स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)

स्पेन के उत्थान के कारण पिरेनीज पहाड़ों के दक्षिण में भूमध्य सागर, अटलांटिक महासागर और […]

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)

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स्पेन के उत्थान के कारण

पिरेनीज पहाड़ों के दक्षिण में भूमध्य सागर, अटलांटिक महासागर और पुर्तगाल से घिरा पठारी क्षेत्र स्पेन है। पंद्रहवीं शताब्दी से पहले स्पेन में राजनीतिक एकता नहीं थी और यह कई क्षेत्रीय राज्यों में विभाजित था। आठवीं शताब्दी में उत्तरी अफ्रीका के मूर मुसलमानों ने स्पेन पर आधिपत्य स्थापित कर लिया था, जिसके कारण वहाँ के ईसाई निवासियों को पहाड़ों में शरण लेने के लिए विवश होना पड़ा। कालांतर में स्पेनी ईसाई सैनिकों ने मूरों के सदियों पुराने प्रभाव को समाप्त कर ईसाई धर्म की पुनर्स्थापना की।

स्पेन में शक्तिशाली निरंकुश राजतंत्र के उदय के कई कारण थे। प्रथम, कैस्टील की रानी इसाबेला और आरागॉन के राजा फर्डिनेंड के विवाह से स्पेन में संयुक्त राजतंत्र स्थापित हुआ। द्वितीय, स्पेन के राजाओं की औपनिवेशिक विस्तार नीति के परिणामस्वरूप अमेरिका की खोज, वेस्ट इंडीज, मैक्सिको और पेरू की विजय से स्पेन को अपार धन-संपदा प्राप्त हुई। अमेरिका से सोना, चाँदी और अन्य मूल्यवान वस्तुओं की प्रचुर उपलब्धता ने स्पेन के लिए ‘कल्पवृक्ष’ सिद्ध हुआ। तृतीय, यूरोप में प्रभाव विस्तार के लिए फर्डिनेंड ने अपनी द्वितीय पुत्री मारिया का विवाह पुर्तगाल के राजा मैनुअल प्रथम से और कनिष्ठ पुत्री कैथरीन का विवाह इंग्लैंड के युवराज आर्थर से किया। आर्थर की मृत्यु के बाद कैथरीन का विवाह हेनरी अष्टम (1509-1547) से हुआ। यह वैवाहिक नीति स्पेन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने में प्रभावी रही।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
आरागान के फर्डिनेंड और कैस्टील की ईसाबेला

फर्डिनेंड की सबसे बड़ी पुत्री जोआना कैस्टील और आरागॉन की उत्तराधिकारिणी थी। उसका विवाह हैब्सबर्ग के राजकुमार फिलिप प्रथम से हुआ, जिनके पिता आस्ट्रिया के आर्चड्यूक मैक्सिमिलियन प्रथम और माता बर्गंडी की मेरी थीं, जो नीदरलैंड की उत्तराधिकारिणी थीं। 1482 में फिलिप नीदरलैंड का उत्तराधिकारी बना। 1500 में जोआना और फिलिप के पुत्र चार्ल्स का जन्म हुआ। 1504 में इसाबेला की मृत्यु के बाद जोआना अपने पिता फर्डिनेंड के साथ कैस्टील की संयुक्त शासिका बनी, किंतु उसकी रुचि राजकाज में नहीं थी। अतः फिलिप प्रथम ने कैस्टील और नीदरलैंड पर शासन करना शुरू किया।

चार्ल्स पंचम का स्पेन के शासक के रूप में राज्यारोहण (1516) यूरोप के इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी। 1506 में फिलिप की मृत्यु के बाद छह वर्षीय चार्ल्स नीदरलैंड का शासक बना। उसकी माता जोआना का मानसिक संतुलन बिगड़ने के कारण उसे ‘जोआना पागल’ के नाम से जाना जाता है। जोआना की विक्षिप्तावस्था के कारण चार्ल्स कैस्टील का शासक बना। 1516 में फर्डिनेंड की मृत्यु के बाद चार्ल्स स्पेन, नेपल्स, सिसिली, अफ्रीका और अमेरिकी उपनिवेशों का प्रशासक बन गया। 1519 में अपने दादा मैक्सिमिलियन की मृत्यु के बाद वह आस्ट्रिया, बोहेमिया, हंगरी, कार्निओला, कैरिन्थिया, स्टायरिया और टायरॉल सहित हैब्सबर्ग साम्राज्य का स्वामी बन गया, किंतु उसने इस साम्राज्य का प्रशासन अपने भाई फर्डिनेंड को सौंप दिया।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय

सम्राट चार्ल्स पंचम (1520-1556)

