प्रशा का उत्थान और फ्रेडरिक महान (Rise of Prussia and Frederick the Great)

सत्रहवीं एवं अठारहवीं सदी में ब्रेंडनबर्ग की डची के आधार पर प्रशा का उत्थान हुआ। ब्रेंडनबर्ग नामक एक छोटा-सा राज्य म्यूज एवं एल्ब नामक नदियों के बीच में स्थित था। इसके स्थानीय शासक की नियुक्ति पवित्र रोमन सम्राट द्वारा की जाती थी। दसवीं सदी में ब्रेंडनबर्ग राज्य की स्थापना स्लाव जाति के आक्रमणों से रक्षा के लिए रक्षा-चौकी के रूप में की गई थी, किंतु धरे-धीरे ब्रेंडेनबर्ग के शासक अपनी शक्ति में वृद्धि कर ओडर तथा एल्ब नदियों के मध्य के विस्तृत प्रदेश पर अपना अधिकार स्थापित कर लिये। पवित्र रोमन सम्राट ने 1415 ई. में हहेनजालर्न वंश का एक राजकुमार फ्रेडरिक को ब्रेंडनबर्ग का शासक (मार्ग्रेव) बनाया और और दो साल बाद उसे ब्रेंडनबर्ग का एलेक्टर की उपाधि से विभूषित किया।

यूरोपीय इतिहास में तीसवर्षीय युद्ध 1618-1648 ई. (Thirty Year War in European History 1618-1648 AD)

16वीं शताब्दी में जर्मनी के भयंकर रूप से फैलनेवाले लूथरवाद का प्रभाव ब्रेंडनबर्ग में भी पड़ा। वहाँ के शासक ने भी लूथर धर्म को स्वीकार कर लिया तथा कैथालिक चर्च की राजनीतिक सत्ता को वहाँ से समाप्त कर दिया। अब ब्रेंडेनबर्ग का नाम उत्तरी जर्मनी के प्रमुख प्रोटेस्टेंट राज्यों में गिना जाने लगा। तीसवर्षीय युद्ध से हहेनजालर्न वंश को परोक्ष रूप से विशेष लाभ हुआ। वेस्टफेलिया की संधि से ब्रेंडनबर्ग को कुछ क्षेत्रों का तो लाभ हुआ, किंतु तीसवर्षीय युद्ध के कारण ब्रेंडेनबर्ग की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी। ब्रेंडेनबर्ग को इस संकटपूर्ण स्थिति से बाहर निकालने का श्रेय फ्रेडरिक विलियम (1640-1688 ई.) को प्राप्त है।

फ्रेडरिक विलियम (Frederick William)

वास्तव में प्रशा के ऐतिहासिक उत्थान की कहानी ब्रेडेनबर्ग के हहेनजालर्न राजवंश से ही संबंधित है। हहेनजालर्न राजवंश का फ्रेडरिक विलियम 1640 ई. में प्रशा का शासक हुआ। उसे ‘‘इलेक्टर महान्’ भी कहा जाता है। किंतु फ्रेडरिक विलियम के समक्ष अनेक चुनौतियाँ थी। राज्य में तीन अलग-अलग इकाइयाँ थीं- ब्रेंडेनबर्ग, क्लीब्स और पूर्वी प्रशा। इन तीनों इकाइयों की परंपराएँ, रीति-रिवाज, प्रशासनिक व्यवस्था, संसद व सैन्य संगठन सभी एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न थे। इसलिए इनके एकीकरण की समस्या सबसे प्रमुख थी। दूसरी ओर तीसवर्षीय युद्ध के कारण आर्थिक स्थिति चौपट हो गई थी और देश की जनसंख्या लगभग आधी रह गई थी। सैन्य व्यवस्था क्षत-विक्षप्त थी। विलियम अपने राज्य में एक एकीकृत और सुदृढ़ प्रशासन की स्थापना करना चाहता था। बाह्य क्षेत्र में उसका प्रमुख उद्देश्य राज्य के बिखरे हुए क्षेत्रों को जोड़ना और पूर्वी प्रशा को पालैंड के सामंती नियंत्रण से मुक्त कराना था।

फ्रेडरिक विलियम के सुधार (Frederick William’s Reformation)

