छत्तीसगढ़ में कलचुरि राजवंश को राजनीतिक युग का प्रारंभिक बिंदु माना जाता है। नवीं शताब्दी के अंत में त्रिपुरी के कलचुरि शासक कोकल्ल प्रथम के पुत्र शंकरगण द्वितीय ‘मुग्धतुंग’ ने 900 ई. के आसपास दक्षिण कोसल के बाणवंशी शासक विक्रमादित्य ‘जयमेरु’ को पराजित कर पाली (कोरबा) क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। उन्होंने अपने छोटे भाई को इस क्षेत्र का मंडलाधिपति नियुक्त किया, जिसने तुम्माण को अपनी सत्ता का केंद्र बनाया। इस प्रकार, शंकरगण द्वितीय ‘मुग्धतुंग’ ने छत्तीसगढ़ में कलचुरि राजवंश की नींव रखी।
कलचुरि दक्षिण कोसल पर अधिक समय तक शासन नहीं कर सके। 950 ई. के आसपास सोनपुर (सोनपुरी, उड़ीसा) के सोमवंशी शासकों ने कलचुरियों को पराजित कर तुम्माण पर अधिकार कर लिया। बाद में, कोकल्ल द्वितीय के पुत्र कलिंगराज ने तुम्माण को जीतकर 1000 ई. के लगभग छत्तीसगढ में कलचुरि राजवंश की स्थापना की। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों की दो शाखाएँ थीं- रतनपुर और रायपुर। इन दोनों शाखाओं ने मध्य भारत के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में 10वीं से 18वीं शताब्दी तक शासन किया।
प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ क्षेत्र दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था। इस क्षेत्र का पौराणिक इतिहास महाभारत और रामायण जितना प्राचीन है। एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने अपने 14 वर्षीय वनवास के दौरान कुछ समय इस क्षेत्र में व्यतीत किया था।
छत्तीसगढ़ का लिखित इतिहास चौथी शताब्दी ईस्वी तक जाता है। सरभपुरिया, पांडुवंशी, सोमवंशी, कलचुरि और नागवंशी जैसे राजवंशों ने छठी से बारहवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान इस क्षेत्र पर शासन किया। मध्यकाल में दक्षिण कोसल को गोंडवाना के नाम से भी जाना जाता था। बाद में, यह क्षेत्र कलचुरि साम्राज्य का हिस्सा बना। चौदहवीं शताब्दी ईस्वी के मुस्लिम इतिहासकारों ने इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजवंशों का विस्तृत वर्णन किया है। ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का प्रचलन मराठा काल में हुआ और इसका पहला आधिकारिक उपयोग 1795 ई. के एक दस्तावेज में मिलता है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया और अधिकांश क्षेत्र को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया। 1854 ई. के बाद, अंग्रेजों ने रायपुर को अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया। छत्तीसगढ़ राज्य का गठन 1 नवंबर 2000 को हुआ और यह भारत का 26वां राज्य बना
ऐतिहासिक स्रोत
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Toggleछत्तीसगढ़ के कलचुरियों के इतिहास निर्माण में अभिलेखों, सिक्कों, पुरातात्त्विक अवशेषों और साहित्यिक स्रोतों से सहायता मिलती है।
छत्तीसगढ़ के कलचुरि शासकों के कई शिलालेख और ताम्रपत्र मिले हैं, जिनसे उनके शासनकाल, वंशावली और प्रशासनिक कार्यों पर प्रकाश पड़ता है। कोकल्लदेव प्रथम के समय के रतनपुर शिलालेख (1114 ई.) में कलचुरि वंश की उत्पत्ति और उनके प्रारंभिक शासकों का उल्लेख मिलता है। पृथ्वीदेव प्रथम के शासनकाल के अमोदा ताम्रपत्र (1154 ई.) से रतनपुर शाखा की स्थापना और उसके क्षेत्रीय विस्तार पर प्रकाश पड़ता है। 14वीं शताब्दी के रायपुर शिलालेख से लक्ष्मीदेव और उनके उत्तराधिकारियों के समय में रायपुर शाखा की स्थापना और खल्लारी (खल्लवाटिका) को राजधानी बनाने की पुष्टि होती हैं।
