चीन की सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन और सतत सभ्यताओं में से एक है, जो अपनी सांस्कृतिक गहराई, तकनीकी उपलब्धियों और सामाजिक संगठन के लिए प्रसिद्ध है। यह सभ्यता न केवल अपने समय में उन्नत थी, बल्कि आज भी अपनी सातत्यता के कारण विश्व में एक विशिष्ट स्थान रखती है।
चीन की सभ्यता की उत्पत्ति का सटीक समय निर्धारित करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन पुरातात्त्विक साक्ष्य इस सभ्यता को लगभग 3000-2000 ईसा पूर्व के आसपास स्थापित करते हैं, जिससे स्पष्ट है कि यह मिस्र, मेसोपोटामिया (लगभग 3500 ई.पू.), मिस्र (लगभग 3100 ई.पू.) और सिंधु घाटी की सभ्यताओं के समकालीन थी।
चीन की सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता इसकी निरंतरता है, क्योंकि यह अन्य प्राचीन सभ्यताओं जैसे मिस्र, मेसोपोटामिया, यूनान और रोम के विपरीत, जो इतिहास के पन्नों तक सीमित हो चुकी हैं, आज भी जीवित और गतिशील है। पाश्चात्य विद्वानों, जैसे वाल्तेयर ने यह दावा किया था कि चीनी साम्राज्य के कानून, परंपराएँ, भाषा और फैशन चार हजार वर्षों से अपरिवर्तित हैं। यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण है, क्योंकि चीनी भाषा (विशेष रूप से मंदारिन और अन्य बोलियाँ), लेखन प्रणाली (जैसे लिपि का विकास) और सामाजिक प्रथाएँ समय के साथ विकसित हुई हैं। फिर भी, हान जाति द्वारा संचालित इस सभ्यता की एकल भाषाई और सांस्कृतिक पहचान ने इसकी सातत्यता को बनाए रखा है। प्राचीन चीनी लिपि, जो लगभग 1200 ईसा पूर्व में शांग राजवंश के दौरान अस्थि-पट्टिकाओं पर विकसित हुई, आज की चीनी लिपि की आधारशिला है।
चीन की सभ्यता ने विश्व को कई महत्त्वपूर्ण योगदान दिए हैं, जिनमें कागज (लगभग 105 ईस्वी में त्साई लुन द्वारा), बारूद (9वीं शताब्दी), कम्पास (11वीं शताब्दी) और मुद्रण कला (8वीं शताब्दी) शामिल हैं। इन आविष्कारों ने न केवल प्राचीन विश्व को प्रभावित किया, बल्कि मध्यकालीन यूरोप में प्रबुद्धता युग को भी प्रेरित किया। चीनी दर्शन, विशेष रूप से कन्फ्यूशियस की नैतिकता और ताओवादी विचारधारा ने एशिया और विश्व के अन्य भागों में सामाजिक और दार्शनिक विचारों को आकार दिया है। एलिस और जॉन जैसे विद्वानों ने चीन की सांस्कृतिक विचित्रताओं को रंगीन और पाश्चात्य देशों से भिन्न बताया है। रेशम, चीनी मिट्टी के बर्तन, कागज की लालटेनें और विशाल दीवार जैसे प्रतीक आज भी विश्व को आकर्षित करते हैं। विल ड्यूरेंट जैसे इतिहासकारों ने चीनी सभ्यता को कला, बुद्धि, दर्शन और नीति में अन्य प्राचीन सभ्यताओं से श्रेष्ठ बताया है। यह सभ्यता नदियों की उपजाऊ घाटियों, विशेष रूप से ह्वांग हो और यांग्त्से के मैदानों में विकसित हुई, जिसने स्थायी कृषि और बस्तियों को बढ़ावा दिया। इस कारण चीनी लोगों को ‘चालीस शताब्दियों का किसान’ कहा गया है, जो उनकी कृषि-आधारित जीवनशैली का द्योतक है।

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Toggleभौगोलिक स्थिति
चीन की सभ्यता का विकास इसकी अनूठी भौगोलिक स्थिति के कारण संभव हुआ, जो इसकी सांस्कृतिक स्वतंत्रता और मौलिकता का आधार बनी। चीन की भौगोलिक स्थिति इसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती थी। यह उत्तर में मंगोलिया और रूस, दक्षिण में हिंदचीन, म्यांमार, भारत और भूटान, पूर्व में प्रशांत महासागर और कोरिया तथा पश्चिम में अफगानिस्तान, ताजिकिस्तान और मध्य एशियाई क्षेत्रों से घिरा है। हिमालय, कराकोरम, पामीर पर्वतमालाएँ और गोबी रेगिस्तान ने इसे बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित रखा, जिससे इसकी सभ्यता बाहरी प्रभावों से अपेक्षाकृत मुक्त रही है। चीन को भौगोलिक दृष्टि से दो भागों में बाँटा जा सकता है: मूल चीन (हान-प्रधान क्षेत्र) और बहिर्वर्ती प्रांत (मंचूरिया, मंगोलिया, शिनजियांग और तिब्बत)।
मूल चीन
मूल चीन, जो ह्वांग हो, यांग्त्से और सीक्यांग नदियों से सिंचित है, प्राचीन चीनी सभ्यता का केंद्र रहा है। ये नदियाँ उत्तरी, मध्य और दक्षिणी चीन को परिभाषित करती हैं। नदियों की भूमिका चीन की सभ्यता का विकास तीन प्रमुख नदियों-ह्वांग हो, यांग्त्से और सीक्यांग के उपजाऊ मैदानों में हुआ। इन नदियों ने कृषि, व्यापार और परिवहन को बढ़ावा दिया।
ह्वांग हो (पीली नदी) नदी कुनलुन पर्वत की सिंग नोर और ओरिंग नोर झीलों से निकलकर पीत सागर में मिलती है। इसकी सहायक नदी, वेई हो तंगक्वान में इससे मिलती है। लोयस पठार से गुजरते समय यह पीली मिट्टी को बहाकर ले जाती है, जिसके कारण इसे ‘पीली नदी’ और इसके मैदान को ‘पीत मैदान’ कहा जाता है। ह्वांग हो बाढ़ों के लिए कुख्यात रही है, जिसे ‘चीन का शोक’, ‘भटकती नदी’ और ‘हजारों अभिशापों की नदी’ कहा गया है। फिर भी, इसकी उपजाऊ मिट्टी ने पीत मैदान को विश्व के सबसे बड़े कृषि क्षेत्रों में से एक बना दिया। प्राचीन चीनी लोगों ने मिट्टी के बाँध बनाकर बाढ़ों को नियंत्रित करने का प्रयास किया, जो उनकी अभियंत्रिकी कुशलता का प्रमाण है। इस नदी की भूमिका मिस्र में नील और मेसोपोटामिया में दजला-फरात नदियों के समान थी।
यांग्त्से नदी तिब्बती पठार के तंगलुला पर्वत से निकलकर चीन सागर में मिलती है। यह चीन की सबसे लंबी नदी (लगभग 6,300 किमी) है और इसका बेसिन देश के 20 प्रतिशत हिस्से तक विस्तृत है। यांग्त्से ने प्राचीन काल से ही कृषि और परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी उपजाऊ घाटियों ने धान की खेती को बढ़ावा दिया, जो दक्षिणी चीन का प्रमुख अनाज है।
सीक्यांग नदी युन्नान पठार से निकलकर दक्षिणी चीन सागर में मिलती है, जो दक्षिणी चीन की कृषि और व्यापार के लिए महत्त्वपूर्ण रही है क्योंकि इसका बेसिन गन्ना, चाय और अन्य उष्णकटिबंधीय फसलों के लिए उपयुक्त है।
बहिर्वर्ती क्षेत्र
मंचूरिया, मंगोलिया, शिनजियांग और तिब्बत जैसे बहिर्वर्ती क्षेत्रों को चीनी शासक अपने साम्राज्य का हिस्सा मानते थे। लेकिन इन क्षेत्रों में सांस्कृतिक और नस्लीय विविधता थी और कभी पूर्ण रूप से चीनी संस्कृति में समाहित नहीं हुए। तिब्बत का पृथक सांस्कृतिक और धार्मिक अस्तित्व एक ऐतिहासिक तथ्य है। इन क्षेत्रों ने समय-समय पर स्वतंत्रता की माँग की, और कुछ अवसरों पर चीन के कमजोर पड़ने पर इस पर आक्रमण भी किए, जैसे मंगोलों ने 13वीं शताब्दी में युआन राजवंश स्थापित किया था।
प्रागैतिहासिक काल
चीन का प्रागैतिहासिक काल मानव विकास और सांस्कृतिक प्रगति का एक महत्त्वपूर्ण चरण है। पुरातात्त्विक साक्ष्यों से इस काल की जीवनशैली और उपलब्धियों को समझने में सहायता मिलती है।
पेकिंग मानव
पेकिंग (वर्तमान बीजिंग) के निकट चाउकुडियन गुफाओं से प्राप्त पेकिंग मानव (होमो इरेक्टस) के अवशेष लगभग 7,00,000-2,00,000 वर्ष पुराने हैं। ये मंगोलॉयड नस्ल से संबंधित थे और प्रारंभिक पत्थर के औजारों, जैसे हथौड़े और काटने वाले उपकरण का उपयोग करते थे। इन अवशेषों में खोपड़ियाँ, दाँत और अन्य अस्थियाँ शामिल हैं, जो प्राचीन चीनी जाति के विकास का परिचायक हैं। पेकिंग मानव को विशिष्ट चीनी जाति का पूर्वज माना जाता है, लेकिन यह मंगोलॉयड समूह का हिस्सा था।
नवपाषाणकालीन संस्कृतियाँ
नवपाषाणकाल (लगभग 7000-2000 ई.पू.) में चीन में कृषि, पशुपालन और मृद्भांड निर्माण की शुरुआत हुई। इस काल में दो प्रमुख संस्कृतियों का उदय हुआ:
यांगशाओ संस्कृति (लगभग 5000-3000 ई.पू.)
हेनान और शानक्सी प्रांतों में विकसित यांगशाओ संस्कृति के अवशेष जे.जी. एंडर्सन द्वारा उत्खनन में प्राप्त हुए। यांगशाओ गाँवों में मिट्टी और लकड़ी के घर, फूस की छतें और मिट्टी से बने चूल्हे और फर्श मिले हैं। मृद्भांड लाल और भूरी मिट्टी से बने थे, जिन पर ज्यामितीय और प्राकृतिक चित्रकारी थी। इस संस्कृति में बाजरा और गेहूँ की खेती प्रचलित थी और सुअर, कुत्ते, बकरी तथा भेड़ जैसे पशु पाले जाते थे। शिकार के लिए तीर-धनुष और अस्थि-फलक युक्त हथियारों का उपयोग होता था।
लुंगशान संस्कृति (लगभग 3000-2000 ई.पू.)