फ्रेडरिक विलियम ने ब्रेडेनबर्ग के विकास और उन्नति के लिए अपने संपूर्ण साधनों को लगा दिया और आधुनिक प्रशा के निर्माण की नींव डाली।

केंद्रीकरण की नीति : फ्रेडरिक विलियम ने निरंकुश राजतंत्र स्थापित कर अपने राज्य का राजनीतिक एकीकरण किया। उसने प्रांतीय सभाओं के अधिकारों को सीमित कर दिया और स्थानीय सेना के स्थान पर एक केंद्रीकृत सेना का निर्माण किया। उसने तीनों इकाइयों की परिषदों को भंग कर बर्लिन में एक केंद्रीय परिषद बनाई और संपूर्ण उच्च पदों पर नियुक्तियों का अधिकार स्वयं अपने हाथों में ले लिया। इस प्रकार केंद्रीकरण कर उसने स्थानीय शक्तियों को नियंत्रित कर दिया।

आर्थिक सुधार: देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए विलियम ने उद्योग-धंधों एवं कृषि-व्यवस्था को प्रोत्साहित किया। ओडर एवं एल्ब नदियों को नहर द्वारा जोड़ दिया गया। दलदलों को सुखाकर कृषि योग्य वनाया गया। उसने कृषकों को ऐसी जमीनों पर काम करने के लिए छः वर्ष तक करों से मुक्ति दी जो तीसवर्षीय युद्ध के कारण बंजर हो गई थी। पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए डचों को देश में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहित किया गया और आयात पर से चुंगियाँ हटा दी गईं। उसने सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत कारखानों को बढ़ावा दिया और फ्रांसीसी प्रोटेस्टेंटों को बर्लिन में बसाने के लिए विशेष सुविधाएँ दी, जिससे ब्रेंडेनबर्ग में उद्योग, व्यापार व वाणिज्य का तेजी से विकास हुआ।

धार्मिक सहिष्णुता की नीति: विलियम ने तीसवर्षीय युद्ध से जलते हुए यूरोप की विभीषिका को देखा था। इसलिए उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। उसने विदेशी प्रोटेस्टेंटों व यहूदियों को बर्लिन में बसने दिया। इसका उसे आर्थिक लाभ हुआ। एक तो ये जातियाँ कुशल व्यापारी एवं कारीगर थीं, दूसरा ब्रेंडेनबर्ग की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई।

फ्रेडरिक विलियम की विदेश नीति (Frederick William’s Foreign Policy)

फ्रेडरिक विलियम ने जिस समय ब्रेंडेनबर्ग की सत्ता सँभाली उस समय ब्रेंडेनबर्ग में स्वीडेन की सेनाएँ थी। विलियम ने तुरंत तीसवर्षीय युद्ध से ब्रेंडेनबर्ग को तटस्थ कर स्वीडेन से संधि कर ली जिसके कारण स्वीडिश सेनाएँ ब्रेंडेनबर्ग से तुरंत हट गईं।

1655 ई. में जब स्वीडन व पोलैंड का युद्ध हुआ तो विलियम ने परिस्थिति के अनुसार कभी एक का साथ दिया, तो कभी दूसरे का। 1657 ई. में उसने पोलैंड से संधि कर ली। संधि के अनुसार पोलैंड ने पूर्वी प्रशा पर ब्रेंडेनबर्ग का अधिकार स्वीकार कर लिया। 1660 ई. में पोलैंड व स्वीडेन का युद्ध समाप्त होते ही दोनों ने पूर्वी प्रशा पर ब्रेंडेनबर्ग के अधिकार को मान्यता दे दी।

1667-68 ई. के डेवोल्यूशन के युद्ध में विलियम ने प्रारंभ में फ्रांस का साथ दिया, किंतु लुई चौदहवें की साम्राज्यवादी नीति से आक्रांत होकर उसने डच युद्ध (1672-1678 ई.) में हॉलैंड का साथ दिया। इच युद्ध की समाप्ति पर निमवेजिन की संधि के अनुसार यद्यपि उसे पश्चिमी पोमेरोविया छोड़ना पड़ा, किंतु प्रशा को युद्ध के क्षतिपूर्ति के रूप में 3 लाख क्राउन मिले।

विलियम को 1686 ई. में आस्ट्रियन सम्राज्य से संधि करनी पड़ी जिसके अनुसार उसे साइलेशिया पर आस्ट्रिया के प्रभुत्व को स्वीकार करना पड़ा, लेकिन उसे श्बोबस का क्षेत्र मिल गया।