रतनपुर शाखा के शासक जाजल्लदेव प्रथम (1090-1120 ई.) के समय के शेषनाग ताम्रपत्र से भूमिदान और प्रशासनिक व्यवस्था की सूचना मिलती है। भुनेश्वरदेव (1438-1463 ई.) के समय के मल्हार शिलालेख में रायपुर किले के निर्माण का उल्लेख मिलता है। इनके अलावा, रतनपुर, बिलासपुर और रायपुर क्षेत्रों से अनेक ताम्रपत्रों से भी हैहयवंशीय शासकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश पड़ता है।
पुरातात्विक अवशेषों में भुनेश्वरदेव द्वारा निर्मित रायपुर किला कलचुरि शाखा के वैभव का प्रतीक है। रतनपुर, खल्लारी और रायपुर से प्राप्त मंदिर, कुएँ और महल के अवशेष कलचुरि शासकों की स्थापत्य कला और समृद्धि का सूचक हैं। रतनपुर, मल्हार और सिरपुर से मिले मंदिर और मूर्तियाँ भी कलचुरि काल की कला और धर्म का प्रमाण हैं।
छत्तीसगढ़ के कलचुरि शासकों द्वारा चलाये गये सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों से मिले हैं। इन पर राजाओं का नाम और विभिन्न प्रकार के प्रतीकों का अंकन है, जिनसे तत्कालीन व्यापारिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति की जानकारी होती है।
साहित्यिक स्रोतों में स्थानीय विद्वानों द्वारा लिखित ‘रतनपुर के राजवंशीय इतिहास’ और ‘रतनपुर की गाथाएँ’ महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ जैन ग्रंथ, जैसे परिशिष्टपर्वन और प्रभाचंद्र की रचनाओं से कलचुरियों के संरक्षण और उनके जैन धर्म के साथ संबंधों का ज्ञान होता हैं। 17वीं-18वीं शताब्दी के मुगल और मराठा दस्तावेजों में भी कलचुरि शासकों, विशेषकर शिवराजसिंहदेव के मराठा अधीनता स्वीकार करने का उल्लेख है।
छत्तीसगढ़ की स्थानीय कथाएँ और गीत, जैसे चंदैनी और पंथी गीतों में कलचुरि शासकों की वीरता और उनके शासन की कहानियों का वर्णन मिलता है। इन मौखिक स्रोतों को ऐतिहासिक तथ्यों के पूरक के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
मुगल इतिहासकार अबुल फजल (आइन-ए-अकबरी) और अन्य इतिहासकारों ने छत्तीसगढ़ क्षेत्र के स्थानीय शासकों का उल्लेख किया है, जिनसे कलचुरियों के साथ उनके संबंधों पर प्रकाश पड़ता है। 17वीं-18वीं शताब्दी यूरोपीय यात्रियों, जैसे टवर्नियर के लेखों में रतनपुर और रायपुर के व्यापारिक महत्त्व का उल्लेख मिलता है। छत्तीसगढ़ के कुछ स्थानीय इतिहासकारों, जैसे बाबू रेवाराम कायस्थ की रचना ‘तवारीख श्रीहैहयवंशी राजाओं की’ (1858 ई.) छत्तीसगढ़ के कलचुरियों के इतिहास की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
इस प्रकार छत्तीसगढ़ के कलचरियों का इतिहास शिलालेखों, ताम्रपत्रों, सिक्कों, पुरातात्विक अवशेषों, साहित्यिक ग्रंथों, लोककथाएँ और विदेशी यात्रियों के विवरणों से जाना जा सकता है। रतनपुर और रायपुर की कलचुरि शाखाएँ अपने प्रशासन, किलेबंदी और सांस्कृतिक योगदान के लिए प्रसिद्ध रहीं हैं। यद्यपि 18 शताब्दी के मध्य में मराठों ने इस वंश का अंत कर दिया, लेकिन उनकी विरासत आज भी छत्तीसगढ़ के इतिहास में जीवित है।
छत्तीसगढ़ में कलचुरियों की शाखाएँ
छत्तीसगढ़ में हैहयवंशी कलचुरि राजवंश की दो प्रमुख शाखाओं- रतनपुर और रायपुर- ने लगभग 1000 ई. से 1741 ई. तक शासन किया। इन शाखाओं का विवरण निम्नलिखित है-
रतनपुर की कलचुरि शाखा
इस शाखा की स्थापना 1000 ई. में त्रिपुरी के कलचुरि शासक कोकल्ल द्वितीय (990-1015 ई.) के पुत्र कलिंगराज (1000-1020 ई.) ने की थी। इस शाखा की प्रारंभिक राजधानी तुम्माण थी।
कलिंगराज के बाद कमलराज (1020-1045 ई.) और रत्नदेव अथवा स्त्नराज प्रथम (1045-1065 ई.) रतनपुर के राजा हुए। उन्होंने 1045 ई. में रतनपुर नगर की स्थापना की और 1050 ई. में राजधानी को तुम्माण से रतनपुर स्थानांतरित किया।
इसके बाद, पृथ्वीदेव प्रथम (1065-1090 ई.) और जाजल्लदेव प्रथम (1090-1120 ई.) राजा हुए। जाजल्लदेव प्रथम ने त्रिपुरी के कलचुरियों की अधीनता मानने से इनकार कर दिया।
