राजेंद्र द्वितीय (1052-1064 ई.) अपने भाई राजाधिराज (1044-1054 ई.) की कोप्पम् के युद्ध में मृत्यु के बाद चोल राजगद्दी पर
Category: प्राचीन इतिहास
विक्रम चोल (Vikram Chola, 1122-1135 AD)
कुलोत्तुंग प्रथम की मृत्यु के बाद 1122 ई. में विक्रम चोल राजसिंहासन पर बैठा, जिसे पुलिवेंदन कोलियार कुलपति उर्फ राजय्यार
परांतक द्वितीय (Parantaka II, 957-973 AD)
सुंदरचोल अरिंजय की मृत्यु (957 ई.) के बाद अन्विल ताम्रपत्र में उल्लिखित उसकी रानी वैदुम्ब राजकुमारी कल्याणी से उत्पन्न पुत्र
कुलोत्तुंग प्रथम (Kulottunga I, 1070-1122 AD)
कुलोत्तुग (कुलोथुंग) प्रथम के सिंहासनारोहण से चोल इतिहास में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। कलिंगत्तुप्परणि में कहा गया है
वीरराजेंद्र चोल (Virarajendra Chola, 1063-1070 AD)
राजेंद्र द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका अनुज वीरराजेंद्र 1063 ई. के लगभग चोल राजपीठ पर आसीन हुआ। यद्यपि राजेंद्र
राजाधिराज प्रथम (Rajadhiraja I, 1044-1054 AD)
राजाधिराज प्रथम राजेंद्रचोल प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राजाधिराज राजकेशरी 1044 ई. में चोल राजगद्दी पर बैठा। किंतु
राजेंद्र प्रथम (Rajendra Chola I, 1014-1044 AD)
राजराज की मृत्यु के बाद उसकी कोडुंबलुर की राजकुमारी थिरिपुवना (त्रिभुवन) महादेवी से उत्पन्न पुत्र राजेंद्र प्रथम 1014 ई. में
राजराज प्रथम (Rajaraja I, 985-1014 AD)
चोल राजवंश की महत्ता का वास्तविक संस्थापक परांतक द्वितीय (सुंदर चोल) की वानवन महादेवी से उत्पन्न पुत्र राजकेशरी अरुमोलिवर्मन (अरुलमोझिवर्मन)
परांतक प्रथम (Parantaka I, 907- 955 AD)
आदित्य प्रथम की मृत्यु के अनंतर 907 ई. में इसका पुत्र परांतक प्रथम चोल राजसिंहासन का उत्तराधिकारी हुआ, जिसने 955