पूर्वी चीन, विशेष रूप से शेडोंग प्रांत में विकसित लुंगशान संस्कृति का उदय यांगशाओ के बाद हुआ। इसके मृद्भांड काले तथा अधिक परिष्कृत थे और सामाजिक संगठन में जटिलता के लक्षण दिखाई देते हैं। लुंगशान संस्कृति में तपाई हुई अस्थियाँ मिली हैं, जिनमें दरारें थीं, जो भविष्यवाणी के लिए उपयोग की जाती थीं। यह संस्कृति शहरीकरण और सामाजिक स्तरीकरण के प्रारंभिक चरणों का परिचायक है। दोनों संस्कृतियों में सातत्यता थी, लेकिन लुंगशान के औजार और मृद्भांड अधिक उन्नत थे। नवपाषाणकाल की इन संस्कृतियों में कृषि और पशुपालन के साथ-साथ शिकार और मछली पकड़ने की परंपराएँ भी प्रचलित थीं। यांगशाओ और लुंगशान संस्कृतियाँ स्वदेशी थीं और इनका विकास बाहरी प्रभावों के बिना हुआ था। लेकिन 2000 ईसा पूर्व के बाद का काल पुरातात्त्विक साक्ष्यों के अभाव में अस्पष्ट है।
ऐतिहासिक स्रोत
चीन का इतिहास समृद्ध साहित्यिक और पुरातात्त्विक स्रोतों पर आधारित है। यद्यपि सम्राट शी ह्वांग टी (221-210 ई.पू.) के शासनकाल में कई ग्रंथ नष्ट कर दिए गए, फिर भी उपलब्ध स्रोतों से चीनी सभ्यता को समझने में सहायता मिलती है। साहित्यिक स्रोत प्राचीन चीनी साहित्य बाँस की खपच्चियों, रेशम और बाद में कागज पर लिखा जाता था। प्रमुख ग्रंथों में ‘शुजिंग’ (किताबों का इतिहास) महत्त्वपूर्ण है, जिसमें शिया, शांग और झोउ राजवंशों के इतिहास का वर्णन है। ‘शिजिंग’ (कविताओं की किताब) में प्राचीन चीनी कविताओं का संग्रह है, जिससे सामाजिक जीवन और अनुष्ठानों की जानकारी मिलती है। ‘लिजी’ (अनुष्ठानों की किताब) में सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं का वर्णन है। इनके अलावा, शांग राजवंश की अस्थि-पट्टिकाएँ चीनी लेखन प्रणाली और धार्मिक प्रथाओं के सबसे प्राचीन साक्ष्य हैं।
हेनान, शानक्सी और शेडोंग जैसे प्रांतों से प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्री, जैसे मृद्भांड, औजार और बस्तियों के अवशेष चीनी इतिहास को समझने के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं। शांग राजवंश (1600-1046 ई.पू.) से संबंधित आन्यांग से कांस्य के बर्तन, युद्ध रथ और लिखित अभिलेख मिले हैं।
चीन का राजनीतिक इतिहास
चीन का राजनीतिक इतिहास पौराणिक और ऐतिहासिक कालों में विभाजित किया गया है। पौराणिक काल पौराणिक काल का इतिहास मिथकों और किंवदंतियों पर आधारित है, जो शिया राजवंश (लगभग 2070-1600 ई.पू.) के उदय से पहले का है। इस काल के प्रमुख शासक और उनकी उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं:
पान कू
चीनी मिथकों के अनुसार पान कू सृष्टि का निर्माता था। उसने आकाश और पृथ्वी को अलग किया और अपनी मृत्यु के बाद उसका शरीर प्रकृति के विभिन्न तत्वों- पहाड़, नदियाँ, हवा और मानव में परिवर्तित हो गया।
तीन अधिपति (सानहुआंग)
तीन अधिपतियों में फू शी, नु वा और शेनोंग शामिल हैं, जिनकी सांस्कृतिक नायक के रूप में पूजा की जाती है:
फू शी: चीनी मिथकों के अनुसार फू शी पहला शासक था, जिसका धड़ अजगर जैसा और सिर मनुष्य जैसा था। उसने परिवार और सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी। फू शी ने शिकार, मछली पकड़ने, पशुपालन, संगीत और लेखन की कला सिखाई। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान ‘पाकुआ’ (आठ रेखाचित्र) का आविष्कार था, जो चीनी लिपि और दर्शन का आधार है।
नु वा: फू शी की बहन और पत्नी नु वा ने विवाह संस्था को व्यवस्थित किया और बाढ़ नियंत्रण के लिए नरकुल की राख का उपयोग किया। दक्षिण-पश्चिमी चीन के कुछ समुदाय उसे अपनी देवी मानते हैं।
शेनोंग: ‘दिव्य किसान’ के रूप में प्रसिद्ध शेनोंग ने कृषि, व्यापार और आयुर्वेद की नींव रखी। उसने हल, कुदाल और बाजार प्रणाली का आविष्कार किया। चीनी किंवदंती के अनुसार उसने 2737 ईसा पूर्व में चाय की खोज की और एक्यूपंक्चर तकनीक की शुरुआत की।
पाँच सम्राट (वूती)
तीन अधिपतियों के बाद पाँच सम्राटों-ह्वांग टी, चुआन शियु, खु, याओ और शुन ने शासन किया:
ह्वांग टी (पीत सम्राट): च सम्राटों में से पहला सम्राट् ह्वांग टी (लगभग 2697-2597 ई.पू.) चीन के पौराणिक इतिहास में ‘पीत सम्राट्’ (यलो सम्राट) के नाम से प्रसिद्ध है, जिसे चीनी जाति का पिता और चीनी सभ्यता का संस्थापक माना जाता हैं। उसने केंद्रीकृत शासन, लिपि और पंचांग की स्थापना की। उसकी रानी ली त्जू ने रेशम उत्पादन शुरू किया, जिसके कारण उसे ‘रेशम की जननी’ कहा जाता है। ह्वांग टी ने बर्बर आक्रमणकारियों को पराजित किया और चिंग-तिएन पद्धति के तहत भूमि वितरण किया। उसके शासनकाल में गाड़ी, ईंट, कम्पास और मुद्रा जैसे आविष्कार हुए।

चुआन शियु और खु: इनके बारे में सीमित जानकारी उपलब्ध है। खु ने संभवतः 2436-2366 ईसा पूर्व तक शासन किया।
याओ: याओ (2358-2258 ई.पू.) को तांग याओ के नाम से जाना जाता है। उसने बाढ़ नियंत्रण के लिए नहरें बनवाईं और एक चीनी खेल का आविष्कार किया। कन्फ्यूशियस ने उसे आदर्श शासक बताया है।
शुन: ‘द ग्रेट शुन’ के नाम से प्रसिद्ध शुन ने विनम्रता और नैतिकता के लिए ख्याति प्राप्त की। उसने शिया राजवंश के संस्थापक यू को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। याओ और शुन का शासनकाल चीनी इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है।
शिया राजवंश (लगभग 2070-1600 ई.पू.)
शिया राजवंश को चीन का पहला ऐतिहासिक राजवंश माना जाता है, जिसकी स्थापना यू महान ने की। यह चीन का पहला राजवंश माना जाता है, जिसका उल्लेख प्राचीन चीनी ग्रंथों जैसे बैम्बू एनल्स, सिमा कियान के रिकॉर्ड्स ऑफ द ग्रैंड हिस्टोरियन और बुक ऑफ डॉक्यूमेंट्स में मिलता है। पश्चिमी इतिहासकार शिया राजवंश को मुख्यतः पौराणिक मानते हैं और इसकी ऐतिहासिकता पर संदेह करते हैं, क्योंकि कोई समकालीन लिखित प्रमाण नहीं मिले हैं। लेकिन 1959 में चीन के हेनान प्रांत में एरललितौ संस्कृति के उत्खनन से शहरी बस्तियाँ, काँस्य अवशेष, महल जैसी संरचनाएँ और कब्रें मिली हैं, जो शिया काल की लगती हैं। एरलितौ संस्कृति (1900-1500 ई.पू.) को शिया का पुरातात्त्विक समकक्ष माना जा सकता है, जहाँ काँस्य बर्तन धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होते थे। इनका अनुकरण शांग और चाउ राजवंशों ने किया। हाल के डीएनए अध्ययनों से भी शिया कालीन जनसंख्या की निरंतरता सिद्ध हुई है।
शिया राजवंश के संस्थापक यू महान को चीन में बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई प्रणाली और कृषि की शुरुआत का श्रेय दिया जाता है, जिससे कृषि और बस्तियाँ सुरक्षित हुईं। पीली नदी की विनाशकारी बाढ़ों से देश को बचाने के लिए यू ने 13 वर्षों तक प्रयास किए, जिसमें नदियों के मार्ग को मोड़ना, नहरें खोदना और जल निकासी की व्यवस्था शामिल थी। उन्होंने नौ प्रमुख नदियों को नियंत्रित किया, जिससे कृषि योग्य भूमि का विस्तार हुआ और सभ्यता का विकास हुआ। चीनी इतिहासकार सिमा कियान ने ‘शिजी’ में चीनी इतिहास की शुरुआत इसी काल से मानी है, जहाँ यू को एक आदर्श शासक के रूप में चित्रित किया गया है, जो नैतिकता और कर्तव्यनिष्ठा का प्रतीक थे।
सामाजिक और आर्थिक विकास
इस काल में चीन में पर्याप्त उन्नति हुई, जिसमें भूमि का व्यवस्थित वितरण, सिंचाई परियोजनाएँ और नियमित कर-व्यवस्था की शुरुआत शामिल थी। शिया समाज मुख्यतः कृषि आधारित था, जहाँ गेहूँ, जौ और बाजरा की खेती होती थी। पुरातात्त्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि इस काल में काँस्य उपकरणों का प्रारंभिक उपयोग शुरू हुआ, लेकिन पूर्ण काँस्य युग शांग काल में आया। शिया काल में सामाजिक संरचना पदानुक्रमित थी, जहाँ राजा को दैवीय अधिकार प्राप्त माना जाता था।
धार्मिक मान्यताएँ और पूजा पद्धतियाँ
शिया काल में ईश्वर की इच्छा की पूजा प्रचलित थी, जिसे ‘तिएन’ (स्वर्ग या आकाश) कहा जाता था। सबसे प्रतिष्ठित देवता ‘शांगदी’ था, जो पृथ्वी पर सभी घटनाओं का निरीक्षण और नियंत्रण करता था। पूर्वज पूजा की शुरुआत भी इसी काल से मानी जाती है, जहाँ बलि और अनुष्ठान महत्त्वपूर्ण थे। इन धार्मिक प्रथाओं ने बाद के राजवंशों की धार्मिक परंपराओं को प्रभावित किया।
धीरे-धीरे शिया वंश का शासन-तंत्र शिथिल होता गया। अंतिम शासक जिए को अत्यंत निर्दयी और विलासी बताया गया है, जो अत्याचार करता था। जिए के शासन में करों का दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और जनता पर अत्याचार बढ़ गए, जिससे विद्रोह हो गया और अंततः शांग जनजाति के नेता चेंग तांग ने जिए को मिंगतियाओ के युद्ध में पराजित कर शांग राजवंश की स्थापना की। यह युद्ध शिया के पतन का प्रतीक है और ‘तिएन का जनादेश’ की अवधारणा की शुरुआत माना जाता है, जहाँ अयोग्य शासक को स्वर्ग द्वारा हटाया जाता है।
शांग राजवंश (1600 ई.पू.-1046 ई.पू.)