चार्ल्स अपने दादा मैक्सिमिलियन की तरह पवित्र रोमन सम्राट बनना चाहता था। फ्रांस के राजा फ्रांसिस प्रथम (1515-1547) और इंग्लैंड के राजा हेनरी अष्टम भी इस पद के लिए महत्त्वाकांक्षी थे। फ्रांसिस का मानना था कि चार्ल्स का पहले से ही स्पेन, इटली और नीदरलैंड पर नियंत्रण होने के कारण उसे पवित्र रोमन सम्राट बनने देना शक्ति संतुलन को बिगाड़ सकता था। फिर भी, 1520 में चार्ल्स अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराकर पवित्र रोमन सम्राट चुना गया और आखेन (एक्स-ला-शापेल) में उसका राज्याभिषेक हुआ। इस प्रकार चार्ल्स पंचम यूरोप के इतिहास में एक अत्यंत शक्तिशाली और भाग्यशाली शासक के रूप में उइय हुआ, जिसे उत्तराधिकार में एक विशाल साम्राज्य प्राप्त हुआ था।

चार्ल्स पंचम की समस्याएँ

चार्ल्स को उत्तराधिकार में एक विशाल साम्राज्य तो मिला, किंतु यह साम्राज्य चुनौतियों से भरा हुआ था। यह एक राजवंशीय साम्राज्य था, जिसमें विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों का एक असंबद्ध समूह शामिल था। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी स्वतंत्र शासन व्यवस्था थी। जर्मनी में नाममात्र की केंद्रीय व्यवस्था थी, जबकि स्पेन, नीदरलैंड और इटली के राज्यों में यह भी नहीं थी। चार्ल्स का सबसे समृद्ध क्षेत्र नीदरलैंड था, जिसके 17 प्रांतों का अपना अलग-अलग अस्तित्व था। स्पेनी साम्राज्य में भी ग्रेनाडा, अमेरिकी उपनिवेश और उत्तरी अफ्रीका के कुछ क्षेत्र शामिल थे, जिनकी शासन व्यवस्थाएँ भिन्न थीं। चार्ल्स को पवित्र रोमन साम्राज्य, वित्तीय, न्यायिक और धार्मिक मामलों तथा विभिन्न क्षेत्रों के परस्पर विरोधी हितों को संतुलित करना था। साथ ही, उसे जर्मनी में तेजी से फैल रहे प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन से भी निपटना था।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
1648 ई. में यूरोप की धार्मिक स्थिति
चार्ल्स पंचम की उपलब्धियाँ

स्पेन का शासन 1516 में फर्डिनेंड की मृत्यु के बाद चार्ल्स पंचम स्पेनी साम्राज्य का सम्राट बना। उसने पूर्ण निरंकुशता के साथ शासन किया। कैस्टील और आरागॉन की संसदों ने उसके निरंकुश अधिकारों को सीमित करने का असफल प्रयास किया। चार्ल्स की निरंकुशता सामंतों और नगर प्रतिनिधियों को खटकती थी, जिसके कारण 1520 से 1522 तक स्पेन में विद्रोह हुए। चार्ल्स ने सामंतों और नगर प्रतिनिधियों के आपसी संघर्ष का लाभ उठाकर इन विद्रोहों को दबा दिया। जब सामंतों ने नगर प्रतिनिधियों के विरुद्ध निरंकुश प्रशासन का समर्थन किया, तो चार्ल्स ने नगर प्रतिनिधियों के अधिकार सीमित कर दिए। उसने नगर प्रशासन के लिए राजकीय अधिकारियों की नियुक्ति की और संसद की शक्ति छीनकर उसे राजकीय संस्था बना दिया। चार्ल्स ने स्पेनवासियों को संतुष्ट करने के लिए 1523 तक अधिकांश सरकारी पदों पर स्थानीय लोगों की नियुक्ति की और 1526 में पुर्तगाल की राजकुमारी इसाबेला से विवाह किया।

चार्ल्स ने साम्राज्यवादी नीतियों के माध्यम से स्पेन का अंतरराष्ट्रीय गौरव स्थापित किया। उसने मैक्सिको, मध्य अमेरिका, पेरू, बोलीविया, चिली, न्यू ग्रेनाडा और वेनेजुएला में स्पेनी उपनिवेश स्थापित किए। यद्यपि उसकी निरंकुशता ने स्पेन के वैधानिक विकास को अवरुद्ध किया। साम्राज्यवादी नीतियों के कारण स्पेनी राजकोष पर लगभग दो करोड़ पाउंड का ऋण हो गया। मूर-विरोधी नीति के कारण उद्योगशील मूर समुदाय ने स्पेन छोड़ दिया, जिससे आर्थिक और औद्योगिक विकास को हानि पहुँची। औपनिवेशिक विस्तार ने स्पेनी जनता को विलासी और अकर्मण्य बना दिया, जिससे नैतिक और सामाजिक पतन हुआ।

नीदरलैंड का शासन

चार्ल्स का जन्म और पालन-पोषण नीदरलैंड में हुआ था, इसलिए वहाँ की जनता में उसके प्रति स्वाभाविक श्रद्धा थी। उसने नीदरलैंड के 17 प्रांतों को एक संघ में संगठित किया और अहस्तक्षेप की नीति अपनाते हुए एक स्टेट्स जनरल (संसद) और तीन परिषदों की स्थापना की, जिससे नीदरलैंड की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई, किंतु साम्राज्यवादी नीतियों के कारण वहाँ करों का बोझ बढ़ गया।