इस प्रकार फ्रेडरिक विलियम ने अपनी आंतरिक नीतियों द्वारा ब्रेंडेनबर्ग को न केवल राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सुदृढ़ करने का कार्य किया, बल्कि समयानुकूल विदेश नीति अपनाकर ब्रेंडेनबर्ग की सीमाओं में वृद्धि कर उसे एक सुसंगठित व शक्तिशाली राज्य का स्वरूप प्रदान कर दिया। इससे प्रशा की उन्नति का मार्ग स्वतः ही प्रशस्त हो गया। संभवतः इसीलिए फ्रेडरिक विलियम को महान् निर्वाचक कहा जाता है।

फ्रेडरिक तृतीय (Frederick III)

फ्रेडरिक विलियम की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र फ्रेडरिक तृतीय (1688-1713 ई.) उसका उत्तराधिकारी बना। लेकिन उसे राजा की उपाधि नहीं मिली। 1701 ई. में उसे प्रशा का राजा स्वीकार किया गया। फ्रेडरिक तृतीय अपने पिता के सदृश प्रतिभावान नहीं था, किंतु उसने अपने पिता के सदृश ही आर्थिक एवं धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई। 1713 ई. की यूट्रैक्ट की संधि में यूरोपीय राज्यों ने प्रशा को राजतंत्र के रूप में मान्यता प्रदान कर दी।

फ्रेडरिक विलियम प्रथम ( Frederick William I)

फ्रेडरिक तृतीय के पश्चात् उसका पुत्र फ्रेडरिक विलियम प्रथम (1713-1740 ई.) प्रशा का उत्तराधिकारी बना। फ्रेडरिक विलियम प्रथम में बौद्धिक प्रतिभा का अभाव था और वह संदेहशील प्रवृत्ति का था, किंतु उसमें पूर्ण व्यावहारिकता, स्पष्टवादिता एवं निर्भीकता विद्यमान थी। इतिहासकार हेज ने तो प्रशा के उत्थान के लिए फ्रेडरिक विलियम प्रथम के प्रयत्नों को ही उत्तरदायी माना है।

फ्रेडरिक विलियम प्रथम की उपलब्धियाँ (Achievements of Frederick William I)

फ्रेडरिक विलियम प्रथम प्रबुद्ध निरंकुश राजतंत्र का समर्थक था। उसके स्वयं के शब्दों में, ‘मोक्ष को छोड़कर सभी कार्य व अधिकार राजा के कार्य-क्षेत्र में निहित हैं।’ अपने इन्हीं विचारों के अनुरूप उसने शासन का महत्व केंद्रीकरण किया। उसने एक केंद्रीय डायरेक्टरी की स्थापना की। डायरेक्टरी के अधीन ही अर्थ एवं सैन्य-संबंधी कार्य कर दिये गये। प्रांतीय एवं स्थानीय संस्थाओं को डायरेक्टरी के ही अधीन कर दिया गया। व्यापार एवं वाणिज्य के विकास के उद्देश्य से कच्चे माल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई। विदेशी माल पर चुंगियाँ लगाई गई। मर्केन्टाइल नामक अर्थनीति का अनुसरण किया गया। राजकोष में वृद्धि की गई, इसके लिए राजकीय खर्चों में मितव्ययता की नीति अपनाई गई।

फ्रेडरिक विलियम प्रथम का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य प्रशा को एक सुसंगठित विशाल एवं शक्तिशाली सेना से युक्त करना था। इतिहासकार हेज के अनुसार, ‘उसने अपने सैनिको की संख्या 38.000 से बढ़ाकर 80,00 तक पहुँचा दी जो कि फ्रांस व आस्ट्रिया जैसे प्रथम श्रेणी के राज्यों के सदृश थी।’ यही नहीं, उसने बेरोजगार एवं बेकार लोगों को सेना में भर्ती किया। उसने अपने लिए अंगरक्षक दल भी नियुक्त किया, जिसे इतिहास में पोस्टबम गाई ऑफ गेंट्स’ के नाम से जाना जाता है। इस दल में उसने विदेशियों को भी स्थान दिया।

जर्मनी का एकीकरण (Unification of Germany)