चीन का राजनीतिक इतिहास अधिक स्पष्ट रूप से शांग राजवंश से मिलता है, जिसकी स्थापना चेंग तांग ने की थी। शांग साम्राज्य मुख्यतः ह्वांग हो (पीली नदी) की घाटी में एक तिहाई भाग तक विस्तृत था, जिसमें होपेई, शांदोंग, हेनान और अन्हुई के उत्तरी भाग शामिल थे। चीनी इतिहास में इसे यिन काल भी कहा जाता है, क्योंकि अंतिम राजधानी यिन थी। पुरातात्त्विक रूप से इसे ‘कांस्य युग’ की संज्ञा दी जाती है, जहाँ काँस्य तकनीक उन्नत थी।
शांग राजवंश के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत हेनान प्रांत के अन्यांग से मिली लगभग 150,000 ऑरेकल बोन्स हैं, जो बैल की हड्डियों या कछुओं के खोल पर उत्कीर्ण हैं। ये ‘दैववाणी हड्डियाँ’ भविष्यवाणी, मौसम, युद्ध और कृषि से संबंधित प्रश्नों के लिए इस्तेमाल होती थीं। इन्हें गर्म करके फटाव से उत्तर पढ़े जाते थे और ये चीनी लिपि का सबसे प्राचीन प्रमाण हैं। उत्खनन से 11 शाही मकबरे, महल-मंदिरों के अवशेष, हथियार, बलि स्थल और हजारों काँस्य, जेड (हरिताश्म), पत्थर, हड्डी तथा मिट्टी की कलाकृतियाँ मिली हैं।
प्रमुख शासक और राजधानियाँ
साहित्यिक साक्ष्यों से पता चलता है कि शांग वंश के कम से कम 30 राजाओं ने शासन किया। मुख्यतः बाढ़ और विद्रोहों के कारण इनकी राजधानी छह बार स्थानांतरित हुई। 1350 ई.पू. के आसपास राजा पान गेंग ने हुआंग नदी तट पर यिन (अन्यांग) बसाया, जो तीन दिशाओं से नदियों से सुरक्षित और कृषि के लिए उपजाऊ था। यह नगर उच्च स्तरीय काँस्य संस्कृति का केंद्र था। अंतिम राजा दी शिन (राजा झोउ) के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, जो वीर, लेकिन क्रूर था।
समाज, अर्थव्यवस्था और दास प्रथा
शांग समाज पदानुक्रमित था, जहाँ राजा को दैवीय शक्ति प्राप्त माना जाता था। घर मिट्टी और लकड़ी के बने होते थे, छतें घास-फूस की होती थीं। ईंटों का ज्ञान नहीं था। समाज में दास प्रथा प्रचलित थी, दासियों को ‘ची’ कहा जाता था, जिसका अर्थ रखैल या उपपत्नी है। मृत राजाओं के साथ पत्नियों, सेवकों और जानवरों को दफनाने की प्रथा थी, जो मिस्र की पिरामिड परंपराओं से समानता रखती है। अर्थव्यवस्था कृषि, शिकार और व्यापार पर आधारित थी, जहाँ कांस्य हथियार और उपकरण महत्त्वपूर्ण थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताएँ
अधिकांश शासक धर्मप्रधान थे और खुद को ‘ईश्वर का पुत्र’ मानते थे। पूर्वज पूजा और दैववाणी प्रमुख थे, जहाँ ऑरेकल बोन्स से देवताओं से संपर्क किया जाता था। प्रतीकों और अंधविश्वासों की प्रधानता थी। कांस्य कला में जटिल डिजाइन, जैसे टाओटाई मास्क का धार्मिक महत्त्व था। शांग वंश का अंतिम राजा दी शिन अत्यंत वीर और कुशल शासक था, लेकिन क्रूर भी था। उसकी पत्नी दाजी को अत्याचार और व्यभिचार का प्रतीक माना जाता है। राजदरबार में कामुक नृत्य और अय्याशी होती थी। पश्चिमी चाउ राज्य के वेन वांग ने विद्रोह किया, लेकिन दी शिन ने उन्हें पहले बंदी बना लिया और बाद में छोड़ दिया। वेन वांग के पुत्र वु वांग ने 1046 ई.पू. में मुये के युद्ध में दी शिन को हरा दिया। पराजित दी शिन ने अपने महल में आग लगाकर आत्महत्या कर ली और चाउ राजवंश की स्थापना हुई।
चाउ राजवंश (1046 ई.पू.-221 ई.पू.)
चाउ राजवंश की स्थापना से चीन का प्राचीन इतिहास अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट होता है। इस वंश की स्थापना वेन वांग के पुत्र वु वांग ने 1046 ई.पू. में मुये युद्ध के बाद की थी। यह चीन का सबसे लंबे समय तक चलने वाला राजवंश (1046 ई.पू.-221 ई.पू. तक) था। कुछ इतिहासकार चाउ को तुर्की मूल का मानते हैं, जबकि अन्य आर्यों से तुलना करते हैं क्योंकि दोनों रथ युद्ध करते थे। सिमा कियान के अनुसार चाउ उत्तरी चीन के मूल निवासियों से भिन्न होकर भी उनसे संबंधित थे। चाउ मूलतः वेई नदी घाटी (आधुनिक शान्सी) का राज्य था, जहाँ शांग ने उन्हें सीमावर्ती रक्षक नियुक्त किया था। वु वांग ने पीली नदी घाटी पर अधिकार कर चीनी संस्कृति का विस्तार किया।

राजवंश का विभाजन
चाउ राजवंश को मुख्यतः दो भागों में बाँटा जाता है: पश्चिमी चाउ (1046 ई.पू.-771 ई.पू.) और पूर्वी चाउ (770 ई.पू.-221 ई.पू.)। ‘तिएन का जनादेश’ की अवधारणा इसी काल से शुरू हुई, जो शासकों की वैधता को स्वर्गीय प्रदान करती थी। चाउ काल में लौह युग की शुरुआत, कृषि सुधार और दार्शनिक विकास हुआ।
पश्चिमी चाउ काल (1046 ई.पू.-771 ई.पू.)
पश्चिमी चाउ काल के प्रारंभिक शासक शक्तिशाली थे। वु वांग ने शांग को हराया, लेकिन बड़े राज्य को संभालने के लिए वेई घाटी में हाओजिंग (चांगआन के निकट) को राजधानी बनाई और राज्य को रिश्तेदारों को जागीरों में बाँट दिया। कहने के लिए उपराज्य अधीन थे, लेकिन धीरे-धीरे वे स्वतंत्र हो गए। सिंचाई और लौह उपकरणों के विकास से कृषि को बढ़ावा मिला। 771 ई.पू. में उत्तरी बार्बरियन जनजाति के हमले से राजधानी नष्ट हो गई, राजा यू वांग मारा गया और केंद्रीय सत्ता वेई घाटी से खिसक गई।
पूर्वी चाउ काल (770 ई.पू.-221 ई.पू.)
इस काल में राजधानी लुओयांग स्थानांतरित हुई। यह काल वसंत-शरद काल (770-476 ई.पू.) और युद्धरत राज्य काल (475-221 ई.पू.) में बंटा है। केंद्रीय शक्ति के कमजोर होने पर किन, वेई, चू जैसे जागीर राज्य स्वतंत्र हो गए। इस काल में कन्फ्यूशियस, लाओत्से, मेंसियस और सन त्ज़ु जैसे दार्शनिकों का उदय हुआ और ‘सौ विचारधाराओं का स्कूल’ विकसित हुआ, जिसमें कन्फ्यूशियनिज्म, ताओइज्म और लीगलिज्म प्रमुख थे। अर्थव्यवस्था में लौह हल, सिंचाई और मुद्रा प्रणाली उन्नत हुई। युद्ध तकनीकें जैसे क्रॉसबो और घुड़सवार सेना विकसित हुईं। 256 ई.पू. में किन राज्य ने अंतिम चाउ राजा नान वांग को हटा दिया, लेकिन पूर्ण एकीकरण 221 ई.पू. में किन शी हुआंग के समय में हुआ।
सांस्कृतिक और दार्शनिक योगदान
चाउ काल में चीनी साहित्य की नींव पड़ी, जैसे बुक ऑफ ओड्स और बुक ऑफ रिचुअल्स। सामाजिक रूप से सामंतवाद से साम्यवाद की ओर संक्रमण हुआ, जहाँ नैतिकता, परिवार और राज्य की अधीनता पर जोर दिया गया। धार्मिक प्रथाओं में पूर्वज पूजा और दैवीय राजा की अवधारणा मजबूत हुई। सामाजिक और आर्थिक संरचना इस काल में समाज में सामंत प्रथा, दासता की कमजोरी और व्यापार का विकास हुआ, जहाँ किसान, कारीगर और व्यापारी वर्ग का उदय हुआ। निजी संपत्ति की शुरुआत और कर सुधार हुए, जिससे युद्धरत राज्य काल में आर्थिक युद्धों को बढ़ावा मिला। चाउ काल के उत्खनन से हाओजिंग और लुओयांग से महल, कांस्य और लौह अवशेष मिले हैं, जो समाज की उन्नति के सूचक हैं। हाल के उत्खननों से जैसे लुओयांग में शाही कब्रें, जहाँ रथ और घुड़सवार हथियार मिले हैं, जो आर्य प्रभाव का समर्थन करते हैं।
पूर्वी चाऊ काल (771-221 ई.पू.)
पूर्वी चाऊ काल (771-221 ई.पू.) चीनी इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण और परिवर्तनकारी चरण है, जो पश्चिमी चाऊ काल के पतन के बाद शुरू हुआ। यह काल चीनी सभ्यता में सामंतवादी व्यवस्था के कमजोर पड़ने, दार्शनिक विचारधाराओं के उदय और अंततः चिन राजवंश द्वारा चीन के एकीकरण का साक्षी रहा। इसके बाद हान राजवंश ने चीनी सभ्यता को सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। पश्चिमी चाऊ काल (1046-771 ई.पू.) में चाऊ राजवंश को अपनी राजधानी हाओजिंग से वेई नदी घाटी में लोयांग (होनान प्रांत) में स्थानांतरित करनी पड़ी, क्योंकि 771 ईसा पूर्व में बर्बर जनजातियों और आंतरिक विद्रोहियों ने यू वांग को पराजित कर उसकी राजधानी लूट ली थी। राजधानी परिवर्तन के बाद पूर्वी चाऊ काल की शुरुआत हुई।
राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद पूर्वी चाऊ काल चीनी सभ्यता के लिए एक बौद्धिक और सांस्कृतिक स्वर्णयुग था। इस काल में कन्फ्यूशियसवाद, ताओवाद, न्यायवाद और मोहीवाद जैसी विचारधाराओं का उदय हुआ, जिन्होंने चीनी दर्शन और शासन प्रणाली को प्रभावित किया। साथ ही, कांस्य और लोहे के औजारों, चित्रलिपि और मुद्रा प्रणाली के विकास ने आर्थिक और सामाजिक प्रगति को बढ़ावा दिया।
पूर्वी चाऊ काल को दो उप-कालों में विभाजित किया जाता है: बसंत और शरद काल (771-476 ई.पू.) तथा संघर्षरत राज्यों का काल (476-221 ई.पू.)। इस काल में चाऊ सम्राटों की शक्ति प्रतीकात्मक रह गई थी और वास्तविक सत्ता क्षेत्रीय जागीरदारों और राज्यों के हाथ में थी।
बसंत और शरद काल
बसंत और शरद काल (771-476 ई.पू.) पूर्वी चाऊ काल का प्रथम चरण है, जिसका नाम कन्फ्यूशियस द्वारा संपादित ग्रंथ चुनछिउ से लिया गया है। इस ग्रंथ में लू राज्य का इतिहास वर्णित है और यह काल की घटनाओं का प्राथमिक स्रोत है। यह काल ह्वांग हो नदी घाटी, शानदोंग प्रायद्वीप और आसपास के क्षेत्रों तक सीमित था। इस समय चाऊ सम्राटों की सत्ता केवल लोयांग और उसके आसपास तक थी और क्षेत्रीय शासकों ने स्वायत्तता हासिल कर ली थी। बसंत और शरद काल में चीनी साम्राज्य छोटे-छोटे राज्यों और जागीरों में विखंडित था। चाऊ सम्राट को ‘स्वर्गपुत्र’ (तियानहुंग) माना जाता था, जो स्वर्ग के आदेश (तियानमिंग) से शासन करता था। लेकिन उनकी वास्तविक शक्ति सीमित थी और वे केवल धार्मिक और औपचारिक नेता थे। क्षेत्रीय शासकों (जागीरदारों) ने अपनी सैन्य और प्रशासनिक शक्ति बढ़ा ली, जिसके परिणामस्वरूप राज्यों के बीच गठबंधन, युद्ध और कूटनीति आम हो गए। इस काल में जिन, ची, चू और लू जैसे राज्य प्रभावशाली थे। 403 ईसा पूर्व में जिन राज्य के तीन शक्तिशाली परिवारों- झाओ, वेई और हान ने जिन शासक को उखाड़ फेंका और राज्य को तीन स्वतंत्र राज्यों में विभाजित कर लिया। यह घटना बसंत और शरद काल के अंत और संघर्षरत राज्यों के काल की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है।
सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था
इस काल में चिंग तियेन (कुआँ खेत) प्रणाली के तहत भूमि का वितरण किया जाता था। इस प्रणाली में एक वर्ग क्षेत्र (लगभग 866 वर्ग किमी) को नौ भागों में बांटा जाता था: बीच का भाग सामूहिक खेती के लिए था और बाकी आठ भाग आठ परिवारों के बीच बांटे जाते थे। प्रत्येक परिवार अपनी उपज का नौवां हिस्सा शासक को कर के रूप में देता था। यह प्रणाली सामंतवादी व्यवस्था का आधार थी, जिसमें सामंत अपनी सैन्य सहायता के बदले सम्राट को कर प्रदान करते थे। कृषि और पशुपालन इस काल की अर्थव्यवस्था का आधार थे। गेहूं, बाजरा, और धान प्रमुख फसलें थीं। कांस्य कला अपने चरम पर थी और लोहे के औजारों का उपयोग शुरू हो गया था, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई। इस काल में चीनी चित्रलिपि का विकास हुआ, जो बाद में मानक लिपि का आधार बनी। व्यापार एवं शहरीकरण में भी प्रगति हुई और कांस्य सिक्कों के रूप में मुद्रा प्रणाली का प्रारंभिक रूप विकसित हुआ।
सांस्कृतिक उपलब्धियाँ
इस काल में साहित्य और कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई। शिजिंग (कविताओं की किताब) और शुजिंग (इतिहास की किताब) जैसे ग्रंथ इस काल के सांस्कृतिक महत्त्व के सूचक हैं। कन्फ्यूशियस (551-479 ई.पू.) ने नैतिकता, सामाजिक व्यवस्था और शासन पर आधारित शिक्षाएँ दीं, जो बाद में चीनी संस्कृति का आधार बनीं। इस काल में युद्ध रथों द्वारा लड़े जाते थे, जिससे सैन्य रणनीति में भी विकास हुआ।
संघर्षरत राज्यों का काल
संघर्षरत राज्यों का काल (476-221 ई.पू.) को चीनी में झांगुओ शिदाई कहा जाता है। यह पूर्वी चाऊ काल का दूसरा और अंतिम चरण था। इस काल में सात प्रमुख राज्य- चिन, ची, चू, येन, हान, वेई और झाओ का प्रमुख शक्ति के रूप में उत्थान हुआ, जो क्षेत्रीय वर्चस्व और एकीकरण के लिए निरंतर युद्धरत थे। चाऊ सम्राट की सत्ता केवल प्रतीकात्मक थी और वास्तविक शक्ति इन राज्यों के शासकों के पास थी। इस काल का अंत चिन राज्य के उदय और चाऊ राजवंश के पतन के साथ हुआ।

राजनीतिक और सैन्य विकास
इस काल में सैन्य प्रौद्योगिकी और रणनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। रथों के साथ-साथ पैदल सेना, धनुर्धर और घुड़सवार सेनाओं का उपयोग बढ़ा। राज्यों ने किलेबंदी, गुप्तचर प्रणाली और कूटनीति का सहारा लिया। चिन राज्य ने अपनी सैन्य और प्रशासनिक शक्ति को संगठित करके धीरे-धीरे अन्य राज्यों पर प्रभुत्व स्थापित किया।
दार्शनिक और बौद्धिक प्रगति
संघर्षरत राज्यों का काल ‘सौ विचारधाराओं का युग’ (झूज़ी बाईजिआ) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस समय कई दार्शनिक विचारधाराओं का उदय हुआ। इस काल की प्रमुख विचारधाराएँ थीं:
कन्फ्यूशियसवाद (रुजिया): कन्फ्यूशियस ने नैतिकता, सामाजिक व्यवस्था और शासन पर आधारित शिक्षाएँ दीं। उनके शिष्य मेन्सियस ने इन शिक्षाओं को और विकसित किया।
ताओवाद (ताओ चिया): लाओत्से और झुआंगत्से ने प्रकृति के साथ सामंजस्य और सादगी पर आधारित दर्शन विकसित किया। ताओ ते चिंग इस विचारधारा का प्रमुख ग्रंथ है।
न्यायवाद (फ़जिया): हान फेईजी और ली स्सू ने कठोर कानून, केंद्रीकृत शासन और सजा के सिद्धांतों की वकालत की। यह विचारधारा चिन राजवंश की नीतियों का आधार बनी।
मोहीवाद (मो चिया): मोजी ने सार्वभौमिक प्रेम, युद्ध-विरोध और सामाजिक समानता पर जोर दिया।
लॉजिसियन स्कूल (मिंगजिया): इस स्कूल ने तर्क और भाषा के उपयोग पर बल दिया।
कृषिवाद (नुंगजिया): इसने कृषि और ग्रामीण जीवन को प्राथमिकता दी। इन विचारधाराओं ने चीनी संस्कृति, शासन और समाज को गहराई से प्रभावित किया। सिमा छियान द्वारा लिखा गया शीजी (महान इतिहासकार के अभिलेख) इस काल का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है, जिसमें इन विचारधाराओं और घटनाओं का विस्तृत विवरण मिलता है।
सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था
इस काल में सामंतवादी व्यवस्था धीरे-धीरे कमजोर हुई और केंद्रीकृत प्रशासन की ओर रुझान बढ़ा। चिन राज्य ने विशेष रूप से प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान दिया, जैसे मानकीकृत माप-तौल, कर प्रणाली और सड़क निर्माण। लोहे के औजारों और हल के उपयोग ने कृषि उत्पादकता को बढ़ाया। व्यापार और शहरीकरण में प्रगति हुई और कांस्य सिक्कों के रूप में मुद्रा प्रणाली का विकास हुआ। चिन के शासक यिंग झेंग (259-210 ई.पू.) ने अपनी कुशल रणनीति और न्यायवादी (फ़जिया) सिद्धांतों के आधार पर अन्य राज्यों को पराजित किया। 249 ईसा पूर्व में उन्होंने अंतिम चाऊ सम्राट नान वांग को पराजित किया। 221 ईसा पूर्व तक चिन ने सभी प्रतिद्वंद्वी राज्यों को जीतकर चीन का पहला एकीकृत साम्राज्य स्थापित किया, जिससे चाऊ राजवंश का अंत हो गया।
चिन राजवंश (221-206 ई.पू.)
चिन राजवंश की स्थापना 221 ईसा पूर्व में यिंग झेंग ने की, जिन्होंने शी ह्वांग टी (प्रथम सम्राट) की उपाधि धारण की थी। चिन राजवंश का उदय शान्शी प्रांत से हुआ और माना जाता है कि इस प्रांत के नाम पर ही देश का नाम चीन पड़ा। शी ह्वांग टी ने छह अन्य राज्यों- ची, चू, येन, हान, वेई और झाओ को पराजित कर चीन का पहला एकीकृत साम्राज्य स्थापित किया। इस एकीकरण से चीनी इतिहास में एक नए युग की शुरुआत हुई।
शी ह्वांग टी
शी ह्वांग टी एक कुशल प्रशासक, विजेता और सुधारक थे। उन्होंने न्यायवादी (फ़जिया) सिद्धांतों को अपनाकर कठोर और केंद्रीकृत शासन स्थापित किया। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ थीं:
चीन की महान दीवार
उत्तरी सीमा पर शियोंगनु (हूण) जनजातियों के आक्रमणों से बचने के लिए शी ह्वांग टी ने अपने प्रधानमंत्री ली स्सू के सहयोग से महान दीवार का निर्माण शुरू करवाया। यह दीवार लगभग 1500 मील लंबी, 22 फीट ऊँची और 20 फीट चौड़ी थी, जिसमें 20,000 गुंबदें, 23,000 स्तंभ, और 10,000 सुरक्षा चौकियाँ थीं। यह विश्व के सात आश्चर्यों में शामिल है और बाद के राजवंशों द्वारा इसका विस्तार किया गया। इस दीवार के निर्माण ने शियोंगनु को पश्चिम की ओर धकेल दिया, जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव रोमन साम्राज्य के पतन पर पड़ा।
प्रशासनिक सुधार
शी ह्वांग टी ने सामंतवादी व्यवस्था को समाप्त कर साम्राज्य को 36 (बाद में 40) प्रांतों (च्युन) में बाँटा, जो राज्यपालों द्वारा शासित किए जाते थे। उन्होंने एक समान छोटी सील लिपि, माप-तौल और मुद्रा प्रणाली लागू की। सड़कों और नहरों का जाल बिछाकर व्यापार और संचार को सुगम बनाया गया। उन्होंने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने के लिए मानकीकृत सड़कें बनवाईं, जिनका उपयोग सैन्य और व्यापारिक गतिविधियों के लिए किया जाता था।
कृषि और व्यापार
शी ह्वांग टी के शासन में कृषि और व्यापार में प्रगति हुई। उन्होंने नहरों और सिंचाई प्रणालियों का विकास किया, जिससे कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई। वे स्वयं छद्मवेश में भ्रमण कर प्रशासन की कमियों और जनता की समस्याओं का निरीक्षण करते थे।
टेराकोटा सेना और समाधि
शी ह्वांग टी ने लिशान पहाड़ी पर अपनी समाधि बनवाई, जो टेराकोटा सेना के नाम से विश्व प्रसिद्ध है। इस सेना में हजारों मिट्टी के सैनिकों, घोड़ों और रथों की मूर्तियाँ हैं, जो उनकी मृत्यु के बाद उनकी रक्षा के लिए बनाई गई थीं। यह पुरातात्त्विक खोज (1974 में) चिन राजवंश की कला और शिल्पकला की उत्कृष्टता का प्रमाण है।
ग्रंथों का विनाश
213 ईसा पूर्व में शी ह्वांग टी ने न्यायवादी सिद्धांतों के आधार पर पुराने ग्रंथों को जलाने और लगभग 460 विद्वानों की हत्या का आदेश दिया। इसका उद्देश्य पुरानी सामंतवादी विचारधाराओं, विशेष रूप से कन्फ्यूशियसवाद को समाप्त करना और केंद्रीकृत शासन को मजबूत करना था। लेकिन कुछ ग्रंथ, जैसे चिकित्सा और कृषि से संबंधित पुस्तकें, बचा दी गईं। इस घटना से चीनी साहित्य को अपूरणीय क्षति हुई।
चिन राजवंश का पतन
शी ह्वांग टी की मृत्यु 210 ईसा पूर्व में राज्य भ्रमण के दौरान हुई। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र एर शी ह्वांग ने सत्ता संभाली, लेकिन उनकी अक्षमता और कठोर नीतियों के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गए। बाध्य श्रम, भारी कर और क्रूर दंड प्रणाली से जनता में असंतोष फैल गया। 207 ईसा पूर्व में विद्रोहियों ने चिन राजधानी शियान्यांग पर अधिकार कर लिया। 206 ईसा पूर्व में लिऊ बांग ने चिन राजवंश को समाप्त कर हान राजवंश की स्थापना की।
हान राजवंश (206 ई.पू.-220 ई.)
