वियना कांग्रेस (Vienna Congress)

नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने विजय अभियानों से समस्त यूरोपीय मानचित्र को परिवर्तित कर दिया था। […]

वियेना कांग्रेस (Vienna Congress)

नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने विजय अभियानों से समस्त यूरोपीय मानचित्र को परिवर्तित कर दिया था। उनकी पराजय के बाद यूरोप में विभिन्न तनावों और अंतर्द्वंद्वों ने निर्णायक भूमिका निभाई। निरंतरता और परिवर्तन की शक्तियों के बीच खींचतान चल रही थी। राजतंत्र, चर्च, सामंतवाद और पच्चीस वर्षों की उथल-पुथल के बाद शांति और स्थिरता की आकांक्षा यथास्थितिवादी शक्तियों को बढ़ावा दे रही थी। दूसरी ओर, बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिक विकास, नगरों का विस्तार, राष्ट्रवाद और क्रांति से उत्पन्न विचार परिवर्तन के वाहक तत्व थे। निरंतरता और परिवर्तन के इस द्वंद्व ने नेपोलियन के बाद के यूरोप का स्वरूप निर्धारित किया।

वियेना कांग्रेस (Vienna Congress)
1815 ई. में यूरोप

वियना कांग्रेस

नेपोलियन की विजयों से उत्पन्न राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने और यूरोप के देशों की पुनर्व्यवस्था करने के लिए विजयी राष्ट्रों—ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, रूस, और प्रशा के प्रतिनिधियों और राजनीतिज्ञों ने ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में एक ऐतिहासिक कांग्रेस का आयोजन किया, जिसे ‘वियना कांग्रेस’ के नाम से जाना जाता है। यह कांग्रेस नेपोलियन युग से मेटरनिख युग की ओर यूरोप को ले जाने वाली एक कड़ी थी। जहाँ उन्नीसवीं सदी के प्रारंभिक पंद्रह वर्षों पर नेपोलियन की अमिट छाप थी, वहीं अगले तैंतीस वर्षों तक ऑस्ट्रिया के चांसलर मेटरनिख का यूरोप पर प्रभुत्व रहा। नेपोलियन कहा करता था : “फ्रांस की जनता स्वतंत्रता की नहीं, समानता की भूखी है।” इसके विपरीत, मेटरनिख का मानना था कि यूरोप को स्वतंत्रता नहीं, शांति की आवश्यकता है। वियना कांग्रेस में नेपोलियन और क्रांति को दफन कर, जहाँ तक संभव था, पुरातन व्यवस्था के मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रयास किया गया।

वियना कांग्रेस का आयोजन

नेपोलियन के विरुद्ध इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, प्रशा और रूस ने मार्च 1814 में शोमों की संधि की थी, जिसके तहत नेपोलियन की पराजय के बाद बीस वर्षों तक क्षेत्रीय और राजनैतिक निर्णयों को लागू करने के लिए सहयोग करना था। अक्टूबर 1813 में लाइपजिग के युद्ध में नेपोलियन की पराजय के बाद, मई 1814 में फ्रांस के साथ पेरिस की प्रथम उदार संधि के द्वारा उसे 1792 की सीमाएँ प्रदान की गईं और बूर्बो राजवंश को फ्रांस में पुनर्स्थापित किया गया। इस प्रकार वियना कांग्रेस का आयोजन 1 नवंबर 1814 को शुरू हुआ, लेकिन तभी नेपोलियन एल्बा से लौट आया, जिसके कारण कांग्रेस को कुछ समय के लिए स्थगित करना पड़ा। वाटरलू के युद्ध (18 जून 1815) में नेपोलियन को पराजित करने और सेंट हेलेना में निर्वासित करने के बाद वियना कांग्रेस का अधिवेशन पुनः शुरू हुआ।

यूरोप की पुनर्व्यवस्था और उस व्यवस्था की सुरक्षा के लिए एक संगठन बनाए रखने की दिशा में वियना में शुरू हुआ यह क्रम वेरोना तक चला। इस बीच हुए सम्मेलनों में ऑस्ट्रिया और रूस मुख्य रूप से सक्रिय रहे, और कभी-कभी फ्रांस और प्रशा ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यह क्रम अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की शुरुआत करने में अपनी असफलताओं के बावजूद ऐतिहासिक माना जाता है। उन्नीसवीं सदी की यूरोपीय राज्य व्यवस्था की आधारशिला वियना कांग्रेस में ही रखी गई।

