बेबीलोनिया की सभ्यता (Babylonian Civilization)

मेसोपोटामिया की सभ्यता का दूसरा अध्याय बेबीलोनिया की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता का दूसरा और […]

बेबीलोनिया की सभ्यता

मेसोपोटामिया की सभ्यता का दूसरा अध्याय

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बेबीलोनिया की सभ्यता मेसोपोटामिया की सभ्यता का दूसरा और अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है, जिसका उदय सुमेरियन सभ्यता के बाद हुआ। मेसोपोटामिया, जो दजला और फरात नदियों की उपजाऊ घाटी में अवस्थित था, सुमेरिया, बेबीलोनिया और असीरिया की सभ्यताओं का समन्वित स्वरूप था। यह क्षेत्र, जो वर्तमान इराक और सीरिया के कुछ हिस्सों को समाहित करता है, प्राचीन विष्व की सबसे उर्वर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भूमियों में से एक था। बेबीलोन शहर, जो मध्य-दक्षिणी मेसोपोटामिया में स्थित था, इस सभ्यता का हृदय और केंद्रीय स्थल था। इस सभ्यता का उदय लगभग 1894 ईसा पूर्व में एक अक्कादियन भाषी राज्य के रूप में हुआ, जिसका शासन एमोराइट वंश के नेतृत्व में था।

बेबीलोनिया ने अपने समय में सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में असाधारण योगदान दिया, जिसने इसे प्राचीन विश्व की सबसे प्रभावशाली सभ्यताओं में से एक बनाया। बेबीलोन शहर न केवल एक राजनीतिक और व्यापारिक केंद्र था, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी प्रमुख स्थल था। इस सभ्यता ने अपने कानूनी, वैज्ञानिक और साहित्यिक योगदानों के माध्यम से प्राचीन विष्व में एक अमिट छाप छोड़ी।

बेबीलोनिया की स्थापना, विकास और पतन की कहानी मेसोपोटामिया के इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय है, जिसने विष्व सभ्यता को कई मायनों में प्रभावित किया। इस सभ्यता ने न केवल अपने समय में बल्कि बाद की सभ्यताओं पर भी गहराई से प्रभावित किया, विशेष रूप से अपने कानूनी ढाँचे, खगोलीय ज्ञान और साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से।

प्रारंभिक मेसोपोटामिया और बेबीलोन का उदय

मेसोपोटामिया का इतिहास बेबीलोनिया के उदय से बहुत पहले से ही अत्यंत समृद्ध और जीवंत था। लगभग 5400 ईसा पूर्व में सुमेरियन सभ्यता का उदय हुआ, जो मानव इतिहास की प्रारंभिक सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता अपनी लेखन प्रणाली, जिसे क्यूनिफॉर्म के नाम से जाना जाता है, के लिए प्रसिद्ध थी। इसके अतिरिक्त, सुमेरियन सभ्यता ने नगर-राज्यों की स्थापना की और तकनीकी आविष्कारों जैसे कुम्हार के चाक, नाव और हल का विकास किया, जिन्होंने प्राचीन विष्व में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। सुमेरियन सभ्यता ने कला, वास्तुकला और प्रशासनिक प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की, जिसने बेबीलोनिया के लिए एक मजबूत नींव तैयार की। इस सभ्यता ने मंदिर-केंद्रित अर्थव्यवस्था और धार्मिक प्रथाओं को विकसित किया, जो बाद में बेबीलोनियनों द्वारा अपनाई गईं।

तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में सुमेरियन और अक्कादियन भाषी लोगों के बीच एक गहरी सांस्कृतिक सहजीविता विकसित हुई। इस दौरान द्विभाषिकता और भाषाई प्रभाव ने सुमेरियन और अक्कादियन संस्कृतियों को एक-दूसरे के करीब लाया। धीरे-धीरे अक्कादियन भाषा ने सुमेरियन को मेसोपोटामिया की प्रमुख बोली जाने वाली भाषा के रूप में प्रतिस्थापित कर दिया। इस काल में सुमेरियन शहर-राज्य जैसे उर, उरुक, लगश और निप्पुर प्रमुख थे। इनमें से निप्पुर धार्मिक केंद्र के रूप में सर्वाेच्च स्थान रखता था, जहाँ मंदिर और पुरोहित वर्ग का विशेष महत्त्व था। इन नगर-राज्यों ने स्वतंत्र शासन प्रणालियाँ विकसित कीं, जिनमें मंदिर-केंद्रित प्रशासन और सामाजिक व्यवस्था प्रमुख थी।

लगभग 2334 ईसा पूर्व में अक्कादियन साम्राज्य की स्थापना हुई, जिसके शासक सरगोन प्रथम ने सुमेरियन और अक्कादियन लोगों को एक शासन के तहत एकजुट किया। सरगोन प्रथम ने अक्काद शहर को अपनी राजधानी बनाया। यद्यपि बेबीलोन का उल्लेख उनके समय में मिलता है, लेकिन इसकी स्थापना बाद में एमोराइटों द्वारा की गई। इस साम्राज्य ने प्राचीन निकट पूर्व के अधिकांश हिस्सों पर प्रभुत्व स्थापित किया, जिसने व्यापार, कला और प्रशासन में नवाचारों को बढ़ावा दिया। सरगोन ने एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली स्थापित की, जिसमें सैन्य और प्रशासनिक संगठन को मजबूत किया गया। इस साम्राज्य ने व्यापार मार्गों को विकसित किया और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया। लेकिन आर्थिक संकट, जलवायु परिवर्तन और गृहयुद्ध के कारण इसका पतन हो गया। इसके बाद गुटियन लोगों के आक्रमण ने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया, जिससे मेसोपोटामिया में अराजकता का दौर शुरू हो गया।