हान राजवंश की स्थापना लिऊ बांग (गाओज़ू) ने 202 ईसा पूर्व में की थी। यह राजवंश लगभग 400 वर्षों तक (206 ई.पू.-220 ई.) चला और चीनी सभ्यता का स्वर्णयुग सिद्ध हुआ। हान शासकों ने कन्फ्यूशियसवाद को राजकीय दर्शन के रूप में अपनाया, जिससे सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत हुई। इस काल में कला, संस्कृति, विज्ञान और व्यापार में अभूतपूर्व प्रगति हुई, जिसके कारण इसे ‘द्वितीय स्वर्णयुग’ कहा गया है।
पश्चिमी हान और पूर्वी हान
हान राजवंश को दो चरणों में विभाजित किया जाता है:
पश्चिमी हान (206 ई.पू.-9 ई.): इसकी राजधानी चांगआन थी। इस काल में हान शासकों ने साम्राज्य का विस्तार किया और प्रशासनिक सुधार लागू किए।
शिन राजवंश का अंतराल (9-23 ई.): वांग मांग ने हान सत्ता को हथियाकर शिन राजवंश की स्थापना की, लेकिन उनकी सुधारवादी नीतियाँ, जैसे भूमि राष्ट्रीयकरण, असफल रहीं और किसान विद्रोह के कारण यह राजवंश समाप्त हो गया।
पूर्वी हान (25-220 ई.): सम्राट गुआंग वु ने हान राजवंश को पुनर्स्थापित किया और राजधानी लोयांग में स्थानांतरित की। इस काल में हान साम्राज्य ने अपनी शक्ति और सांस्कृतिक गौरव को पुनः प्राप्त किया।
सम्राट वू
हान राजवंश का सबसे महत्त्वाकांक्षी शासक सम्राट वू (141-87 ई.पू.) था, जिसने हान साम्राज्य को विकास के चरम पर पहुँचाया। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ थीं:
कन्फ्यूशियसवाद का संरक्षण: सम्राट वू ने कन्फ्यूशियसवाद को राजकीय दर्शन बनाया और डोंग झोंगशु के सुझावों पर इसे प्रशासन में लागू किया। कन्फ्यूशियसवादी नैतिकता और शिक्षा पर जोर दिया गया।
विश्वविद्यालयों की स्थापना: सम्राट वू ने ताइश्यू (राष्ट्रीय विश्वविद्यालय) की स्थापना की, जहाँ कन्फ्यूशियसवादी ग्रंथों का अध्ययन किया जाता था। यह प्रशासनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का केंद्र बन गया।
रेशम मार्ग का विस्तार: सम्राट वू ने तारिम बेसिन और मध्य एशिया में सैन्य अभियानों और कूटनीति के माध्यम से रेशम मार्ग पर नियंत्रण स्थापित किया, जिससे यूरोप, मध्य एशिया और भारत के साथ व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि हुई।
सैन्य अभियान: सम्राट वू ने शियोंगनु जनजातियों के खिलाफ सैन्य अभियान चलाए और दक्षिण में यांग्त्से नदी घाटी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में शामिल किया।
शियोंगनु के साथ संघर्ष
हान साम्राज्य को उत्तर में शियोंगनु (हूण) जनजातियों के आक्रमणों का सामना करना पड़ा। 200 ईसा पूर्व में शियोंगनु नेता मोदू चानयू ने हान सेना को पराजित कर दिया। लिऊ बांग को शियोंगनु के साथ हपिन (शांति विवाह) संधि करनी पड़ी, जिसमें एक हान राजकुमारी को शियोंगनु सरदार से विवाह करना पड़ा। लेकिन यह संधि पूरी तरह सफल नहीं हुई और शियोंगनु के साथ संघर्ष चलता रहा। सम्राट वू के सैन्य सुधारों और अभियानों ने शियोंगनु की शक्ति को कमजोर कर दिया।
प्रशासनिक और सामाजिक सुधार
हान शासकों ने प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान दिया। साम्राज्य को कई प्रांतों में बांटा गया, जो राज्यपालों द्वारा शासित किए जाते थे। इसी काल में प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली की शुरुआत हुई, जिसके माध्यम से योग्य व्यक्तियों को प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया जाता था। यह प्रणाली बाद में चीनी नौकरशाही का आधार बन गई।
हान शासकों ने सामाजिक असमानता को कम करने के प्रयास किए, जिसके अंतर्गत दासता को समाप्त करने और भूमि राष्ट्रीयकरण की नीतियाँ लागू की गईं। नमक और लोहे पर राज्य का एकाधिकार स्थापित किया गया, जिससे राजस्व में वृद्धि हुई। प्रशासन और जनता पर निगरानी के लिए गुप्तचर प्रणाली को सक्रिय किया गया। किसानों से उपज का दसवां भाग कर के रूप में लिया जाता था और कर्मचारियों को वेतन आधा नकद और आधा अनाज में दिया जाता था।
आर्थिक और व्यापारिक प्रगति
हान काल में रेशम मार्ग के माध्यम से मध्य एशिया, फारस और रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार बढ़ा। रेशम, चीनी मिट्टी और अन्य वस्तुओं का निर्यात हुआ। 119 ईसा पूर्व में हान शासकों ने एक टकसाल की स्थापना की, जिसके सिक्के तांग राजवंश (618-907 ई.) तक प्रचलन में रहे। चांग छियान नामक राजदूत को मध्य एशिया भेजा गया, जिसके विवरणों से ईरान, मिस्र, मेसोपोटामिया और रोमन साम्राज्य के बारे में जानकारी मिली।
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उपलब्धियाँ
हान काल में विज्ञान, साहित्य, और कला में उल्लेखनीय प्रगति हुई:
वैज्ञानिक आविष्कार: सून्य चियेन ने एक नया पंचांग बनाया। बंग चूंग ने भूकंप के कारणों का अध्ययन किया और भूकंपमापी (सिस्मोग्राफ) का प्रारंभिक रूप विकसित किया। लुंग हेंग नामक ग्रंथ में चंद्रग्रहण के बारे में जानकारी दी गई। नी चिंग ने शल्य चिकित्सा पर कैनन ऑफ मेडिसिन लिखी। काइ लुन द्वारा, 105 ई. के आसपास कागज का आविष्कार हुआ और छपाई कला के प्रारंभिक रूप का विकास इसी काल में हुआ।
शिक्षा: हान शासकों ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों की स्थापना की। चांगआन विश्वविद्यालय में 30,000 छात्र पढ़ते थे। हीनयांग शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था।
साहित्य: सिमा छियान ने शीजी लिखा, जो शिया राजवंश से पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक का विस्तृत इतिहास है। यह चीनी इतिहासलेखन का आधार सिद्ध हुआ।
संगीत और कला: हान शासक संगीत प्रेमी थे। पि पा (वीणा), कुंगहाऊ और जिथर जैसे वाद्ययंत्र लोकप्रिय थे। कला के क्षेत्र में मूर्तिकला और चित्रकारी में प्रगति हुई।
बौद्ध धर्म का आगमन: सम्राट मिंग टी ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया, जिसके परिणामस्वरूप यह चीन का एक प्रमुख धर्म बन गया। बौद्ध धर्म का प्रभाव जापान और कोरिया तक फैल गया।\
हान राजवंश का पतन
दूसरी शताब्दी के अंत में हान साम्राज्य की आर्थिक कमजोरी, भ्रष्टाचार और विदेशी आक्रमणों (शियोंगनु) से केंद्रीय सत्ता कमजोर पड़ गई। सात राज्यों का विद्रोह (154 ई.पू.) और बाद में पीली पगड़ी विद्रोह (184 ई.) से साम्राज्य अस्थिर हो गया। फलस्वरूप, 220 ईस्वी में वेई राज्य के शासक त्साओ पी ने अंतिम हान सम्राट शियान को हटाकर सिंहासन पर कब्जा कर लिया। इसके बाद चीन तीन राज्यों- वेई, शु और वू में बंट गया, जिससे तीन राज्यों का काल (220-280 ई.) की शुरुआत हुई।
तीन राजवंशों का काल (220 ई.-280 ई.)
हान राजवंश के पतन के बाद 220 ई. में चीन में तीन राजवंशों (सान्गुओ शिदाई) का काल आरंभ हुआ, जो 280 ई. तक चला। इस काल में उत्तर चीन में साओ वेई, पश्चिम में शु हान और दक्षिण-पूर्व में पूर्वी वू नामक तीन प्रमुख राज्यों के बीच सत्ता के लिए निरंतर संघर्ष हुआ। इन राज्यों को सामूहिक रूप से ‘वेई’, ‘शु’ और ‘वू’ के नाम से जाना जाता है।
वेई राज्य की स्थापना साओ पी (काओ पी) ने 220 ई. में लुओयांग को राजधानी बनाकर की, जबकि शु हान की स्थापना लिऊ बेई (ल्यू बेई) ने 221 ई. में चेंगदू में की और वू की स्थापना सुन चुआन (सुन क्वान) ने 222 ई. में जिआनये (वर्तमान नानजिंग) में की। इतिहासकार चेन शौ की तीन राज्यों का इतिहास (सान्गुओ झी) जैसे स्रोतों के अनुसार इस काल की शुरुआत आधिकारिक रूप से 220 ई. से मानी जाती है, जब हान का अंतिम सम्राट शियान ने साओ पी को सत्ता सौंपी। लेकिन इसका अंत 280 ई. में जिन राजवंश द्वारा वू की विजय से हुआ।
हाउ हान शू (हान राजवंश का उत्तरार्ध इतिहास) के आधार पर कुछ चीनी इतिहासकार इस काल की जड़ें 184 ई. के ‘पीली पगड़ी विद्रोह’ (येलो टर्बन रिबेलियन) में मानते हैं। यह हान राजवंश के अंतिम दिनों में एक बड़ा किसान विद्रोह था, जिसका नेतृत्व झांग जुए (चांग च्यूए) भाइयों ने किया। विद्रोह में ताओवाद (दाओवाद) के अनुयायी, विशेष रूप से ताइपिंग दाओ संप्रदाय के सदस्य शामिल थे, जो सामाजिक असमानता और करों के विरुद्ध थे। इस विद्रोह ने हान साम्राज्य को कमजोर किया, जिससे युद्धबाजों जैसे डोंग झुओ (दोंग चो) के उदय को प्रोत्साहन मिला और अंततः तीन राज्यों के विभाजन की नींव पड़ी। विद्रोह को दबाने में लगभग 20 वर्ष लगे और जनसंख्या आँकड़ों के अनुसार इसमें लगभग 3-7 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई।
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उपलब्धियाँ
तीन राजवंशों का अल्पकालीन शासन (मात्र 60 वर्ष) युद्धों और उथल-पुथल से भरा था, फिर भी धर्म, साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई। वेई राज्य में मठीय बौद्ध धर्म (महायान बौद्ध धर्म) का प्रसार हुआ, जो मध्य एशिया से कुषाण साम्राज्य के माध्यम से आया था। 260 ई. में वेई के विद्वान चु शिह-हिंग (झु शीशिंग) खोतान (काश्गर क्षेत्र) गए और वहाँ से पंचविंशतिसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता सूत्र की एक प्रतिलिपि प्राप्त की, जो चीन में बौद्ध दर्शन की नींव रखने वाला ग्रंथ सिद्ध हुआ। यह घटना गाओसेंग चुआन (उच्च भिक्षुओं की जीवनी) जैसे बौद्ध स्रोतों में वर्णित है।
तकनीकी आविष्कार और नवप्रवर्तन
इस काल में सिंचाई प्रणालियों, वाहनों और हथियारों में नवाचार हुए। वेई राज्य के अभियंता मा जुन (मा चून) ने 250 ई. के आसपास ‘दक्षिणमुखी रथ’ (साउथ-पॉइंटिंग चैरियट) का आविष्कार किया, जो एक यांत्रिक उपकरण था और जो चुंबक के बिना दिशासूचक के रूप में काम करता था। यह डिफरेंशियल गियर सिस्टम पर आधारित था, जिसमें एक बार दक्षिण की ओर सेट करने पर यह हमेशा दक्षिण की ओर इशारा करता रहता था, भले ही रथ घूमता रहे। इसका उल्लेख तीन राज्यों का रोमांस (सान्गुओ यान्यी) जैसे साहित्यिक स्रोतों में मिलता है। इसके अलावा, जल-चालित मिलों, उन्नत धनुष-बाण और सिंचाई नहरों का विकास हुआ, जो युद्ध और कृषि दोनों के लिए उपयोगी थे। इन आविष्कारों ने चीनी अभियंत्रिकी की परंपरा को मजबूत किया, जिसका वर्णन जिन शू (जिन राजवंश का इतिहास) में मिलता है।
जिन राजवंश (266-420 ई.)
तीन राजवंशों के पतन के बाद सिमा यान (सिमा यान) ने जिन राजवंश (जिन चाओ) की स्थापना की। सिमा यान वेई राज्य के एक शक्तिशाली सेनापति सिमा यी का पोता था। 265 ई. में उसने वेई के अंतिम सम्राट को हटाकर सत्ता हथिया ली और 266 ई. में स्वयं को सम्राट वू (वू दी) घोषित किया। 280 ई. में उसने पूर्वी वू पर विजय प्राप्त कर चीन को पुनः एकीकृत किया, जिससे तीन राजवंशों का काल समाप्त हुआ। ‘जिन शू’ के अनुसार यह एकीकरण लगभग 360 वर्षों के विभाजन के बाद हुआ।
जिन राजवंश को दो भागों में विभाजित किया जाता है: पश्चिमी जिन (265-316 ई.) और पूर्वी जिन (317-420 ई.)। 1115-1234 ई. का जुरचेन जिन राजवंश का इससे संबंध नहीं है।
पश्चिमी जिन (265-316 ई.)