विलियम प्रथम ने समस्त राज्य को सैन्य दृष्टि से विभित्र कैंटनों में विभक्त कर दिया। उसका सैन्य-खर्च राज्य की कुल आय का 70 प्रतिशत तक था। अनुशासन एवं राज्य भक्ति ही सैनिकों का प्रमुख आदर्श था। उसने सेना अनुशासन कायम करने के लिए सैनिक वर्दी पहनकर स्वयं सेना का निरीक्षण आरंभ किया। अपनी सैन्य-शक्ति के बल पर ही उसने स्वीडेन पर आक्रमण कर स्वीडिश पोमेरानिया पर अधिकार किया था।

इस प्रकार विलियम प्रथम ने प्रशा को सैन्य-दृष्टि से सुसंगठित किया। हेज के शब्दों में, ‘फ्रेडरिक विलियम प्रथम के शासनकाल में प्रशा में हहेनजालर्न वंश का शासन आर्थिक एवं सैनिक दृष्टि से शक्तिशाली बन गया। 1740 ई. में फ्रेडरिक विलियम प्रथम की मृत्यु हो गई और उसके पश्चात् उसका पुत्र फ्रेडरिक द्वितीय प्रशा का उत्तराधिकारी बना।

फ्रेडरिक द्वितीय (Frederick II)

प्रशा का उत्थान और फ्रेडरिक महान (Rise of Prussia and Frederick the Great)
फ्रेडरिक महान

प्रशा के शासकों में फ्रेडरिक द्वितीय इतिहास में‘ फ्रेडरिक महान’ (1740-1786 ई.) के नाम से जाना जाता है। फ्रेडरिक का जन्म 1712 ई. में हुआ था। उसका पिता फ्रेडरिक विलियम प्रथम उसे सैन्य दृष्टि से सक्षम देखना चाहता था, इसलिए उसने उसकी सैनिक शिक्षा का उत्तम प्रबंध किया। किंतु फ्रेडरिक द्वितीय अपने पिता के अत्यंत कठिन एवं नियंत्रित अनुशासन वाले जीवन से अत्यंत दुःखी था। उसकी रुचि साहित्य, संगीत एवं कला की ओर थी। वह उदार चरित्र एवं गहन चिंतन का आकांक्षी था। उस पर फ्रांसीसी सभ्यता एवं संस्कृति का गहरा प्रभाव था। उसने बाल्यावस्या में अपने मित्र लेफ्टिनेंट बन कांट के साथ प्रशा से भाग जाने का प्रयत्न किया, किंतु अत्यंत सजग फ्रेडरिक विलियम प्रथम ने उसके इस प्रयत्न को विफल कर दिया और उसे सैनिक व प्रशासकीय शिक्षा प्रदान की गई। 1733 ई. में उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध एलिजाबेथ क्रिस्टीना से कर दिया गया। 1740 ई. में फ्रेडरिक विलियम प्रथम की मृत्यु के बाद फ्रेडरिक द्वितीय प्रशा का शासक बना और 1786 ई. में अपनी मृत्यु-पर्यंत प्रशा का शासन-सूत्र अपने हाथों में रखा।

फ्रेडरिक की आंतरिक नीति और सुधार (Frederick’s Internal Policy and Reforms)

फ्रांसीसी दार्शनिक रूसों, वाल्तेयर, मांटेस्क्यू एवं दिदरो से प्रभावित फ्रेडरिक महान एक प्रबुद्ध निरंकुश शासक था। अपने शासनकाल के पूर्वार्द्ध में युद्धों में व्यस्त रहने के कारण उसे प्रशासन में सुधारों की ओर ध्यान देने का अवसर नहीं मिला, किंतु अपने शासनकाल के उत्तरार्द्ध में उसने प्रशासन में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किये और प्रशा को सुसंगठित और सुव्यवस्थित करने का प्रयास किया।

प्रबुद्ध निरंकुशता की नीति: फ्रेडरिक महान् एक प्रबुद्ध निरंकुश शासक था। वह प्रशा को सुव्यवस्थित एवं सुसंगठित चाहता था। शासक के संदर्भ में उसका विचार था कि ‘राजा प्रजा का निरंकुश अधिपति न होकर राज्य का प्रथम सेवक है।’ स्वयं उसी के शब्दों में, ‘ राज्य में राजा का स्थान मस्तिष्क के समान है। राजा ही राज्य का सर्वप्रधान न्यायाधीश, अर्थव्यवस्था का संगठनकर्ता व मंत्री होता है। वह राज्य का प्रतिनिधि है।’ फ्रेडरिक महान् ने अपने विचारों के अनुरूप ही अपने प्रशासन का संचालन किया और महत्वपूर्ण सुधार किये।