धार्मिक असहिष्णुता की नीति

कट्टर कैथोलिक होने के कारण चार्ल्स ने नीदरलैंड में काल्विनवादियों का दमन किया और धार्मिक न्यायालय (इन्क्विजिशन) स्थापित किए। इस असहिष्णुता के बावजूद नीदरलैंड में प्रोटेस्टेंट संप्रदाय का विकास होता रहा। इस नीति ने फिलिप द्वितीय के शासनकाल में डच प्रोटेस्टेंट गणतंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस प्रकार नीदरलैंड में चार्ल्स का प्रशासन असफल रहा।

वित्र रोमन साम्राज्य का शासन

1520 में चार्ल्स फ्रांसिस प्रथम और हेनरी अष्टम को हराकर पवित्र रोमन सम्राट चुना गया। किंतु जर्मन साम्राज्य उसके लिए बड़ी चुनौती साबित हुआ। जर्मनी अनेक अर्ध-स्वतंत्र राज्यों में बँटा था, और वहाँ राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो रही थी। जर्मनवासी अपनी भाषा और परंपराओं पर गर्व करते थे, किंतु राजकुमारों में एकता का अभाव था। चार्ल्स के जर्मन एकीकरण के प्रयासों का विरोध हुआ। 1521 में वॉर्म्स की विधानसभा ने एक प्रतिशासन परिषद की स्थापना की गई, जिसमें 23 सदस्य जर्मन हितों का प्रतिनिधित्व करते थे। जर्मन व्यापारियों ने सीमा शुल्क संघ का विरोध किया और फ्रांस के साथ युद्ध में उलझे होने के कारण चार्ल्स ने यह योजना त्याग दी।

धर्म सुधार आंदोलन का विरोध

जर्मनी में प्रोटेस्टेंटवाद का उदय हो रहा था। सामंतों ने मार्टिन लूथर का समर्थन कर अपने अधिकार बढ़ाने का प्रयास किया। एक कट्टर कैथोलिक होने के कारण चार्ल्स ने धर्म सुधार आंदोलन का विरोध किया, जिससे जर्मन सामंत उसके विरुद्ध हो गए और जर्मनी गृहयुद्ध की चपेट में आ गया। अंततः 1555 में ऑग्सबर्ग संधि द्वारा लूथरवाद को मान्यता देनी पड़ी। चार्ल्स न तो जर्मनी में राष्ट्रीय एकता स्थापित कर सका और न ही प्रोटेस्टेंटवाद को रोक सका।

चार्ल्स पंचम की विदेश नीति

चार्ल्स का विशाल साम्राज्य यूरोपीय शासकों की नजरों में खटकता था। फ्रांस का राजा फ्रांसिस प्रथम उसका प्रबल प्रतिद्वंद्वी था। उस्मानी तुर्कों का पूर्वी यूरोप और भूमध्य सागर में बढ़ता प्रभाव, साथ ही रोम के पोप और हेनरी अष्टम की नीतियाँ चार्ल्स के लिए चुनौतियाँ थीं। उसे अपने साम्राज्य की रक्षा और हैब्सबर्ग वंश की प्रतिष्ठा बनाए रखने की जिम्मेदारी थी।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
चार्ल्स पंचम और फ्रांसिस
फ्रांस के साथ संबंध

चार्ल्स फ्रांस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहता था, किंतु कई कारणों से युद्ध अपरिहार्य हो गया। 1522 में फ्रांस और हैब्सबर्ग साम्राज्य के बीच युद्ध शुरू हुआ। चार्ल्स ने हेनरी अष्टम और रोम की सहायता से फ्रांसिस को उत्तरी इटली से खदेड़ दिया और 1525 में पाविया के युद्ध में फ्रांसिस को बंदी बना लिया। 1529 की कैम्ब्रे संधि में फ्रांसिस को नेपल्स, मिलान और नीदरलैंड पर अपने दावे छोड़ने पड़े। 1530 में पोप ने चार्ल्स को पवित्र रोमन सम्राट का ताज पहनाया। बाद के युद्धों में भी चार्ल्स ने अपनी स्थिति मजबूत की और 1559 की कातो-कैम्ब्रेसी संधि ने हैब्सबर्ग वंश का इटली में प्रभाव स्थापित कर दिया।

तुर्कों के साथ संबंध

तुर्कों ने 1541 में हंगरी पर कब्जा कर लिया। चार्ल्स और फर्डिनेंड को तुर्की विजय स्वीकार करनी पड़ी। 1535 में चार्ल्स ने ट्यूनिस पर कब्जा कर तुर्की सरदार बारबरोसा का दमन किया।

