10 मई 1857 को मेरठ से शुरू हुई यह क्रांति ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला बड़ा विद्रोह थी। सिपाहियों ने दिल्ली की ओर कूच किया और इसे स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत माना जाता है।
मंगल पांडे ने बैरकपुर में 29 मार्च 1857 को चर्बी वाले कारतूस के खिलाफ बगावत की। उन्होंने दो ब्रिटिश अधिकारियों पर हमला किया, जिससे क्रांति की शुरुआत हुई।
मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को दिल्ली में विद्रोहियों ने अपना नेता घोषित किया। उन्होंने क्रांति को समर्थन दिया, लेकिन बाद में उन्हें बंदी बना लिया गया।
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। उनकी वीरता और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया।
तात्या टोपे ने कानपुर और ग्वालियर में क्रांति को संगठित किया। उनकी रणनीति ने ब्रिटिश सेना को कड़ी चुनौती दी।
नाना साहब पेशवा ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने सिपाहियों को एकजुट कर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी।
अवध की बेगम हजरत महल ने लखनऊ में क्रांति का नेतृत्व किया। उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी।
80 साल की उम्र में कुंवर सिंह ने जगदीशपुर (बिहार) में विद्रोह का नेतृत्व किया। उनकी वीरता ने ब्रिटिश सेना को हैरान कर दिया।
कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने मेरठ में क्रांति की शुरुआत में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सिपाहियों को एकजुट किया और दिल्ली तक कूच किया।
दरियाव सिंह गुर्जर, झलकारी बाई, और हजारों सिपाहियों ने इस क्रांति में हिस्सा लिया। यह विद्रोह दिल्ली, लखनऊ, झांसी, और कानपुर जैसे क्षेत्रों में फैल गया।