पश्चिमी जिन ने लोयांग को राजधानी बनाया और लगभग आधी सदी तक शासन किया। इस काल में बौद्ध धर्म का प्रसार होता रहा। 316 ई. के आसपास दो भिक्षुणियाँ चिंग चिएन और आन लिंग-यी का उल्लेख मिलता है, जिन्हें बौद्ध भिक्षु बुद्धदान (फोतुदेंग) ने दीक्षा दी थी। बुद्धदान एक विदेशी (कुषाण) भिक्षु था, जिसने जादुई शक्तियों से जिन सम्राट को प्रभावित किया। ‘गाओसेंग चुआन’ में उल्लेख है कि इस काल में बौद्ध मठों की संख्या बढ़ गई और अनुवाद कार्य शुरू हुए। लेकिन इस काल के अंत में ‘आठ राजकुमारों का विद्रोह’ (296-306 ई.) और उत्तरी नोमाडों (शियोंगनु) के आक्रमणों ने साम्राज्य को कमजोर कर दिया, जिससे 316 ई. में लोयांग और चांगआन पर कब्जा हो गया।
पूर्वी जिन (317-420 ई.)
पूर्वी जिन की शुरुआत 317 ई. में सिमा रुई (सिमा रुई) द्वारा हुई, जिसने जिआनकांग (नानजिंग) को राजधानी बनाया और सम्राट युआन बना। यह दक्षिणी चीन पर केंद्रित रहा और एक सदी तक चला। इस काल में बौद्ध धर्म फला-फूला। चीनी भिक्षु फाह्यान ने 399-412 ई. के बीच भारत की यात्रा की और विनय पिटक (बौद्ध नियम संहिता) की पूर्ण प्रतियाँ प्राप्त कीं। उसकी यात्रा वृतांत ‘फो-गुओ जी’ (बौद्ध देशों का वर्णन) में वर्णित है, जिसमें उसने गुप्तकालीन भारत के बौद्ध स्थलों जैसे कपिलवस्तु, कुशीनगर और नालंदा का वर्णन किया है। यह यात्रा मध्य एशिया मार्ग से हुई और चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक बन गई। पूर्वी जिन काल में साहित्य जैसे वांग शीफू की कविताएँ और कलिग्राफी का विकास हुआ, लेकिन उत्तरी आक्रमणों से इसकी स्थिति कमजोर हो गई।
उत्तरी और दक्षिणी राजवंश (420-589 ई.)
राजवंशों का विभाजन और समानांतर शासन
420 ई. में पूर्वी जिन के पतन के बाद चीन उत्तरी और दक्षिणी राजवंशों में विभाजित हो गया और यह विभाजन 589 ई. तक बना रहा। दक्षिणी राजवंश (नान चाओ) में लिऊ सोंग (420-479 ई.), दक्षिणी ची (479-502 ई.), लियांग (502-557 ई.) और चेन (557-589 ई.) शामिल थे, जिनकी राजधानी जिआनकांग रही। उत्तरी राजवंश (बेई चाओ) में उत्तरी वेई (386-534 ई.), पूर्वी वेई (534-550 ई.), पश्चिमी वेई (535-557 ई.), उत्तरी ची (550-577 ई.) और उत्तरी झोउ (557-581 ई.) थे, जो मुख्य रूप से लोयांग या चांगआन पर केंद्रित थे। ‘वेई शू’ और ‘नान शी’ जैसे इतिहास ग्रंथों के अनुसार यह काल ‘सोलह राज्यों’ के अवशेषों से उभरा, जहाँ गैर-हान जातियाँ जैसे शियानबेई ने शासन किया। सांस्कृतिक एकीकरण और धार्मिक विकास राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद इस काल में कला, विज्ञान और संस्कृति का विकास हुआ। हान चीनी यांग्त्से नदी से दक्षिण की ओर फैले और उत्तरी नोमाडों (जैसे तुओबा जाति) का चीनीकरण हुआ।
दक्षिण में आदिवासी जनजातियाँ जैसे मन और युए चीनी संस्कृति में विलीन हुईं। भारत से महायान बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ, और ताओवाद का विकास हुआ। बौद्ध भिक्षु जैसे कुमारजीव (344-413 ई.) ने संस्कृत ग्रंथों का चीनी अनुवाद किया। इसी काल में स्तूप-आधारित पगोडा का निर्माण शुरू हुआ, जैसे उत्तरी वेई के युंगांग गुफाएँ (460-494 ई.)। पगोडा बौद्ध ग्रंथों को संरक्षित करने के लिए बनाए गए थे, जो बाद में चीनी वास्तुकला की पहचान बन गए। ‘लियांग शू’ में वर्णित है कि लियांग सम्राट वू (502-549 ई.) ने बौद्ध मठों को संरक्षण दिया था।
सामाजिक और कलात्मक प्रगति
इस युग में कागज का व्यापक उपयोग हुआ, चीनी मिट्टी की भट्टियाँ (सेलाडॉन मिट्टी के बर्तन) बनीं और कविता जैसे ‘मुलान कविता’ का उदय हुआ। उत्तरी वेई में भूमि सुधार (जूनटियन प्रणाली) अंतर्गत भूमि को समान रूप से वितरित किया गया, जिससे कृषि को बढ़ावा मिला। यह काल सांस्कृतिक मिश्रण का प्रतीक था, जहाँ बौद्ध कला गंधार शैली से प्रभावित हुई।
सुई राजवंश (581-618 ई.)
सुई राजवंश (सुई चाओ) की स्थापना यांग जियान (यांग जियान) ने 581 ई. में की थी, जब उसने उत्तरी झोउ के सिंहासन को हथिया लिया और सम्राट वेन घोषित हुआ। उसने 589 ई. में दक्षिणी चेन की विजय के साथ पूरे चीन को एकीकृत किया, जिससे 360 वर्षों का विभाजन समाप्त हो गया। यांग जियान उत्तरी झोउ का मंत्री और सम्राट का दामाद था। ‘सुई शू’ (सुई इतिहास) के अनुसार उसने प्रशासनिक सुधार किए, जैसे तीन विभाग और छह मंत्रालयों की प्रणाली स्थापित की। सुई का शासन केवल 37 वर्ष चला, लेकिन इसने तांग राजवंश की नींव रख दी।
निर्माण परियोजनाएँ और महान दीवार का विस्तार
सुई काल बड़ी निर्माण परियोजनाओं के लिए प्रसिद्ध है। 605-610 ई. में सम्राट यांग (यांग दी) ने ग्रांड कैनाल (दायुनहे) का निर्माण करवाया, जो 1776 किमी लंबा है और बीजिंग से हांगझोउ तक पीली नदी को यांग्त्से से जोड़ता है। यह अनाज, सैनिकों और व्यापार के लिए था, जिसमें 5.5 मिलियन मजदूर लगे। चीन की महान दीवार का भी विस्तार किया गया, विशेष रूप से तुर्किक कबीलों से सुरक्षा के लिए उत्तरी सीमाओं पर गोबी रेगिस्तान तक। दीवार की लंबाई इस काल में 5000 किमी से अधिक हो गई।
आर्थिक और धार्मिक सुधार
सुई शासकों ने भूमि पुनर्वितरण (जूनटियन प्रणाली) किया, अमीरी-गरीबी कम की और मानकीकृत सिक्के (वूझू) प्रचलित किए। बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण मिला, जिससे 3 मिलियन भिक्षु हुए और मठ बने। इससे विभिन्न जातियाँ एकजुट हुईं। ‘ज़ीज़ी तोंगजियान’ के अनुसार परीक्षा प्रणाली को मजबूत किया गया, जो जिन से विरासत में मिली थी।
सुई सरकार सुव्यवस्थित थी, लेकिन शासक खर्चीले और क्रूर थे। ग्रांड कैनाल और दीवार के लिए भारी कर और बेगार (कोर्वी लेबर) से जनता असंतुष्ट हो गई, जिसमें लाखों लोग मर गए। कोरिया पर तीन असफल अभियानों (598, 612, 614 ई.) में 1 मिलियन सैनिक हार गए। इससे राज्य में विद्रोह फैल गया और 618 ई. में सम्राट यांग की हत्या के बाद सुई राजवंश का पतन और तांग राजवंश का उदय हुआ।
तांग राजवंश (618-907 ई.)
तांग राजवंश (तांग चाओ) की स्थापना ली युआन (गाओज़ू) ने 618 ईस्वी में की थी। उनके पुत्र ली शिमिन (ताइज़ोंग, 626-649 ई.) ने तांग राजवंश को सुदृढ़ किया और एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। तांग राजवंश के शासन में एक अंतराल आया, जब सम्राज्ञी वू ज़ेतियान (690-705 ई.) ने सत्ता हथिया कर चाओ राजवंश (या वू चाओ) की स्थापना की। यह एकमात्र अवसर था जब चीन पर एक महिला शासिका ने शासन किया। 705 ईस्वी में वू ज़ेतियान को हटाकर तांग राजवंश पुनः स्थापित हुआ।
तांग राजवंश की उपलब्धियाँ
तांग राजवंश (618-907 ई.) का शासनकाल चीनी इतिहास का एक स्वर्णयुग माना जाता है, क्योंकि इस काल में चीन ने सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, और आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल कीं।
प्रशासनिक और सैन्य सुधार
तांग शासकों ने चांगआन (वर्तमान शीआन) को अपनी राजधानी बनाया, जो उस समय विश्व का सबसे बड़ा और समृद्ध नगर था, जिसमें लगभग 10 लाख लोग रहते थे। तांग प्रशासन ने एक केंद्रीकृत नौकरशाही लागू की, जिसे ‘तीन विभाग और छह मंत्रालय’ प्रणाली के रूप में संगठित किया गया। इस प्रणाली में शांगशु प्रांत (प्रशासनिक मामलों के लिए), मेनशिया प्रांत (सलाह और नीति निर्माण) और शुमी प्रांत (नीति निगरानी) शामिल थे।
छह मंत्रालयों में कर्मचारी, कर, रीति-रिवाज, सैन्य, न्याय और सार्वजनिक कार्य शामिल थे। हान काल में शुरू हुई प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली (केजू) को और परिष्कृत किया गया। यह प्रणाली कन्फ्यूशियसवादी ग्रंथों और साहित्य पर आधारित थी।
तांग शासकों ने एक विशाल सेना का निर्माण किया, जिसमें लाखों सैनिक शामिल थे। फुबिंग प्रणाली के तहत किसानों को सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता था और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सेना में शामिल किया जाता था। तांग शासकों ने मध्य एशिया में सैन्य अभियानों और कूटनीति के माध्यम से रेशम मार्ग पर नियंत्रण स्थापित किया, जिससे व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ा। तांग साम्राज्य का प्रभाव कोरिया, जापान और वियतनाम तक फैला।
सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रगति
तांग काल को चीनी सभ्यता का ‘स्वर्णयुग’ माना जाता है, जो हान काल के समकक्ष या उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण था। इस काल में कला, साहित्य, और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय प्रगति हुई:
कविता: तांग काल को ‘चीनी कविता का स्वर्णयुग’ कहा जाता है। ली बाई (701-762 ई.) अपनी रोमांटिक और स्वच्छंद कविताओं के लिए और डू फू (712-770 ई.) अपनी सामाजिक और यथार्थवादी कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं। वांग वेई जैसे कवियों ने प्रकृति और बौद्ध दर्शन को अपनी रचनाओं में शामिल किया।
चित्रकला: हान गान (घोड़ों की चित्रकला), झांग शुआन और झोउ फांग जैसे चित्रकारों ने तांग कला को समृद्ध किया। उनकी कृतियाँ यथार्थवादी और भावनात्मक थीं।
साहित्य और इतिहास: तांग विद्वानों ने ऐतिहासिक ग्रंथ, जैसे जियु तांगशु (पुराना तांग इतिहास) और शिन तांगशु (नया तांग इतिहास) और भौगोलिक ग्रंथों का संकलन किया। हान यू जैसे विद्वानों ने गद्य लेखन को परिष्कृत किया।
प्रौद्योगिकी: तांग काल में लकड़ी ब्लॉक प्रिंटिंग का विकास हुआ, जिसने साहित्य और ज्ञान के प्रसार को आसान बना दिया। बारूद का सैन्य उपयोग शुरू हुआ और खगोलीय अध्ययन में प्रगति हुई।
बौद्ध धर्म का प्रभाव
तांग काल में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रसार हुआ। सम्राट ताइज़ोंग ने भारतीय भिक्षु प्रभाकरमित्र और चीनी यात्री ह्वेनसांग का स्वागत किया। काओज़ोंग (649-683 ई.) का शासनकाल बौद्ध धर्म का था। उनकी पत्नी वू ज़ेतियान ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया और मठों का निर्माण करवाया। वू ज़ेतियान ने 690 ईस्वी में तांग राजवंश का नाम बदलकर चाओ राजवंश कर दिया और बौद्ध धर्म को राजकीय धर्म का दर्जा दिया। उनके शासनकाल में बौद्ध मठों की संपत्ति और प्रभाव में वृद्धि हुई, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए तांग शासकों ने मठों की संपत्ति जब्त कर ली।
तांग राजवंश के अंतिम वर्षों में क्षेत्रीय सामंतों की स्वायत्तता बढ़ने लगी। लुशान विद्रोह (755-763 ई.), जिसका नेतृत्व अन लुशान ने किया, एक भयंकर विद्रोह था, जिसने तांग साम्राज्य को कमजोर कर दिया। इस विद्रोह ने चांगआन को तबाह कर दिया और सम्राट शुआनज़ोंग को भागना पड़ा। बाद में, हुआंग चाओ विद्रोह (874-884 ई.) ने साम्राज्य को और अस्थिर कर दिया। यह विद्रोह किसानों और असंतुष्ट सैनिकों ने किया था, जिन्होंने चांगआन पर कब्जा कर लिया। इन विद्रोहों और आर्थिक अस्थिरता के कारण तांग राजवंश 907 ईस्वी में समाप्त हो गया और चीन में पाँच राजवंश और दस साम्राज्य काल शुरू हुआ।
पाँच राजवंश और दस साम्राज्य काल (907-960 ई.)
