भारत के सुदूर दक्षिण तमिल प्रदेश में प्राचीनकाल में चोलों राजवंश का उत्कर्ष हुआ था। 

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प्राचीन  चोल राज्य, चोडमंडलम् पेन्नार और बेल्लारु नदियों के बीच स्थित था।

सबसे पहले चोलों ने उरगपुर (तमिलनाडु में त्रिचनापल्ली के निकट उरैयूर) में अपनी राजधानी स्थापित की लेकिन बाद मे कावेरीपट्टनम्, तंजुवुर (तंजोर) तथा गंगैकोंडचोलपुरम् भी इनकी राजधानियाँ बनीं। 

चोल साम्राज्य का राजकीय चिन्ह बाघ था, जो उनके ध्वज पर भी अंकित मिलता है

चोल शासकों द्वारा  तमिल एवं संस्कृत को राजकीय भाषा के रूप में अपनाया गया था।इसके शासकों के अभिलेख संस्कृत, तमिल और तेलुगू भाषाओं में मिले है। 

 चोल राजवंश का एक महत्वपूर्ण शासक करिकाल था, इसके बाद चोल वंश की शक्ति क्षीण हो गई और वे शक्तिशाली पल्लवों, चालुक्यों और राष्ट्रकूटों के अधीन सामंत बनकर रह गये।

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9वीं सदी के उत्तरार्द्ध से विजयालय के नेतृत्व में चोलों की शक्ति का पुनरुत्थान हुआ और देखते ही देखते चोल सुदूर दक्षिण की एक महान् शक्ति बन गये। 

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