वियना कांग्रेस के प्रमुख उद्देश्य

वियना में उपस्थित सभी प्रतिनिधि क्रांति और नेपोलियन से आतंकित थे, इसलिए वे ऐसी व्यवस्था करना चाहते थे कि 1789 से 1815 तक की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और यूरोप में शांति बनी रहे। नेपोलियन ने अपने युद्धों के द्वारा पूरे यूरोप, विशेष रूप से मध्य यूरोप का राजनीतिक नक्शा बदल दिया था। इसलिए वियना कांग्रेस का उद्देश्य यूरोप का पुनर्निर्माण कर कई देशों की सीमाओं को पुनर्व्यवस्थित करना था। नेपोलियन ने कई राज्यों का अंत कर उनके राजवंशों को नष्ट कर दिया था। कांग्रेस को इन राज्यों और राजवंशों को पुनः स्थापित करना था। पवित्र रोमन साम्राज्य भंग हो चुका था और इटली, जर्मनी, पोलैंड, हॉलैंड, बेल्जियम और फिनलैंड से संबंधित क्षेत्रीय समस्याएँ थीं। सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य तेईस वर्षों के निरंतर युद्धों के बाद यूरोप में स्थायी शांति स्थापित करना था।

वास्तव में, वियना कांग्रेस के कर्ता-धर्ता नेपोलियन को परास्त करने पर एकमत थे और फ्रांस के चारों ओर शक्तिशाली राज्यों का घेरा बनाना चाहते थे ताकि भविष्य में फ्रांस किसी अन्य देश पर आक्रमण न कर सके और यूरोप में शांति-व्यवस्था और शक्ति-संतुलन बना रहे। किंतु विभिन्न देशों के पुनर्गठन में निजी स्वार्थों के कारण मतभेद थे। विजेता राष्ट्र नेपोलियन को हराने के बदले कुछ-न-कुछ प्राप्त करना चाहते थे। ऑस्ट्रिया, इटली को हथियाना चाहता था; रूस के जार की नजरें पोलैंड पर थीं; प्रशा, सैक्सनी को हड़पना चाहता था और इंग्लैंड फ्रांस के उपनिवेशों को किसी भी कीमत पर लौटाने को तैयार नहीं था। छोटे राज्यों के भी अपने-अपने स्वार्थ थे। इन स्वार्थों की टकराहट के कारण कई बार कांग्रेस के भंग होने की नौबत आ गई, जैसे पोलैंड और सैक्सनी की समस्या के मामले में।

वियना कांग्रेस के प्रमुख प्रतिनिधि

वियना कांग्रेस यूरोपीय इतिहास का पहला बड़ा सम्मेलन था, जिसमें 90 बड़े शासक और 63 राजा या उनके प्रतिनिधि शामिल थे। किंतु तुर्की ने इसमें भाग नहीं लिया। यद्यपि वियना में कई देशों के राजप्रमुख और राजनेता उपस्थित थे, लेकिन रूस, प्रशा और ऑस्ट्रिया के राजा, इंग्लैंड के ड्यूक ऑफ वेलिंगटन और विदेश मंत्री कासलरिआ तथा फ्रांस के कूटनीतिज्ञ तालिरां की चकाचौंध में अन्य प्रतिनिधियों का स्थान गौण रहा। कुछ प्रभावशाली प्रतिनिधियों का विवरण इस प्रकार है:

ऑस्ट्रिया का मेटरनिख

वियना कांग्रेस का मुख्य सूत्रधार ऑस्ट्रिया का चांसलर मेटरनिख था। असाधारण प्रतिभा-संपन्न और यूरोपीय राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी मेटरनिख 1815 से 1848 तक यूरोपीय राजनीति में इतना प्रभावी था कि इस काल को ‘मेटरनिख युग’ कहा जाता है। घोर प्रतिक्रियावादी, मेटरनिख स्वतंत्रता और समानता का विरोधी था। उसका मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रिया के सम्मान और शक्ति को बनाए रखना था, जिसमें वह सफल रहा।

