राजराज तृतीय के उपरांत 1252 ई. में राजेंद्र तृतीय चोल राजसिंहासन पर बैठा। संभवतः राजराज तृतीय ने 1246 ई. में
राजराज तृतीय (Rajaraja Chola III, 1218-1256 AD)
कुलोत्तुंग तृतीय की मृत्यु के पश्चात् राजराज तृतीय 1218 ई. में चोल राजगद्दी पर बैठा, जो संभवतः कुलोत्तुंग का पुत्र
कुलोत्तुंग तृतीय (Kulottunga III, 1178–1218 AD)
कुलोत्तुंग तृतीय ‘परकेशरिवर्मन’ चोल राजवंश का अंतिम महान शासक था, जिसने 1178 से 1218 ई. तक शासन किया। राजाधिराज द्वितीय
राजराज द्वितीय (Rajaraja II, 1150-1173 AD)
कुलोत्तुंग द्वितीय के पश्चात् उसका पुत्र राजराज द्वितीय 1150 ई. में चोल राजवंश की गद्दी पर बैठा। कुलोत्तुंग द्वितीय ने
कुलोत्तुंग द्वितीय (Kulottunga II, 1135-1152 AD)
कुलोत्तुंग द्वितीय, कुलोत्तुंग (प्रथम) का पौत्र और विक्रमचोल का पुत्र था, जिसे 1133 ई. में ही युवराज बनाया गया था,
राजेंद्र द्वितीय (Rajendra II, 1052-1064 AD)
राजेंद्र द्वितीय (1052-1064 ई.) अपने भाई राजाधिराज (1044-1054 ई.) की कोप्पम् के युद्ध में मृत्यु के बाद चोल राजगद्दी पर
विक्रम चोल (Vikram Chola, 1122-1135 AD)
कुलोत्तुंग प्रथम की मृत्यु के बाद 1122 ई. में विक्रम चोल राजसिंहासन पर बैठा, जिसे पुलिवेंदन कोलियार कुलपति उर्फ राजय्यार
परांतक द्वितीय (Parantaka II, 957-973 AD)
सुंदरचोल अरिंजय की मृत्यु (957 ई.) के बाद अन्विल ताम्रपत्र में उल्लिखित उसकी रानी वैदुम्ब राजकुमारी कल्याणी से उत्पन्न पुत्र
कुलोत्तुंग प्रथम (Kulottunga I, 1070-1122 AD)
कुलोत्तुग (कुलोथुंग) प्रथम के सिंहासनारोहण से चोल इतिहास में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। कलिंगत्तुप्परणि में कहा गया है