इंग्लैंड के साथ संबंध

शुरुआत में स्पेन और इंग्लैंड के संबंध मधुर थे, किंतु हेनरी अष्टम के कैथरीन से तलाक के निर्णय ने तनाव पैदा किया। 1553 में मेरी ट्यूडर के शासनकाल में चार्ल्स ने अपने पुत्र फिलिप द्वितीय का विवाह मेरी से करवाया, जिससे संबंधों में सुधर आ गया।

चार्ल्स पंचम का मूल्यांकन

चार्ल्स एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और यशस्वी सम्राट था। एक कैथोलिक के रूप में उसने कैथोलिक धर्म और पोप की की अमूल्य सेवा और रक्षा की। वह पुनर्जागरणकालीन कला, चित्रकला, संगीत और वैज्ञानिक विकास का पोषक था। वह वैज्ञानिक विकास में भी अभिरुचि रखता था और ज्योतिषशास्त्र में उसकी बहुत दिलचस्पी थी। उसने जर्मनी और नीदरलैंड में पूँजीवाद के विकास में योगदान दिया। किंतु उसका विशाल साम्राज्य परस्पर विरोधी हितों के कारण एकता स्थापित करने में असफल रहा। अंततः थक-हारकर उसने 1556 में स्पेनी साम्राज्य अपने पुत्र फिलिप द्वितीय को और हैब्सबर्ग साम्राज्य अपने भाई फर्डिनेंड को सौंपकर एक मठ में तपस्या शुरू कर दी, जहाँ 1558 में उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार चार्ल्स पंचम के अंत के साथ स्पेनी इतिहास का एक गौरवशाली युग समाप्त हो गया।

फिलिप द्वितीय (1556-1598 ई.)

फिलिप द्वितीय चार्ल्स पंचम का पुत्र था। उसका जन्म 1527 ई. में स्पेन में हुआ था। उसे अपने पिता से स्पेन, नीदरलैंड, फ्रांश-कॉम्टे, मिलान, सिसिली, नेपल्स, अमेरिका, वेस्ट इंडीज और फिलिपींस द्वीपसमूह का विशाल साम्राज्य उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ। फिलिप द्वितीय आजीवन स्पेन में रहा और उसका लक्ष्य स्पेन को यूरोप का सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र बनाना था। उसने हैब्सबर्ग साम्राज्य के स्वामी अपने चाचा फर्डिनेंड के साथ पारिवारिक संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए अपनी बहन का विवाह फर्डिनेंड से और अपने पुत्र का विवाह फर्डिनेंड की पौत्री से किया।

1556 ई. में विशाल साम्राज्य का स्वामी बनने के बाद फिलिप द्वितीय ने शासन संचालन के लिए दो प्रमुख आदर्शों को अपनाया : राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम। उसका राष्ट्रप्रेम स्पेन के प्रति देशभक्ति और धर्मप्रेम कैथोलिक संप्रदाय के प्रति पूर्ण निष्ठा का सूचक था। वह स्पेन को विश्व का सर्वशक्तिमान राष्ट्र बनाना चाहता था, किंतु धर्म की वेदी पर राजनीति का बलिदान करने को भी तत्पर था। इतिहासकार हेज के अनुसार ‘यदि स्पेन के विकास और चर्च के बीच कोई प्रश्न उठता, तो प्रथम को द्वितीय के लिए बलिदान करना पड़ता था।’ इस प्रकार फिलिप की राजनीति राष्ट्रीय थी, किंतु उसकी धार्मिक नीति अंतरराष्ट्रीय थी।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
फिलिप द्वितीय
फिलिप द्वितीय की नीतियाँ

फिलिप को विरासत में विभिन्न राज्यों का एक असंबद्ध समूह प्राप्त हुआ था, जिनकी अपनी-अपनी संस्थाएँ और परंपराएँ थीं। उसके राष्ट्रप्रेम और धार्मिक नीतियों ने उसकी समस्याओं को और जटिल बना दिया। अपने शासनकाल में उसे तीन प्रमुख आंतरिक समस्याओं का सामना करना पड़ारू स्पेन की जर्जर आर्थिक स्थिति, मूरों का विद्रोह और नीदरलैंड का भयंकर विद्रोह।

आंतरिक नीतियाँ
राजकीय शक्ति में वृद्धि

फिलिप ने राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम की नीतियों के आधार पर समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उसने स्पेन के राष्ट्रीय एकीकरण के लिए प्रशासकीय एकता पर बल दिया। राजकीय शक्ति बढ़ाने के लिए उसने स्पेनी संसद ‘कोर्टेस’ की उपेक्षा की। उसने पहले से लागू करों को कोर्टेस की सलाह के बिना वसूल किया, यद्यपि नए करों के लिए संसद की सलाह ली गई। कोर्टेस के सदस्यों का मनोनयन अब फिलिप स्वयं करने लगा और सामंतों को अधिकारहीन कर दिया। इस प्रकार उसने निरंकुश शासन स्थापित किया।