गुटियन आक्रमणों के बाद उर के तृतीय राजवंश (लगभग 2112-2004 ईसा पूर्व) ने मेसोपोटामिया पर शासन किया और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का दौर शुरू हुआ। इस राजवंश ने कला, साहित्य और धार्मिक प्रथाओं में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उर के शासकों ने मंदिरों और जिगुरातों का निर्माण करवाया, जो सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का केंद्र बने। इस राजवंश ने प्रशासनिक और आर्थिक सुधारों को भी लागू किया, जिसने क्षेत्र में स्थिरता लाने में मदद की। उर के इस राजवंश के पतन के बाद एमोराइट्स, जो उत्तर-पश्चिमी सेमिटिक भाषी लोग थे, दक्षिणी मेसोपोटामिया में प्रवेश करने लगे। इन लोगों ने कई छोटे-छोटे राज्यों की स्थापना की, जिनमें बेबीलोन भी शामिल था। एमोराइट्स ने अपने सैन्य और प्रशासनिक कौशल के बल पर क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत किया। उनकी घुमक्कड़ पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक अनुकूलनशीलता ने उन्हें मेसोपोटामिया की जटिल सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में एकीकृत होने में मदद की। यह दौर बेबीलोन के उदय का आधार बना।

बेबीलोन की स्थापना और एमोराइट शासन

बेबीलोन शहर की स्थापना का श्रेय एमोराइट सरदार सुमु-अबुम को जाता है, जिन्होंने 1894 ईसा पूर्व में इसे एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया। उस समय बेबीलोन एक छोटा और अपेक्षाकृत कम महत्त्वपूर्ण शहर था, जो पड़ोसी नगर-राज्यों की तुलना में प्रभाव में सीमित था। सुमु-अबुम और उनके उत्तराधिकारियों, जैसे सुमु-ला-एल, सबियम और अपिल-सिन ने इसे धीरे-धीरे सुदृढ़ किया। इन शासकों ने बेबीलोन के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया और नहरों, मंदिरों का निर्माण करवाया तथा नगरों की किलेबंदी करवाई।

सिन-मुबलित पहले शासक थे, जिन्हें आधिकारिक रूप से बेबीलोन का राजा माना जाता है। इस प्रारंभिक काल में बेबीलोन का प्रभाव सीमित था और यह पड़ोसी शक्तियों जैसे इसिन, लार्सा, असीरिया और एलम के अधीन या उनके साथ प्रतिस्पर्धा में रहा। फिर भी, एमोराइट शासकों ने बेबीलोन को एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बनाने की नींव रखी।

एमोराइट शासकों ने न केवल सैन्य और प्रशासनिक सुधार किए, बल्कि उन्होंने बेबीलोन को आर्थिक और धार्मिक दृष्टि से भी मजबूत किया। उन्होंने नहरों का निर्माण किया, जो कृषि और व्यापार के लिए आवश्यक थे और मंदिरों का विकास किया, जो धार्मिक और सामाजिक जीवन का केंद्र बने। इन शासकों ने बेबीलोन को एक रणनीतिक केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए पड़ोसी क्षेत्रों के साथ कूटनीतिक संबंध भी विकसित किए। इस नींव ने बाद में हम्मुराबी के शासनकाल में बेबीलोन को अपने चरम पर पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुमु-अबुम और उनके उत्तराधिकारियों ने बेबीलोन को एक स्थिर और संगठित राज्य के रूप में स्थापित किया, जिसने इसे क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने का अवसर प्रदान किया।

हम्मुराबी का शासन और बेबीलोनिया का स्वर्णकाल

बेबीलोनिया की सभ्यता का स्वर्णकाल हम्मुराबी (1792-1750 ईसा पूर्व) के शासनकाल में शुरू हुआ। हम्मुराबी एक असाधारण शासक, कुशल सैन्य रणनीतिकार और दूरदर्शी प्रशासक थे। उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता और सैन्य शक्ति के बल पर पड़ोसी नगर-राज्यों जैसे लार्सा, इसिन और एश्नुन्ना पर विजय प्राप्त की। उन्होंने अपने शासनकाल के प्रारंभिक पाँच वर्षों में अपनी शक्ति को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और प्रशासनिक ढाँचे को मजबूत किया। छठे वर्ष में उन्होंने उरुक पर विजय प्राप्त की और सातवें, नवें और दसवें वर्ष में मलगुम और रपीकुम जैसे क्षेत्रों पर प्रभुत्व स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने लगभग बीस वर्ष मंदिरों, नहरों और नगरों की सुरक्षा और विकास पर ध्यान दिया। 1763 ईसा पूर्व में उन्होंने लार्सा पर आक्रमण किया और वहाँ के शासक रिम-सिन को पराजित किया। मारी के शासक जिमरी-लिम को भी अधीनस्थ बनाया गया। हम्मुराबी ने असीरिया, एलम और अन्य क्षेत्रों पर विजय प्राप्त कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें दक्षिणी मेसोपोटामिया और असीरिया के कुछ हिस्से शामिल थे।

हम्मुराबी की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि उनकी विधि संहिता थी, जो प्राचीन विष्व की सबसे प्रारंभिक और विस्तृत कानूनी व्यवस्थाओं में से एक है। इसे ढाई मीटर ऊँचे काले डायोराइट पाषाण-स्तंभ पर उत्कीर्ण किया गया था और माना जाता था कि यह दैवी प्रेरणा से रचित थी। इस संहिता को मर्दुक के मंदिर में स्थापित किया गया था और बाद में एलमियों द्वारा सुसा ले जाया गया, जहाँ इसे 1901 में खोजा गया। यह संहिता सामाजिक, आर्थिक और आपराधिक मामलों को व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण थी। इसने ‘आँख के बदले आँख’ जैसे सिद्धांतों को स्थापित किया और 282 धाराओं में वैयक्तिक संपत्ति, व्यापार-वाणिज्य, परिवार, अपराध और श्रम जैसे विषयों से संबंधित नियम-कानून थे, जैसे यह निर्धारित करती थी कि मंदिर या राजप्रासाद में चोरी करने वाले को मृत्युदंड दिया जाएगा, जबकि साक्ष्य के बिना सोना या चाँदी खरीदने पर व्यक्ति को चोर की तरह दंडित किया जाएगा। यह संहिता सामाजिक और कानूनी व्यवस्था को व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण थी और इसने प्राचीन विष्व में न्याय के मानकों को स्थापित किया।