जाजल्लदेव प्रथम के बाद रत्नदेव द्वितीय (1120-1135 ई.), पृथ्वीदेव द्वितीय (1135-1165 ई.), जाजल्लदेव द्वितीय (1165-1168 ई.), जगदेव (1168-1178 ई., रत्नदेव तृतीय (1178-1198 ई.) और प्रतापमल्ल (1198-1225 ई.) ने रतनपुर से शासन किया।
प्रतापमल्ल के बाद संभवतः रतनपुर के कलचुरियों की शक्ति पड़ोसी राजवंशों, जैसे गोंडों, यादवों और त्रिपुरी के कलचुरियों के दबाव और आंतरिक अस्थिरता के कारण कमजोर पड़ गई और फिर बाहरेंद्रसाय (1480-1525 ई.) के समय से रतनपुर के कलचुरियों की कुछ जानकारी मिलती है।
बाहरेंद्र के पश्चात् कल्याणसाय नामक एक राजा ने रतनपुर में लगभग 1544 से 1581 ई. तक (1536-1573 ई.?) तक शासन किया, जिन्होंने भू-राजस्व जमाबंदी की शुरूआत की और एक राजस्व पुस्तिका तैयार की, जिसमें उस समय की प्रशासनिक व्यवस्था, राजस्व एवं सैन्यबल की जानकारी मिलती है।
कल्याण साय के बाद लक्ष्मण साय (1581-1620 ई.), शंकर साय 1596), मुकुंद साय (1606 ई.), त्रिभुवन साय (1622 ई.) जगमोहन साय (1633 ई.), अदती साय (1659 ई.) रणजीत साय (1675 ई.), तख्तसिंह (1685-1689 ई.) आदि राजाओं के नाम मिलते हैं, किंतु इनके शासनकाल की कोई विशेष उपलब्धि की जानकारी नहीं मिलती है।
तखतसिंह (1685-1689 ई.) ने 17वीं शताब्दी के अंत में तख्तपुर नगर की स्थापना की, जबकि राजसिंह (1689-1712 ई.) ने रतनपुर के निकट राजपुर (जून) नगर की स्थापना की और एक सात मंजिला बादलमहल बनवाया। ‘खूब तमाशा’ के लेखक गोपाल मिश्र राजसिंह के दरबारी कवि थे।
राजसिंह की मृत्यु (1712 ई.) के बाद सरदारसिंह (1712-1732 ई.) और रघुनाथसिंह (1732-1745 ई.) रतनपुर की गद्दी पर बैठे। रघुनाथसिंह को 1741 ई. में मराठा सेनापति भास्कर पंत से पराजित होकर मराठों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी।
1745 ई. में भोंसले शासक रघुजी प्रथम ने मोहनसिंह (1745-1757 ई.) को रतनपुर की गद्दी पर बैठाया, जो 1757 ई. तक भोंसले की अधीनता में शासन किये। 1758 ई. में भोसले राजकुमार बिम्बाजी ने छत्तीसगढ़ में अपना प्रत्यक्ष शासन स्थापित किया और हैहयवंशी कलचुरियों की सत्ता का भी अंत हो गया।
विस्तृत अध्ययन के लिए देखें- रतनपुर के कलचुरि
रायपुर (लहुरी) की कलचुरि शाखा
कलचुरियों ने छत्तीसगढ़ पर लगभग नौ सदियों तक (875-1741ई.) शासन किया। छत्तीसगढ़ में कलचुरियों की दो शाखाएॅ स्थापित हुई थीं- एक रतनपुर शाखा और दूसरी रायपुर की (लहुरी) शाखा। जिस प्रकार प्रशासनिक उद्देश्यों से त्रिपुरी की एक शाखा तुम्माण (तुमैन) में स्थापित की गई थी, उसी प्रकार तुम्माण की एक शाखा खल्लारी में स्थापित की गई, जिसकी राजधानी रायपुर बनी।
14वीं शताब्दी के अंतिम चरण में रतनपुर की कलचुरि शाखा के विभाजन के परिणामस्वरूप रायपुर (लहुरी) शाखा का उदय हुआ। यह विभाजन संभवतः लक्ष्मीदेव के शासनकाल के बाद उनके पुत्र सिंहण के शासनकाल में हुआ।
रायपुर कलचुरि राजवंश के प्रथम शासक के रूप में लक्ष्मीदेव (1300-1340 ई.) का नाम मिलता है, जिन्होंने खल्लारी (खल्लवाटिका) को केंद्र बनाकर रायपुर की कलचुरि शाखा की नींव डाली।
रायपुर के कलचुरि शासकों में लक्ष्मीदेव के बाद उसके पुत्र सिंघणदेव (1380-1400 ई.) का उल्लेख मिलता है, जिसने शत्रओं के 18 गढों को़ जीतकर रतनपुर की अधीनता मानने से इनकार कर दिया। सिंहण के समय में ही रतनपुर की कलचुरि शाखा विभाजित हुई और रायपुर की लहुरी शाखा का उदय हुआ।
सिंघणदेव के दो पुत्रों में छोटे पुत्र रामचंद्र (1380-1400 ई.) को रायपुर से शासन करने का अधिकार मिला और उन्होंने रायपुर में कलचुरि राजवंश के प्रथम शासक के रूप में सत्ता स्थापित की।
रामचंद्रदेव ने ही अपने पुत्र ब्रह्मदेव ‘राय’ के नाम पर रायपुर नगर बसाया और उसे एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया। ऐसा लगता है कि रामचंद्र (1380-1400 ई.) के समय तक रतनपुर राज्य का औपचारिक विभाजन नहीं हुआ था।
