माउंटबेटन योजना, जिसे 3 जून योजना के रूप में भी जाना जाता है, भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा 1947 में प्रस्तावित की गई थी। इसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता देना और देश का विभाजन करना था।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1940 के दशक में भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच गहरे मतभेद थे। मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग की, जबकि कांग्रेस एक अखंड भारत की पक्षधर थी।
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लॉर्ड माउंटबेटन की नियुक्ति
लॉर्ड माउंटबेटन को फरवरी 1947 में भारत का वायसराय नियुक्त किया गया। उनका मुख्य कार्य भारत को स्वतंत्रता देना और हिंदू-मुस्लिम तनाव को हल करना था।
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3 जून 1947 को माउंटबेटन ने अपनी योजना प्रस्तुत की, जिसमें भारत को दो स्वतंत्र देशों - भारत और पाकिस्तान - में विभाजित करने का प्रस्ताव था।
योजना का प्रस्ताव
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प्रांतों का विभाजन
योजना के तहत पंजाब और बंगाल प्रांतों को धार्मिक आधार पर विभाजित किया गया। सिख, हिंदू और मुस्लिम आबादी के आधार पर सीमाएँ निर्धारित की गईं
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रियासतों की स्थिति
स्वतंत्रता के समय भारत में 565 रियासतें थीं। माउंटबेटन योजना ने इन रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया।
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स्वतंत्रता की तारीख
योजना में 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता की तारीख निर्धारित की गई। पाकिस्तान को 14 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली।
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विभाजन का प्रभाव
विभाजन के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए। हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों की मृत्यु हुई।
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सीमा निर्धारण
सर सिरिल रैडक्लिफ को भारत-पाकिस्तान सीमा निर्धारित करने का कार्य सौंपा गया। रैडक्लिफ रेखा ने दोनों देशों की सीमाएँ तय कीं, जो आज भी विवादास्पद है।
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माउंटबेटन योजना का महत्व
माउंटबेटन योजना ने भारत और पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र राष्ट्रों का निर्माण किया। यह दक्षिण एशिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसके प्रभाव आज भी देखे जा सकते हैं।