हम्मुराबी के शासनकाल में बेबीलोन न केवल एक राजनीतिक और सैन्य शक्ति के रूप में उत्थान हुआ, बल्कि यह एक प्रमुख वाणिज्यिक और सांस्कृतिक केंद्र भी बन गया, जिससे बेबीलोन के धार्मिक महत्त्व में भी वृद्धि हुई। बेबीलोन का प्रमुख देवता मर्दुक अब मेसोपोटामिया में सर्वोच्च देवता के रूप में पूजा जाने लगा। निप्पुर, जो पहले धार्मिक केंद्र था, अब बेबीलोन के सामने गौण हो गया। हम्मुराबी ने नहरों, मंदिरों और किलों का निर्माण करवाया, जिसने बेबीलोन को आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया। उनके शासनकाल में बेबीलोन एक वैष्विक व्यापार केंद्र बन गया, जिसके भारत, एलम और सीरिया जैसे क्षेत्रों से व्यापारिक संबंध स्थापित हुए।

हम्मुराबी के बाद का पतन और कासाइट शासन

हम्मुराबी की मृत्यु के बाद बेबीलोनिया का साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा। उनके उत्तराधिकारी समसु-इलुना के शासनकाल में दक्षिणी मेसोपोटामिया का कुछ हिस्सा स्वतंत्र हो गया और सीलैंड राजवंश के रूप में एक नए राज्य का उदय हुआ। समसु-इलुना, अबी-एशुह, अम्मी-दिताना और अम्मी-सदुका जैसे उत्तराधिकारी कमजोर शासक सिद्ध हुए, जिनके शासनकाल में साम्राज्य की एकता और शक्ति कमजोर हुई। 1595 ईसा पूर्व में हित्ती आक्रमणकारी मुर्सिल प्रथम ने बेबीलोन पर कब्जा कर लिया और शहर को लूट लिया, जिससे एमोराइट राजवंश का अंत हो गया। इस आक्रमण से बेबीलोन क्षेत्र में अराजकता का दौर शुरू हो गया।

इसके बाद कासाइटों ने सत्ता सँभाली और लगभग चार शताब्दियों तक (1570-1155 ईसा पूर्व) शासन किया। कासाइट शासक अगम द्वितीय ने बेबीलोन को सुदृढ़ करने का प्रयास किया और मर्दुक की मूर्ति को वापस लाया, जो हित्तियों द्वारा ले जाई गई थी। कासाइट शासन के दौरान बेबीलोन का एक साहित्यिक और धार्मिक केंद्र के रूप में विकास हुआ। इस काल की सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचना एनुमा एलिश है, जो बेबीलोनियन सृष्टि महाकाव्य है। इस महाकाव्य में मर्दुक को सृष्टि के नायक और सर्वोच्च देवता के रूप में दिखाया गया है। कासाइट शासकों ने बेबीलोन के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को बनाए रखा, लेकिन उनकी सैन्य और राजनीतिक शक्ति सीमित थी। इस दौरान असीरिया और एलम जैसे पड़ोसी राज्यों के साथ संघर्ष जारी रहे। 1155 ईसा पूर्व में एलमियों ने बेबीलोन पर आक्रमण किया और शहर को लूट लिया, जिससे कासाइट राजवंश का अंत हुआ।

असीरियन प्रभुत्व और नव-बेबीलोनियन साम्राज्य

9वीं से 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक बेबीलोनिया पर असीरियन प्रभुत्व रहा। असीरियन राजा तिग्लथ-पिलेसर तृतीय और सन्हेरीब जैसे शासकों ने बेबीलोन पर नियंत्रण स्थापित किया। सन्हेरीब ने 689 ईसा पूर्व में बेबीलोन को नष्ट करने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप शहर को भारी क्षति पहुँची। बाद में, उनके पुत्र एसारहद्दोन ने बेबीलोन का पुनर्निर्माण करवाया और इसके धार्मिक महत्त्व को पुनः स्थापित किया। 7वीं शताब्दी के मध्य में असीरियन राजा अशर्बनिपाल और उनके भाई के बीच गृहयुद्ध के बाद बेबीलोन और अधिक कमजोर पड़ गया।

626 ईसा पूर्व में कल्दियन नेता नबोपोलस्सर ने असीरियन प्रभुत्व को समाप्त कर बेबीलोन को अपनी राजधानी बनाया और नव-बेबीलोनियन साम्राज्य की स्थापना की। उनके पुत्र नबूकदनेस्सर द्वितीय (605-562 ईसा पूर्व) के शासनकाल में बेबीलोन अपने वैभव के चरम पर पहुँच गया। नबूकदनेस्सर ने बेबीलोन में व्यापक पुनर्निर्माण कार्य करवाए, जिनमें मर्दुक का भव्य मंदिर, जिगुरात एतेमेनांकी और विश्व प्रसिद्ध हैंगिंग गार्डन्स (झूलते बगीचे) शामिल हैं, जो प्राचीन विष्व के सात आश्चर्यों में से एक माने जाते हैं। नबूकदनेस्सर ने यहूदा और यरूशलेम पर विजय प्राप्त की, जिसके परिणामस्वरूप यहूदी आबादी को बेबीलोन में बंदी बनाकर लाया गया, जिसे इतिहास में ‘बेबीलोन की कैद’ के रूप में जाना जाता है। उनके शासनकाल में बेबीलोन एक सांस्कृतिक और व्यापारिक केंद्र के रूप में विष्व भर में प्रसिद्ध हो गया।