स्थल सेना का गठन

फिलिप ने स्थल सेना के गठन पर विशेष ध्यान दिया, किंतु नौसेना की उपेक्षा की, जिसके कारण उसकी नौसैनिक शक्ति कमजोर होती गई। यह उसकी एक बड़ी भूल थी, जिसके कारण वह नीदरलैंड के विद्रोह को दबाने में असफल रहा।

स्पेन की आर्थिक समस्या

स्पेन की जर्जर अर्थव्यवस्था फिलिप के समक्ष सबसे जटिल समस्या थी। इसका मूल कारण विशेषाधिकारों पर आधारित आर्थिक व्यवस्था थी। यद्यपि अमेरिकी व्यापार और चाँदी के आयात पर स्पेन का एकाधिकार था, किंतु डच, फ्रांसीसी और अंग्रेज व्यापारियों की तस्करी ने स्पेन की आर्थिक स्थिति को चरमरा दिया था। फिलिप ने घरेलू उद्योग-धंधों और व्यापार पर भारी कर ‘अल्काबाला’ (विक्रय कर) लगाए, जिससे उद्योग और व्यापार चौपट हो गए। मूरों और यहूदियों जैसे व्यापार-कुशल समुदायों के दमन ने औद्योगिक विकास को और हानि पहुँचाई। दीर्घकालिक युद्धों ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया। इस प्रकार फिलिप अपनी आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में असफल रहा।

धार्मिक नीति

कट्टर कैथोलिक होने के नाते फिलिप ने प्रोटेस्टेंटों, मूरों और यहूदियों के दमन की नीति अपनाई। उसकी इस नीति के कारण 1569 ई. में मूरों ने विद्रोह कर दिया। मूरों ने दो वर्ष तक पर्वतीय क्षेत्रों में स्पेनी सेना का कड़ा प्रतिरोध किया, किंतु 1570 ई. में फिलिप ने इस विद्रोह को कुचल दिया। यद्यपि वह मूरों का दमन करने में सफल रहा, किंतु इस नीति ने स्पेन के व्यापार और वाणिज्य को भारी नुकसान पहुँचाया। यहूदी समुदाय के दमन का भी ऐसा ही प्रभाव पड़ा। फिलिप ने गैर-कैथोलिकों के खिलाफ ‘इन्क्विजिशन’ धार्मिक न्यायालयों का व्यापक उपयोग किया। वह रोम के पोप के साथ तब तक सहयोग करता रहा, जब तक पोप ने उसके कार्यों का समर्थन किया। किंतु जब पोप ने विरोध किया, तो फिलिप ने पोप से संबंध तोड़ लिए। पोप के आदेश भी स्पेन में फिलिप की अनुमति के बिना लागू नहीं होते थे। फिर भी, वह कैथोलिक धर्म को यूरोप में सार्वभौमिक बनाने में असफल रहा और नीदरलैंड में भयंकर विद्रोह का सामना करना पड़ा।

नीदरलैंड का विद्रोह (1556-1598 ई.)

सोलहवीं शताब्दी में वर्तमान हॉलैंड और बेल्जियम को नीदरलैंड कहा जाता था। यह क्षेत्र व्यापार और वाणिज्य की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध था। चार्ल्स पंचम का शासन नीदरलैंड में लोकप्रिय था, किंतु फिलिप द्वितीय की नीतियों ने वहाँ के निवासियों को विद्रोह के लिए प्रेरित किया, जो कालांतर में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन बन गया।

विद्रोह के कारण
आर्थिक कारण

नीदरलैंड आर्थिक दृष्टि से समृद्ध था। युद्धों और प्रशासकीय व्यय के लिए धन की आवश्यकता होने पर फिलिप ने नीदरलैंड में बिना राष्ट्रीय परिषद की अनुमति के कर बढ़ा दिए। चार्ल्स पंचम ने भी कर बढ़ाए थे, किंतु उसने परिषद को विश्वास में लिया था और व्यापार को प्रोत्साहन दिया था। फिलिप ने व्यापार और वाणिज्य पर प्रतिबंध लगाए, जिससे नीदरलैंड का आर्थिक विकास रुक गया।

धार्मिक कारण

कट्टर कैथोलिक फिलिप कैथोलिक धर्म को सार्वजनिक बनाना चाहता था। नीदरलैंड में काल्विनवादी प्रोटेस्टेंटों का तेजी से विकास हो रहा था, जो उसके लिए असहनीय था। उसने कैथोलिक बिशपों की संख्या बढ़ाई और ‘इन्क्विजिशन’ धार्मिक अदालतें स्थापित कीं, जिन्होंने क्रूरता से कार्य किया। इस दमन से क्षुब्ध होकर नीदरलैंड की जनता सशस्त्र विद्रोह पर उतर आई।

राजनीतिक कारण

फिलिप की निरंकुश नीति ने विद्रोह को और भड़काया। उसने राष्ट्रीय परिषद की अवहेलना की और स्पेनी अधिकारियों को नीदरलैंड में उच्च पदों पर नियुक्त किया। इन अधिकारियों ने नीदरलैंडवासियों की उपेक्षा की। स्पेनी सेना की उपस्थिति ने वहाँ के लोगों में असंतोष बढ़ाया, जिन्हें अपनी स्वतंत्रता और परंपरागत अधिकारों पर खतरा महसूस हुआ।