रूस का अलेक्जेंडर प्रथम

रूस के जार अलेक्जेंडर प्रथम की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी। मेटरनिख के समान राजनैतिक और कूटनीतिक गुणों से रहित, वह एक कल्पनाशील, अस्थिर, अभिमानी और आसानी से प्रभावित होने वाला अव्यवहारिक व्यक्ति था। कासलरिआ ने लिखा था : “सबसे बड़ा खतरा जार से है, जो पेरिस से बहुत प्रभावित है। अपने देश के निरंकुश शासन के विपरीत, वह यहाँ उदारता और सहिष्णुता का प्रदर्शन कर तुष्टि और प्रभाव चाहता है।” वास्तव में, अलेक्जेंडर निरंकुश और क्रांति-विरोधी था, लेकिन रूस के बाहर उदारता का मुखौटा लगाना उसे लाभकारी लगता था। वह यूरोपीय राज्यों का एक ईसाई सिद्धांतों पर आधारित पवित्र संगठन बनाना चाहता था। मेटरनिख उसे ‘पागल’ समझता था, लेकिन उसकी शक्ति से इंग्लैंड और ऑस्ट्रिया भयभीत रहते थे। कासलरिआ और ड्यूक आफ वेलिंगटन

इंग्लैंड के कासलरिआ और ड्यूक ऑफ वेलिंगटन

इंग्लैंड का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री कासलरिआ और ड्यूक ऑफ वेलिंगटन ने किया। नेपोलियन को पराजित करने में ड्यूक ऑफ वेलिंगटन की प्रमुख भूमिका थी, जिसके कारण उन्हें सर्वश्रेष्ठ सेनापति माना जाता था। किंतु कूटनीति की जिम्मेदारी कासलरिआ पर थी। योग्य होने के बावजूद, कासलरिआ अंतर्मुखी और शंकालु था, यहाँ तक कि वह अपना रसोइया साथ लाया था। वह मेटरनिख की तरह धोखा नहीं देता था, लेकिन उसे धोखा देना भी मुश्किल था। इंग्लैंड के औपनिवेशिक हितों की सुरक्षा में वह सफल रहा। मेटरनिख के बाद वियना कांग्रेस में कासलरिआ का ही स्थान था।

फ्रांस का तालिरां

फ्रांस का प्रतिनिधि तालिरां था, जिसने अपना जीवन पादरी के रूप में शुरू किया था। क्रांति के दौरान वह क्रांतिकारी बना और नेपोलियन के उदय पर क्रांति-विरोधी हो गया। 1797 से 1807 तक वह नेपोलियन के अधीन फ्रांस का विदेश मंत्री रहा। स्पेन और पुर्तगाल पर आक्रमण का विरोध करने के कारण उसकी नेपोलियन से अनबन हो गई थी। नेपोलियन उसे “रेशमी कपड़ों में लिपटा हुआ गोबर का टुकड़ा” कहता था। अपनी कूटनीति के बल पर तालिरां ने वियना कांग्रेस में वैधता के सिद्धांत को स्वीकृत कराने में सफलता प्राप्त की, जिससे उसे सम्मान मिला।

इसके अलावा, ऑस्ट्रिया के शासक फ्रांसिस, प्रशा के शासक फ्रेडरिक विलियम, हार्डेनबर्ग, हुमबोल्ट और नेपोलियन-विरोधी सुधारक स्टाइन सहित कई राजा, राजकुमार और कूटनीतिज्ञ वियना में उपस्थित थे। हार्डेनबर्ग राष्ट्रवाद और सैन्यवाद में विश्वास करता था और अपने देश को शक्तिशाली बनाने का लक्ष्य रखता था।

वियना कांग्रेस के प्रमुख सिद्धांत

वियना कांग्रेस के निर्णय न्यायपूर्ण नहीं थे, क्योंकि इनके आधार और कार्य-प्रणाली अनैतिक थीं। रंगारंग कार्यक्रमों के बीच राष्ट्रों की सीमाओं जैसे महत्त्वपूर्ण मसलों पर निर्णय लिए गए। फिर भी, निम्नलिखित चार सिद्धांतों के आधार पर निर्णय किए गए:

