सुदूर दक्षिण भारत के तमिल प्रदेश में प्राचीनकाल में जिन राजवंशों का उत्कर्ष हुआ, उनमें चोलों का विशिष्ट स्थान है।
Category: प्राचीन इतिहास
पल्लव राजवंश का राजनीतिक इतिहास (Political History of Pallava Dynasty)
आंध्र-सातवाहनों के पतन के बाद दक्षिण में उदित होने वाले राजवंशों में पल्लवों का विशिष्ट स्थान है, जिन्होंने कृष्णा और
बंगाल के पाल (Palas of Bengal, 800-1200 AD)
आठवीं शती के मध्य में भारत के पूर्वी भाग में जिस शक्तिशाली और महत्वपूर्ण साम्राज्य की स्थापना हुई, उसे भारत
बनवासी का कदंब राजवंश (Kadamba Dynasty of Banavasi)
कदंब राजवंश (345-540 ईस्वी) कदंब राजवंश प्राचीन भारत का एक राजसी ब्राह्मण परिवार था, जिसने चतुर्थ शताब्दी ईस्वी के मध्य
बंगाल का सेन वंश (Sen Dynasty of Bengal)
12वीं शताब्दी के मध्य में भारत के बंगाल में सेन राजवंश ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया और 160 वर्ष तक
राष्ट्रकूट राजवंश का राजनीतिक इतिहास (Political History of Rashtrakuta Dynasty)
राष्ट्रकूट राजवंश ने लगभग दो सौ वर्षों से अधिक समय तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े भूभाग पर शासन किया।
राष्ट्रकूट राजवंश का पतन (Fall of Rashtrakuta Dynasty)
खोट्टिग (967-972 ई.) कृष्ण तृतीय नि:सन्तान मरा था। करहद अभिलेख (शक संवत् 894) के अनुसार कृष्ण तृतीय की मृत्यु के
कृष्ण तृतीय (Krishna III, 939-967 AD)
अमोघवर्ष तृतीय के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र और युवराज कृष्ण तृतीय 939 ई. में राष्ट्रकूट राजवंश की गद्दी पर बैठा।
अमोघवर्ष द्वितीय, गोविंद चतुर्थ और अमोघवर्ष तृतीय (Amoghavarsha II, Govind IV and Amoghavarsha III, 929-939 AD)
अमोघवर्ष द्वितीय (929-930 ई.) इंद्र तृतीय के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र अमोघवर्ष द्वितीय 928 ई. के आसपास मान्यखेट के राष्ट्रकूट