फ्रेडरिक ने कर वसूल करने वाले कर्मचारियों पर कड़ी नजर रखी और राज्य की आय का उसने स्वयं निरीक्षण करना आरंभ कर दिया। वह स्वयं भी एक-एक पैसे का हिसाब रखता था, चाहे उसका निजी खर्चा हो या राज्य का। इस प्रकार फ्रेडरिक ने प्रशासकीय फिजूलखर्ची को रोकने का प्रयत्न किया।

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अर्थव्यवस्था में सुधार: यद्यपि अपने शासन के प्रारंभ से ही फ्रेडरिक युद्धरत हो गया था, किंतु उसने कृषि एवं उद्योग को विस्मृत नहीं किया। उसने प्रशा की अर्थव्यवस्था को सुसंगठित स्वरूप प्रदान करने का अथक प्रयत्न किया। इसके लिए उसने सबसे पहले कृषि के विकास की ओर ध्यान दिया और किसानों एवं जमींदारों को वैज्ञानिक ढंग से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। पहली बार आलू की खेती बड़े पैमाने पर शुरू की गई जो आज भी जर्मन लोगों का मुख्य भोजन है। कृषि-योग्य भूमि का विस्तार किया गया, बंजर व दलदल भूमि को कृषि योग्य बनाया गया और नहरों एवं सड़कों का निर्माण किया गया। कृषि की उन्नति के लिए कृषकों के करों में कमी की गई और पशुओें की नस्लों में सुधार किया गया।

फ्रेडरिक ने आर्थिक विकास के लिए उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित किया। ऊन और लिनेन का उत्पादन बड़े पैमाने पर प्रारंभ करवाया गया और रेशम उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया। विदेशियों को प्रशा में बसने के लिए आमंत्रित किया गया। व्यापार में संरक्षण की नीति ने प्रशा को आर्थिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध बना दिया।

सेना का संगठन: अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रशा को महत्वपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए फ्रेडरिक ने एक कुशल सेना का संगठन किया। उसने आर्थिक सुधार के बल पर सेना में सैनिकों की संख्या 80,000 से बढ़ाकर 2 लाख तक पहुँचा दिया। उसकी सेना अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तो संपूर्ण यूरोप के लिए प्रतीक बन गई। इस प्रकार अपनी सैन्य व्यवस्था के द्वारा फ्रेडरिक प्रशा को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण पर प्रतिष्ठित करने में सफल भी हुआ।

न्यायिक सुधार: फ्रेडरिक महान् ने न्यायिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण सुधार किये। उसने समस्त राज्य में प्रचलित कानूनों एवं विधियों संकलित कर उन्हें और अधिक सरल बनाने का प्रयास किया और संपूर्ण प्रजा के लिए एक जैसी न्याय-व्यवस्था लागू की। फौजदारी मुकदमों में अपराध स्वीकृति के लिए मंत्रणा देनेवाली प्रथा को समाप्त कर दिया गया और न्यायाधीशों से सत्य न्याय की अपील की गई। किसी निर्दोष के दंडित होने पर न्यायधीश को भी दंड दिया जाता था। इस प्रकार उसने प्रशा को न्यायिक राज्य बना दिया।

सांस्कृतिक कार्य: सांस्कृतिक विषयों में फ्रेडरिक की सहज रूचि थी। उसने कला, साहित्य, दर्शन और शिक्षा के विकास पर भी बहुत ध्यान दिया। प्रशा में प्राइमरी स्कूलों की स्थापना की गई और फ्रांसीसी विद्वानों को प्रशा आमंत्रित किया गया। फ्रेडरिक के अनुरोध पर वाल्तेयर उसके दरबार में मित्र की भाँति रहने लगा था, यद्यपि बाद में दोनो में बन न सकी। खाने की मेज पर वह राजनीति से अधिक साहित्य की चर्चा करना पसंद करता था। उसने उच्च शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और एक निश्चित सीमा तक भाषण, लेखन एवं मुद्रण की स्वतंत्रता दी। राजधानी बर्लिन में अकादमियाँ स्थापित की गईं और लेखकों, कलाकारों को संरक्षण दिया जाने लगा। विज्ञान में फ्रेडरिक की विशेष रूचि थी, इसलिए ऐसी परंपराएँ डाली गईं जिनका विकास होने पर दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक देशों में प्रशा का नाम गिना जाने लगा।