बेबीलोनिया का पतन और फारसी शासन

539 ईसा पूर्व में फारसी सम्राट साइरस द ग्रेट ने बेबीलोनिया पर कब्जा कर लिया, जिससे नव-बेबीलोनियन साम्राज्य का अंत हुआ। साइरस ने बेबीलोन को अपने विशाल अकेमेनिड साम्राज्य का हिस्सा बना लिया। फारसियों के अधीन बेबीलोन ने मर्दुक की पूजा और मंदिरों की गतिविधियों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को कुछ हद तक बनाए रखा, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व धीरे-धीरे कम हो गया। 331 ईसा पूर्व में सिकंदर महान ने बेबीलोन पर कब्जा कर लिया और इसे अपने साम्राज्य की राजधानी बनाने की योजना बनाई। लेकिन उनकी मृत्यु (323 ईसा पूर्व) के बाद शहर का महत्व और कम हो गया। सेल्यूसिड राजवंश के तहत बेबीलोन की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सेल्यूसिया शहर में स्थानांतरित हो गया, जिससे बेबीलोन का गौरव धीरे-धीरे समाप्त हो गया। इस समय तक बेबीलोन एक प्राचीन शहर के खंडहरों में बदल चुका था, लेकिन इसकी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत जीवित रही।

सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान

बेबीलोनिया की सभ्यता ने साहित्य, विज्ञान और धर्म में असाधारण योगदान दिया। क्यूनिफॉर्म लेखन प्रणाली, जो सुमेरियों द्वारा विकसित की गई थी, बेबीलोनियनों ने और अधिक परिष्कृत और व्यापक रूप से उपयोग की। इस लेखन प्रणाली ने साहित्य, प्रशासन और वैज्ञानिक रचनाओं को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एनुमा एलिश जैसे महाकाव्य और हम्मुराबी की विधि संहिता इस सभ्यता की बौद्धिक उपलब्धियाँ थीं। एनुमा एलिश एक सृष्टि महाकाव्य है, जो मर्दुक की सर्वाेच्चता और विश्व की उत्पत्ति की कहानी बताता है। मर्दुक का मंदिर और जिगुरात धार्मिक और स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने थे, जो बेबीलोन के धार्मिक जीवन का केंद्र थे।

बेबीलोन का खगोल विज्ञान विशेष रूप से उल्लेखनीय था। बेबीलोनियनों ने ग्रहों और नक्षत्रों की गतिविधियों का अध्ययन किया और एक पंचांग विकसित किया, जिसमें वर्ष को 12 महीनों में विभाजित किया गया था। उन्होंने 360 डिग्री के वृत्त की अवधारणा और समय विभाजन की प्रणाली को भी विकसित किया, जो बाद में यूनानी और रोमन विज्ञान को प्रभावित करने वाली सिद्ध हुई। बेबीलोनिया की धार्मिक मान्यताएँ, विशेष रूप से मर्दुक की पूजा ने प्राचीन निकट पूर्व की धार्मिक परंपराओं को गहराई से प्रभावित किया। मर्दुक को सर्वाेच्च देवता के रूप में स्थापित करने के साथ-साथ बेबीलोनियनों ने शमश (सूर्य), सिन (चंद्र) और ईश्तर (प्रेम और युद्ध की देवी) जैसे अन्य देवताओं की भी पूजा की। पुरोहित वर्ग समाज में उच्च स्थान रखता था और मंदिर आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों के केंद्र थे। बेबीलोनियन लोग प्रकृति-पूजक थे और भूत-प्रेतों में विष्वास रखते थे, जिसके कारण ज्योतिष और शकुन विद्या का भी प्रचलन था।

पुरातात्त्विक महत्व

19वीं और 20वीं शताब्दी में बेबीलोन के खंडहरों की खुदाई ने इस सभ्यता के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। जर्मन पुरातत्त्वविद् रॉबर्ट कोल्डेवे के नेतृत्व में 1899-1917 के बीच किए गए उत्खननों में क्यूनिफॉर्म शिलालेख, मूर्तियाँ और ईश्तर गेट जैसे अवशेष मिले। ईश्तर गेट, जो मीनाकारी वाले शेरों, बैलों और ड्रेगनों से सजा है, बेबीलोन की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और वर्तमान में बर्लिन के पेरगामन संग्रहालय में प्रदर्शित है। हम्मुराबी की विधि संहिता का पाषाण-स्तंभ, जो 1901 में सुसा में खोजा गया, वर्तमान में पेरिस के लूवर संग्रहालय में रखा गया है। ये पुरातात्त्विक खोजें बेबीलोनिया की सभ्यता की भव्यता और जटिलता का सूचक हैं। 2003 के इराक युद्ध ने बेबीलोन के पुरातात्त्विक स्थलों को भारी क्षति पहुँचाई, लेकिन संरक्षण और पुनर्स्थापना के प्रयास आज भी जारी हैं।

राजनीतिक संगठन

बेबीलोनियन संस्कृति अपनी पूर्ववर्ती सुमेरियन संस्कृति से राजनीतिक और संवैधानिक तत्वों की दृष्टि से श्रेष्ठ थी। बेबीलोन में विजेता के रूप में आए एमोराइट्स ने हम्मुराबी की विजयों के माध्यम से एक शक्तिशाली और केंद्रीकृत साम्राज्य स्थापित किया। शासक को दैवी माना जाता था और राजपद सामान्यतः वंशानुगत था। शासक की सुरक्षा और साम्राज्य के प्रशासन के लिए गवर्नर, सक्वाकु और हाजन्नु जैसे अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। गवर्नर महत्वपूर्ण थे, लेकिन उनके निर्णय शासक की अनुमति पर निर्भर थे। शासक और गवर्नर के बीच संबंध बनाए रखने के लिए दूत और मध्यस्थ नियुक्त रहते थे। हम्मुराबी ने एक नौकरशाही प्रणाली स्थापित की, जिसमें कराधान और प्रशासन को व्यवस्थित किया गया। यह प्रणाली साम्राज्य की एकता और स्थिरता को बनाए रखने में सहायक थी। अधिक जानकारी के लिए देखें-