व्यक्तिगत कारण

स्पेन में जन्मे और पले-बढ़े फिलिप की नीदरलैंडवासियों के प्रति सहानुभूति अपने पिता चार्ल्स पंचम जैसी नहीं थी। उसने स्पेन के हितों के लिए नीदरलैंड पर मनमाने कर लगाए और व्यापार पर प्रतिबंध थोप दिया। नीदरलैंडवासियों ने उसे विदेशी मानकर उसके खिलाफ विद्रोह शुरू कर दिया।

विद्रोह की प्रमुख घटनाएँ

1559 ई. में फिलिप ने अपनी बहन मार्गरेट को नीदरलैंड का प्रशासक नियुक्त किया, किंतु कार्डिनल ग्रेनविल को परिषद का अध्यक्ष बनाकर वास्तविक शक्तियाँ दीं। ग्रेनविल की नियुक्ति का नीदरलैंडवासियों ने विरोध किया, जिसके कारण उसे वापस बुलाना पड़ा। सामंतों और नागरिकों ने मार्गरेट को एक प्रार्थना-पत्र दिया, जिसे उसने ‘भिखारियों का प्रार्थना-पत्र’ कहकर अनदेखा कर दिया। 1566 ई. से विरोधी वर्ग ने स्वयं को ‘भिखारी’ कहना शुरू किया।

जब फिलिप ने धार्मिक न्यायालयों को समाप्त करने का वादा पूरा नहीं किया, तो प्रोटेस्टेंट समर्थकों ने 1566 ई. में कैथोलिक चर्चों पर हमले किए, मूर्तियाँ तोड़ीं और मठों को अपवित्र किया। इसके प्रत्युत्तर में फिलिप ने 1567 ई. में अल्वा के ड्यूक को प्रशासक बनाकर भेजा। अल्वा ने ‘अशांति परिषद’ (रक्त परिषद) स्थापित की और 1567-1572 ई. तक लगभग 8,000 विरोधियों को मृत्युदंड दिया। उसने भारी कर भी लगाए, जिससे नीदरलैंड में भयंकर विद्रोह भड़क उठा।

स्पेन का उत्थान: चार्ल्स पंचम और फिलिप द्वितीय (The Rise of Spain: Charles V and Philip II)
विलियम दि साइलेंट
विलियम दि साइलेंट

विलियम ऑफ ऑरेंज (1533-1584 ई.), जिन्हें विलियम दि साइलेंट के नाम से जाना जाता है, ने विद्रोह को स्वतंत्रता आंदोलन में बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह हॉलैंड और जीलैंड का शासक था। काल्विनवादी बनने के कारण उसे अल्वा के आने पर जर्मनी भागना पड़ा था। विद्रोहियों के निमंत्रण पर वह लौट आया और डच नाविकों को संगठित कर स्पेनी जहाजों के लिए कठिनाइयाँ पैदा कीं। उसने फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड से सैन्य सहायता प्राप्त की और उत्तरी नीदरलैंड से अल्वा के नियंत्रण को समाप्त कर दिया। अल्वा ने आठ महीने तक उत्तरी क्षेत्र पर पुनः कब्जा करने का प्रयास किया और सफल भी हो गया।

1573 ई. में फिलिप ने अल्वा के स्थान पर रेक्वेसेंस को प्रशासक बनाया। विलियम ने रेक्वेसेंस के लीडेन पर कब्जे के प्रयासों को विफल कर दिया। स्पेनी सेना ने उत्तरी और दक्षिणी नगरों में लूटपाट और रक्तपात शुरू किया, जिसे ‘स्पेनी प्रकोप’ कहा गया है। इसके विरोध में 1576 ई. में नीदरलैंड के 17 प्रांतों ने घेंट में ‘घेंट की शांति संधि’ की, जिसमें धार्मिक अदालतों के उन्मूलन और स्पेनी सेना की वापसी तक विरोध जारी रखने का निर्णय लिया गया। 1576 ई. में रेक्वेसेंस की मृत्यु के बाद फिलिप ने अपने सौतेले भाई डॉन जुआन को प्रशासक बनाया, किंतु वह भी विलियम के खिलाफ सफल नहीं हुआ। 1578 ई. में डॉन जुआन की मृत्यु हो गई।

1578 ई. में पार्मा के ड्यूक अलेक्जेंडर फार्नेस को प्रशासक बनाया गया। फार्नेस ने उत्तरी प्रोटेस्टेंटों और दक्षिणी कैथोलिकों के बीच संघर्ष का लाभ उठाकर दक्षिणी नीदरलैंड में ‘आरास की लीग’ बनाई। इसके जवाब में विलियम ने उत्तरी सात प्रांतों को एकजुट कर ‘यूट्रेक्ट संघ’ स्थापित किया। इससे घेंट संधि समाप्त हो गई और नीदरलैंड दो भागों में बँट गयारू दक्षिणी भाग ‘स्पेनी नीदरलैंड’ (वर्तमान बेल्जियम) और उत्तरी भाग ‘संयुक्त प्रांत’ या ‘हॉलैंड’ कहलाया।