रामचंद्र के बाद उनके पुत्र ब्रह्मदेव (1400-1420 ई.) रायपुर की गद्दी पर बैठे, जिन्हें ‘राय’ की उपाधि प्राप्त थी, जिनके दो शिलालेख रायपुर और खल्लारी से प्राप्त हुए हैं। उन्होंने संभवतः 1409 ई. में राजधानी को खल्लारी से रायपुर स्थानांतरित किया, जहाँ 1415 ई. में देवपाल नामक एक मोची ने नारायण मंदिर का निर्माण करवाया और 1402 ई. में नायक हाजिराज ने रायपुर में खारून नदी के महादेव घाट पर हाटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया।
रायपुर (लहुरी) शाखा के कलचुरि शासकों वंशावली केशवदेव (1420-1438 ई.) से आरंभ होती है, इसलिए केशवदेव को रायपुर की कलचुरि शाखा का संस्थापक माना जाता है।
केशवदेव के बाद भुवनेश्वरदेव (1438-1463 ई.), मानसिंहदेव (1463-1478 ई.), संतोषसिंहदेव (1478-1498 ई.), सूरतसिंहदेव (1498-1518 ई.), सम्मानसिंहदेव (1518-1528 ई.), चामुंडसिंहदेव (1528-1563 ई.), वंशीसिंहदेव (1563-1582 ई.), धनसिंहदेव (1582-1604 ई.), जैतसिंहदेव (1604-1615 ई.), फत्तेसिंहदेव (1615-1636 ई.), यादसिंहदेव (1636-1650 ई.), सोमदत्तसिंहदेव (1650-1663 ई.), बलदेवसिंहदेव (1663-1685 ई.), उम्मेदसिंहदेव या मेरसिंहदेव (1685-1705 ई.), बनबीरसिंहदेव या बरियारसिंहदेव (1705-1741 ई.) अमरसिंहदेव (1741-1753 ई.) और शिवराजसिंहदेव (1753-1757 ई.) का नाम मिलता है।
अमरसिंहदेव (1741-1753 ई.) का एक ताम्रपत्र आरंग से मिला है, जो विक्रम संवत् 1792 में जारी किया गया था। अमरसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र शिवराजसिंहदेव (1753-1757 ई.) ने 1757 ई. तक मराठों की अधीनता में शासन किया। 1757 ई. में मराठों ने शिवराजसिंह को जीवन-यापन के लिए कुछ करों की वसूली का अधिकार दिया। बाद में, 1822 ई. में शिवराजसिंह से बड़गाँव भी छीन लिया और इस प्रकार कलचुरियों की रही सही सत्ता भी समाप्त हो गई।
विस्तृत अध्ययन के लिए देखें- रायपुर (लहुरी) की कलचुरि शाखा

छत्तीसगढ़ में कलचुरि सत्ता के पतन के कारण
छत्तीसगढ़ में कलचुरि सत्ता का पतन एक जटिल प्रक्रिया थी, जिसमें कई कारक एक साथ जिम्मेदार थे। कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
अयोग्य उत्तराधिकारी और कमजोर नीतियाँ
18वीं शताब्दी में कलचुरि राजवंश की सत्ता अक्षम उत्तराधिकारियों और उनकी प्रशासनिक नीतियों के कारण ढहने लगी। रघुनाथसिंह और अमरसिंह जैसे शासकों की अयोग्यता ने इस राजवंश की शक्ति को कमजोर कर दिया।
रघुनाथसिंह अपने पुत्र की मृत्यु से शोकग्रस्त थे और शासन में रुचि नहीं ले सके। यही कारण है कि 1741 ई. में मराठा सेनापति भास्कर पंत के आक्रमण के समय उन्होंने बिना प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर दिया। मराठों ने अमरसिंह को पराजित कर भोंसले सत्ता के अधीन शासन करने को मजबूर किया। उनकी मृत्यु (1753 ई.) के बाद उनके पुत्र शिवराजसिंह से जागीरें छीन ली गईं और उन्हें केवल नाममात्र का अधिकार दिया गया।
प्रारंभिक शासक जैसे कलिंगराज, रत्नराज प्रथम, पृथ्वीदेव प्रथम और जाजल्लदेव प्रथम प्रभावशाली और सक्षम थे, लेकिन परवर्ती शासकों में नेतृत्व और रणनीतिक कौशल की कमी थी। इस अक्षमता ने कलचुरियों की 1500 वर्षों की गौरवशाली विरासत को समाप्त कर दिया।
मराठों की आक्रामक और विस्तारवादी नीति
मराठों की आक्रामक और विस्तारवादी नीति ने कलचुरि सत्ता के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छत्रपति शाहू से प्राप्त बंगाल, बिहार और उड़ीसा में चौथ वसूली की सनद ने रघुजी भोंसले को छत्तीसगढ़ पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ की उपजाऊ भूमि और आर्थिक समृद्धि ने भी मराठों को आकर्षित किया।
