पूर्वी गंग वंश  (Eastern Ganga Dynasty)

पूर्वी गंग वंश भारत के पूर्वी तट पर, मुख्य रूप से आधुनिक ओडिशा (उड़ीसा) और […]

गंग वंश  (Ganga Dynasty)

पूर्वी गंग वंश भारत के पूर्वी तट पर, मुख्य रूप से आधुनिक ओडिशा (उड़ीसा) और उत्तरी आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में 5वीं से 15वीं शताब्दी तक शासन करने वाला एक प्रमुख राजवंश था। इस वंश की उत्पत्ति 5वीं शताब्दी ईस्वी में मानी जाती है, हालांकि प्रारंभिक अवधि के बारे में ऐतिहासिक स्रोतों में सीमित जानकारी उपलब्ध है। परंपरागत कथाओं और अभिलेखों के अनुसार वंश के संस्थापक कामार्णव प्रथम (लगभग 498 ईस्वी) या इंद्रवर्मा थे, जो दक्षिणी कलिंग (प्राचीन ओडिशा) के स्थानीय शासक थे। ये शासक संभवतः गुप्त साम्राज्य के अधीन सामंत थे और कलिंगनगर (आधुनिक श्रीकाकुलम, आंध्र प्रदेश) को अपनी प्रारंभिक राजधानी बनाया। वंश का नाम गंगा नदी से प्रेरित माना जाता है, जिसे वे पवित्र मानते थे, लेकिन पश्चिमी गंग वंश (कर्नाटक में) से इसका कोई प्रत्यक्ष संबंध सिद्ध नहीं हुआ है।

प्रारंभिक पूर्वी गंग शासक शांतिप्रिय थे और विजय अभियानों से परहेज करते थे, लेकिन वेंगी के चालुक्यों, तेलुगु चोड़ों और राष्ट्रकूटों के साथ छिटपुट संघर्षों का उल्लेख मिलता है। पुलकेशिन द्वितीय (चालुक्य) और दन्तिदुर्ग (राष्ट्रकूट) ने इस क्षेत्र को जीतकर गंग शासकों को अपने सामंत बना लिया।

6वीं से 9वीं शताब्दी तक वंश की ऐतिहासिकता अभिलेखों से स्पष्ट होती है, जहां उनका संवत् (498 ईस्वी से प्रारंभ) अंकित मिलता है। इस काल में वंश ने स्थानीय जनजातियों को एकीकृत कर अपनी नींव मजबूत की और हिंदू धर्म (वैष्णव एवं शैव संप्रदाय) को प्राथमिक संरक्षण दिया, जबकि जैन एवं बौद्ध धर्म के प्रति सहिष्णुता दिखाई।

प्रारंभिक शासक और विस्तार  

5वीं शताब्दी के मध्य से पूर्वी गंग वंश ने कलिंग पर प्रभुत्व स्थापित किया, लेकिन इसका स्वर्णकाल 11वीं शताब्दी से आरंभ हुआ। कामार्णव प्रथम ने कलिंगनगर को प्रशासनिक एवं व्यापारिक केंद्र बनाया, जहां से स्थानीय शासकों को अधीन कर वंश का आधार तैयार किया। उसके उत्तराधिकारी, जैसे समंतवर्मा (लगभग 6वीं शताब्दी) ने गुप्तों के पतन के बाद स्वतंत्रता प्राप्त की और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित की।

7वीं-8वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट दन्तिदुर्ग के आक्रमण से वंश सामंत बन गया, लेकिन शांतिपूर्ण नीतियों से उन्होंने पुनरुत्थान किया। 9वीं शताब्दी तक वंश ने आंध्र के कुछ हिस्सों तक विस्तार किया। इस काल के शासक छोटे सामंत थे, जो चोलों एवं चालुक्यों से गठबंधन बनाकर शक्ति बढ़ाते रहे।

अभिलेखों से पता चलता है कि उन्होंने कृषि एवं व्यापार को प्रोत्साहन दिया, लेकिन सैन्य विस्तार सीमित रहा। 10वीं शताब्दी के अंत तक वंश ने कटक को वैकल्पिक राजधानी बनाया, जो बाद में प्रमुख केंद्र बनी। इस अवधि में वंश की धार्मिक नीति हिंदू मंदिरों के निर्माण पर केंद्रित रही, जो सांस्कृतिक एकीकरण का माध्यम बनी।

वज्रहस्त पंचम (1038-1070 ईस्वी)