धार्मिक नीति: यह सही है कि फ्रेडरिक महान की निष्ठा प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रति नहीं थी, किंतु उसने धार्मिक मामले में कठोर नीति का पालन नहीं किया। वह बौद्धिक विचारों से प्रभावित था। स्वयं उसी के शब्दों में ‘यदि तुर्क प्रशा में बसने के इच्छुक हों तो मैं प्रशा में मस्जिदों का निर्माण करवा दूँगा। प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुसार स्वर्ग में जाने का अधिकारी है।’ इतना होते हुए भी वह यहूदियों के प्रति सहिष्णु नहीं था। प्रशा में यहूदियों को न तो पूर्ण स्वतंत्रता थी और न ही पूरे अधिकार प्राप्त थे। प्रशा में बसने के लिए उन्हें पहले आज्ञा भी लेनी पड़ती थी।

फ्रेडरिक द्वितीय की विदेश नीति (Foreign Policy of Frederick II)

फ्रेडरिक द्वितीय की विदेश नीति के मूलतः दो उद्देश्य थे- एक, जर्मनी में प्रशा के प्रभुत्व को स्थापित करना और दूसरा, आस्ट्रिया के हैप्सबर्ग साम्राज्य की प्रतिष्ठा को नष्टकर यूरोप की राजनीति में प्रशा के हहेनजालार्न वंश के गौरव को स्थापित करना। अपने इन इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए फ्रेडरिक ने साम्राज्य विस्तार की नीति अपनाई और समकालीन यूरोप में होनेवाले युद्धों में भाग लिया। उसकी दष्टि में प्रशा के हित के लिए संधियों की पवित्रता एवं नैतिकता का कोई मतलब नहीं था। उसके स्वयं के शब्दों में, ‘जो कुछ तुम प्राप्त कर सकते हो करो, इसमें तुम तब तक गलत नहीं हो सकते जब तक तुम्हें कुछ वापस न लौटाना पड़े।’ अपने इन्हीं सिद्धांतों के अनुसार उसने यूरोप की राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लिया।

आस्ट्रिया के उत्तराधिकार की समस्या: प्रशा की समृद्धि के लिए साइलेशिया का प्रदेश बहुत महत्वपूर्ण था। फ्रेडरिक द्वितीय ने साइलेशिया को छीनने व आस्ट्रिया की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए आस्ट्रिया के उत्तराधिकार की समस्या में भाग लिया एवं मारिया थेरेसा के उत्तराधिकार को चुनौती दी। 1740 ई. के पूर्व प्रशा ने प्राग्मेटिक अध्यादेश को स्वीकार किया था, लेकिन जैसे ही चार्ल्स षष्टम की मृत्यु हुई, फ्रेडरिक ने मारिया थेरेसा के उत्तराधिकार को अमान्य घोषित कर दिया। उसने आस्ट्रिया के अधीनस्थ क्षेत्र साइलेशिया पर आक्रमण कर दिया और 1740 ई. में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार का युद्ध प्रारंभ हो गया। यद्यपि अंत में 1748 ई. में एक्सला-शैपेल की संधि के अनुसार उसे मारिया थेरेसा के उत्तराधिकार को मान्यता देनी पड़ी, किंतु साइलेशिया पर प्रशा का अधिकार मान लिया गया।

सप्तवर्षीय युद्ध: मारिया थेरेसा को 1748 ई. में मजबूर होकर साइलेशिया पर प्रशा के अधिकार को मान तो लिया था, लेकिन वह साइलेशिया को पुनः प्राप्त करने के लिए लालायित थी। अगस्त, 1757 ई. को फ्रेडरिक द्वितीय ने बिना कोई सूचना दिये सेक्सनी पर आक्रमण कर दिया, जिससे यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध आरंभ हो गया। अंत में, 15 फरवरी, 1763 ई. में प्रशा व आस्ट्रिया के मध्य ह्यूबर्ट्स की संधि से युद्ध समाप्त हुआ। इस संधि के अनुसार साइलेशिया पर प्रशा का अधिकार मान लिया गया।