तांग राजवंश के पतन के बाद चीन में 907 से 960 ईस्वी तक पाँच राजवंश और दस साम्राज्य काल चला, जो राजनीतिक विखंडन और अस्थिरता का दौर था। उत्तरी चीन में पाँच राजवंश एक के बाद एक सत्ता में आए, जबकि दक्षिणी और मध्य चीन में कई स्वतंत्र राज्य, जिनमें से दस प्रमुख थे, स्थापित हुए। इस काल में सैन्य तानाशाहों और क्षेत्रीय शासकों के बीच निरंतर युद्ध और गठबंधन होते रहे।
उत्तरी पाँच राजवंश
उत्तरी चीन में निम्नलिखित पाँच राजवंशों ने शासन किया:
- परवर्ती लियांग (907-923 ई.): झू वेन ने इसकी स्थापना की। यह राजवंश अल्पकालिक रहा और आंतरिक विद्रोहों के कारण समाप्त हो गया।
- परवर्ती तांग (923-936 ई.): इसने तांग राजवंश की परंपराओं के पुनरुत्थान का प्रयास किया, लेकिन सैन्य कमजोरी के कारण असफल रहा।
- परवर्ती जिन (936-947 ई.): इस राजवंश ने खितान (लियाओ) राजवंश के साथ गठबंधन किया, लेकिन बाद में उनकी अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
- परवर्ती हान (947-951 ई.): यह सबसे अल्पकालिक राजवंश था, जो केवल चार वर्ष तक चला।
- परवर्ती झोउ (951-960 ई.): इस राजवंश के अंतिम शासक झाओ कुआंगयिन ने सोंग राजवंश की स्थापना की।
दस साम्राज्य
दक्षिणी और मध्य चीन में निम्नलिखित दस प्रमुख स्वतंत्र राज्य स्थापित हुए:
- वू (907-978 ई.): यांग्त्से नदी क्षेत्र में केंद्रित।
- मीन (909-945 ई.): फ़ुज़ियान क्षेत्र में।
- चू (907-951 ई.): हुनान क्षेत्र में।
- दक्षिणी हान (917-971 ई.): ग्वांगडोंग और ग्वांगशी में।
- पूर्वकालीन शू (907-925 ई.): सिचुआन में।
- उत्तरकालीन शू (934-965 ई.): सिचुआन में।
- जिंगनान (924-963 ई.): हुबेई में।
- दक्षिणी तांग (937-975 ई.): यांग्त्से नदी के निचले क्षेत्र में, जो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध था।
- उत्तरी हान (951-979 ई.): शान्शी में।
- वूयुए (907-978 ई.): झेजियांग में।
इसके अतिरिक्त, खितान लोगों ने मंचूरिया और मंगोलिया में लियाओ राजवंश (907-1125 ई.) स्थापित किया, जो उत्तरी चीन पर दबाव बनाए रखता था। दक्षिण में वियतनाम ने तांग शासन के बाद स्थायी स्वतंत्रता प्राप्त की।
सांस्कृतिक और आर्थिक स्थिति
इस काल में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद दक्षिणी राज्यों, विशेष रूप से दक्षिणी तांग और वूयुए ने सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति को बनाए रखा। बौद्ध धर्म, कन्फ्यूशियसवाद और ताओवाद का विकास हुआ। दक्षिणी राज्यों ने समुद्री व्यापार को बढ़ावा दिया और रेशम, चीनी मिट्टी और चाय का निर्यात हुआ। उत्तरी राजवंशों में सैन्य तानाशाही और खितान आक्रमणों के कारण अस्थिरता बनी रही।
सोंग राजवंश की स्थापना (960-1279 ई.)
सोंग राजवंश की स्थापना झाओ कुआंगयिन (सम्राट ताइज़ू) ने 960 ईस्वी में की, जिन्होंने परवर्ती चाऊ राजवंश को उखाड़ फेंका। सोंग शासकों ने 979 ईस्वी तक अधिकांश चीन को पुनः एकीकृत किया, लेकिन उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र खितान (लियाओ राजवंश, 907-1125 ई.) और तांगुत (पश्चिमी शिया राजवंश, 1038-1227 ई.) के नियंत्रण में रहे।
सोंग काल को दो चरणों में बाँटा जाता है:
उत्तरी सोंग (960-1127 ई.): राजधानी कैफेंग (बिआनजिंग) में।
दक्षिणी सोंग (1127-1279 ई.): जिंगकांग घटना (1127 ई.) में जिन राजवंश द्वारा कैफेंग पर कब्जा करने के बाद सोंग शासकों ने हांगझोऊ (लिनआन) को राजधानी बनाया।
लियाओ राजवंश (907-1125 ई.) और पश्चिमी शिया राजवंश (1038-1227 ई.)
लियाओ राजवंश (907-1125 ई.) खितान लोगों द्वारा स्थापित किया गया था, जो मंचूरिया, मंगोलिया और उत्तरी चीन के कुछ हिस्सों पर शासन करता था। इसने सोंग साम्राज्य के लिए निरंतर खतरा उत्पन्न किया।
पश्चिमी शिया राजवंश (1038-1227 ई.)
पश्चिमी शिया राजवंश तांगुत जनजातियों द्वारा गांसु, शान्शी और निंग्जिया में स्थापित किया गया था। दोनों राजवंशों ने सोंग के साथ युद्ध और कूटनीति के माध्यम से संबंध बनाए रखे। जिन राजवंश जिन राजवंश (1115-1234 ई.) जुरचेन लोगों द्वारा स्थापित किया गया था।
1127 ईस्वी में जिन ने जिंगकांग घटना के दौरान कैफेंग पर कब्जा कर लिया और उत्तरी सोंग राजवंश का अंत कर दिया। सोंग शासकों को दक्षिण में हटना पड़ा और दक्षिणी सोंग की स्थापना हुई। जिन शासक उत्तरी चीन पर शासन करते रहे, लेकिन बाद में मंगोलों द्वारा पराजित हुए।
सोंग काल की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रगति
सोंग काल को चीनी सभ्यता का उच्चतम बिंदु माना जाता है। इस काल में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और कला में उल्लेखनीय प्रगति हुई: वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचार खगोलीय घड़ी: सु सोंग ने 1092 ईस्वी में एक खगोलीय घड़ी बनाई, जो समय और तारों की स्थिति को मापती थी। कम्पास: चुंबकीय कम्पास का उपयोग नौवहन के लिए शुरू हुआ। छपाई: लकड़ी ब्लॉक प्रिंटिंग के बाद, चल ब्लॉक प्रिंटिंग (बी शेंग द्वारा, 11वीं शताब्दी) का आविष्कार हुआ, जिसने पुस्तकों की छपाई को तेज किया।
कागजी मुद्रा: तांबे के सिक्कों की कमी को पूरा करने के लिए पहली बार कागजी नोट (जियाओज़ी) का उपयोग शुरू हुआ।
बारूद का सैन्य उपयोग: सोंग सेना ने बारूद का उपयोग हथियारों (जैसे बम और तोप) में किया।
नौसेना: 1132 ईस्वी में सोंग ने पहली स्थायी नौसेना स्थापित की, जो यांग्त्से नदी और समुद्री युद्धों में सक्रिय थी।
आर्थिक समृद्धि: चावल की खेती में सुधार, कोयले का उपयोग, और समुद्री व्यापार ने सोंग अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनाया। जनसंख्या 100 मिलियन से अधिक हो गई। सोंग जहाज, जो कम्पास से युक्त थे, चीन सागर और हिंद महासागर में व्यापार करते थे।
कला और साहित्य चित्रकला: लिन टिंगगुई जैसे बौद्ध चित्रकारों ने उत्कृष्ट कृतियाँ बनाईं। परिदृश्य चित्रकला (लैंडस्केप पेंटिंग) इस काल की विशेषता थी।
साहित्य: विशाल साहित्यिक संकलन, जैसे ताइपिंग गुआंगजी, और बौद्ध ग्रंथों का अनुवाद हुआ। बांसुरी के अठारह गीत जैसे संगीतमय कार्य लोकप्रिय थे।
दर्शन: नव-कन्फ्यूशियसवाद का उदय हुआ, जिसे झू शी और चेंग बंधुओं ने विकसित किया। बौद्ध धर्म और ताओवाद भी फले-फूले।
शिक्षा: सोंग काल में निजी अकादमियाँ (शुयुआन) स्थापित हुईं, जो कन्फ्यूशियसवादी शिक्षा का केंद्र बनीं। सोंग राजवंश का पतन सोंग राजवंश को उत्तरी खानाबदोश जनजातियों, जैसे खितान, तांगुत, और जुरचेन, से निरंतर खतरा रहा। 1234 ईस्वी में, मंगोलों ने जिन राजवंश को पराजित किया और सोंग साम्राज्य पर आक्रमण शुरू किया।
कुबलाई खान ने 1271 ईस्वी में युआन राजवंश की स्थापना की और 1279 ईस्वी में याशन की लड़ाई में दक्षिणी सोंग को हराकर पूरे चीन पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार सोंग राजवंश का अंत हुआ और मंगोल शासन शुरू हुआ। तांग, पाँच राजवंश और दस साम्राज्य और सोंग काल ने चीनी सभ्यता को सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से समृद्ध किया। तांग काल ने कविता, कला और बौद्ध धर्म के माध्यम से सांस्कृतिक स्वर्णयुग स्थापित किया।
पाँच राजवंश और दस साम्राज्य काल ने राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद सांस्कृतिक निरंतरता बनी रही। सोंग काल ने तकनीकी नवाचारों और आर्थिक समृद्धि के साथ चीनी सभ्यता को विश्व मंच पर स्थापित किया। ये काल चीनी इतिहास के सबसे महत्त्वपूर्ण चरण हैं, जिनका प्रभाव आज भी दिखाई देता है।
चीनी सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
राजनीतिक व्यवस्था
सम्राट
चीन की कांस्यकालीन सभ्यता का उच्च स्तरीय विकास शांग राजाओं के शासनकाल में हुआ। प्रशासकीय प्रबंधन से संबद्ध देववाणी अस्थियों (ऑरकेन बोंस) से ज्ञात होता है कि राजनीतिक संगठन राजतंत्रात्मक था। इस राजतंत्रीय शक्ति का केंद्र-बिंदु राजा होता था, जो शासन के साथ-साथ न्याय और धर्म का भी सर्वोच्च होता था। शासक को ‘ती’ कहा जाता गया था। ‘ती’ उपाधि का अभिप्राय है- ‘देवाधि देव’, जो शासक की सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक था। चीनियों का विश्वास था कि उनका राजा संपूर्ण पृथ्वी पर शासन करता है। राज्य के प्रधान सेनापति के रूप में उसका कर्त्तव्य देश में शांति एवं सुव्यवस्था की स्थापना, बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा करना, प्राचीन रीति रिवाजों तथा धर्म के अनुसार शासन करना, नियम बनाना और जनता की भलाई के लिए कल्याणकारी कार्य करना था। चीनी शासक जनता के सुख-दुख को अपना सुख-दुःख मानते थे और ’ईश्वरीय पुत्र’ होने के बावजूद जनता पर अत्याचार करने अथवा निरंकुश व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र नहीं थे।
