हम्मुराबी की विधि-संहिता बेबीलोनियन साम्राज्य के प्रशासन और सामाजिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है, जो न केवल उस समय के समाज को व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण थी, बल्कि प्राचीन विश्व की कानूनी परंपराओं पर भी गहरा प्रभाव डालने वाली सिद्ध हुई। हम्मुराबी (1792-1750 ईसा पूर्व) एक विजेता, साम्राज्य-निर्माता, कुशल प्रशासक और दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे। वह जानते थे कि सुव्यवस्थित और एकसमान शासन-तंत्र ही साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान कर सकता है। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी प्रसिद्ध विधि-संहिता की रचना की, जिसे उनके शासनकाल के अंतिम दो-तीन वर्षों में तैयार किया गया। यह संहिता बेबीलोनियनों के लिए न केवल एक कानूनी ढाँचा थी, बल्कि लगभग 1500 वर्षों तक मेसोपोटामिया के विधान का आधार बनी रही।
विधि-संहिता की विशेषताएँ
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Toggleहम्मुराबी की विधि-संहिता सुमेरियन शासक शुल्गी की विधि-संहिता से प्रेरित थी, लेकिन हम्मुराबी ने इसे अपने साम्राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप संशोधित और परिष्कृत किया।
स्थानीय कानूनों का एकीकरण: हम्मुराबी के समय से पहले बेबीलोनियन कानून स्थानीय परंपराओं पर आधारित थे, जो विभिन्न नगर-राज्यों में भिन्न-भिन्न थे। हम्मुराबी ने इन स्थानीय परंपराओं को संग्रहीत कर एक सामान्य और एकसमान कानूनी ढाँचा तैयार किया, जिसे पूरे साम्राज्य में लागू किया गया।
धाराओं की संरचना: इस संहिता में मूल रूप से 285 धाराएँ थीं, जिनमें से 282 धाराएँ अब उपलब्ध हैं। इन्हें वैयक्तिक संपत्ति, व्यापार-वाणिज्य, परिवार, अपराध, श्रम और अन्य सामाजिक-आर्थिक विषयों में विभाजित किया गया था।
दस्तावेजीकरण और प्रदर्शन: यह संहिता ढाई मीटर ऊँचे काले डायोराइट पाषाण-स्तंभ पर उत्कीर्ण की गई थी, जिसे मर्दुक के मंदिर में स्थापित किया गया। बाद में इसे एलमियों द्वारा सुसा ले जाया गया, जहाँ इसे 1901 में खोजा गया। इसकी रचना को दैवी प्रेरणा से जोड़ा गया, जिसने इसे धार्मिक और कानूनी दोनों रूपों में महत्त्वपूर्ण बनाया।
प्रमुख धाराएँ और उद्देश्य
हम्मुराबी की विधि-संहिता में विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और आपराधिक मामलों को व्यवस्थित करने के लिए विस्तृत नियम शामिल थे। इनमें से कुछ प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं:
राजकीय अपराध
साक्षियों को धमकाने वाले व्यक्ति को मृत्युदंड दिया जाता था, जिससे न्याय प्रक्रिया की पवित्रता को बनाए रखा जाता था। अभिचार (जादू-टोना) के आरोप में व्यक्ति को नदी में डुबोकर परीक्षा दी जाती थी। यदि वह बच जाता, तो अभियोक्ता को दंडित किया जाता था।
चोरी से संबंधित नियम
मंदिर या राजप्रासाद से चोरी करने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था। मंदिर से पशु चुराने पर चोर को पशु के मूल्य का 30 गुना दंड देना पड़ता था, जबकि निम्न वर्ग के पशु चुराने पर 10 गुना दंड निर्धारित था। बिना साक्ष्य या अनुबंध-पत्र के सोना, चाँदी, दास, बैल, भेड़ या गधा खरीदने वाले को चोर माना जाता था और उसे मृत्युदंड दिया जाता था।
पारिवारिक कानून
