प्रायः माना जाता है कि भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों की कोई सार्थक भूमिका नहीं रही है, किंतु ऐसा नहीं
Category: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में पूँजीपति वर्ग की भूमिका (Role of Capitalist Class in Indian National Movement)
औपनिवेशिक शासन के दौरान 19वीं सदी के मध्य में भारतीय पूँजीपति वर्ग का विकास हुआ, लेकिन भारतीय पूँजीपति विदेशी पूँजी
1935 के अधिनियम के अधीन प्रांतों में कांग्रेसी सरकारें (Congress Governments in the Provinces under the Act of 1935)
सविनय अवज्ञा आंदोलन की समाप्ति (1934) के बाद कांग्रेस के अंदर गंभीर मतभेद पैदा हो गये, जैसे इससे पहले असहयोग
19वीं शताब्दी के सुधार आंदोलनों के प्रभाव और प्रमुख प्रवृत्तियाँ (Influences and Major Trends of 19th Century Reform Movements)
सामाजिक सुधार उन्नीसवीं सदी के सांस्कृतिक जागरण का प्रमुख प्रभाव सामाजिक सुधार के क्षेत्र में देखने को मिला। इसका कारण
19वीं सदी में मुस्लिम, पारसी एवं सिख सुधार आंदोलन (Muslim, Parsi and Sikh reform movements in the 19th century)
मुस्लिम सुधार आंदोलन उन्नीसवीं शताब्दी में न केवल हिंदू समाज में जागरण लाने के लिए सुधार आंदोलन प्रारंभ हुए, बल्कि
दयानंद सरस्वती और आर्य समाज (Dayanand Saraswati and Arya Samaj)
दयानंद सरस्वती (1824-1883) आधुनिक भारत के चिंतक और आर्य समाज’ के संस्थापक थे। उन्होंने वेदों के प्रचार के लिए मुंबई
19वीं सदी में पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में सुधार आंदोलन (Reform Movements in Western and Southern India in the 19th Century)
पश्चिमी भारत में सुधार आंदोलन पश्चिमी भारत में सुधारों की शुरूआत उन्नीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में दो अलग-अलग तरीकों
19वीं सदी में बंगाल में सुधार आंदोलन ( Reform Movement in Bengal in the 19th Century)
अठारहवीं शताब्दी में यूरोप में एक नवीन बौद्धिक लहर चली, जिसके फलस्वरूप जागृति के एक नये युग का सूत्रपात हुआ।
सांप्रदायिक निर्णय, पूना समझौता और गांधीजी का हरिजनोद्धार आंदोलन (Communal Award, Poona Pact and Gandhiji’s Harijan Upliftment Movement)
सांप्रदायिक निर्णय गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिमों एवं सिखों के साथ अनुसूचित जाति के महत्त्वपूर्ण राजनीतिज्ञ डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अछूतों