सामाजिक संगठन

हम्मुराबी की विधि-संहिता के अनुसार बेबीलोनियन समाज का सामाजिक और आर्थिक ढांचा अत्यंत व्यवस्थित और स्तरबद्ध था, जो समाज को तीन प्रमुख वर्गों—उच्च (अवीलुम), मध्यम (मुस्केनुम), और दास (वरदु)—में विभाजित करता था। इस वर्गीकरण के साथ-साथ, समाज व्यवसायों और कार्यों के आधार पर भी संगठित था, जिसमें विभिन्न पेशों और उनके सामाजिक स्तरों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यह संरचना न केवल सामाजिक व्यवस्था को दर्शाती थी, बल्कि आर्थिक गतिविधियों और व्यक्तिगत अधिकारों-कर्तव्यों को भी परिभाषित करती थी। समाज में धर्म, परंपराएँ, और विधि-संहिता के नियम सामाजिक और आर्थिक जीवन को संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। निम्नलिखित अनुभागों में वर्ग-विभाजन, व्यवसाय, परिवार संरचना, और दैनिक जीवन को विस्तार से समझाया गया है।

सामाजिक वर्ग-विभाजन

हम्मुराबी की विधि-संहिता के अनुसार, बेबीलोनियन समाज को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया था, जिनका सामाजिक स्तर और अधिकार भिन्न थे।

उच्च वर्ग (अवीलुम): इस वर्ग में शासक, उच्च अधिकारी, पुरोहित, भूस्वामी, और बड़े व्यापारी शामिल थे। ‘अवीलुम’ शब्द का अर्थ ‘स्वतंत्र व्यक्ति’ था, जो समाज के सबसे प्रभावशाली और विशेषाधिकार प्राप्त लोग थे। इस वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर या सेवानिवृत्त व्यक्तियों को भी कुछ अधिकार प्राप्त थे, जिससे सामाजिक गतिशीलता संभव थी। वर्गभेद धन, पद, और बाद में रक्त (वंश) पर आधारित होने लगा था। उच्च वर्ग को कठोर दंड का सामना करना पड़ता था, उदाहरण के लिए, हत्या के मामले में अवीलुम को अधिक कठोर दंड (धारा 196-198) मिलता था, जो उनकी सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता था।

मध्यम वर्ग (मुस्केनुम): मुस्केनुम वर्ग में किसान, कारीगर, छोटे व्यापारी, और अन्य स्वतंत्र नागरिक शामिल थे, जो समाज की आर्थिक रीढ़ थे। यह वर्ग भी स्वतंत्र था, किंतु इसका सामाजिक स्तर अवीलुम से निम्न था। विधि-संहिता में दंड निर्धारण में इस अंतर का प्रभाव पड़ता था; उदाहरण के लिए, मुस्केनुम को हत्या या चोट के लिए कम दंड (धारा 198) मिलता था। यह वर्ग समाज में स्थिरता और उत्पादकता प्रदान करता था।

दास वर्ग (वरदु): दासों को ‘वरदु’ कहा जाता था, और ये मुख्यतः युद्धबंदी, कर्ज के कारण गुलाम बनाए गए लोग, या अपराधों के दंडस्वरूप दास बने व्यक्ति थे। दास स्वामी की संपत्ति माने जाते थे, और उनका क्रय-विक्रय पशुओं की तरह होता था (धारा 15-16)। दासों के भागने पर शरण देने वाले को प्राणदंड (धारा 16) और अपहरण पर भी यही सजा थी, जबकि पकड़ने वाले को पुरस्कार मिलता था (धारा 17)। हम्मुराबी ने दासों के प्रति कठोर व्यवहार पर नियंत्रण लगाया, जैसे स्वामी के अतिरिक्त कोई अन्य अधिशासन नहीं (धारा 175), विदेश में बिक्री पर प्रतिबंध (धारा 280), और दासों को अर्थोपार्जन के माध्यम से स्वतंत्रता खरीदने का अधिकार (धारा 117)। मार्दुक मंदिर से कर्ज लेकर स्वतंत्रता प्राप्त करने की व्यवस्था भी थी, जो दासों की स्थिति में सुधार का प्रयास दर्शाती थी। दासों के अधिकारों के उल्लंघन पर भी दंड का प्रावधान था (धारा 205), जो सामाजिक न्याय की दिशा में एक कदम था।

परिवार संरचना एवं स्त्रियों की भूमिका

बेबीलोनियन समाज में परिवार संरचना और स्त्रियों की स्थिति विधि-संहिता द्वारा स्पष्ट रूप से परिभाषित थी, जो सामाजिक स्थिरता और नैतिकता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण थी।

विवाह और तलाक: विवाह के लिए साक्षी और लिखित अनुबंध अनिवार्य थे (धारा 128), और विवाह की शर्तें मानना बाध्यकारी था। माता-पिता के सहयोग से विवाह संपन्न होता था, जिसमें वर-पिता उपहार और कन्या-पिता दहेज देता था (धारा 160-161)। एकपत्नी प्रथा प्रचलित थी, और नैतिकता अनिवार्य थी। व्यभिचार पर स्त्री को प्राणदंड (नदी में डुबोना, धारा 129) या दया दिखाने पर घर से निष्कासन का प्रावधान था। यदि पति ‘तू मेरी पत्नी नहीं’ कहकर तलाक देता था, तो पत्नी को दहेज सहित पितृगृह लौटने का अधिकार था (धारा 138), किंतु पत्नी द्वारा ऐसा कहने पर उसे प्राणदंड मिलता था (धारा 143)। बंध्या होने, बेईमानी, या लापरवाही पर तलाक संभव था (धारा 141), और क्रूरता के आरोप पर निर्दोष पत्नी दहेज सहित पितृगृह लौट सकती थी (धारा 142)。 यदि पति लंबे समय तक अनुपस्थित रहता, तो जीविका के अभाव में पत्नी अन्य पुरुष के साथ रह सकती थी, किंतु युद्धबंदी पति की स्थिति में पुनर्विवाह नहीं हो सकता था (धारा 134-135)。