समाजिक व्यवस्था
परिवार
चीन के सामाजिक संगठन का प्राथमिक स्वरूप परिवार नामक संस्था थी। इस परंपरा का पितरपूजा के कारण विशेष महत्व था। इनका विश्वास था कि पितर (पूर्वज) मानव को सुखी और समृद्ध बना सकते हैं। परिवार की शक्ति एवं प्रतिष्ठा वृद्धि के लिए ये अपने प्राणों का उत्सर्ग भी कर देते थे, क्योंकि उनका विश्वास था कि इससे अपना स्थान पूर्वजों में सुरक्षित हो जायेगा और हमारी संतानें इसका अनुकरण करेंगी। परिवार के साथ विश्वासघात करने और वंश समाप्त करने को घोर अपराध माना जाता था। चीन में संयुक्त पारिवार की प्रथा का प्रचलन था। पिता कुल का स्वामी होता था और परिवार को सुखी बनाये रखने के लिए विनय एवं शिष्टाचार के नियम थे। माता पिता के प्रति संतान की आज्ञाकारिता एवं भ्रातृत्व स्नेह मानवीय गुण माना जाता था। परिवार के मुखिया की मृत्यु होने पर परिवार का स्वामित्व उसके बड़े भाई अथवा भाई के अभाव में पुत्र को मिलता था। यद्यपि माता की सत्ता पिता की अपेक्षा गौण थी, किंतु पिता की मृत्युपरांत माता की सत्ता अनुल्लंघनीय होती थी। प्रत्येक चीनीवासी स्वयं को पितृ ऋण का आभारी होता था।
मृतक-संस्कार
ह्वांग हो तट के अनेक पुरास्थलों के उत्खननों से पुरातत्वविदों को दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. की बहुत-सी समाधियाँ मिली हैं, जिनमें मृतकों के साथ आवश्यक उपकरण सहित दस अथवा सैकड़ों लोगों को दफनाया गया था। चीनियों का विश्वास था कि वे मृतात्मा की सेवा करेंगे। इसके अतिरिक्त, दासों के हाथ-पैर काटकर भी उनके स्वामी के साथ दफनाये जाने के प्रमाण मिले हैं।
आर्थिक व्यवस्था
शांग काल में चीन की कांस्यकालीन सभ्यता भौतिक दृष्टि से उन्नति पर पहुँच गई थी। यह आर्थिक समृद्धि मुख्यतः कृषि, पशुपालन और शिकार पर निर्भर थी।
चीन में ह्वांग हो की उर्वर घाटी कृषि के लिए बहुत उपयोगी थी, जिसके कारण आरंभ में कृषि ही चीनियों का मुख्य व्यवसाय था। फसल बोने के पूर्व शकुन पर विधिवत् विचार किया जाता था। यहाँ ज्वार, बाजारा, धान, जूट, गेहूँ आदि की खेती की जाती थी। खेती प्रायः पुरुष ही करते थे, किंतु स्त्रियाँ भी इनकी सहायता करती थीं। रेशम उत्पादन में स्त्रियाँ होती थीं।
आरंभिक चीनी सभ्यता में नगर एवं गाँव दोनों आत्मनिर्भर थे और व्यापार का प्रचलन प्रायः नहीं था। विनिमय के माध्यम से व्यापार प्रचलित था, किंतु व्यापार जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं तक ही सीमित था। विदेशों के साथ व्यापार प्रायः राजाओं तथा सामंतों और कुलीन वर्गों के लोगों के उपयोग की सामग्री के लिए ही किया जाता था। घोड़ों तथा अन्य पशुओं की खाल और अनाज का निर्यात होता था। विनिमय में घोड़े, गाय, बैल तथा अनाज का ही प्रयोग किया जाता था। आरंभ में सिक्कों के रूप में कौड़ियाँ प्रयुक्त की जाती थीं।
शिक्षा एवं साहित्य
चीनी समाज में शिक्षित व्यक्ति का जितना महत्त्व, मान व सम्मान था, उतना अन्य किसी सभ्यता में नहीं था। प्राचीन चीन की शिक्षा पद्धति उन्नत थी। गाँव के प्रत्येक 25 परिवारों के लिए एक ‘शू’ (प्राथमिक पाठशाला), पाँच सौ परिवारों के लिए ‘ह्साँग’ तथा प्रत्येक जिले के पच्चीस हजार परिवारों के लिए एक विद्यालय ‘हू’ होता था। इसी प्रकार प्रथम श्रेणी के राज्य की राजधानी में महाविद्यालय ‘पक्वॉन’ तथा साम्राज्य की राजधानी में राजकीय विश्वविद्यालय ‘पुयंग’ होता था।
साहित्य: शांग युग के उपलब्ध साहित्य केवल देववाणियों से संबंधित हैं, जिनमें मौसम, फसल, युद्ध, सैन्याभियानों, शिकार, यात्रा आदि के शकुन तथा रोग-निवारण मंत्र हैं। किंतु चाऊकालीन प्रारंभिक साहित्य धार्मिक था। इनके मंत्र एवं गीत भोजों, यज्ञों एवं पूर्वजों के सम्मान में आयोजित प्रीतिभोजों एवं नृत्यों के अवसर पर गाये जाते थे। गद्य एवं पद्य दोनों विधाएँ प्रचलित थीं, जिन्हें क्रमशः ‘फू’ एवं ‘शीह’ कहा जाता था। गद्य-खंड पूर्वजों के मंदिरों में आयोजित मूकाभिनय के साथ-साथ पढ़े जाते थे। कभी-कभी भाषण तैयार कर अभिनयकर्ता को प्रदान कर दिया जाता था। शासकीय लेख उत्कृष्ट भाषा में लिखे जाते थे। चाऊ काल में चाऊ यू यान नामक कवि बहुत प्रसिद्ध था।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
प्राचीन चीनियों ने अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के अनुसार ज्ञान में वृद्धि किये और व्यावहारिक प्रयोगों के आधार पर प्रायोगिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति किये। नव पाषाणकाल में पत्थर को काटकर उपकरण बनाने की कला और मृद्भांड-निर्माण तथा रंगाई व चित्रण के लिए रंगों के निर्माण एवं मिश्रण उनकी वैज्ञानिक प्रगति के सूचक हैं। शांग काल में ताँबे की खोज हुई और रांगा तथा जस्ते के मिश्रण से काँसे का निर्माण किया गया। धातु को गलाकर साँचों में उसकी ढलाई उनकी वैज्ञानिकता का परिचायक है। लेखन के लिए रंगों और ब्रश का आविष्कार किया गया। ज्यामितीय रचनाएँ भी विज्ञान के विकास का सूचक हैं।
कला एवं स्थापत्य
कला के क्षेत्र में चीनी कलाकार सुंदरता और स्वच्छता का तो ध्यान रखते ही थे, साथ ही साथ कला को आनंद का स्रोत एवं मानव भावनाओं का दर्पण मानते थे।
चाऊकाल के आरंभिक वर्षों में आभूषण कला में कुछ शिथिलता आई, किंतु सातवीं शताब्दी ई.पू. से कला पुनः उत्कर्ष हुआ और काँसे पर सोने, चाँदी और फिरोजे का काम किया जाने लगा। यहाँ आभूषणों का उपयोग केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं होता था, बल्कि घोड़ों, रथों, तलवारों, कुल्हाड़ों, पेटी के हुकों इत्यादि को भी आभूषणों से सजाया जाता था। विशेषतः जिन पशुओं और घोड़ों को बलि दी जाती थी, उन्हें अच्छी तरह सजाया जाता और आभूषणों सहित ही दफनाया जाता था। हान काल में अंगूठियाँ, कर्णफूल, जंजीर में लटकने वाले पैडेट आदि निर्मित किये जाने लगे थे। आभूषण के रूप में चिड़ियों, मछलियों और खरगोश आकृतियों वाले पाषाण ताबीज भी बनाये गये थे। हान काल में चमड़े पर लाख से चित्रकारी की कला का उदय हुआ। इस कला का प्रयोग मदिरा पीने वाले प्यालों की रंगाई और उन पर चित्रकारी के लिए किया जाता था।
धर्म एवं दर्शन
चीनी देव मंडल
शांगकाल से ही चीनवासियों का धर्म सर्वचेतनावादी और बहुदेववादी था। उनकी धारणा थी कि समस्त विश्व छोटी-बड़ी दैवी शक्तियों से परिपूर्ण है। यही कारण है कि उन्होंने टीलों, पर्वतों, नदियों, वृक्षों और नक्षत्रों की उपासना करने के साथ ही चूल्हे, मट्ठी, अस्त्र-शस्त्र एवं पात्र जैसे सामान्य वस्तुओं में भी दैवी-शक्ति की कल्पना कर डाली। वे अपने पूर्वजों एवं प्राचीन वीरों की भी पूजा करते थे। उनकी धारणा थी कि मृत्युपरांत आत्मा शक्ति-युक्त हो जाती है और यही आत्माएँ व्यक्ति के जीवन एवं कार्यों में सफलता एवं विफलता प्रदान करती हैं। जीवित मनुष्य और आत्मा में अनुबंधात्मक संबंध होता है, उन्हें बलि द्वारा प्रसन्न किया जा सकता है। यही कारण है कि वे अपने पूर्वजों व वीरों के प्रति असीम प्रेम और श्रद्धाभाव रखते थे। चीन में यह मान्यता थी कि मृतक वायु अथवा भूत का रूप ले लेते हैं और वे वायु की भाँति व्यापक और शक्तिशाली बन जाते हैं। यद्यपि इन्हें देवी शक्ति के रूप में कल्पित किया गया था, तथापि ये सभी जगत का निर्माण, नियमन एवं विनाश करने वाली परा-जागतिक शक्ति की श्रेणी में गणनीय नहीं थे। फिर भी, ये पूर्वज कालांतर में शक्तिशाली और रहस्यमय देवताओं का रूप ग्रहण कर लेते थे। ऐसी ही देवताओं में पौर्वात्य माता, पाश्चात्य माता तथा दिकपालों की गणना की गई है।
दर्शन एवं नीतिशास्त्र
दर्शन के क्षेत्र में चीनी सभ्यता का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है। छठी शताब्दी ई.पू. पूरे विश्व में नवीन दर्शन एवं नवीन सिद्धांतों के प्रणयन के लिए प्रसिद्ध है। इस क्रांतिकारी वैचारिक युग में चीन में भी अनेक महामानवों ने धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकृतियों को दूर करने का प्रयत्न किया। प्राचीन चीन के महान् दार्शनिकों एवं कवियों में कन्फ्यूशियस, मेंसियस, शुन कुआंग, लाओत्से, चुआंग त्जू, मोत्जू, यांग चू, त्यू येन, यिन यांग और हान फेज त्जू विशेष महत्वपूर्ण हैं, जिन्होंने चीन को वैचारिक रूप से सुदृढ़ किया।
चीनी लोगों ने तीन हजार वर्ष पूर्व युद्धों की निंदाकर संयुक्त राष्ट्र संघ की विचारधारा को चरितार्थ कर दिखाया। कला, साहित्य और दर्शन में सुदूर पूर्व के पास जो कुछ भी है, लगभग यह संपूर्णतः प्रत्यक्ष रूप से चीनी प्रतिभा की उपज है। चीन का संपर्क भारत से प्राचीनकाल से ही था। बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के मध्य अच्छा सांस्कृतिक संपर्क स्थापित कर दिया।