पालैंड का प्रथम विभाजन: फ्रेडरिक द्वितीय ने प्रशा की प्रतिष्ठा में वृद्धि के लिए पालैंड के प्रथम विभाजन में भी हिस्सा लिया। सप्तवर्षीय युद्ध की समाप्ति के नौ वर्ष पश्चात् फ्रेडरिक ने पोलैंड के प्रथम विभाजन में रूस और आस्ट्रिया के साथ हिस्सा लिया। फ्रेडरिक को इस विभाजन से पश्चिमी पोलैंड का क्षेत्र मिला जिससे प्रशा की सीमाएँ पूरब में रूस के करीब पहुँच गईं। जिससे प्रशा की प्रतिष्ठा यूरोप में बढ़ गई। इस प्रकार फ्रेडरिक महान प्रशा को यूरोप की राजनीति में प्रतिष्ठित करने में पूरी तरह सफल रहा।

प्रशा का उत्थान और फ्रेडरिक महान (Rise of Prussia and Frederick the Great)
प्रशा का उत्थान

फ्रेडरिक द्वितीय का मूल्यांकन (Evaluation of frederick II)

फ्रेडरिक द्वितीय की उपलब्धियों के मूल्यांकन के संदर्भ में इतिहासकार एकमत नहीं हैं। जहाँ एक ओर लॉर्ड एक्टन ने लिखा है कि प्रबुद्ध निरंकुशता के युग में फ्रेडरिक महान् प्रबुद्ध निरंकुश शासकों में सर्वश्रेष्ठ था। उसके शासनकाल में धर्म के स्थान पर दर्शन को स्थान प्राप्त हुआ। वह सहिष्णु व उदार था। वहीं दूसरी ओर गूच लिखता है कि प्रजाहित, निरंकुशता के सिद्धांत और व्यवहार का श्रेष्ठ व्याख्याकार फ्रेडरिक महान् मूलतः अरचनात्मक था। ऐसी व्यवस्था की सफलता निःसंदेह व्यक्तिगत योग्यता पर ही आधारित थी।

जर्मन इतिहासकारों ने फ्रेडरिक द्वितीय की विदेश एवं सैन्य नीति की बड़ी प्रशंसा की है। रांके के अनुसार, फ्रेडरिक महान् ने केवल वही विजयें की जो कि प्रशा के सम्मान व सुरक्षा के लिए नितांत आवश्यक थीं। उसने तलवार का प्रयोग तभी किया जब उसे इसकी सख्त जरूरत थी। वास्तव में अठारहवीं शताब्दी के यूरोप में राज्य विस्तार के लिए नैतिकता साधारण नियम था। व्यावहारिक मापदंड से वह निःसंदेह प्रशंसा का पात्र था। इसके विपरीत उसके आलोचकों का कहना है कि वह अत्यंत आक्रामक था और इस दृष्टि से उसने समस्त यूरोप को अपनी आक्रामक कार्यावाहियों से रौंद डाला था। मारिया थेरेसा ने उसे यूरोप के लिए ‘महान् आपत्ति’ बताया था।

इस प्रकार फ्रेडरिक द्वितीय एक कुशल सैनिक, दक्ष सेनानायक, चतुर राजनीतिज्ञ, महान् सुधारक और प्रबद्ध निरंकुश शासक था। उसने अपनी नीतियों के द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि जर्मनी में आस्ट्रिया का एकाधिकार नहीं चल सकता। लेकिन गृहनीति के क्षेत्र में उसके सुधार स्थायी सिद्ध नहीं हुए। वह उदात्त एवं प्रबुद्ध अवश्य था, किंतु उसने देश में कट्टर निरंकुशता स्थापित करके अपने उद्देश्यों के अनुरूप किसी ऐसी नूतन व्यवस्था को जन्म नहीं दिया, जिसे उसके निर्बल उत्तराधिकारी यथावत् जारी रखते। फिर भी, यूरोप के इतिहास में फ्रेडरिक द्वितीय की गणना महान शासकों में की जाती है और यूरोप में अपनी प्रतिष्ठा के लिए प्रशा सदैव उसका सदा ऋणी रहेगा।

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