पूर्वी गंग वंश का स्वर्णकाल वज्रहस्त पंचम के शासन से आरंभ हुआ, जिन्हें वज्रहस्त चतुर्थ भी कहा जाता है। उन्होंने कलिंग को एकीकृत कर साम्राज्य में परिवर्तित किया और पड़ोसी वेंगी एवं बंगाल पर सैन्य अभियान चलाए। चोलों एवं चालुक्यों से कूटनीतिक संबंध स्थापित कर क्षेत्रीय स्थिरता प्राप्त की। वज्रहस्त ने कालिंगनगर को समृद्ध व्यापारिक केंद्र बनाया, जहां पूर्वी तट का समुद्री व्यापार फला-फूला। प्रशासनिक सुधारों में सामंती व्यवस्था को संगठित किया गया, जिसमें स्थानीय सामंतों को भूमि अनुदान दिए गए। उन्होंने हिंदू मंदिरों का निर्माण प्रारंभ किया, जो बाद के शासकों द्वारा विस्तारित हुए। उनके शासन में कलिंग शैली की वास्तुकला की नींव पड़ी और संस्कृत साहित्य को प्रोत्साहन मिला। वज्रहस्त की मृत्यु के बाद वंश ने और मजबूती हासिल की, जो अनंतवर्मा चोडगंग के उदय का आधार बनी।

पूर्वी गंग वंश  (Eastern Ganga Dynasty)
पूर्वी गंग वंश

साम्राज्य का चरमोत्कर्ष

अनंतवर्मा चोडगंग (1078-1147 ईस्वी)

अनंतवर्मा चोडगंग पूर्वी गंग वंश के सबसे प्रसिद्ध एवं महान शासक थे, जिनके शासनकाल में साम्राज्य ने बंगाल, आंध्र एवं उत्तरी तमिलनाडु तक विस्तार किया। चोल राजा कुलोत्तुंग प्रथम को पराजित कर कलिंग को चोल प्रभाव से मुक्त किया, और चालुक्यों से गठबंधन बनाए। उन्होंने राजधानी को कलिंगनगर से पुरी स्थानांतरित किया, जो वैष्णव धर्म का प्रमुख केंद्र बनी। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण था, जो भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा को समर्पित है। इस मंदिर ने ओडिशा को राष्ट्रीय तीर्थस्थल बनाया और रथ यात्रा जैसी परंपराओं की शुरुआत की। अनंतवर्मा ने मजबूत प्रशासन स्थापित किया, जिसमें कर संग्रह एवं स्थानीय शासकों का एकीकरण शामिल था। उनके दरबार में संस्कृत विद्वानों को संरक्षण मिला और कालिंग मंदिर वास्तुकला की आधारशिला रखी गई। उन्होंने नौसेना को मजबूत किया, जिससे समुद्री व्यापार दक्षिण-पूर्व एशिया (श्रीविजय साम्राज्य) तक पहुंचा। अनंतवर्मा का शासन सैन्य विजय, सांस्कृतिक संरक्षण एवं प्रशासनिक कुशलता का प्रतीक था, जो वंश को शिखर पर ले गया।

नरसिंहदेव प्रथम (1238-1264 ईस्वी)

नरसिंहदेव प्रथम पूर्वी गंग वंश के दूसरे प्रमुख शासक थे, जिनके काल में साम्राज्य सैन्य एवं सांस्कृतिक दृष्टि से चरम पर पहुंचा। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के बंगाल शासकों के विरुद्ध सफल अभियान चलाए, ओडिशा को आक्रमणों से सुरक्षित रखा, और तेलुगु चोड़ों एवं काकतिय वंश से युद्ध/गठबंधन किए। उनकी सबसे प्रसिद्ध उपलब्धि कोणार्क का सूर्य मंदिर था, जो सूर्य देव को समर्पित यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। मंदिर का रथ-आकार डिजाइन, 12 जोड़ी पहियों एवं सात घोड़ों वाली संरचना, तथा जटिल नक्काशी (देवी-देवता, नर्तकियां, पौराणिक दृश्य) कालिंग स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।

नरसिंहदेव ने नौसैनिक शक्ति बढ़ाई, जिससे पूर्वी तट की रक्षा एवं व्यापार मजबूत हुआ। सांस्कृतिक रूप से, ओडिसी नृत्य एवं संगीत को प्रोत्साहन दिया, जो मंदिरों में देवदासियों द्वारा प्रस्तुत होता था। प्रशासन में सामंती एकता बनाए रखी और वैष्णव-शैव परंपराओं को समृद्ध किया। उनके शासन ने वंश को राजनीतिक स्थिरता प्रदान की, लेकिन उत्तराधिकार संघर्षों की शुरुआत भी की।