नागपुर के भोंसले शासक रघुजी प्रथम के सेनापति भास्कर पंत ने (1741 ई.) रतनपुर पर आक्रमण किया। रघुनाथसिंह के आत्मसर्पण के बाद उसने रतनपुर पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और राजकोष को हस्तगत कर लिया। मराठा राजकुमार बिंबाजी भोंसले ने (1758 ई.) रतनपुर के प्राचीन महल को अपने अधीन कर छत्तीसगढ़ पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया।
1822 ई. मराठों ने शिवराजसिंह से सभी अधिकार छीनकर कलचुरि वंश को पूरी तरह समाप्त कर दिया। बाद में, 1854 ई. में रघुजी तृतीय की निःसंतान मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने हड़प नीति के तहत छत्तीसगढ़ को अपने अधीन कर लिया।
आंतरिक विद्रोह और षड्यंत्र
आंतरिक विद्रोह और षड्यंत्र ने भी कलचुरि सत्ता को कमजोर किया। रतनपुर के शासक राजसिंह ने मोहनसिंह को उत्तराधिकारी चुना था, लेकिन उनकी मृत्यु के समय मोहनसिंह की अनुपस्थिति में सरदारसिंह को रतनपुर की गद्दी दे दी गई। इससे क्रुद्ध होकर मोहनसिंह ने मराठा शासक रघुजी प्रथम से मिलकर षड्यंत्र रचा। 1745 ई. में भोंसलों ने मोहनसिंह को रतनपुर की गद्दी पर बिठाया, जिससे कलचुरियों की एकता और शक्ति कमजोर हुई।
कलचुरियों का विभाजन
कलचुरि राजवंश का रतनपुर और रायपुर में दो शाखाओं में विभाजन भी पतन का एक प्रमुख कारण था। लक्ष्मीदेव के पुत्र सिंघण के शासनकाल के बाद रतनपुर और रायपुर शाखाओं का अलगाव हुआ। इस विभाजन ने इस राजवंश की एकता को कमजोर किया और मराठा आक्रमणों का सामना करने में बाधा उत्पन्न की। दोनों शाखाओं के बीच आपसी समन्वय और सहयोग की कमी ने भी मराठों को छत्तीसगढ़ क्षेत्र पर आक्रमण करने का अवसर प्रदान किया।
सैन्य कमजोरियाँ
कलचुरि सेना की संरचना और प्रबंधन में कमियाँ भी कलचुरियों के पतन का कारण बनीं। कलचुरि सेना में 2000 खड्गधारी, 5000 कटारधारी, 3600 बंदूकधारी, 2600 धनुर्धारी, 1000 घुड़सवार और 216 हाथी थे। यह स्थायी सेना थी, लेकिन मराठों की विशाल और कुशल सेना की तुलना में अपर्याप्त थी।
आवश्यकता पड़ने पर कलचुरि सेना जागीरदारों की सेना पर निर्भरता रहती थी। जब तक शासकों का जागीरदारों पर नियंत्रण था, सेना प्रभावी रही, लेकिन बाद में जागीरदारों ने स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली और कलचुरि शासकों का साथ छोड़ दिया। भास्कर पंत की सेना के सामने कलचुरि शासक असहाय सिद्ध हुए, क्योंकि उनकी सेना संगठित और पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं थी।
छत्तीसगढ़ की समृद्धि
छत्तीसगढ़ की उपजाऊ भूमि और आर्थिक समृद्धि ने इसे मराठों के लिए आकर्षक लक्ष्य बनाया। छत्तीसगढ़ की समृद्धि ने मराठों को इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए प्रेरित किया। बंगाल, बिहार और उड़ीसा की सीमा से सटे होने के कारण छत्तीसगढ़ मराठों की विस्तारवादी नीति का पहला शिकार बना।
इस प्रकार कमजोर और अयोग्य शासकों ने शासन को अस्थिर किया, मराठों की विस्तारवादी नीति और सैन्य शक्ति ने कलचुरि सत्ता को कुचल दिया, मोहनसिंह के षड्यंत्रों ने आंतरिक एकता को तोड़ा और राजवंश का विभाजन तथा दोषपूर्ण सैन्य प्रबंध ने स्थिति को और बदतर बनाया। 1741 ई. में भास्कर पंत के आक्रमण से शुरू हुआ यह पतन 1758 ई. में मराठों के प्रत्यक्ष शासन और अंततः 1822 ई. में कलचुरि वंश के पूर्ण उन्मूलन के साथ समाप्त हुआ। एक अंग्रेज अधिकारी की बंदोबस्त रिपोर्ट के अनुसार हैहयवंशी कलचुरि शासकों के अंतिम वंशजों ने युद्ध के बजाय आत्मसमर्पण को चुना, जिससे उनकी गौरवशाली विरासत मिट्टी में मिल गई।
छत्तीसगढ़ के कलचुरि वंश से संबंधित बहुविकल्पीय प्रश्न
1. छत्तीसगढ़ का मध्यकालीन इतिहास किस वंश से प्रारंभ हुआ?