देवदासियाँ: समाज में देवदासियों (मंदिर से जुड़ी अविवाहित महिलाएँ) को उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त थी। ये उच्च वर्ग की महिलाएँ थीं, जो पिता से प्राप्त संपत्ति का व्यक्तिगत उपयोग करती थीं। कुछ देवदासियाँ व्यापार में संलग्न थीं और बाद में विवाह कर सकती थीं, जबकि विवाहित देवदासियाँ पति से पृथक रहती थीं, फिर भी उनकी सामाजिक गरिमा बनी रहती थी। किंतु, यदि कोई देवदासी मद्य-व्यापार में संलग्न होती थी, तो उसे प्राणदंड दिया जाता था (धारा 110), जो नैतिकता पर कठोरता दर्शाता है।

उत्तराधिकार: उत्तराधिकार के नियम भी विधि-संहिता में स्पष्ट थे। प्रथम पत्नी और दासी से उत्पन्न संतानों को जीवनकाल में मान्यता देने पर संपत्ति में हिस्सा मिलता था (धारा 170), अन्यथा नहीं (धारा 171)。 यह नियम परिवार में स्थिरता और संपत्ति के वितरण को सुनिश्चित करता था।

दैनिक जीवन

बेबीलोनियन समाज का दैनिक जीवन उनकी आर्थिक स्थिति, सामाजिक स्तर, और सांस्कृतिक परंपराओं से प्रभावित था।

भोजन: बेबीलोनियन मुख्यतः निरामिष भोजन करते थे, जिसमें रोटी, शाक, और शहद प्रमुख थे। धनाढ्य वर्ग में मांसाहारी भोजन प्रचलित था, और मछली एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ थी। मछुआरे तीन श्रेणियों में विभाजित थे—शुद्ध जल, समुद्री, और नमकीन जल। खजूर और अंगूर से बनी मद्य अत्यंत लोकप्रिय थी, और इसका व्यापार भी होता था (धारा 108-111)。

वस्त्र: हम्मुराबी के पूर्व सेमिटिक शैली के वस्त्र प्रचलित थे, जो बाद में सस्ते और सादे हो गए। ऊनी वस्त्र प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे, और द्वितीय सहस्राब्दी में सिले वस्त्रों का प्रचलन शुरू हुआ। सामान्य लोग घुटनों तक का चोंगा पहनते थे, जिसे पेटी से बाँधा जाता था, जबकि शाही वस्त्र आकर्षक और अलंकृत होते थे।

सौंदर्य और रीति-रिवाज: दाढ़ी और लंबे बाल रखने की प्रथा थी, जो सामाजिक स्तर को दर्शाती थी। नापित (हजाम) समाज में महत्वपूर्ण थे, जो बाल और दाढ़ी को संवारते थे।

महिलाओं की भूमिका: निम्न वर्ग की महिलाएँ व्यापार में सक्रिय थीं, विशेष रूप से खजूर और मद्य के व्यापार में। यह दर्शाता है कि बेबीलोनियन समाज में महिलाओं को कुछ आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, हालांकि यह विधि-संहिता के नियमों से बंधी थी।

बेबीलोनियन समाज का यह संगठन हम्मुराबी की विधि-संहिता के माध्यम से अत्यंत व्यवस्थित और निष्पक्ष था, जो सामाजिक, आर्थिक, और पारिवारिक जीवन को एक सूत्र में बांधता था। यह संरचना न केवल बेबीलोनिया की समृद्धि को दर्शाती थी, बल्कि प्राचीन विश्व में सामाजिक न्याय और संगठन की एक मिसाल भी स्थापित करती थी।

आर्थिक संगठन

कृषि एवं सिंचाई व्यवस्था

मेसोपोटामिया में बेबिलोनियनों को सुमेरियनों जैसी आर्थिक सुविधाएँ मिलीं। कृषि विकास का आधार थी। विधि-संहिता में कृषि से संबंधित कानून थे। भूमि का स्वामित्व शासक, मंदिर, या जमींदारों के पास था। दास कृषि कार्य करते थे। पट्टे पर दी गई भूमि से 1/3 या 1/2 उपज कर के रूप में ली जाती थी। खेती अनिवार्य थी। असावधानी पर कर लगता था। प्राकृतिक क्षति की स्थिति में नुकसान साझा किया जाता था। पशु चराना वर्जित था। सिंचाई कृत्रिम थी। हम्मुराबी वंश ने नहरों का निर्माण करवाया। गवर्नर नहरों के रखरखाव के लिए उत्तरदायी थे। आस-पास के कार्यों के लिए मजदूरी और मछली दी जाती थी। जल ऊपर उठाने के लिए शाडूफ जैसे यंत्र का उपयोग होता था। बाढ़ का जल संग्रह किया जाता था। नहरों के दरवाजे हटाकर जल का उपयोग होता था। भूमि को क्षति नहीं पहुँचाने का ध्यान रखा जाता था। उर्वर भूमि से खाद्यान्न, फल, खजूर, जैतून, और अंगूर की अच्छी उपज होती थी। खजूर का उपयोग विविध था: फल से आटा, चीनी, और मदिरा बनती थी; छाल से रस्सी, और लकड़ी से भवन निर्माण होता था। विधि-संहिता में इनके लिए नियम थे।

