित्ती अभिलेखों ने प्रशासन, धर्म और इतिहास को प्रलेखित किया, जो आज भी अध्ययन का विषय हैं।
राजनयिक योगदान
हित्तियों का सबसे बड़ा योगदान कादेश की शांति संधि (1258 ईसा पूर्व) है, जिसकी नींव सुप्पिलुल्युमस के राजनयिक प्रयासों ने रखी। यह संधि मिस्र और हित्ती साम्राज्य के बीच सीमा, व्यापार और युद्धबंदियों के आदान-प्रदान को नियंत्रित करती थी। यह विष्व की पहली लिखित शांति संधि थी, जिसकी प्रतिलिपियाँ हट्टूसा और कर्नाक मंदिर में पाई गईं। सुप्पिलुल्युमस के पत्राचार ने मिस्र, असीरिया और बेबीलोनिया के साथ संबंधों को मजबूत किया। उनकी संधियाँ और विवाह गठबंधन, जैसे हत्तुसिली तृतीय की पुत्री का रामेसेस द्वितीय से विवाह ने दीर्घकालिक शांति और सहयोग को बढ़ावा दिया।
हित्ती सभ्यता का पतन और योगदान
कांस्य युग के पतन (1200-1150 ईसा पूर्व) के दौरान हित्ती साम्राज्य कई छोटे नव-हित्ती राज्यों में विखंडित हो गया। समुद्री लोगों के आक्रमण, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट और आंतरिक अस्थिरता इसके पतन के कारण थे। फ्रीजियन हमलों ने हट्टूसा को नष्ट कर दिया और साम्राज्य का केंद्रीय प्रशासन ढह गया। नव-हित्ती राज्य, जैसे कार्केमिश, तबाल और मेलिद कुछ समय तक जीवित रहे और सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखी। ये राज्य लुवियन भाषा और चित्रलिपि का उपयोग करते थे। 8वीं शताब्दी ईसा पूर्व में ये राज्य नव-असीरियन साम्राज्य में समाहित हो गए।
हित्ती सभ्यता का योगदान इंडो-यूरोपीय भाषा अध्ययन, राजनयिक प्रथाओं और लोहे के उपयोग में देखा जा सकता है। उनकी लोहे की तकनीक ने प्राचीन विष्व में सैन्य और आर्थिक क्रांति लाई। कादेश की संधि ने राजनयिक इतिहास में एक मील का पत्थर स्थापित किया। हट्टूसा के अभिलेखों और पुरातात्त्विक स्थलों ने प्राचीन विष्व के इतिहास को समझने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हट्टूसा आज यूनेस्को विष्व धरोहर स्थल है, जो इस सभ्यता की महानता का प्रमाण है। सुप्पिलुल्युमस प्रथम की सैन्य, प्रशासनिक और राजनयिक उपलब्धियों ने हित्ती साम्राज्य को प्राचीन विष्व की एक महाशक्ति बना दिया, जिसका प्रभाव आज भी अध्ययन का विषय है।