यदि कोई कर्जदार अपनी पत्नी, पुत्र या पुत्री को साहूकार को देता था, तो उन्हें तीन वर्ष तक कार्य करना पड़ता था, जिसके बाद उनकी मुक्ति हो जाती थी। यदि पत्नी पतिगृह के बाहर समय बिताती, मूर्खता करती, संपत्ति का दुरुपयोग करती या पति की अवज्ञा करती थी, तो पति उसे तलाक दे सकता था। ऐसी स्थिति में पत्नी को दहेज का हिस्सा नहीं मिलता था। यदि पति स्पष्ट रूप से ‘मैं तुम्हें तलाक देता हूँ’ नहीं कहता था, तो वह दूसरी पत्नी रख सकता था, लेकिन पहली पत्नी को दासी की स्थिति में रहना पड़ सकता था। यदि विवाह में संतान नहीं होती थी और तलाक होता था, तो पत्नी को दहेज सहित अपने पिता के घर लौटने का अधिकार था। व्यभिचार के मामले में दोषी स्त्री को जल में डुबोकर दंडित किया जाता था। यदि पति द्वारा अपशब्द कहने पर पत्नी निर्दाेष सिद्ध होती थी, तो वह दहेज सहित अपने पिता के घर लौट सकती थी।
शारीरिक हानि
यदि किसी ने अपने पिता को चोट पहुँचाई, तो उसका हाथ काट दिया जाता था। जैसे को तैसा सिद्धांत के आधार पर समान सामाजिक स्तर के व्यक्ति की आँख फोड़ने पर अपराधी की आँख फोड़ी जाती थी। यदि कोई धनवान व्यक्ति निर्धन की आँख फोड़ता था, तो उसे एक मिना चाँदी दंड के रूप में देना पड़ता था। यदि किसी शिष्ट महिला का गर्भस्राव करवाया जाता था, तो अपराधी को 10 शेकेल चाँदी जुर्माना देना पड़ता था। यदि महिला की मृत्यु हो जाती थी, तो अपराधी की पुत्री को मृत्युदंड दिया जाता था।
चिकित्सा और निर्माण
यदि चिकित्सक के ऑपरेशन के दौरान मरीज की मृत्यु हो जाती थी या उसकी आँख नष्ट हो जाती थी, तो चिकित्सक का हाथ काट दिया जाता था। यदि दास की मृत्यु होती थी, तो चिकित्सक को एक नया दास देना पड़ता था। यदि कोई मकान धराशायी हो जाता था और गृहस्वामी की मृत्यु हो जाती थी, तो शिल्पी को मृत्युदंड दिया जाता था। यदि गृहस्वामी का पुत्र मरता था, तो शिल्पी के पुत्र को मृत्युदंड दिया जाता था। यदि दास मरता था, तो शिल्पी को एक नया दास देना पड़ता था।
अन्य नियम
नाविक की असावधानी से नाव डूबने पर उसे दूसरा जलपोत देना पड़ता था। यदि कोई अपराध सिद्ध नहीं होता था, तो अभियोक्ता को मृत्युदंड दिया जाता था। भगोड़े दास को शरण देने वाले को मृत्युदंड दिया जाता था। सैनिक द्वारा अभियान में न जाने पर मृत्युदंड निर्धारित था। यदि कोई सैनिक पकड़ा जाता था, तो उसकी संपत्ति वापस की जाती थी। यदि कोई सैनिक अपने सेवाकाल में मर जाता था, तो उसकी संपत्ति उसके पुत्र को दी जाती थी। यदि कोई मद्य-विक्रेता डाकुओं की सूचना नहीं देता था, तो उसे मृत्युदंड दिया जाता था। यदि पहली पत्नी और दासी से बच्चे होते थे और पति उन्हें जीवनकाल में स्वीकार करता था, तो उन्हें संपत्ति में हिस्सा मिलता था। यदि वह उन्हें स्वीकार नहीं करता था, तो उन्हें कोई हिस्सा नहीं मिलता था।
विधि-संहिता के उद्देश्य और विशेषताएँ
हम्मुराबी की विधि-संहिता के प्रमुख उद्देश्य और विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
कठोर दंड व्यवस्था: विधि-संहिता का प्राथमिक उद्देश्य अपराधों को नियंत्रित करने के लिए कठोर दंड व्यवस्था स्थापित करना था। यह सुमेरियन दंड-व्यवस्था से अधिक कठोर थी और इसमें ‘जैसे को तैसा’ सिद्धांत को अपनाया गया था, जैसे आँख फोड़ने की सजा में अपराधी की आँख फोड़ दी जाती थी।
सामाजिक स्थिति के आधार पर दंड: दंड निर्धारण में अभियोक्ता और अभियुक्त की सामाजिक स्थिति का ध्यान रखा जाता था। उच्च वर्ग के अपराधियों को अधिक कठोर दंड और निम्न वर्ग को अपेक्षाकृत कम दंड दिया जाता था। उच्च वर्ग को मनमानी करने की अनुमति नहीं थी और कर्तव्य न निभाने पर उन्हें भी दंडित किया जाता था।
निष्पक्ष न्याय व्यवस्था: विधि-संहिता ने निष्पक्ष और एकसमान न्याय सुनिश्चित करने के लिए राजकीय न्यायालयों की स्थापना की। न्यायाधीश शासक द्वारा नियुक्त किए जाते थे और अनियमितता पर उन्हें कठोर दंड दिया जाता था। पुनरावेदन का अधिकार शासक के पास था और बेबीलोन का सर्वोच्च न्यायालय साम्राज्य का केंद्रीय न्यायिक केंद्र था। दूरस्थ नगरों में विशेष अधिकारी नियुक्त किए गए थे। झूठे मुकदमे दायर करने वाले वादी को भी दंडित किया जाता था।