(A) चालुक्य
(B) कलचुरि
(C) गुप्त
(D) मौर्य
2. कलचुरि वंश ने छत्तीसगढ़ में अपनी प्रथम राजधानी किस नगर को बनाया था?
(A) रतनपुर
(B) त्रिपुरी
(C) महिष्मती
(D) तुम्माण
3. बिलहरी लेख में किस कलचुरि शासक की विजय का उल्लेख किया गया है?
(A) वामराज देव
(B) रत्नदेव प्रथम
(C) कोकल्ल प्रथम
(D) कलिंगराज
4. त्रिपुरी के कलचुरि वंश का संस्थापक कौन था?
(A) कलिंगराज
(B) रत्नराज
(C) कोकल्ल प्रथम
(D) शंकरगण द्वितीय
5. छत्तीसगढ़ के कलचुरि आरंभ में किसकी अधीनता स्वीकार करते थे?
(A) उड़ीसा के सोमवंशियों की
(B) त्रिपुरी के कलचुरियों की
(C) कन्नौज के गहड़वालों की
(D) जेजाकभुक्ति के चंदेलों की
6. छत्तीसगढ़ में कलचुरि राजवंश का वास्तविक संस्थापक कौन था?
(A) कोकल्ल प्रथम
(B) कलिंगराज
(C) रत्नदेव प्रथम
(D) जाजल्यदेव प्रथम
7. कलचुरि वंश की राजकीय भाषा क्या थी?
(A) प्राकृत
(B) हिंदी
(C) संस्कृत
(D) पाली
8. चौतुरगढ़ के महामाया मंदिर का निर्माण किस कलचुरि शासक ने करवाया था?
(A) रत्नराज
(B) कलिंगराज
(C) रत्नदेव प्रथम
(D) वामराज देव
9. रतनपुर को कलचुरि शासनकाल में क्या कहा जाता था?
(A) कुबेरपुर
(B) तुम्माण
(C) महिष्मती
(D) त्रिपुरी
10. रत्नदेव प्रथम के बाद रतनपुर का कलचुरि शासक कौन बना?
(A) जाजल्यदेव प्रथम
(B) पृथ्वीदेव प्रथम
(C) कलिंगराज
(D) तखतसिंह साय
11. छत्तीसगढ़ में कलचुरि वंश की प्रथम राजधानी कहाँ थी?
(A) तुम्माण
(B) खल्लारी
(C) रतनपुर
(D) मणिपुर
12. तुम्माण से शासन करने वाला अंतिम कलचुरि शासक कौन था?
(A) पृथ्वीदेव प्रथम
(B) रत्नराज प्रथम
(C) कमलराज
(D) कलिंगराज
13. रतनपुर के कलचुरि वंश के किस शासक ने ‘सकलकोसलाधिपति’ की उपाधि धारण की थी?
(A) रत्नदेव प्रथम
(B) पृथ्वीदेव प्रथम
(C) रत्नदेव द्वितीय
(D) पृथ्वीदेव द्वितीय
14. रतनपुर के विशाल तालाब का निर्माण किसने करवाया था?
(A) पृथ्वीदेव प्रथम
(B) रत्नदेव द्वितीय
(C) पृथ्वीदेव द्वितीय
(D) रत्नदेव प्रथम
15. किस कलचुरि नरेश ने पाली जीता था?
(A) कोकल्ल प्रथम
(B) लक्ष्मीदेव प्रथम
(C) युवराज प्रथम
(D) शंकरगण द्वितीय ‘मुग्धतुंग’
16. छत्तीसगढ़ के कलचुरि वंश के किस शासक ने बस्तर के छिंदक नागवंशी शासक सोमेश्वर को पराजित किया?
(A) जाजल्लदेव प्रथम
(B) जाजल्लदेव द्वितीय
(C) पृथ्वीदेव प्रथम
(D) पृथ्वीदेव द्वितीय
17. जाँजगीर नगर का संस्थापक कौन था?
(A) जाजल्यदेव
(B) जयसिंहदेव
(C) सोमेश्वरदेव
(D) रामदेव
18. जाँजगीर के विष्णु मंदिर का निर्माण किस कलचुरि शासक ने करवाया था?
(A) जाजल्लदेव प्रथम
(B) जाजल्लदेव द्वितीय
(C) पृथ्वीदेव प्रथम
(D) रत्नदेव प्रथम
19. छत्तीसगढ़ के किस कलचुरि राजा ने सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाए थे?
(A) पृथ्वीदेव द्वितीय
(B) प्रतापमल्ल
(C) जाजल्लदेव प्रथम
(D) जाजल्लदेव द्वितीय
20. बाणवंशीय शासक विक्रमादित्य द्वारा निर्मित पाली के शिवमंदिर का जीर्णोद्धार किस कलचुरि शासक ने करवाया था?
(A) जाजल्लदेव प्रथम
(B) रत्नदेव प्रथम
(C) पृथ्वीदेव द्वितीय
(D) जाजल्लदेव द्वितीय
21. ‘गजशार्दूल’ की उपाधि धारण करने वाला कलचुरि शासक कौन था?