1581 ई. में उत्तरी प्रांतों ने विलियम के नेतृत्व में स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसे मानव अधिकारों की संप्रभुता की घोषणा कहा जाता है। 1584 ई. में फिलिप ने विलियम की हत्या करवा दी। विलियम के पुत्र मॉरिस ने आंदोलन का नेतृत्व सँभाला और इंग्लैंड व फ्रांस की सहायता से संघर्ष को जारी रखा। 1598 ई. में फिलिप द्वितीय की मृत्यु के बाद भी यह संघर्ष फिलिप तृतीय के काल तक चलता रहा। अंततः 1648 ई. में तीसवर्षीय युद्ध के बाद डच गणतंत्र को मान्यता मिली। उत्तरी नीदरलैंड डच गणतंत्र और दक्षिणी नीदरलैंड स्पेनी नीदरलैंड कहलाया।

नीदरलैंड विद्रोह में पराजय के कारण
  1. शोषण और धार्मिक दमन : फिलिप की शोषणकारी और प्रोटेस्टेंट-विरोधी नीतियों ने नीदरलैंडवासियों में यह भावना पैदा की कि वह विदेशी है, जिससे विद्रोह राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन बन गया।
  2. साम्राज्य की विशालता : प्रशासनिक कठिनाइयों और फ्रांस व इंग्लैंड से युद्धों में उलझे रहने के कारण फिलिप विद्रोह का दमन करने में पूर्णतः संलग्न नहीं हो सका।
  3. नौसैनिक कमजोरी : डचों की मजबूत नौसेना और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के सामने स्पेनी नौसेना कमजोर थी।
  4. विदेशी सहायता : डचों को फ्रांस, इंग्लैंड और जर्मनी से सैन्य और आर्थिक सहायता मिली।
  5. विलियम का नेतृत्व : विलियम ऑफ ऑरेंज ने डचों के मनोबल को बढ़ाया और प्रत्येक स्थिति में संघर्ष को जारी रखा।

फिलिप न तो स्पेन की आर्थिक समस्याओं का समाधान कर सका और न ही कैथोलिक धर्म को यूरोप में सार्वभौमिक बना सका। मूरों का दमन करने में वह सफल रहा, किंतु इसका अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। यदि उसने धर्म को राजनीति से ऊपर न रखा होता, तो संभवतः वह अपनी गृह नीति में अधिक सफल होता।

विदेश नीति

आंतरिक समस्याओं के अतिरिक्त, फिलिप को विदेश नीति में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वह स्पेन को यूरोप का प्रमुख राष्ट्र बनाना चाहता था, पुर्तगाल को अपने साम्राज्य में शामिल करना चाहता था, स्पेनी उपनिवेशों का विस्तार करना चाहता था और भूमध्य सागर में तुर्कों से साम्राज्य की रक्षा करना चाहता था।

फ्रांस के साथ संबंध

फ्रांस और स्पेन के बीच चार्ल्स पंचम के समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता फिलिप और फ्रांस के शासक हेनरी द्वितीय की महत्त्वाकांक्षाओं से और बढ़ गई। 1559 ई. की कातो-कैम्ब्रेसी संधि में फ्रांस को इटली पर स्पेन के आधिपत्य को स्वीकार करना पड़ा और कैले पर फ्रांसीसी अधिकार मान्य हुआ। हेनरी द्वितीय की मृत्यु के बाद फ्रांस में गृहयुद्ध शुरू हो गया। फिलिप ने कैथोलिकों का समर्थन किया, जबकि फ्रांसीसी प्रोटेस्टेंट (ह्यूगनोट्स) ने नीदरलैंड के विद्रोहियों की सहायता की। जब नावार के प्रोटेस्टेंट राजकुमार हेनरी (हेनरी चतुर्थ) के उत्तराधिकार का प्रश्न उठा, तो फिलिप ने उसका विरोध किया, किंतु हेनरी ने उसके प्रयासों को विफल कर दिया। 1598 ई. में फिलिप को हेनरी चतुर्थ के साथ वर्वे की संधि करनी पड़ी, जिसमें हेनरी को फ्रांस का शासक मान लिया गया और कातो-कैम्ब्रेसी संधि की पुष्टि हुई। इस प्रकार फिलिप की फ्रांस के प्रति नीति असफल रही। इतिहासकार हेज के अनुसार ‘स्पेन की असफल हस्तक्षेप नीति ने फ्रांसीसी स्वतंत्रता, राष्ट्रभक्ति और एकता को सुदृढ़ किया। आगामी शताब्दी में यूरोपीय राजनीति का केंद्र स्पेन नहीं, फ्रांस होने वाला था।’