वैधता का सिद्धांत

वैधता का सिद्धांत तालिरां ने मेटरनिख के सहयोग से पारित करवाया, ताकि फ्रांस में बूर्बो राजवंश पुनर्स्थापित हो। इसके तहत उन राजवंशों को पुनः स्थापित किया गया जो फ्रांसीसी क्रांति या नेपोलियन के युद्धों के कारण अपदस्थ हो गए थे। फ्रांस में बूर्बो वंश के लुई अठारहवें को गद्दी पर बैठाया गया। किंतु जहाँ यह सिद्धांत विजेताओं के हित में नहीं था, वहाँ इसकी अनदेखी की गई।

शक्ति-संतुलन का सिद्धांत

शक्ति-संतुलन का सिद्धांत विशेष रूप से फ्रांस को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया। यूरोपीय देश नेपोलियन के युद्धों से त्रस्त थे और स्थायी शांति चाहते थे। इसके तहत फ्रांस के चारों ओर मजबूत राष्ट्रों, जैसे हॉलैंड और बेल्जियम का निर्माण किया गया।

क्षतिपूर्ति का सिद्धांत

नेपोलियन के विरुद्ध संघर्ष में भाग लेने वाले देशों को हुई हानि की भरपाई के लिए फ्रांस से मुआवजा लिया गया।

पुरस्कार और दंड का सिद्धांत

नेपोलियन को पराजित करने वालों को पुरस्कार और उनकी सहायता करने वालों को दंड दिया गया। उदाहरण के लिए डेनमार्क से नॉर्वे छीनकर स्वीडन को दे दिया गया, क्योंकि स्वीडन ने मित्र राष्ट्रों की मदद की थी।

इन सिद्धांतों का पालन नैतिक मानदंडों के बिना किया गया और जहाँ आवश्यक हुआ, उनकी अवहेलना की गई। तालिरां की कूटनीति के कारण आठ राज्यों—इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया, रूस, प्रशा, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल और स्वीडन—की एक समिति बनी और जनवरी 1815 में फ्रांस को पाँचवाँ राज्य माना गया। 18 उपसमितियाँ बनाई गईं, लेकिन पाँच बड़े देशों का ही प्रभुत्व रहा। वास्तव में, वियना कांग्रेस लूट के माल के बँटवारे का जमघट थी।

वियना कांग्रेस के प्रमुख निर्णय

वैधता के सिद्धांत के आधार पर: फ्रांस में बूर्बो वंश का अधिकार स्वीकार किया गया। लुई XVI और उनके पुत्र की मृत्यु के बाद उनके भाई लुई अठारहवें को शासक बनाया गया।

फ्रांस से संबंधित निर्णय: नेपोलियन की पत्नी मैरी लुईस को परमा की रियासत दी गई। फ्रांस से सभी जीते गए प्रदेश छीन लिए गए और उसकी सीमाएँ 1791 की स्थिति में लौटा दी गईं। फ्रांस में वेलिंगटन के नेतृत्व में मित्र राष्ट्रों की 1,50,000 सैनिकों को पाँच वर्ष के लिए रखा गया। युद्ध के हर्जाने के रूप में फ्रांस को 70 करोड़ फ्रैंक (लगभग 1400 लाख डॉलर) देना था।

शक्ति-संतुलन के लिए: फ्रांस के उत्तर में हॉलैंड को बेल्जियम देकर सुदृढ़ किया गया और ऑरेंज परिवार को पुनर्स्थापित किया गया। दक्षिण-पूर्व में सार्डिनिया को पीडमॉन्ट, सवॉय, नीस और जिनेवा लौटाए गए। पोप को चर्च का राज्य वापस मिला।

जर्मनी में: पवित्र रोमन साम्राज्य को पुनर्जनन असंभव था, इसलिए 38 राज्यों का एक ढीला-ढाला संघ बनाया गया, जिसका नेतृत्व ऑस्ट्रिया को सौंपा गया।