(A) जाजल्लदेव प्रथम
(B) रत्नदेव द्वितीय
(C) जाजल्लदेव द्वितीय
(D) पृथ्वीदेव द्वितीय
22. गंगवंशीय शासकों को युद्ध में हराने वाला कलचुरि शासक कौन था?
(A) पृथ्वीदेव द्वितीय
(B) रत्नदेव द्वितीय
(C) पृथ्वीदेव प्रथम
(D) रत्नदेव प्रथम
23. रतनपुर के किस कलचुरि शासक के सेनापति ने राजिम के राजीवलोचन मंदिर का पुनरुद्धार किया था?
(A) पृथ्वीदेव द्वितीय
(B) रत्नदेव द्वितीय
(C) जाजल्यदेव द्वितीय
(D) रत्नदेव तृतीय
24. हैहयवंशीय कलचुरियों को पराजित करने वाला मराठा कौन था?
(A) होयसल
(B) भोंसले
(C) होल्कर
(D) शिंदे
25. रतनपुर के किस शासक को मुगल बादशाह के दरबार में आठ वर्षों तक रहना पड़ा था?
(A) कल्याण साय
(B) लक्ष्मण साय
(C) बाहरेंद्र साय
(D) सुरेंद्र साय
26. कलचुरि शासक कल्याण साय किस मुगल सम्राट के समकालीन थे?
(A) हुमायूँ
(B) शाहजहाँ
(C) जहाँगीर
(D) औरंगजेब
27. कल्याण साय मुगल दरबार में कितने वर्षों तक रहे थे?
(A) 7
(B) 8
(C) 9
(D) 10
28. गोपल्ला गीत छत्तीसगढ़ के किस वंश के इतिहास से संबंधित है?
(A) पांडु वंश
(B) कलचुरि वंश
(C) मल वंश
(D) सोम वंश
29. निम्नलिखित में से किस कलचुरि शासक के सबसे अधिक अभिलेख मिले हैं?
(A) पृथ्वीदेव द्वितीय
(B) रत्नदेव प्रथम
(C) रत्नदेव द्वितीय
(D) प्रतापमल्ल
30. निम्नलिखित में से किस कलचुरि शासक ने छुरी कोसगई को राजधानी बनाया था?
(A) कल्याण साय
(B) रत्नदेव तृतीय
(C) तखत सिंह
(D) बाहरेंद्र साय
31. छत्तीसगढ़ में राजस्व की जमाबंदी प्रणाली किसने शुरू किसने की थी?
(A) बाहरेंद्र साय
(B) रघुनाथ सिंह
(C) कल्याण साय
(D) तखत सिंह
32. रतनपुर नगर की स्थापना किसने की थी?
(A) कलिंगराज
(B) शंकरगण द्वितीय
(C) रघुनाथसिंह
(D) रत्नदेव प्रथम
33. निम्नलिखित में से किस कलचुरि शासक ने बादल महल बनवाया था?
(A) कल्याण साय
(B) रत्नदेव द्वितीय
(C) राजसिंहदेव
(D) रत्नदेव प्रथम
34. निम्नलिखित में से कौन-सी रचनाएँ रतनपुर के शासक राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र की हैं?
(A) खूब तमाशा
(B) सुदामा चरित
(C) राजतरंगिणी
(D) केवल अ और ब
35. छत्तीसगढ़ के किस किले को ‘गजकिला’ कहा जाता है?
(A) रतनपुर
(B) सरगुजा
(C) रामपुर
(D) खल्लारी
36. गोपाल मिश्र किस कलचुरि शासक के दरबारी कवि थे?
(A) रघुनाथ सिंह
(B) राजसिंह
(C) तखतसिंह
(D) रत्नदेव प्रथम
37. ‘खूब तमाशा’ नामक काव्य किसकी रचना है?
(A) गांगेयदेव
(B) राजशेखर
(C) गोपाल मिश्र
(D) गोपालदास ‘नीरज’
38. रतनपुर का अंतिम स्वतंत्र कलचुरि शासक कौन था?
(A) मोहनसिंह
(B) रघुनाथसिंह
(C) राजसिंह
(D) कल्याण साय
39. 1741 ई. में छत्तीसगढ़ पर मराठा आक्रमण के समय रतनपुर का कलचुरि शासक कौन था?
(A) रघुनाथसिंह
(B) अमरसिंह
(C) राजसिंह
(D) बलदेवसिंह
40. रतनपुर पर आक्रमण करने वाला मराठा सेनापति कौन था?
(A) भास्कर पंत
(B) रघुजी
(C) महीपत राय
(D) बिम्बाजी भोंसले
41. रतनपुर के कलचुरि राज्य पर मराठा भोंसले का आक्रमण कब हुआ था?
(A) 1741
(B) 1758
(C) 1745
(D) 1765
42. निम्नलिखित में से किस कलचुरि राजा ने मुगल दरबार को भेंट दी थी?