सामाजिक समन्वय: बेबीलोनियन समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया गया था- उच्च (अबीलुम), मध्यम (मुस्केनुम), और दास (वरदु)। उच्च वर्ग पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी, और उनके द्वारा की गई हानि पर कठोर दंड दिया जाता था। मध्यम वर्ग समाज की रीढ़ था, जिसमें किसान, कारीगर और छोटे व्यापारी शामिल थे। दास वर्ग की स्थिति सुधारने के लिए कुछ प्रावधान थे, जैसे स्वामी के अतिरिक्त अन्य का अधिशासन न होना, विदेश में बिक्री पर रोक और संपत्ति संचय द्वारा स्वतंत्रता खरीदने की अनुमति। ऋण दासता की समय-सीमा भी निर्धारित थी।
आर्थिक समन्वय: विधि-संहिता ने कृषि, व्यापार और उद्योग को व्यवस्थित किया। राज्य द्वारा नहरों और सिंचाई प्रणालियों के माध्यम से कृषि को बढ़ावा दिया गया। दास, जमींदार और काश्तकारों के अधिकार और कर्तव्य निर्धारित किए गए। व्यापार को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाए गए, जैसे पोत स्वामी और व्यापारी के अधिकार, नाविकों की सावधानी, और क्षति पर दंड। सभी लेन-देन लिखित रूप में करने और व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रावधान थे। वस्त्र, चर्म और धातु उद्योग विकसित थे। ऊन का उत्पादन प्रचुर था, और धातु ढलाई से हथियार और आभूषण बनाए जाते थे।
धर्म और कानून का समन्वय: विधि-संहिता धर्म-सापेक्ष और धर्म-निरपेक्ष दोनों थी। इसका प्रारंभ धार्मिक आधार पर हुआ, लेकिन इसका अंत राजनीतिक और प्रशासनिक था। इतिहासकार विल ड्युराँट के अनुसार, यह संहिता असीरियन कानूनों से विकसित थी और रोमन काल से पहले की कानूनी व्यवस्थाओं में श्रेष्ठ थी। इसे आधुनिक यूरोपीय कानूनों से भी तुलनीय माना जाता है।
विधि-संहिता का महत्त्व और प्रभाव
हम्मुराबी की विधि-संहिता ने बेबीलोनियन समाज को एक सुसंगठित और एकसमान कानूनी ढाँचा प्रदान किया, जिसने साम्राज्य की एकता और स्थिरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संहिता के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैंरू
प्रशासनिक एकीकरण: यह संहिता पूरे साम्राज्य में एकसमान कानून लागू करने का पहला प्रयास थी, जिसने स्थानीय परंपराओं को एक सामान्य ढांचे में समाहित किया।
न्यायिक व्यवस्था: इसने निष्पक्ष और पारदर्शी न्याय प्रणाली स्थापित की, जिसमें झूठे मुकदमों और अनियमितताओं को रोकने के लिए कठोर दंड निर्धारित किए गए।
सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था: इसने सामाजिक वर्गों के बीच समन्वय स्थापित किया और आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए स्पष्ट नियम बनाए।
दीर्घकालिक प्रभाव: यह संहिता लगभग 1500 वर्षों तक मेसोपोटामिया के कानूनी ढांचे का आधार बनी रही और बाद की सभ्यताओं, जैसे यूनानी और रोमन, की कानूनी व्यवस्थाओं को प्रभावित किया।
सांस्कृतिक महत्त्व: इस संहिता का पाषाण-स्तंभ, जो वर्तमान में पेरिस के लूवर संग्रहालय में है, बेबीलोनियन सभ्यता की बौद्धिक और प्रशासनिक उपलब्धियों का प्रतीक है।
इस प्रकार हम्मुराबी की विधि-संहिता न केवल बेबीलोनियन समाज के लिए, बल्कि प्राचीन विश्व की कानूनी और प्रशासनिक परंपराओं के लिए भी एक मील का पत्थर थी। इसने निष्पक्षता, सामाजिक समन्वय और आर्थिक स्थिरता के सिद्धांतों को स्थापित किया, जो आज भी कानूनी व्यवस्थाओं के अध्ययन में प्रासंगिक हैं।