पशुपालन एवं उद्योग-धंधे

पशुपालन प्रचलित था। गाय, भेड़, ऊँट, और बकरी प्रमुख पालतू पशु थे। राजकीय पशुओं पर कर लगता था। चरवाहे नियुक्त किए जाते थे, और गवर्नर इनका निरीक्षण करते थे। विधि-संहिता में पशुपालन के नियम थे। उद्योग भी महत्वपूर्ण थे, जिनमें वस्त्र, चर्म, भांड, और अस्त्र निर्माण शामिल थे। ऊन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। खनिज जैसे स्वर्ण, रजत, ताम्र, काँस्य, और शीशा उपयोग में थे। लोहा दुर्लभ था। धातु ढलाई से अस्त्र और आभूषण बनाए जाते थे।

व्यापार एवं वाणिज्य की प्रणाली

उद्योगों का प्रभाव व्यापार पर पड़ता था। यातायात के लिए नहरें महत्वपूर्ण थीं। खाद्यान्न, खजूर, तेल, लकड़ी, और तिल जलमार्ग से ले जाए जाते थे। भारी लट्ठों का परिवहन भी होता था। विधि-संहिता में नावों के लिए नियम थे। नाविकों और व्यापारियों के कर्तव्य निश्चित थे। बेबिलोनिया का व्यापार सिंधु, एलाम, और सीरिया से था। राज्य व्यापार को नियंत्रित करता था। साझेदारी, धन-संचय, अभिकरण, अनुबंध, और ब्याज के नियम थे। तमकारु सौदागर और बैंकर की भूमिका निभाते थे। अभिकर्ता व्यापारिक संबंध बनाए रखते थे। हुबुत्ततु ब्याजरहित ऋण था। लिखित शर्तें अनिवार्य थीं। मुद्रा पर छाप होती थी। इबत्तु मौखिक अनुबंध था। ब्याज की दर नकदी पर 20% और माल पर 33% थी।

धार्मिक जीवन

देवी-देवताओं का मंडल

जब पश्चिमी सेमाइट्स बेबिलोनिया में आए, तब सुमेरियन संस्कृति 1000 वर्ष पुरानी थी, और इसका प्रभाव स्वाभाविक था। कई सुमेरियन देवता बेबिलोनियन संस्कृति में प्रतिष्ठित हुए। शमश, एनलिल, एनकी, अनु, और नन्नार प्रमुख थे। एनलिल को सर्वोच्च माना जाता था, लेकिन बेबिलोनियनों ने बेल-मार्दुक को सर्वोच्च बनाया। मार्दुक शुरू में नगर-देवता था, लेकिन बाद में राष्ट्रीय देवता बन गया। एनुमा एलिश में उनके 50 नामों का उल्लेख है, जो विश्वोत्पत्ति और उनकी विजय की कहानी बताता है। उनकी पत्नी सर्पेनिटम थी, और नेबु उनका पुत्र था। ईश्तर मातृशक्ति थी, जो युद्ध और दाम्पत्य की देवी थी। उसका प्रतीक अष्टकोण था। तामुज वनस्पति और नवजीवन का देवता था, जो पतझड़ में मृत्यु और बसंत में पुनर्जनन का प्रतीक था। अन्य देवताओं में शमश (प्रकाश), सिन (चंद्र), नर्गल (महामारी), अदद (विद्युत और तूफान), और निनुरता (युद्ध) शामिल थे। देवताओं का स्वरूप मानवीय था। उनकी उपासना में भोजन, मधु, घृत, तैल, दुग्ध, लवण, मक्खन, मत्स्य, और शाक की भेंट दी जाती थी। दैनिक और मासिक अनुष्ठान होते थे। पुरोहित पूँजीपति और भूस्वामी थे, और उनके पास दास और श्रमिक थे।

आध्यात्मिकता, अभिचार, और परलोक-विश्वास

बेबिलोनियन धर्म में आध्यात्मिक और नैतिक तत्वों का अभाव था। उपासना भौतिक थी और भय व स्वार्थ पर आधारित थी। कृषि और वाणिज्य की समृद्धि के लिए प्रार्थनाएँ की जाती थीं। प्रायश्चित भी भौतिक था। भूत-प्रेतों में विश्वास था। नर्गल जैसे दानवों को प्रेत उत्पीड़न का कारण माना जाता था। बाधा निवारण के लिए ताबीज, मूर्तियाँ, और पत्थर की मालाएँ उपयोग होती थीं। रंगीन धागों का भी उपयोग था। मंत्र और शकुन प्रचलित थे। दैवी रौद्र और दानवों से बचाव के लिए अनुष्ठान और आभिचार किए जाते थे। पुरोहित इनके विशेषज्ञ थे। शकुन और ज्योतिष महत्वपूर्ण थे। जन्म, मरण, नदी, ग्रह, स्वप्न, और व्यवहार से भविष्यवाणी की जाती थी। यकृत अध्ययन प्रचलित था। ज्योतिष में ग्रहों की गतिविधियों से भविष्यवाणी होती थी। परलोक में विश्वास सीमित था। अमरत्व या पुनर्जन्म की अवधारणा नहीं थी। पाताल भयानक माना जाता था। गिल्गिमेश महाकाव्य में मृत्यु के बाद कीड़े खाने की बात कही गई है। मृतक के लिए परिवार भेंट देता था। मृतक संस्कार में शव को पेटिका में दफनाया जाता था या दाह कर भस्म को घड़े में रखा जाता था।