(A) कल्याण साय
(B) प्रतापमल्ल
(C) बाहरेंद्र साय
(D) लक्ष्मण साय
43. छत्तीसगढ़ में कलचुरि प्रशासन में शासक को निम्नलिखित में से किस उपाधि से संबोधित किया जाता था?
(A) महाराजकुमार राजा
(B) महासामंत
(C) महाराजाधिराज
(D) महामात्य कुमार
44. कलचुरि राजा मुख्यतः किसके अनुयायी थे?
(A) शिव
(B) दुर्गा
(C) विष्णु
(D) काली
45. कलचुरि शासकों की राजभाषा क्या थी?
(A) प्राकृत
(B) अपभ्रंश
(C) संस्कृत
(D) पालि
46. किस कलचुरि राजा ने बस्तर के छिंदक नागवंशी शासक सोमेश्वर को पराजित किया था?
(A) कमलराज
(B) रत्नराज प्रथम
(C) जाजल्लदेव प्रथम
(D) पृथ्वीदेव प्रथम
47. गंगवंशीय अनंतवर्मन चोडगंग को किस कलचुरि राजा ने हराया था?
(A) रत्नदेव द्वितीय
(B) बाहरेंद्र
(C) जगदेव
(D) रत्नदेव प्रथम
48. कोमोमंडल के अधिपति वज्जूक (वज्रवर्मा) की पुत्री नोनल्ला का विवाह किस कलचुरि राजा से हुआ था?
(A) रत्नराज प्रथम
(B) प्रतापमल्ल
(C) रत्नदेव द्वितीय
(D) जाजल्यदेव प्रथम
49. छत्तीसगढ़ में स्थानीय प्रशासन हेतु ‘पंचकुल’ संस्था किन शासकों ने बनाई थी?
(A) कलचुरि
(B) मराठा
(C) काकतीय
(D) नागवंशी
50. छत्तीसगढ़ के कलचुरि राज्य का प्रमुख लगान अधिकारी का पदनाम क्या था?
(A) महाबलाधिकृत
(B) अक्षपटलिक
(C) महाप्रमातृ
(D) राजस्व सचिव
51. कलचुरि प्रशासन में गढ़ कितने गाँवों से मिलकर बनता था?
(A) 36
(B) 24
(C) 84
(D) 12
52. छत्तीसगढ़ पर शासन करने वाले कलचुरि वंश के शासकों का सही कालक्रम कौन-सा है?
- जाजल्लदेव प्रथम
- रत्नदेव प्रथम
- कमलराज
- जगदेव
(A) 1, 3, 2, 4
(B) 2, 3, 4, 1
(C) 3, 2, 1, 4
(D) 4, 1, 3, 2
53. निम्नलिखित में से किन कलचुरि शासकों ने तुम्माण राजधानी से छत्तीसगढ़ पर शासन किया?
- कलिंगराज
- कमलराज
- रत्नराज
- प्रतापमल्ल
(A) 1, 2 और 3
(B) 1, 2 और 4
(C) 2, 3 और 4
(D) 1, 3 और 4
54. निम्नलिखित में से किन कलचुरि शासकों ने तुम्माण राजधानी से शासन किया?
(A) लक्ष्मणराज, कलिंगराज, कमलराज
(B) कलिंगराज, कमलराज, रत्नराज
(C) कमलराज, रत्नराज
(D) लक्ष्मणराज, रत्नराज, कमलराज
55. निम्नलिखित कथनों को पढ़कर सही कूट का चयन कीजिए-
- छत्तीसगढ़ में कलचुरि प्रशासन व्यवस्था राजतंत्र पर आधारित थी।
- राजा की सहायता के लिए अमात्य (मंत्री) होते थे।
- संपूर्ण कलचुरि राज्य गढ़ों में विभाजित था।
(A) केवल 1 और 2 सही हैं
(B) केवल 2 और 3 सही हैं
(C) केवल 1 और 3 सही हैं
(D) उपरोक्त सभी सही हैं
56. निम्नलिखित कथनों को पढ़कर सही कूट का चयन कीजिए-
- कलचुरि प्रशासन में राजा के अधिकार सीमित थे।
- प्रशासनिक विभागों का दायित्व अमात्यमंडल के सदस्यों पर था।
- ज्य गढ़ों में विभाजित था और प्रत्येक गढ़ में 84 ग्राम होते थे।
(A) केवल 1 और 2 सही हैं
(B) केवल 2 और 3 सही हैं
(C) केवल 1 और 3 सही हैं
(D) उपरोक्त सभी सही हैं
57. कलचुरि प्रशासन के संबंध में सही कूट का चयन कीजिए-
- मंडल के शासन का प्रमुख महामंडलेश्वर कहलाता था।
- गढ़ का शासक प्रमुख दीवान कहलाता था।
- बारहों का प्रमुख दाऊ कहलाता था।
- ग्राम प्रमुख गौटिया कहलाता था।
(A) 1, 2, 3 और 4
(B) 1, 3 और 4
(C) 2, 3 और 4
(D) 1 और 4