अन्य प्रमुख शासक

अनंतवर्मा के बाद अनंगभिमदेव तृतीय (1211-1238 ईस्वी) ने जगन्नाथ मंदिर की प्रशासनिक व्यवस्था मजबूत की और वैष्णव धर्म को बढ़ावा दिया। भानुदेव द्वितीय (1306-1328 ईस्वी) ने दिल्ली सल्तनत के आक्रमणों का सामना किया, स्थानीय गठबंधनों से ओडिशा की रक्षा की और मंदिरों को दान दिए। उनके काल में धार्मिक उत्सव एवं साहित्य फले। 14वीं शताब्दी में वंश ने विजयनगर एवं गजपति उदय के दबाव का सामना किया, लेकिन सांस्कृतिक योगदान जारी रहा। जयदेव (12वीं शताब्दी) जैसे कवियों ने गीत गोविंद की रचना की, जो गंग दरबार से प्रेरित मानी जाती है। इस अवधि में वंश ने लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर) जैसे शैव केंद्रों को संरक्षण दिया, हालांकि इसका पूर्ण निर्माण बाद में हुआ।

सांस्कृतिक योगदान

पूर्वी गंग वंश ने हिंदू धर्म एवं कला को अपार समृद्धि प्रदान की। जगन्नाथ मंदिर एवं कोणार्क सूर्य मंदिर उनकी स्थापत्य की कृतियां हैं, जो कालिंग शैली (उच्च शिखरयुक्त देउल, जगमोहन सभागृह, जटिल मूर्तिकला) का प्रतीक हैं। लिंगराज एवं मुक्तेश्वर मंदिरों ने शैव-वैष्णव संश्लेषण को बढ़ावा दिया। साहित्य में संस्कृत एवं ओड़िया को प्रोत्साहन मिला; गीत गोविंद वैष्णव भक्ति का उत्कृष्ट ग्रंथ है। ओडिसी नृत्य का विकास मंदिर परंपराओं से जुड़ा, जो नृत्य, नाटक एवं संगीत को समाहित करता है। वंश ने जैन-बौद्ध सहिष्णुता दिखाई, लेकिन मुख्य फोकस हिंदू उत्सवों (रथ यात्रा) पर रहा। ये योगदान ओडिशा की सांस्कृतिक पहचान बने।

प्रशासन, अर्थव्यवस्था एवं सैन्य व्यवस्था

पूर्वी गंगों ने सामंती प्रशासन स्थापित किया, जिसमें स्थानीय सामंत भूमि अनुदान पर शासन करते थे। कर संग्रह कृषि (धान, मसाले) एवं व्यापार से होता था। पुरी एवं कोणार्क जैसे बंदरगाहों से दक्षिण-पूर्व एशिया तक समुद्री व्यापार फला। सैन्य में पैदल, घुड़सवार, हाथी एवं नौसेना शामिल थी; नरसिंहदेव के काल में नौसैनिक शक्ति चरम पर थी। सिंचाई एवं कृषि को प्रोत्साहन से अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।

पतन  

15वीं शताब्दी में वंश कमजोर पड़ा। अंतिम शासक भानुदेव चतुर्थ (1414-1434 ईस्वी) के काल में सामंती विद्रोह एवं दिल्ली सल्तनत/बंगाल सुल्तानों के आक्रमण बढ़े। विजयनगर एवं काकतिय दबाव ने क्षेत्र सिकुड़ाया। 1434 ईस्वी में गजपति कपिलेंद्रदेव ने गंगों को पराजित कर ओडिशा पर कब्जा किया और वंश का स्वतंत्र शासन समाप्त हो गया। मुगलों के उदय ने अवशेषों को भी विलीन कर दिया।

पूर्वी गंग वंश ने 10 शताब्दियों में ओडिशा को धार्मिक-सांस्कृतिक केंद्र बनाया। पश्चिमी गंग (कर्नाटक, 4वीं-10वीं शताब्दी) से भिन्न, जहां जैन संरक्षण एवं कन्नड़ साहित्य प्रमुख था (जैसे गोम्मटेश्वर मूर्ति), पूर्वी गंगों ने हिंदू स्थापत्य एवं ओडिसी को समृद्ध किया। दोनों ने भारतीय संस्कृति को मजबूत किया, लेकिन पूर्वी का प्रभाव पूर्वी भारत तक सीमित रहा। उनकी धरोहर आज भी जीवित है, जो ऐतिहासिक तर्कसंगतता से सिद्ध है।

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