इंग्लैंड के साथ संबंध

मेरी ट्यूडर से विवाह के कारण 1553-1558 ई. तक स्पेन और इंग्लैंड के संबंध मधुर रहे। किंतु मेरी की मृत्यु के बाद एलिजाबेथ ट्यूडर के राज्यारोहण से संबंधों में कटुता आई। फिलिप इंग्लैंड की नीतियों को अपने नियंत्रण में चाहता था और प्रोटेस्टेंटों का दमन करना चाहता था, जबकि एलिजाबेथ ने प्रोटेस्टेंट धर्म को अपनाकर इंग्लैंड की राजनीति में परिवर्तन किया। फिलिप ने इंग्लैंड को सबक सिखाने के लिए एक विशाल स्पेनी ‘आर्माडा’ तैयार किया, जिसमें 8,000 नाविक, 50 जहाज और 19,000 सैनिक शामिल थे। 1588 में उसने स्पेनी ‘आर्माडा’ को इंग्लैंड पर आक्रमण के लिए भेज दिया। उसे उम्मीद थी कि इंग्लैंड के कैथोलिक उसका साथ देंगे, किंतु इंग्लैंडवासियों ने राष्ट्रीय एकता दिखाकर आर्माडा को इंग्लिश चैनल में नष्ट कर दिया। ब्रिटिश नौसेना ने स्पेनी बंदरगाह कैडिज को भी लूट लिया। आर्माडा की पराजय ने स्पेन की नौसैनिक कमजोरी को उजागर कर दिया और इंग्लैंड की नौसैनिक श्रेष्ठता स्थापित हो गई। हेज के शब्दों में ‘आर्माडा की पराजय ने नौसेना और व्यापारिक क्षेत्र में इंग्लैंड की सर्वशक्तिमान प्रभुता को स्थापित किया।’

पुर्तगाल के साथ संबंध

1543 ई. में चार्ल्स पंचम ने फिलिप का विवाह पुर्तगाल की राजकुमारी मारिया से किया था। 1580 ई. में पुर्तगाल के राजा की मृत्यु के बाद फिलिप ने वैवाहिक संबंधों के आधार पर स्पेनी सेना भेजकर पुर्तगाल पर कब्जा किया। किंतु उसका शासन पुर्तगालियों को संतुष्ट नहीं कर सका और स्वतंत्रता आंदोलन के बीज पड़ गए। 1640 ई. में पुर्तगाल ने स्वयं को स्पेन से मुक्त कर लिया।

तुर्की के साथ संबंध

1566 ई. में तुर्की सुल्तान सुलेमान महान की मृत्यु के बाद भी तुर्कों का हंगरी और भूमध्य सागर में आतंक बना रहा। उन्होंने साइप्रस पर कब्जा कर लिया, जिससे इटली और सिसिली की सुरक्षा खतरे में पड़ गई। पोप के नेतृत्व में वेनिस, जेनेवा और स्पेन का एक संघ बना। 1571 ई. में फिलिप के सौतेले भाई डॉन जुआन ने लेपांटो की खाड़ी में तुर्की सेना को पराजित कर दिया। यह ईसाइयों की तुर्कों पर सबसे बड़ी विजय थी, जिसने पश्चिमी यूरोप को तुर्की खतरे से मुक्ति मिल गई।

फिलिप द्वितीय का मूल्यांकन

फिलिप द्वितीय के बारे में इतिहासकारों में मतभेद हैं। अंग्रेज इतिहासकार उसे असहिष्णु और निरंकुश मानते हैं, जबकि स्पेनी देशभक्त उसे राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत महान शासक बताते हैं। वास्तव में, फिलिप कट्टर कैथोलिक था और उसका प्रमुख उद्देश्य कैथोलिक धर्म को यूरोप का सार्वभौम धर्म बनाना था। उसकी राजनीति धर्म से प्रभावित रही, जो उसकी असफलता का कारण बनी। नीदरलैंड की ‘इन्क्विजिशन’ अदालतों की क्रूरता मानवता के लिए अभिशाप थी।

फिलिप स्वभाव से जिद्दी, अविश्वासी और संदेही था। उसने साम्राज्य की सभी समस्याओं को स्वयं सुलझाने का प्रयास किया, किंतु कूटनीति में वह कमजोर था। फिर भी, वह सिद्धांतवादी, आदर्शवादी, अदम्य इच्छाशक्ति और अपूर्व क्षमता वाला शासक था। वह प्रातःकाल से मध्यरात्रि तक राजकीय कार्यों में व्यस्त रहता था। वह मृदुभाषी और अल्पभाषी था और स्पेन के प्रति उसकी अगाध भक्ति थी। वह स्पेन को विश्व का सर्वशक्तिमान राष्ट्र बनाना चाहता था। यद्यपि वह अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल नहीं हुआ, किंतु स्पेनी जनता ने उसकी देशभक्ति की प्रशंसा की। इसीलिए सोलहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध स्पेनी इतिहास में ‘फिलिप द्वितीय का युग’ के नाम से जाना जाता है।

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