स्पेन और नेपल्स में: बूर्बो वंश और प्राचीन राजवंश पुनर्स्थापित किए गए।

ऑस्ट्रिया को: लोम्बार्डी, वेनेशिया, गैलिसिया (पोलैंड का हिस्सा) और टाइरोल का क्षेत्र दिया गया।

प्रशा को: राइनलैंड, कोलोन, ट्रायर और स्वीडन का पोमेरेनिया क्षेत्र दिया गया। सैक्सनी का हिस्सा भी प्रशा को मिला।

स्वीडन को: नॉर्वे दिया गया, क्योंकि बर्नाडोट ने नेपोलियन के विरुद्ध मदद की थी।

रूस को: फिनलैंड और पोलैंड का हिस्सा वापस मिला।

स्विट्जरलैंड: स्वतंत्र गणतंत्र माना गया और तीन कैंटन जोड़े गए।

हैनोवर: स्वतंत्र राज्य माना गया।

इंग्लैंड को: हेलगोलैंड, मॉरीशस, माल्टा, त्रिनिदाद, टोबैगो, लंका, और दक्षिण अफ्रीका का केप ऑफ गुड होप दिया गया। बदले में, इंग्लैंड ने हॉलैंड को 60 लाख पाउंड मुआवजा दिया।

सामाजिक-आर्थिक निर्णय: इंग्लैंड, हॉलैंड, फ्रांस और स्पेन ने दास प्रथा का उन्मूलन स्वीकार किया। भूमध्य सागर में बारबेरी समुद्री डाकुओं का अंत करने के लिए ब्रिटिश नौसेना ने कार्रवाई की और हजारों ईसाई बंदियों को मुक्त करवाया। यूरोप की अंतरराष्ट्रीय नदियों में जहाजरानी के नियम बनाए गए और अंतरराष्ट्रीय कानून के क्रियान्वयन पर विचार हुआ।

वियना कांग्रेस के निर्णयों का मूल्यांकन

नेपोलियन के युद्धों से त्रस्त यूरोप को वियना कांग्रेस से बड़ी उम्मीदें थीं। यह शांति स्थापित करने में सफल रही, लेकिन कई निर्णय अनुचित और अनैतिक थे। मेटरनिख के नेतृत्व में प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद का दमन किया गया। बेल्जियम, नॉर्वे, पोलैंड और इटली की जनाकांक्षाओं को नजरअंदाज किया गया। वैधता का सिद्धांत कुछ परिवारों के हित में था। नॉर्वे और बेल्जियम ने बाद में स्वतंत्रता हासिल की। सैक्सनी और पोलैंड के साथ मनमाना व्यवहार हुआ। गेंज ने कहा : “कांग्रेस का लक्ष्य विजित प्रदेशों की लूट का बँटवारा था।”

शक्ति-संतुलन का सिद्धांत केवल फ्रांस पर लागू हुआ। इंग्लैंड की शक्ति अक्षुण्ण रही और बढ़ी। हेजेन के अनुसार वियना में उच्च आदर्शों का अभाव और स्वार्थों का बोलबाला था। उन्नीसवीं सदी का यूरोपीय इतिहास वियना की भूलों को सुधारने का इतिहास है।

फिर भी, वियना कांग्रेस ने कुछ व्यवहारिक और दूरदर्शी निर्णय लिए। डेविड टॉमसन के अनुसार इसमें राजनैतिक सूझबूझ और तर्कसंगतता थी। अगले 40 वर्षों तक यूरोप में कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ। फ्रांस के प्रति उदार नीति अपनाई गई और ‘संयुक्त यूरोपीय व्यवस्था’ का गठन हुआ, जो राष्ट्रसंघ और संयुक्त राष्ट्र का अग्रदूत सिद्ध हुआ। दास प्रथा, नाविक व्यापार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्णयों ने यूरोप के नवनिर्माण और उदार दृष्टिकोण को दर्शाया। मेरिएट के अनुसार यद्यपि कांग्रेस प्रतिक्रियावादी थी, यह एक पुराने युग की समाप्ति और नए युग का आरंभ थी।

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