कला और स्थापत्य

वास्तुकला

बेबिलोनियनों में सृजनात्मक शक्ति का अभाव था। सुमेरियन कला को जीवित नहीं रखा गया। वास्तुकला में साधनों का अभाव था। भवन आसानी से नष्ट हो जाते थे। हम्मुराबी की विधि-संहिता में भवन धराशायी होने पर दंड का प्रावधान था। अवशेषों में मुख्यतः ईंटें मिलती हैं, जो धूप या अग्नि में पकाई जाती थीं। छतें गीली मिट्टी की होती थीं। भवन एक-दो मंजिल के होते थे, कभी-कभी तीन-चार मंजिल के। कमरे पर्याप्त होते थे, और अंतःप्रांगण की ओर खुलते थे। खिड़कियाँ कम थीं। मंदिर जिगुरत के रूप में बनाए जाते थे, जिनमें सौंदर्य का अभाव था। जिगुरत विशाल लेकिन सौंदर्यहीन थे। ये आधार-वेदिका पर बने मंदिर थे, जिनमें कई मंजिलें होती थीं। बारसिप्पा का जिगुरत सात मंजिल का था, जो सात ग्रहों और रंगों का प्रतीक था: शनि (काला), शुक्र (श्वेत), बृहस्पति (बैंगनी), बुध (नीला), मंगल (लाल), चंद्र (चाँदी), और सूर्य (सुनहरा)। जिगुरत का उपयोग देवालय और ज्योतिष अध्ययन के लिए होता था।

मूर्तिकला, चित्रकला, और गौण कलाएँ

मूर्तिकला में मौलिकता का अभाव था। मूर्तियाँ धार्मिक और राजनीतिक परंपराओं पर आधारित थीं। मुखाकृतियाँ एकसमान थीं। शासक को गठीला दिखाया जाता था। उदाहरण के लिए, ग्रेनाइट में हम्मुराबी का शीर्ष और मारी में उर्वरता देवी की मूर्ति उल्लेखनीय हैं। शिलाखंडों पर भावना और अभिव्यंजना दिखाई देती थी। चित्रकला पूरक थी और दीवार अलंकरण के लिए उपयोग होती थी। भित्तिचित्रों का अभाव था। मुद्रा तक्षण प्रचलित था। व्यापार और शासकीय कार्यों के लिए मुद्राएँ आवश्यक थीं। संगीत में रुचि थी। बाँसुरी, बीन, सारंगी, ढोल, तुरही, और झाँझ प्रमुख वाद्य यंत्र थे। संगीत मंदिरों, महलों, और समारोहों में बजाया जाता था। धनी लोग टाइल्स, पत्थर, और फर्नीचर का उपयोग करते थे। आभूषण प्रचलित थे, लेकिन उच्च कोटि के नहीं थे।

बौद्धिक उपलब्धियाँ

लिपि एवं साहित्य

बौद्धिक क्षेत्र में उन्नति सीमित थी। कीलाक्षर लिपि में प्रगति हुई, और इसका आकार परिवर्तित हुआ। यह राजकीय, साहित्यिक, और व्यावसायिक उपयोग के लिए लोकप्रिय थी। हम्मुराबी और उनके उत्तराधिकारियों ने इसे विकसित किया। साहित्य में सुमेरियन रचनाओं का संकलन और परिवर्तन किया गया। गिल्गिमेश महाकाव्य इस काल की प्रमुख रचना थी, जो सुमेरियन मूल की थी लेकिन बेबिलोनियनों ने इसे सुग्राह्य बनाया। यह बारह अध्यायों का महाकाव्य था, जो एरेक के शासक गिल्गिमेश की वीरता और साहसिक कार्यों की कहानी कहता है। एनुमा एलिश विश्वोत्पत्ति का महाकाव्य था, जिसमें मार्दुक की श्रेष्ठता दिखाई गई थी। यह सात पाटियों और 1000 पंक्तियों का था। अन्य साहित्य में देव-स्तोत्र, पूजा-गीत, और मंत्र शामिल थे। लौकिक साहित्य में विजयों, मंदिरों, और नगरों की घटनाओं का वर्णन था।

दार्शनिक चिंतन एवं वैज्ञानिक प्रगति

दार्शनिक ग्रंथों में लुडलुल बेल नेमकी उल्लेखनीय है, जिसे बेबिलोनियन जॉब कहा जाता है। यह सदाचारी व्यक्ति के कष्टों और ईश्वर के रहस्य पर आधारित है। डॉयलाग ऑफ पेसिमिज्म और कौंसिल ऑफ विजडम भी महत्वपूर्ण थे। विज्ञान में गणित, ज्योतिष, खगोल, मानचित्र, और औषधि शामिल थे। गणित में द्विपद और षष्टिक प्रणाली थी। चिह्न दोहरे थे। दशमलव प्रणाली का उपयोग होता था। रेखागणित में क्षेत्रफल की गणना की जाती थी। ज्योतिष में ग्रहों की गतिविधियों से भविष्यवाणी होती थी। खगोल में शुक्र के उदय और अस्त का अध्ययन होता था। वर्ष को 12 चंद्र-मास में बाँटा गया था। मानचित्रों में पर्वत, समुद्र, नदी, और नगर दिखाए जाते थे। औषधि में अंधविश्वास प्रबल था। भूत-प्रेतों को रोग का कारण माना जाता था। तंत्र-मंत्र और विचित्र दवाओं का उपयोग होता था।

बेबीलोनिया की सभ्यता की देन

बेबीलोनिया की सभ्यता का प्राचीन विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। हम्मुराबी की विधि-संहिता ने कानूनी व्यवस्था को व्यवस्थित किया, जो बाद की सभ्यताओं, जैसे यूनानी और रोमन के लिए प्रेरणा बन गई। खगोल विज्ञान, गणित और साहित्य में उनके योगदान ने यूनानी और रोमन संस्कृतियों को प्रभावित किया। बेबीलोन के जिगुरातों ने इस्लामी मस्जिदों की वास्तुकला को प्रेरित किया। इस सभ्यता की सांस्कृतिक विरासत ने यहूदी और यूरोपीय परंपराओं पर भी प्रभाव डाला। बेबीलोन के खंडहर आज भी इस सभ्यता की भव्यता और वैभव की कहानी कहते हैं। इस प्रकार बेबीलोनिया ने न केवल अपने समय में, बल्कि बाद की सभ्यताओं पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा, जिसने विष्व इतिहास में इस स्थान को अमर कर दिया।

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